Tuesday, December 16, 2008

दिल का हाल सुने दिलवाला....

तन्मय सीरीज़ पार्ट

"तन्मय, तुमसे बड़ा ईडिअट मैंने आज तक नहीं देखा | विश्वास नहीं होता की तुम ऐसा कर सकते हो| क्यों तन्मय ? क्यों किया ऐसा तुमने ?" गुस्से में सुजाता कुछ भी कह रही थी |
"कम ओन, इसमे इतनी बड़ी बात क्या है ? " बड़ी सरलता से तन्मय ने कहा|
"बड़ी बात क्या है? ये तुम कह रहे हो | याद है तुम ही ने मुझे इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया था | मैं जानती हूँ तन्मय की इसके साथ क्या कुछ जुडा था तुम्हारा | इतना बड़ा प्रोजेक्ट फ़ेल हो गया तन्मय और तुमने मुझे बताया ही नहीं | मैं समझती थी की तुम मुझे अपना दोस्त समझते हो| तुमने इस काबिल भी नहीं समझा की अपनी बात खुल कर बता सको | छिः ! और ऊपर से मुझे ये कहा की सब मस्त हो गया | ये मस्त हुआ है? हाँ ?" सुजाता जाने क्यों इतना भड़क रही थी |
"तुम्हें किसने बताया ?" सवाल सीधा था|
"अरे इतनी भी डम्बो नहीं हूँ मैं | हाँ , हाय लेवल पर नहीं हूँ पर ग्रुप में तो हूँ | क्या समझे ? तुम नहीं बताओगे तो मुझे पता नहीं चलेगा? अब समझी मैं, क्यों इतने दिनों से मेरे सामने आते कतराते थे | एक पल में ही पराया कर दिया, नहीं क्या?" अब गुस्सा कम होते होते स्वर में उदासीनता झलक रही थी | और दरअसल गम और गुस्से का फर्क ज़्यादा होता भी नहीं है | कब क्या कौन सा रूप ले ले पता नहीं चलता |
"नहीं मैं तुम्हे भी दुखी नहीं करना चाहता था | जो हुआ सो हुआ | अब क्या कर सकते हैं ? तुम अभी अभी आई हो | और तुमने इतनी मेहनत की थी उस प्रोजेक्ट में, तुम्हें निराशा नहीं दिखनी चाहिए नहीं तो तुम्हारा मोरल डाउन हो जाएगा | " मुस्कुराते हुए तन्मय ने कहा |
"पर तुम ऐसा किस तरह कर पाये | इतना सब कुछ हो गया और तुम हँसते रहे | और तो और, तुमने मुझसे जगह भी पूछी जहाँ मंजुला को ले के जा सको | मैं समझी वाकई सब सही है | आई ऍम सो डम्ब ना !" माथे पर हाथ रखते हुए सुजाता ने कहा |
"ईडिअट! तुम्हारा बर्डे था उस दिन,पर बहुत देर हो गई थी | तुम्हारा ट्रीट भी देना है | उस दिन तो नहीं जा सके पर ये जानना चाहता था की किस जगह तुम्हें अच्छा लगता है | ताकि फिर कभी जा सकें | चलें आज, फ्रेश चोइस ? "खिलखिलाते हुए तन्मय ने कहा |
"शट अप्! मुझे अच्छी तरह से पता है की तुम किस दौर से गुज़र रहे हो | और ज़्यादा एक्टिंग मत करो | चलो वाक कर के आते हैं | और मुझे बताओ की ऐसा कैसे हुआ ? सब तो सही लग रहा था | एकदम सब फ़ेल कैसे हो गया ? " डांट ते हुए सुजाता ने कहा |

तन्मय ने वाक के दौरान सब विस्तार में बताया की किस तरह उसके कुछ प्रतिद्वंदियों ने कपट से उसका प्रोजेक्ट फ़ेल किया है , हालाँकि प्रोजेक्ट के लॉन्च से सबका भला होता | पर यह ज़ाहिर था की इसकी नाकामयाबी पर तन्मय बहुत बदल गया था | खुशी का मुखौटा जो उसने ओढ़ रखा था , उसके उतरते ही वो बहुत ही दिप्रेस्स्ड और चुप सा दिखने लगा |

किसी हँसते खेलते दोस्त को मुरझाते देख अच्छा नहीं लगता |

"कोई बात नहीं तन्मय फिर से ट्राई करेंगे | ये सब तो चलता रहता है | बुरे वक्त के कारण ही अच्छे दौर की कदर होती है | और बड़ी बात ये है की अब तुम्हे दोस्त-दुश्मनों की पहचान भी हो गई ताकि तुम उनसे सावधान रह सको | " सुजाता अपनी नसीहतें देने में देर नहीं करती थी |
"मेरी माँ, अब बस करो | "हाथ जोड़ते हुए तन्मय बोला | पर हँसी अब भी गायब थी |
"ऐसे कैसे बस करुँ? ऐसे ही मौकों के लिए मेरे पास बहुत सारे फंडे हैं | सुनाऊं? " तन्मय को हँसाना ज़रूरी था |
"ऐसे हाथ को क्रॉस कर के क्यों खड़े हो जैसे की अभी मुझसे लड़ने वाले हो ..." सुजाता ने बात बदलनी चाहिए |
"अब क्या लडूंगा? जहाँ लड़ना था वहां तो कुछ नहीं कर पाया ... सुजाता , बात घूम फिर कर वहीँ आ जाती है | हम चाहे जितना भी , कुछ भी कर लें , पर ये आख़िर नौकरी ही है, और हम हैं - नौकर !" अब धीरे धीरे रोष निकल रहा था |
अच्छा है, गम और गुस्से में फर्क नहीं होता | और दोनों का निकल जाना हरियाली की ओर पहला क़दम है |
तन्मय की बात जैसे अभी शुरू ही हुई थी -"तुम मानोगी नहीं , पिछले एक साल से मैंने क्या नहीं किया है ? गधे की तरह, दिन रात , सब कुछ भूल कर , लगा हुआ हूँ, सब लोग जानते हैं की कैसे हमने इस प्रोडक्ट को स्टार्ट किया है | ऐसे कैसे सब भूल सकते हैं लोग ? पता है सुजाता , मेरा एक प्रॉब्लम है , मैं अपने काम की मार्केटिंग नहीं करता , शायद इसी वजह से ... | "
"नहीं तन्मय , सब लोग जानते हैं , अच्छे वर्कर को पब्लिसिटी की ज़रूरत नहीं होती| और हाँ , सब जानते हैं तुम्हारी काबिलियत को | तुम्हें किसीको कुछ प्रूव करने की ज़रूरत ही नहीं है | "बीच में ही सुजाता बोल उठी |
"पर अब बहुत हो गया | तमन्ना को जानती हो न, मेरी बॉस , उसको पता है मेरा काम, फिर भी अपने दोस्त को ही सप्पोर्ट करती है | ओके , अब बहुत हो गया | अब मैं आठ घंटे ही काम करूंगा | अब और नहीं ... न पैसे बढाते हैं, न प्रमोशन देते हैं... न प्रोजेक्ट लॉन्च करते हैं.... कोई करे तो क्या करे ! " तन्मय की आवाज़ अब बहुत दूर दूर तक सुनी जा सकती थी |
"तन्मय मुझे पता है ! टीम में ही अगर लोग गुट बनाकर पॉलिटिक्स करने लगें तो बहुत मुश्किल हो जाता है | पर तुम रीयाक्ट मत करो , रेस्पोंसिब्ली एक्ट करो | देखना सब ठीक हो जाएगा | इश्वर का शुक्र करो की इस ख़राब इकोनोमी में तुम्हारे पास एक जॉब है | पता है , मेरे पास एक बहुत बड़ी दवा है , इस सिचुअशन से लड़ने का | " सुजाता बोली|
"ऐसा क्या है , ज़रा हम भी तो सुनें ..."तन्मय ने फिर से हाथों को क्रॉस किया , जैसे की लड़ने की पूरी तयारी में हो!
"तुम्हारी गुडिया है न, मुझे पता है उसमे तुम्हारी जान है .." सुजाता ने धीरे से कहा ..
"हाँ , वो तो है ... पर तुम्हें कैसे पता ?" तन्मय को आश्चर्य हुआ |
"अरे, लो कर लो बात ....एनीवे... मैं कह रही थी की ... आज ही अपने रूम में उसकी एक फोटो ठीक चेहरे के सामने लगाओ और रोज़ अपनी डायरी में एक बात ऐसी लिखो जो उसने कही हो या की हो | देखना अपने आप सब भूल कर मन अच्छा हो जाएगा | दरअसल, जब हम जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ भूल जाते हैं .. तो शायद जीवन भी हमें भूल जाता है | जीवन को फिर से अपने जीवन में लाओ तन्मय, सारेगामापा देखते हो? उसमे अस्मा कहती है न? .........." मुश्किल नहीं है "| है नहीं ..? " सुजाता की बात ख़तम होने से पहले ही तन्मय बोल पड़ा- "ओह माय गोड! शी इज सो क्यूट ! अरे यार , उस से पहले वो भी थी न, कौन थी वो ? माली नहीं मौली , माय गोड !, मैं मंजुला से कहता था - देखना ये लड़की जीतेगी ... मैया मैया..... क्या मस्त गाती थी मालूम .. "

सुजाता समझ गई थी की उसका दोस्त अब लौट आया है |
अब तन्मय हंस रहा था, बाकी सब बातें भूल के .. पुराने दिनों जैसे|
अब उसकी खुशी दिखावटी नहीं थी |

"तन्मय , याद है , कॉलेज में स्प्रिंग फेस्ट में हम सबने मिलकर एक गाना गाया था .. वो जो जीता वही सिकंदर से .. क्या था वो..." सुजाता याद करने की कोशिश करने लगी |
"अरे हाँ ! वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है .... टें टें टें टें टें .... अरे तुम भी गाओ न ... तुम भी तो ग्रुप में थी न ? याद नहीं है क्या ?" बड़ी मस्ती में तन्मय पूछ बैठा|
"चलो गाते हैं ..." सुजाता ने देख कर हँसते हुए कहा |

"वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है ,
हारी बाज़ी को जीतना जिसे आता है ,
निकलेंगे मैदान में जिस दिन हम झूम के ,
धरती डोलेगी ये क़दम चूम के,"

"नहीं समझे हैं , वो हमें, तो क्या जाता है ,
हारी बाज़ी को जीतना हमें आता है ".......................टें टें टें टें टें !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Saturday, December 13, 2008

कतरा कतरा मिलता है ..कतरा कतरा पीने दो ....

"सुजाता, लगता है मुझे अवोइड करने की कोशिश कर रही हो | क्यों सही कहा न ??" तन्मय ने मुस्कुराते हुए कहा |
"कोशिश नहीं तन्मय , कर रही हूँ | काम बहुत आ गया है " सुजाता ने व्यस्तता जताते हुए कहा |
"मेरी टीम को जोइन क्यों नहीं किया , और तो और, किसी इंडियन को नहीं बल्कि उस चपटे मेनेजर को चुना | मेरी रिपोर्ट बनती तो तुम्हारा करियर कहाँ पहुँच जाता , कुछ पता है ?" तन्मय अपना रोष निकाल रहा था |
"नहीं, दोस्त को बॉस नहीं बनाना चाहिए | कंफ्लिक्ट अफ इंटरेस्ट हो जाएगा | वैसे भी मेरी हामी तो नाम मात्र की थी , निर्णय तो पहले ही लिया जा चुका था | इतनी बड़ी कंपनी में पॉलिटिक्स भी बड़ी बड़ी होती है | अच्छा ये बताओ इस तरफ़ कैसे आना हुआ ? सर दर्द कर रहा है , काफी पीना है ? हा हा हा " सुजाता को वह पहला दिन याद आते ही हँसी नहीं रूकती थी |
"नहीं सूजी ! एक बहुत ज़रूरी लेख लिखना है , वैसे तो मुझे लिखना चाहिए पर प्लीज़ , तुम लिख दो | अगर ये प्रोजेक्ट सफल हो जाए तो लंच पे चलेंगे | पक्का!"फिर तन्मय ने विस्तार से बताया की इस प्रोजेक्ट का कितना महत्व था उसके लिए |
"ठीक है , चलेंगे, पर अभी नहीं , हो सके तो बारह तारीख फ्री रखना, उस दिन कुछ ख़ास है मेरे लिए , उस दिन चलेंगे, ओके? " सुजाता ने हँसते हुए कहा |
"तुम्हारा बर्थडे है क्या ?" हटात ही तन्मय पूछ बैठा |
"अरे नहीं ! इस उम्र में बर्थडे तो याद भी नहीं रहता ... उस दिन बताऊंगी क्या ख़ास है | अच्छा अब जाओ , मुझे बहुत काम है" सुजाता ने कंप्यूटर पर नज़रें गडाते हुए कहा |
कई दिनों की मेहनत के बाद प्रोजेक्ट का वह महत्वपूर्ण लेख तैयार हो गया |

प्रोजेक्ट कामयाब रहा |

आज बारह तारीख है | कई दिनों से तन्मय दिखा नहीं है | हाँ , इतनी ज़िम्मेदारी के काम पर समय का होश कहाँ रहता है ? चलो कोई बात नहीं | फोरगेट ईट ! यह सोच कर सुजाता अपने काम में लग गई |

डेढ़ बजे बड़ी ही हड़बड़ी में तन्मय ने फ़ोन पर पूछा - "क्या खाना वाना खा लिया क्या?"
कुछ सोच कर सुजाता ने कहा -"हाँ !" हालाँकि टेबल पर भरा हुआ बॉक्स रखा हुआ था , अन छुआ !
"चलो अच्छा हुआ | अभी पन्द्रह मिनट में मेरी एक और मीटिंग है | दस मिनट में खाना खाना है | चलो मैं भागता हूँ | बाद में फ़ोन करूंगा |" तन्मय के बात करते हुए खाने की आवाज़ साथ में आ रही थी |
"ओफ्फो, चैन से खाना खाया करो,एनीवे , तुम्हारी लाइफ है , जो चाहो.."

सामने ही अपने मेनेजर को देख कर सुजाता ने कहा -"चपटा सामने ही है, बाद में ..बाय "
"sujata, I have to go out for some work, can you attend the group meet on behalf of the group. It starts in seqoia at 2 in 10 minutes ? " उसने पूछा |
"स्युअर , नो प्रॉब्लम " सुजाता ने कहा और अपनी कॉपी लेकर चल दी सेकोइया की ओर|
दरवाज़ा खुलते ही सबसे पहले नज़र तन्मय पर ही पड़ी |
कभी कभी हम वही देखते हैं, शायद, जो हम देखना चाहते हैं ..
अच्छा, तो वह खाते खाते इसी मीटिंग की बात कर रहा था |
पर इस वक्त वह 'विरोधी' टीम से था | मीटिंग में कई बार सुजाता को तन्मय और अन्य लोगों की बातों का विरोध करना पड़ा और कई बार उसकी बातों को भी काटा गया | होता है ..

शाम को घर जल्दी जाना था , बच्चों को टाइम से लेना ज़रूरी है वरना फाईन लग जाएगा | और अभी बस एक ही घंटा बाकी है | पर जैसे कुछ बाकी रह गया था |
सुजाता से फ़ोन किया तन्मय को |
"क्या कुछ देर बाद तुम्हें फ़ोन करुँ?" जवाब में तन्मय ने दबे स्वर में कहा |
लगा जैसे कोई हाय - प्रोफाइल बात चीत चल रही थी वहाँ |
"ओके" कह कर सुजाता ने फ़ोन काट दिया |

आधे घंटे बाद सुजाता ने फ़िर कोशिश की फ़ोन मिलाने की, शायद कुछ ज़रूरी बात रह गई थी |
"सुजाता, कुछ देर में फ़ोन करता हूँ, पक्का " तन्मय की हाय -प्रोफाइल बात शायद अब भी चल रही थी|

काफ़ी देर इंतज़ार के बाद भी जब फ़ोन नहीं आया तो सुजाता ने अपना सिस्टम बंद करके अपना समान समेटा और चल दी | अभी कार खोला भी नहीं था की सेल पर रिंग बजी |
तन्मय कोलिंग ! तन्मय कोलिंग !
बार बार रिंग के साथ नाम फ्लैश हो रहा था |
"कहाँ हो ? तुम्हारे क्यूब की तरफ़ आ रहा हूँ " तन्मय ने कहा |
" मत जाओ , मैं घर जा रही हूँ | बहुत देर हो गई है , फिर कभी बात होगी " समान रखते हुए सुजाता बोली |
"क्या बात थी ? तुम कुछ कह रही थी ......" बिना रुके ही तन्मय कहता ही गया " अरे पूछो मत ! इस प्रोजेक्ट की वजह से दिन रात एक हो गए हैं | चलो आज ख़तम हुआ| मंजुला बहुत नाराज़ हो गई है | आज रात उसको बाहर डिनर पे ले कर जा रहा हूँ ! बताओ तो कौन सी जगह अच्छी रहेगी ?"
"फ्रेश चोइस ले जाओ , मस्त जगह है , बहुत आप्शन मिलेगी | " हँसते हुए सुजाता बोली |
"अच्छा चलो तन्मय अभी मैं ड्राइव कर रही हूँ , बाद में बात करेंगे | एंड यू गाएज़ हेव अ ग्रेट टाइम ! फ़न टाइम में काम की बात मत करना | और सारा ध्यान मंजुला को देना , वहाँ पर किसी गोरी को देख कर लाइन मारना शुरू मत कर देना ...... हेहेहे हेहेहे .." इसी बात पर दोनों बहुत ज़ोर से हँसे और अपने अपने रस्ते चल पड़े |

काम बहुत ज़रूरी है | काम ही पूजा है | ऐसा माँ कहती थी |
पर काम के साथ जीवन भी चलता है | और उसका महत्व भी कुछ कम नहीं होता ... होना नहीं चाहिए |

तन्मय जानता है की मैं उसके साथ कभी भी खाने पर नहीं जाऊंगी, शायद.... जा ही नहीं सकती | पर नाम मात्र को भी अगर मुझसे पूछ लिया होता तन्मय, तो मुझे बहुत खुशी होती |
पर मैं मानती हूँ तन्मय काम बहुत ज़रूरी है | काम ही पूजा है | ऐसा माँ कहती है |

अरे हाँ तन्मय , जल्दी में बताना भूल गई | आज वाकई मेरा जन्म दिन था |
.. पर इस उम्र में बर्थडे तो याद भी नहीं रहता......

जस्ट फोगेट ईट !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Saturday, November 29, 2008

मुड मुड के ना देख ...मुड मुड के ...

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

" सुजाता, कॉफी पीने चलोगी?" बहुत सकपकाते हुए तन्मय पूछ पाया था फ़ोन पर|

"चलो" एक शब्द का जवाब सुनकर शायद तन्मय को बहुत हैरानी हुई| सोचा था कुछ सवाल जवाब होगा | क्यों ? कहाँ ? कब ? कैसे ? कितनी सारी प्रक्टिस भी की थी उसने उन सवालों का अंदेशा कर के| सोचने लगा अब भूमिका कैसे बाँधूं? ...

कुछ देर की चुप्पी के बाद कुछ कुछ रटा रटाया बाहर ही गया -"दरअसल, मुझे बहुत ज़ोर से सर दर्द हो रहा है , इसलिए कॉफी पीने का मन कर रहा था | सो मैंने सोचा की अगर तुम भी चलती तो कुछ देर बैठ कर पुराने दिनों की बातें करते | कितना वक्त गुज़र गया है इस दौरान , है ना ? "
"हाँ, सही कह रहे हो ! काफ़ी कुछ गुज़र गया है...खैर , चलो " पीछे कंप्यूटर की टिक टिक बता रही थी की सुजाता फ़ोन पर बात करते करते अपना काम किए जा रही थी| इंसान कितने सारे काम एक साथ कर सकता है - फ़ोन पर बात करना, कंप्यूटर पर काम करना, पुरानी बातें याद करना, सोचना , मुस्कुराना ....

कहने को तो इंजीनियरिंग कॉलेज था पर बेहद रुढिवादी विचार धारा के लोग रहते थे वहां | आज के ज़माने की तरह चलन नहीं था तब | प्यार की कोई जुबां नहीं होती थी , कुछ कहा नहीं जाता था ............... शायद उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी | आपस की समझ बहुत तेज़ होती थी | हाँ , तभी तो प्रोफ़ेसर के सवाल पर कई बार सुजाता और तन्मय का जवाब एक ही साथ आता था ... एक ही जवाब ....चाहे सही हो या ग़लत ... फिर सबका हँसना .......... और दोनों का झेंपना ! आज कल कहाँ वो मासूमियत रही | शायद आज भी इश्क होता है , होता होगा .....

चार सालों में मुश्किल से चार बार उन्हें ऐसा वक्त मिला होगा जिसमे तसल्ली से वे कुछ बतिया सके हों | और उन्ही चार मुलाकातों में एक वो भी था-- फैरवेल पार्टी का आखरी दिन जब उन दोनों को मिल कर हॉल के गेट को सजानाथा | यूँ तो छः लोगों को मिल कर करना था ये काम पर जहाँ बाकी लोक नौ बजे की जगह ग्यारह बजे पहुंचे थे , तन्मय वहां पर सुबह आठ बजे से बैठा था | कोई बात नहीं हुई थी पर जाने कैसे सुजाता भी वहां सवा आठ बजे ही गई |
"मैं सोच रहा था की काम जल्दी हो जाए इसीलिए गया " तन्मय हड़बड़ी में कह उठा |
"ओफ्फो , मैंने तुमसे पूछा है क्या ? वो हथौडा देना " मुंह में सुई पकड़े सुजाता ने कहा |
"ये लो ..." बिना देखे हथौडा देते हुए हाथ अचानक सुजाता के हाथ से टकरा गया | हथौडा गिर गया | सुजाता के पाँव पर |
"आय ऍम सो सॉरी , ओह माय गौड़ ! रियली सॉरी ..." बड़े ही खेद भाव से तन्मय कहता गया, बार बार |
"इट्स ओके , अब अपना काम करो , सब लोग आते ही होंगे " सुजाता ने दर्द छुपाते हुए कहा |
"सुजाता , सुना है तुम प्लेसमेंट नहीं ले रही हो, डिग्री के बाद क्या प्लान है ? क्या शादी वादी..." कहना कुछ था और कुछ और ही कह रहा था |
"अरे नहीं ! अभी तो कुछ बनना है , आगे पढ़ना है ... अमेरिका जाना है .... और तुम क्या बनने की सोच रहे हो ?
"कुछ कुछ.... तो बन ही जाऊंगा .." मायूसी छुपाने की कोशिश करते तन्मय ने कहा |



"हाँ तन्मय , तुम वाकई कुछ बन गए हो " कॉफी पीने जाते हुए सुजाता ने कहा |
"तुम ने भी तो बहुत नाम कर लिया है बहुत अच्छा लगा सुनकर , वैसे मुझे बहुत सर दर्द हो रहा था , इसीलिए कॉफी पीने को तुम्हें कहा था , वरना और कोई बात नहीं है " तन्मय दोबारा सफाई दे रहा था |
"मैंने तुमसे पूछा है क्या ? तुम भी ....." मुंह बिचकाते हुए सुजाता बोली |
"क्या पिओगी?" कैफे में तन्मय ने पूछा |
"नहीं मैं अभी खाना खा कर आई हूँ , तुम पियो , मैं तो सिर्फ़ वाक करने के लिए आई थी | तुम ले लो ..फिर गप्पे मारेंगे..." कहते हुए वो काउंटर से दूसरी और चली गई |

सुजाता ने अभी अभी नई नौकरी शुरू की थी | पहले ही मीटिंग में एक पहचाने चेहरे को देख सुजाता की बोलती बंद हो गई थी | यहाँ तक की जब उसके बोलने की बारी थी तब भी उसे कुछ सूझ नहीं रहा था | क्या टी.के. ही तन्मय था ???? इतनी बार ईमेल से बात चीत हुई होगी इस टी.के के साथ , और कभी भी इसने बताया नहीं की ये ही ...| इसे तो पता होगा ....शायद नहीं...... नहीं नहीं ज़रूर पता होगा .... और फिर भी नहीं बताया .... क्यों?

सामने तन्मय एक कॉफी के दो हिस्से कर रहा था |
" क्यों कॉफी ठंडा कर रहे हो ? मिस्टर टी के ! " व्यंग करते हुए सुजाता बोली |
"हा हाहा हाहा दरअसल , एक साल से तुम्हें पहचान गया था पर कभी बात करने की हिम्मत नहीं हो पाई | फिर मैंने सोचा पता नहीं तुम यहाँ ज्वाइन करोगी भी या नहीं ... करो तो तुम्हे पता चल ही जायेगा और जो नहीं करो तो फिर नहीं की सी बात ...अरे हाँ कॉफी ठंडा नहीं कर रहा हूँ , तुम्हारे लिए आधा अलग कर रहा हूँ | ये लो ... " कप थमाते हुए कुछ बूँदें छलक गयीं |
" ओह आय ऍम सो सॉरी , आई रियली ऍम " नैपकिन देते हुए तन्मय फिर से वही प्रतीत हो रहा था - वही दस साल पहले वाला तन्मय - भोला भाला - घबराया हुआ सा - साफ़ दिल में बहुत सारा प्यार लिए...पर तब भी कितनी बंदिशें थीं और अब भी हैं , सिर्फ़ नाम बदल गए हैं |

"तन्मय कितने बच्चे हैं तुम्हारे ? और मैडम जॉब करती हैं ?" बात आगे बढाते हुए सुजाता ने पूछा |
"तुमसे एक बढ़कर है | तुम्हारे दो हैं और मेरे तीन हैं | मंजुला - माय वाइफ - काम नहीं करती है | अभी बच्चे छोटे हैं |" कॉफी पीते पीते तन्मय बोला |
"तुम्हें कैसे मालूम मेरे दो बच्चे हैं ? वैरी फनी !" सुजाता ज़रा घबरा गई |
" अरे डरो मत ! अक्तुअली मुझे हमारे डिपार्टमेन्ट के सब लड़कियों के बारे में बहुत कुछ पता है | मैं क्या..... मुझे लगता है , सब लड़कों को सब लड़कियों की हिस्ट्री और जिओग्राफी के बारे में बहुत कुछ पता होता है , और मैं तुम्हें पहले से जानता हूँ , तो रूचि होना स्वाभाविक है " कहते कहते मुस्कुराने लगा|
सुजाता ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी |
"तुम बहुत बदल गए हो तन्मय, विश्वास नहीं होता की ये तुम कह रहे हो , सच विश्वास नहीं होता !" हँसी दबाते हुए सुजाता चहकी |
"पर तुम बिल्कुल वैसी ही हो सुजाता, बिल्कुल वैसी, जैसी थी..... हाँ ये बात तो मैं भी मानता हूँ की विश्वास मुझे भी नहीं होता .... कभी सोचा ही नहीं था की तुमसे कभी बात होगी .... इस तरह ... can't just believe it .... "बड़ी संजीदगी थी कहने में |
"अच्छा चलो अपनी फॅमिली फोटो दिखाओ मुझे .. और हाँ ये बताओ की क्या क्या शौक़ हैं जनाब के ? म्यूजिक , डांस , स्पोर्ट्स क्या ..."बात बदलने के लिए नई बात छेड़ी सुजाता ने |
"पैसा कमाना - अब बस एक ये ही शौक़ रह गया है | इंडिया से इसी के लिए यहाँ आया और अब भी यहीं पड़ा हूँ पर अभी तक ना ही फाइनेंस में और ना ही पोजीशन में कुछ कमाल कर पाया हूँ , बस यही दुःख रहता है |" मुट्ठी भींचते हुए वो उत्तेजित हो गया |
"अरे अरे , ऐसा मत कहो , भगवान् गुस्सा हो जायेंगे | इश्वर का दिया सब कुछ है तुम्हारे पास , अगर कदर नहीं करोगे तो फिर अच्छा नहीं होगा .....उसका शुक्रिया अदा करो और खुश रहो .... " मस्त होकर सुजाता बोली |
"तुम्हारी यही बात मुझे सीखनी है - लाइफ को फुल जीना | कैसे करती हो ? " तन्मय का एक बहुत ही टिपिकल स्टाइल है बात करने का , खासकर जब वो बातों में बहुत तल्लीन हो जाता था - अपने हाथों को चेहरे केसामने रख कर , आंखों को छोटा छोटा कर घूरने की दृष्टि से एक स्मित मुस्कान लिए, देखना |
"छोटी छोटी बातों में खुशी ढूँढो तन्मय ! बहुत हिम्मत, हौसला और सुकून पाओगे | वैसे भी किसे पता है कल का ; तो आज तो बिंदास होकर रहो ... अरे एक बात तुम्हें याद है , जब में इंटर कॉलेज कांटेस्ट में गई थी तो तुमने एकगुड लुक्क चार्म दिया था मुझे - गणेश जी का एक लोकेट - पता है उसी लोकेट को थाम कर मैंने कितने सार कांटेस्ट जीते थे | बात किसी चीज़ की नहीं होती तन्मय, उसमे बसे विश्वास की होती है |" सुजाता बड़े भावः से कह रही थी और तन्मय उसे सुनकर , उसे देख कर मुस्कुराये जा रहा था |
"सुजाता, शादी के पहले किसी से दोस्ती नहीं हुई तुम्हारी ?" कुछ सुनने के ख्याल से सवाल उठाया तन्मय ने |
"मेरे बहुत सारे दोस्त हैं तन्मय | हाँ अगर तुम ये पूछ रहे हो की कोई अफयेर तो नहीं हुआ तो सुनो -इन सब बातों में लूक्स बहुत मायने रखता है - and I was never pretty enough !"
"I was ..what ?" तन्मय का अजीब सा सवाल आया |
"अच्छा बाबा आय वास नहीं , आय ऍम नोट प्रेटी एनफ , अब खुश ...?" सुजाता ने हँसते हुए कहा |
"अरे, मैं .." तन्मय बात पूरी नहीं कर पाया |

बहुत देर बातें होती रहीं- कुछ नई , कुछ पुरानी , कुछ हँसी, कुछ यूँ ही , कुछ अनकही, कुछ अनसुनी .....
"चलो चलते हैं बहुत बातें हो गयीं " उठते हुए सुजाता ने कहा|

कैफे के बाहर बारिश का मौसम था | हलके अंधेरे में स्ट्रीट लाइट की हलकी रौशनी सी छाई थी | बहुत सर्दी थी |
"चलो वापस चलते हैं, तुमने जैकेट भी नहीं पहनी है " अचानक सुजाता ने ध्यान दिया |
"नहीं नहीं , मुझे सर्दी नहीं लग रही है , कुछ और देर वाक कर सकते हैं , अगर तुम्हारा कोई ज़रूरी काम हो " तन्मय बुदबुदाते हुए चल रहा था |
" अरे वाह ! देखो कितना सुंदर है ये सीन , आय मीन , पूरा मैरीन ड्राइव लग रहा है , है ?" सुजाता ने कहा |

वो शाम का नज़ारा , बारिश की बूँदें , हलोजन बल्ब की मध्हम रोशनी ,हरसू खामोशी , उस पल का एहसास , किसी का साथ और दिल में सुकून , क्या कोई दौलत ऐसी खुशी दे सकता है | पता नहीं ...शायद नहीं....
तन्मय ने बहुत ही धीरे से कहा -"पता है सुजाता मैं करीब दस साल से इसी रस्ते जाता हूँ पर कभी देखा नहीं था शायद कभी ध्यान गया ही नहीं | वाक़ई आज बहुत सुंदर लग रहा है |"

वक्त बीतता रहा | देखते देखते ट्रेल पूरा हो गया |
"दरअसल मुझे बहुत सर दर्द हो रहा था, तभी मैंने कॉफी के लिए कहा था , वरना मैं तुम्हें दीस्तर्ब नहीं करता " कहते कहते तन्मय लिफ्ट से बाहर कर अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया |
"ओफ्फो " सुजाता ने लिफ्ट का दरवाज़ा बंद किया |

सुजाता अब लिफ्ट में अकेली थी |
"तन्मय , तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और हरदम रहोगे , और ये तुम जानते भी हो ....
... पर अब वक्त बदल गया है , ज़िन्दगी बदल गई है तन्मय , अब मुझे एक औरत की तरह नहीं एक दोस्त की तरह देखो तन्मय वरना ..... पता नहीं .... " सुजाता लिफ्ट में खड़ी खड़ी अपने आप से बात कर रही थी | सोच सोच कर खिल खिला रही थी |
"सोचो तो , अगर मैं आज के इस किस्से को मोनिका को बताऊँ तो हॉस्टल मैं कितन हल्ला होगा - ओहो ! सुजाता कॉफी पीने गई थी , तन्मय के साथ , क्या क्या हुआ , बताओ , क्या बातें हुयीं ? और.. साथ चाय पीना , और वों भी आधी आधी , बाकी गर्ल्स कितना जलेंगी ... आमने सामने बैठ कर बातें करना , कितना धमाका होगा हॉस्टल में, और फिर हम दोनों का साथ साथ टहलना, कॉलेज में जैसे आग लग जायेगी...
shut up , सुजाता कॉलेज बीते अरसा गुज़र गया है | ये ज़िन्दगी है , कॉलेज नहीं ....
सुजाता ने अपने पॉकेट से कुछ निकाला और मुस्कुराने लगी | कुछ खास नहीं था , एक पुराना सा गुड लक् चार्म था गणेशजी का ....

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
?

Wednesday, October 29, 2008

कम्बक़्त इश्क है जो.- सोनी_सीरीज़ पार्ट २

आज सोनी का जन्म दिन है | मुझे अच्छे से याद है | कैसे भूल सकती हूँ | हॉस्टल में उसे मेरे हाथ की बनी केक सबसे अच्छी लगती थी | किसी को नहीं देती थी | अकेले सारा का सारा खा लेती थी !
आज इतवार है | पता नहीं अभी उठी होगी की नहीं ..
"हे, सोनी, मैं हूँ ... उठ गई तुम ?" फ़ोन के उठते ही मैंने पूछा |
"एक मिनट , देता हूँ में ...हनी , योर्स ....." डिब्बे (उसका दोस्त जिसे मैं डिब्बा कहती हूँ ) की आवाज़ सुन कर मैं चौंक गई !
"हाय आर्ची ! कैसी हो? और सुनाओ ..." जिसको आवाज़ सुनने को मैं तरस रही थी अब उसकी आवाज़ सुन इतना गुस्सा आ रहा था ...
"ये क्या है सोनी, फिर तुम... क्यों ? .. नहीं यार .. मत करो..सब जान कर भी ... कैसे तुम ऐसे कर सकती हो .. " मेरा सवाल जैसे अटक रहा था | क्या पूछूं और कैसे ?
".......... ये डिब्बा तुम्हारे घर क्या कर रहा है ? " एक ही साँस में मैंने पूछ डाला |
"भजन -कीर्तन करने आया था ,और हाँ उसका नाम ऋषभ है ,डिब्बा नहीं !" सोनी ने चुटकी मारते हुए कहा | और ठहाके मार के हंसने लगी |
"ऐसे क्यों जवाब करती हो " रुआंसे भाव से मैंने कहा|
"और क्या कहूँ , तुम सवाल ही ऐसे करती हो | जब जानती हो तो पूछती क्यों हो .... मेरे मुंह से सुनने के लिए ... हाँ सोनी ये करती है .. सोनी वो करती है ... मैं भी इंसान हूँ, कोई मशीन नहीं.. हरेक की कुछ ज़रूरतें होती हैं .... बरडे गिफ्ट था मेरा ... ओ माय गोड ! इट वास सो कूल !" सोनी कहे जा रही थी और जाने किस कान से मैं सुने जा रही थी |
"यार जीवन तो ख़राब कर रही हो, अपना नाम पर दाग मत लगने दो | कल तुम्हें इस बात का अफ़सोस होगा ... बहुत अफ़सोस ... तुम्हारा भला चाहती हूँ | कहना फ़र्ज़ था , आगे तुम्हारी मर्ज़ी ..." शब्दों को फेंकते हुए मैंने कहा | बड़ी कोशिश कर रही थी की अपनी झुन्झुलाहट को ज़ाहिर न होने दूँ | पर उस पर मिठास की परत चढा नहीं पा रही थी | उसे अपना जो मानती थी और अपनी चीज़ का नुक्सान किसे अच्छा लगता है ?
"अच्छा सुन आर्ची आज मेरी पार्टी में तुझे आना आना है | बस तू , मैं और ऋषभ, कैसा रहेगा ? लंच 'अम्बर' में, मुझे वहां बहुत मज़ा आता है | देख आज मेरा जन्म दिन है , मेरी खुशी के लिए ही आजा, प्लीज़ !" उसने बड़े प्यार से कहा |
जी कर रहा था कह दूँ डिब्बे के साथ मैं खाने पे आऊँ , ऐसे बुरे दिन मेरे नहीं हैं ! पर आज उसका ख़ास दिन है और मुझे पता है अगर मैं न जाऊं तो वो दुखी होगी जो ग़लत होगा |
"कौन सा वाला अम्बर ?- 'संताना रो' वाला ? "
"ओ तुस्सी ग्रेट हो यारा , हाँ वही वही, एक बजे तक आ जाना | महसूस कर पा रही थी की मेरी स्वीकृति उसके लिए कितने मायने रखती है | चाहे कितना ही कोई फॉरवर्ड बन जायें , चाहत रहती है की हमारे अपने हमें अपनाएँ , मन से | पर मैं अभी तक सोनी के इस "माडर्न" रूप को अपना नही पायी थी पर अपनी नाराज़गी कभी और दिन समझाऊंगी उसे | आज उसके मन की होनी चाहिए | आज उसका दिन है |
बच्चों को तैयार कर इनके साथ सौकर क्लास भेजने के बाद मैं चल पड़ी पार्टी के लिए |
कहते हैं तीन का हिसाब सही नही बैठता | बचपन में सुनते थे- तीन तिगाड़ा, काम बिगाडा ... जाने आज क्या काम बिगाड़ने वाला था .. पता नही ..
जब मैं वहां पहुँची तो वो दोनों पहले ही पहुँच चुके थे | बातें करते करते खूब हंस रहे थे | मुझे देख कर चुप हो गए |
"हाय सोनी, हे ऋषभ" मैंने दोनों को मुस्कुराते हुए कहा | पर चाह कर भी चेहरे पर प्राक्रतिक खुशी नही ला पाई |
"थैंक्स , तुम आई , बहुत अच्छा लगा, सोनी से तुम्हारे बारे में बहुत सुना है " ऋषभ ने कहा| मुझे आश्चर्य हुआ | जिसे मैंने इतना कुछ भला बुरा कहा है वो मुझसे इतने प्यार से क्यों कह रहा है , कैसे कह रहा है ?
पर मैं इतनी बेवकूफ नही हूँ..मुझे पता है ... हाथी के दांत खाने के और होते हैं ...और दिखाने के और ...
जैसे ही मैं बैठी , सोनी का सेल बज उठा और वो हमें कुछ इशारा कर के बाहर की ओर चल दी |
अब इसे कहता हैं - करेले पर नीम चढा ! डिब्बे के साथ में अकेले रहना ! कभी कभी इश्वर भी अजीब मज़ाक करता है , जिसे आप सबसे ज़्यादा नफरत करते हैं, ठीक उसी के सामने लाकर बिठा देता है ! और मजबूर कर देता है की आप मुस्कुराते रहें ... चाहे दिल कर रहा हो की उसे ज़ोर से एक तमाचा लगाया जाए ....
"आप कुछ लेंगी ...?" तहजीब के साथ "ऋषभ" ने कहा |
"आप.. माने ...... कोई भी.... ऐसा कैसे कर सकता है ?" मैं और बन नहीं पायी |
"क्या कर सकता है?...आप ज़रा खुल कर बतायेंगी " बड़े सहज भाव से प्रश्न का प्रत्युत्तर प्रश्न बन कर आया |
"आप शादी शुदा हैं ... , फिर आप किसी के साथ ऐसा धोखा कैसे कर सकते हैं ? और आपको सोनी ही मिली थी सारे जहाँ में ... आपको पता है ...I have always hated you... ALWAYS" शब्दों के साथ साथ मेरी आँखें भी जैसे उसे चीर डालना चाहती थीं |
"आराम से,अर्चना जी आराम से , चलो अच्छा है , आपका ज्वार निकल गया | इसका अन्दर रहना अच्छा नहीं होता | फिर ये बढ़ता ही रहता है | एक काम करते हैं पहले आपको जो भी कहना है, कह दीजिये | फिर अगर आप मुझे सिर्फ़ दस मिनट दें तो मैं भी कुछ कहना चाहूँगा | ठीक है ?" जैसे मेरे इतने बाणों का उसपर कोई असर हुआ ही नहीं |
"नहीं और कुछ नहीं कहना मुझे ,और मैं कुछ सुनना भी नहीं चाहती, मुझे पता है , मीठी मीठी बातों से आप सोनी को भरमा सकते हैं , मुझे नहीं ... " मैं दूसरी तरफ़ मुंह करके बैठ गई | देखा अब भी सोनी फ़ोन पर लगी हुई थी |
ओफो ! ये सोनी भी अजीब जगह छोड़ कर चली गई |
"अर्चना जी , एक बात बताओ, आप अपने पति से ज़्यादा प्यार करती हो या सोनी से ?" सरल सवाल नहीं था ये |
"ये क्या मजाक है, सब रिश्तों की अपनी जगह है , आप ऐसे कैसे नाप तोल कर सकते हैं, हाँ ?" मैं बरसी |
"यही मेरे साथ भी हुआ है , कुछ रिश्ते हमें दिए जाते हैं, कुछ हम बनाते हैं | आखिर में बस वही रहता है जो सच्चा होता है | मैं झूठ तो नहीं कह रहा न ? दोस्ती तो किसी से भी हो जाती है, इसमे कोई लिंग भेद नहीं कर सकते हैं आप | सोनी भी मेरी ऐसी ही दोस्त है, या यूँ कहिये की मेरी एक ही और सबसे अच्छी दोस्त है | उसके साथ मुझे बहुत खुशी मिलती है | उसके साथ कुछ वक्त बिताने के लिए मैं कहीं से भी आ सकता हूँ , कुछ भी कर सकता हूँ | कोई अपेक्षा नहीं होती सिर्फ़ ये साथ ही काफ़ी होता है ....और .." इससे पहले की कुछ और कहते मेरे मुंह से निकल गया -
"आप बड़ी अच्छी तरह से डबल गेम खेल रहे हैं | उधर घर में मोनाजी और इधर सोनी को जाने क्या क्या कहानी सुनाते हैं | आखिर क्या कमी है मोनाजी में ? शायद आप जैसों का एक से मन नहीं भरता ... " कह कर ख़ुद अपनी बातों पर मुझे शर्म आ गई |
वे कुछ देर चुप रहे और अपने हाथ में थामे गिलास को देखते रहे फिर यकायक बोले -
"आपको पता है अर्चना जी बड़े बड़े घरों में सुंदर परदे क्यों लगाये जाते हैं ? ताकि अन्दर की बदसूरती पता न चले | मैं यह कभी नहीं कहता पर आज लगता है कुछ हल्का हो ही जाऊं | वैसे भी कल किसने देखा है | मोना एक बहुत ही आधुनिक विचारों की लड़की है | कभी कभी मोना और सोनी को नापते हुए बड़ी हँसी आती है | मेरा सोनी से कोई रिश्ता नहीं है पर जिस तरह से हमें एक दूसरे की बात समझ आती है , चाहे हम उसे कहें या न कहें , कोई मान नहीं सकता | आपको पता है, दुनिया में सब कुछ मिल सकता है पर खरा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है और अगर कहीं आपको वह मिल जाए तो कोशिश कीजियेगा की वह खो न जाए |" उनकी बात बहुत दिल से आ रही थी, इसीलिए सच लग रही थी |
"तो फिर आप इस रिश्ते को सामाजिक मोहर क्यों नहीं लगा देते | एक से तलाक और एक से शादी कोई नई बात तो नहीं होगी आपके 'माडर्न' जगत में ..." उनकी रूमानी बातों को सामाजिक मोड़ देना चाहा मैंने |
"मेरे बस में होता तो ये कब का हो चुका होता | सोनी शादी नहीं करना चाहती | कहती है उसके बाद सब बदल जायेगा | जो कशिश है , वो चली जायेगा | फिर ज़िन्दगी आम हो जायेगी | प्यार शायद ख़त्म हो जाएगा | मुझे सब कुछ मंज़ूर है जब तक सोनी खुश है | एक बात सच बताइए , आपने कभी प्यार किया है? ज़िन्दगी में कभी ज़रूर कीजियेगा, हर मायने बदल जायेंगे " ऋषभ दूर खड़ी सोनी को देख कर कहे जा रहा था |
"पर फिर भी आप मोनाजी को तो धोखा दे रहे हैं न ? उन्हें भी तो आपसे कुछ उम्मीदें होंगीं |" मैंने अपना आखिरी दांव भी आजमाना चाहा |
"देखिये , मैं पंजाब के एक बहुत छोटे से गाँव से आया था अमरीका | घर वालों ने हमारी शादी करवा दी इतने बड़े घर में , मुझे ग्रीन कार्ड मिल गया | कुछ दिन बहुत अच्छे गए पर फिर लगा की सब जैसे एक फरेब है, उपरी दिखावा , बस शोशे बाज़ी | कहीं चैन से सुकून की बात नहीं है | बस एक फास्ट टेंपो , एक दौड़, एक समझौता , ये नए समाज के नए उसूल , ये दोहरी नीति , आपने पढ़ा अखबार आज का ?- "executive by day, swinger by night " , हहहाआ हाहाहा " कहते कहते वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे | पर ज़्यादा हंसने से आखों में पानी आ जाता है | हाँ , ऋषभ अपने हँसी के आंसू पोंछ रहे थे |
"ये swinger क्या होता है ऋषभ जी ?" मुझे लगा ज़रूर कुछ गड़बड़ है इसमे | शायद वायिफ अब्यूस का कोई नाम होता होगा| लगा मुझे नहीं पूछना चाहिए था | अब जो पूछ ही लिया है, अब क्या कर सकते हैं ?
"वो.. जब न ..... दरअसल .. वेल .... आप गूगल कीजिये ... आपको पता चल जायेगा ...." वे बोले |
ठीक इसी वक्त किसी ने मेरे काँधे पर हाथ रखा , देखा तो सोनी वापस आ गई थी |
"क्या बात हो रही थी , ज़रा हम भी तो सुनें ?" सोनी आते ही शुरू हो गई |
"सोनी swinger क्या होता है ?" एक दम मुंह से निकल गया मेरे|
" वो तुम ऋषभ की मैडम से पूछो, क्यों रिश , तुम्हें भी तो मोना ने ही समझाया था ,पहले थीओरी और फिर लैब , राइट ? " सोनी ने हँसते हुए कहा |
" मुड के क्या देखना सोनू ? लाइफ मूव्स ऑन| हाँ अर्चना जी , मैं क्या कह रहा था ? ये की आज जीवन और समाज के पहलू बहुत बदल रहे हैं | सिर्फ़ फेस वेल्यू से आप रिश्ते की प्लेस वेल्यू का अंदाजा नहीं लगा सकते | मुझे लगता है जैसे मैंने अभी हाल ही में ख़ुद को डिस्कोवर किया है | एक नया इंसान बन गया हूँ मैं | हँसना , गाना , रोना , प्यार करना, गीत गाना सीख गया हूँ मैं | हाँ ,लोग शायद इसे उस निगाह से ना देख पायें जिस नज़रिए से इसे मैं देख रहा हूँ | लेकिन मुझे पता है की मैं ग़लत नहीं हूँ | अगर इतनी खुशी मिल रही है, तो ये ग़लत हो ही नहीं सकता |" ऋषभ कुछ और कहें उसी वक्त बैरा एक छोटा सा केक लेकर आया जिसपर लिखा था - हैप्पी बरडे , फॉर माय बेस्ट फ्रेंड !

मैंने अपने फ़ोन कैमरा से उनका फोटो लेना चाहा | थोड़ा दूर जाना पड़ेगा , अच्छी फोटो तभी आएगी |
हाँ थोडी दूर से देख कर लगा सचमुच बहुत अच्छा और साफ़ दिख रहा था |
मैं भी अब धीरे धीरे अपनी आंखों से देख रही थी इस प्यार को , समाज या रूढियों के नहीं |सोनी ने आँख मूँद कर कुछ सोचा , शायद कुछ माँगा , फिर मोमबत्ती फूंक कर रौशनी बुझा दी |

एक बहुत पुरानी ग़ज़ल बज रही थी रेस्तरां में -

ज़िन्दगी तेरे गम ने हमें रिश्ते नए समझाए ,
मिले तो हमें धूप में मिले पेड़ों के ठंडे साए ...
हाँ , तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी , हैरान हूँ मैं ,
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं .......

मैंने अपने फ़ोन -कैमरे में उनकी खुशियों को क़ैद करके उसका हिस्सा बनना चाहा -
"क्लिक" !

Thursday, October 9, 2008

फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी !-मौसी_सीरीज़-२

"क्या करें मौसी ? आधे घंटे से पार्किंग ही नहीं मिल रही , उधर सगाई का मुहूर्त निकला जा रहा है ," मैंने बड़ी कातरता से पूछा|
"ये मुआ पार्किंग -शार्किंग तो अपने यहाँ नहीं होता | तेरे मौसाजी तो जहाँ कहीं गाडी खड़ी कर देते हैं और हम तो ऐसे ही चल देते हैं | यहाँ तो हर बात का बड़ा चक्कर है | हाँ..... अमरीका है भई ! " मौसी तो हर बात का दोषी अमरीका को ही मान लेती है | यहाँ तक की कहती हैं उनकी कमर का दर्द भी अम्रीका में ही हुआ है , इंडिया में तो भली चंगी थीं !

"अनिवेज़ , मौसी मैं आपको होटल के सामने ड्रॉप कर दूँगी | आप और मौसाजी उतर जाना | मैं कहीं दूर पार्क कर दूँगी | और मैं अपने आप आ जाऊंगी | फिर आपको देर नहीं होगी और ज़्यादा चलना भी नहीं पड़ेगा |" मैंने समझदारी दिखानी चाही |
" अरी मैं वारी जाऊं ... दिखता नहीं यहाँ इतने मुष्टंडे घूम रहे हैं | तुझे अकेली कैसे छोड़ दूँ | ज़माना अच्छा नहीं है और इतनी महंगी साड़ी और जेवर पहने है | कहीं कुछ हो गया तो .... चल चल , हम दो क़दम चल लेंगे तो पाँव नहीं टूट जायेंगे ..साथ आए हैं तो साथ ही जायेंगे... हाँ !" मौसी तुनक कर बोलीं |
सुनकर जी भर गया | आज मैं तीन बच्चों की माँ हूँ , रोज़ सौ से ज़्यादा मील ड्राइव कर के काम को जाती हूँ | लाखों तरह के लोगों से मिलती हूँ, और मौसी को आज भी मेरी वही चिंता है जो तब थी जब मैं अनब्याही थी | वाह ! ये बड़े बूढे भी कैसे होते हैं ! कभी बच्चों को बड़ा नहीं होने देते | वैसे बड़ा बनना भी कौन चाहता है !

चलो, एक जगह मिल गई और गाड़ी वहां खड़ी कर हम भागे भागे बार पहुंचे | जाने राजू ने सगाई एक बार में क्यों रखी थी | कितने अच्छे इंडियन रेस्तरां हैं, शायद सोचा होगा की क्या जगह दोनों घरों के लोगों को रास आएगी और अंत में एक बार चुना होगा | सही है , वो भारतीय हो या अंग्रेज, मय तो हरेक को भाती है | अब प्रॉब्लम ये था की मौसा, मौसी, मैं , मेरे "ये ", ईस्ट कोस्ट से आई मेरी मौसेरी दीदी, भैया और हम सबके बच्चे , इनमें से कोई भी "पीता" नहीं है | तो अब हम बार में क्या करें ? चलो, हमें तो समारोह से मतलब है, खाना पीना तो चलता रहता है |

हाइब्रिड सगाई थी यानी की दो कल्चर का कुलचा बनना था तो किसी को पता नहीं था की ऊंट किस और मुड़ेगा | चलो, देखते हैं ! रोजी के परिवार के सब सदस्यों से उसने हमें मिलाया - अंकल जौन, आंटी सामंथा, अंकल समूअल , और जाने कितने ही नाम उसने बताये होंगे | पर पहली ही बार में किसको इतने नाम याद हो सकते हैं | बस सब को देख कर मुस्कुरा ही सकते हैं और हें हें हें कर हंस सकते हैं | पर अगर पहचान ना हो तो कोई कितनी देर तक दांत दिखा सकता है | आख़िर थक कर किसी कोने में बैठ जाएगा | हमने भी ऐसा ही किया | हमारा समूचा कुटुंब एक हिस्से में पसर के बैठ गया | सब बच्चे बाहर बड़ी भाभी के साथ, लौंज में खेल रहे थे | शुकर है, अभी से उन्हें बार दिखाना सही नहीं है |
आरम्भ में लोगों के तीन गुट साफ़ दिख रहे थे | भारतीय वेश भूषा में सजे धजे हम थे - राजू के घरवाले , अंग्रेज़ी वस्त्र में चमक रहे थे रोजी के परिवार वाले और सबसे मज़े की बात है की सारे मेहमान जिनमें अधिकाँश भारतीय थे , सब ऐसे कपडों में आए थे जैसे हवाई में पिकनिक मना रहे हों | ओबामा और मकैन के दो गुटों के बीच झूलते ये वो "swing voters" से लग रहे थे | राजू के दोस्त थे - सभी लगभग उसी की उम्र के थे | सब के हाथों में गिलास था - औरत , मर्द , सब बराबर थे यहाँ |

लगा की ऐसे अलग द्वीप सा नहीं रहना चाहिए | जब इनसे रिश्ता होने जा रहा है तो सब से मिलना चाहिए | तो जाकर अंकल जौन को मैंने हेलो कहा | उनसे काफी देर बात हुई | बहुत अच्छा लगा सोच कर की अब हमारा परिवार इंटरनॅशनल हो गया है ! लेकिन हर 'हेप्पीनेस' कि एक कीमत होता है | खुशी को भी मुंह दिखाई तो देनी ही पड़ती है .....

अंकल जौन से बात हो ही रही थी कि उनका सेल फ़ोन बज उठा और वो 'एक्सयूज़ मी' कह कर बाहर चले गए | और खाली चेयर देख कर एक बन्दा जो पता नहीं रोजी का क्या लगता था , आकर बैठ गया |
"इंडियन वीमन आर वैरी प्रिटी " उसने कहा | मुस्कुरा कर मैंने उसके बात का समर्थन किया |
"but there is a lot of poverty in India...." उसकी इस बात पर मेरी मुस्कान रुक गई और साथ में मेरा समर्थन भी |
इससे पहले कि मैं जवाब देती राजू का एक दोस्त कह उठा -"येस् सर, यू आर राइट , it is just bad out there ..."

मैं हैरान थी कि कोई भारतीय जो कि भारत में ही पला बढ़ा है कैसे इस तरह से कह सकता है | मुझे उस अंग्रेज पे कतई रोष नहीं था जिसने ये मुद्दा उठाया पर उस सूडो अंग्रेज पर बहुत गुस्सा आ रहा था |
"पर आपकी परवरिश में उस देश का बहुत बड़ा योगदान है जनाब , ये आप कैसे भूल जाते हैं | मानती हूँ मुश्किलें हैं , हर देश में होती हैं , पर माँ कि खामियों से माँ को गन्दा नहीं कहते... माँ तो माँ होती है ..." मैंने उन्हें कहा |
"अगर आप इतनी बड़ी देश भक्त हैं तो यहाँ क्या कर रही हैं , जाइये न वापस | These indians are so hypocrite....so.." उसे अपनी बात ख़तम करने को शब्द नहीं मिल रहे थे |
"These indians..." शब्द जैसे मेरे मन में प्रतिध्वनि कर रहे थे ..
और वो अंग्रेज़ जिसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, अपनी बुधिमत्ता दिखाने को बोल पड़ा -
"..and it is very hot too... I am wondering if I should go to India for Rosy's wedding. We have been trying to plan another wedding here once they come back. I don't see a reason to go such a distance just for a ceremony. "

"actually... " इससे पहले कि में उसका एक सटीक जवाब दे पाती, मौसी की पुकार ने ध्यान बदल दिया |
"गुडिया , ज़रा आना , देख बेटा , मेरा एक ही बेटा है, और मुझे ये माहौल ज़रा भी सगाई सा नहीं लग रहा | कहाँ तो मैं खीर पूडी सारे गाँव में बांटती , गरीबों को ढेर सारा समान दान करती , गाना गाती - खूब नाचती .. यहाँ ना ही ढोलक है न बाजा, ये क्या सगाई हुई , अब क्या फोटो लेकर जाऊंगी और क्या लोगों को दिखाऊंगी ? "

"अरे मौसी खीर पूडी आज घर में करेंगे और आपकी नाच गाने कि तमन्ना तो अभी पूरी होती है " मैंने मौसी का दिल रखने को कह तो दिया पर इस अंग्रेज़ वातावरण में अपने ही देश के लोगों को - मुझे अपनी ही भाषा का गीत गाने का अनुरोध करने में बहुत डर लग रहा था | फिर लगा कि ऐसे कोई नहीं आएगा , पहले ख़ुद मुर्गा बनना पड़ेगा ..

इतने बड़े बार के हॉल के बीच खड़े होकर मैंने एक बार माता का ध्यान किया कि माँ इज्ज़त रख लेना फिर ज़ोर से सबको कहा - लेडिस एंड जेन्तल्मेन ! आज मैं अपने भैया- भाभी कि सगाई पर एक गीत गाना चाहती हूँ | अगर आपमें से किसीको यह गीत आता हो तो आप मेरा साथ दे सकते हैं |
भीड़ ने ज़ोर कि ताली से मेरा स्वागत किया |

"वाह वाह रामजी ..........जोड़ी क्या बनाई ......भैया और भाभी को बधाई हो बधाई "
एक बार लगा कि वाकई बिना किसी बाजे गाजे के मेरी आवाज़ बहुत नीरस लग रही है | कोई साथ भी नहीं दे रहा |
एक बार तो मेरे होंट कंपकंपा से गए ...
"सब रस्मों से बड़ी है जग में दिल से दिल कि सगाई ...."
पल्लू कमर में खोंसती हुई मेरी मौसी आयीं मेरा साथ देने के लिए | मौसी सिर्फ़ गाना ही नहीं गा रही थीं बड़े ही सुंदर ढंग से उस पर नाच भी रहीं थीं !

ओह ! सिर्फ़ एक साथ , एक हाथ भर से ही कितना बढ़ जाता है साहस , कितनी बढ़ जाती है हिम्मत ! अब तो सोच लिया बस कि चाहे जो हो गाना तो पूरा करना है | अब सारे हॉल में बहुत चुप्पी छा गई थी | तभी किसीने गिलासों पर चमचों से बहुत ही प्यारी ध्वनि का इजाद किया जो कि गीत पर बहुत जच रहा था | किसी ओर से किसीने टेबल पर ही तबला बजाना शुरू कर दिया था | तो अब तो भैया हमारे साथ सब साज जुड़ गए थे | और तो और वो सभी परकटी सूडो भारतीय लड़कियां भी धुन में हमारे साथ शुरू हो गयीं | गीत अब पूरी भी मस्ती पर आ गया था ...

"सुनो भाभी जी अजी आपके लिए , मेरे भैया ने बड़े तप हैं किए ..." मैंने रोजी को आँख मारते हुए कहा |
सोचा कि इन्हें क्या समझ आएगा ?
तपाक से रोजी बोली- ""रियली ?"

सारी जनता में जोरदार ठहाका गूँज उठा | चाहे रोजी गीत ना समझे पर वो मेरे भाव समझ रही थी !
और वो ही नहीं वहां आए सब अंग्रेज़ संगीत में छुपे इस प्यार को सुन पा रहे थे | शायद इसिलए वे सब धीरे धीरे अपने कुर्सियों से उठ कर हमारे साथ नाचने कि कोशिश कर रहे थे .....

गीत के ख़तम होते ही "वंस मोर , वंस मोर " से हॉल गूँज उठा |

मुझे मनचाहा वरदान मिला जैसे |
कब से उस सूडो को कुछ कि मैं कोशिश कर रही थी | और अब मेरे साथ ये सारे लोग उसे ये सुनाने से नहीं चूकेंगे -
मैंने गीत शुरू किया
"जहाँ पाँव में पायल , हाथों में कंगन , हो माथे पर बिंदिया ...." और जैसे मेरी आवाज़ भीड़ की आवाज़ में खो ही गई ..
"It happens only in India ! It happens only in India ! It happens only in India ! "

एक के बाद एक जाने कितने ही गीत हमने उस दिन गाये होंगे , जाने कितनी ही देर हम सब वहां नाचते रहे...जाने कितनी देर ....

पता नहीं ये नशा शराब का था , शाम का था या अपनों कि याद का था पर उस दिन उस अंग्रेज़ी बार में हर दिल झूम रहा था , गा रहा था और नाच रहा था |
और हाँ , वो अंग्रेज़ जो भारत कि "poverty" को लेकर बहुत परेशान था बाहर जाता जाता मुझसे पूछ गया - "Do you always have music and dance like this.... in your special occasions .... in those colorful dresses ?"
"well, usually not like this..............only much better !" मैंने हँसते हुए कहा |
"then I think I want to go for Rosy's marriage to India" वह बड़े ही एन्थु में बोल रहा था |

मेरी आँखें अब भी उस सूडो को ढूंढ रही थी | लग रहा था जैसे अब भी कुछ कहना बाकी है... पर वो अब वहां नहीं था ...मैं आज भी उसे ढूंढ रही हूँ | अगर कहीं वो दिख जाए तो उसे मेरी ओर से आप ज़रूर कह दीजियेगा -
(क्या कहा आप उसे पहचानेंगे कैसे - बहुत आसान है - एक वही है जो स्वयं भारतीय होकर भी कहेगा - ओह ! These indians.... बस वही है ...)..
तो उससे कहियेगा ..किसी अर्चना ने कहा था-

आज जो परदेस में इतराये जा रहे हैं,
निज देस भूल पर के गीत गाये जा रहे हैं..
पर पूछ लें जो हम इन्हें किसने दिए थे पर, जिसे
वो थाम के आकाश में लहराए जा रहे हैं ?

हम धूल हैं, वो हमको ये बताये जा रहे हैं,
अपनी ही तान , ख़ुद कि राग गाये जा रहे हैं,
न है कोई खुशी में , और न गम में कोई साथ है,
ख़ुद की पीठ अब वो थपथपाए जा रहे हैं ....


आपकी,
अर्चना

Tuesday, September 30, 2008

छोटी छोटी बातों की है यादें बड़ी !-मौसी_सीरीज़-१

बड़ी खलबली मची है | हर तरफ़ कुछ न कुछ बिखरा है .. किसी का शर्ट प्रेस नहीं है तो किसी की बिंदी नहीं मिल रही | कभी कोई बच्चा रो रहा है तो किसी ओर हँसी के ठहाके सुने दे रहे हैं | बिल्कुल इंडिया की तरह लग रहा है | आज घर - एक घर की तरह लग रहा है ....

पर मौसी हैं की कोई फिकर नहीं है की क्या पहनेंगी ? बस सुबह से किचेन में लगी हैं, जाने क्या कर रही हैं | अरे यार , चलो मैं उन्हें तैयार करवाती हूँ , अभी एक घंटे में निकलना है ना | कहीं देर ना हो जाए | यहाँ तो इवेंट्स के टाइम बुक होते हैं तो बस वही टाइम मिलता है , उसे और खींच नहीं सकते | यहाँ वक्त के सब पाबन्द हैं | हम कभी ये सीख नहीं पाये , यहाँ दस साल रहने के बाद भी नहीं.. नागरिक बन गए तो क्या ...खून तो ओरिजनल है !

मौसी प्याज़ काट रही थीं , आँसू टप टप बहते ही जा रहे थे ...
"अरे रे मौसी जी ! लोग तो बेटी के ब्याह पर नैन भिगोते हैं , और आप तो बेटे की सगाई पर सेंटी हो रहे हो | क्या मौसी ?" मैंने मज़ाक में कहा |
"क्या बेटा और क्या बेटी अब तो सब समान है , गुडिया " उनका बड़ा उखडा उखडा सा जवाब था |
मुझे लगा की ये आँसू प्याज़ के नहीं हैं, किसी राज़ के हैं | वक्त नहीं था कुछ कहने सुनने के लिए | पर लगा ज़रूरी है सुनना - जो ये कहना चाहती हैं | अभी तक सब कुछ कितना जल्दी हो गया था |

कुछ दिनों पहले मौसी आयीं यहाँ , राजू की शादी तय करने | साथ लायीं ढेर सारी विवाह योग्य कन्याओं के फोटो और कुंडली | लगता था मौसी ने कोई matrimony की वेबसाइट नहीं छोड़ी थी , सब छान छान के अपने आई आई टी , आई आई एम् पास बेटे के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते ले कर आई थीं | मैंने भी अपने सर्कल के सभी लड़कयों से राजू का इंट्रो तो करा ही दिया था | पर राजू था की जैसे दुनिया से उसे कोई लेना देना नहीं था | एक ही शहर में रहकर भी वो कई महीनों से कभी हमसे मिलने नहीं आता था | मैं उससे मिलना चाहती तो काम का बहाना कर के टाल देता था | हाँ ! आज कल के लड़के अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं भई ! और वो भी अमेरिका में हैं तो बल्ले बल्ले !

छ न न ना ..........मौसी कटे प्याज़ का गरम तेल में छौंका लगा रही थीं |
"अच्छा सोचते हैं मौसी , आज के दिन तो और अच्छा सोचते हैं , देखो न कितनी अच्छी लड़की मिली है राजू को , हम आप ढूंढ के भी इतनी अच्छी नहीं ला सकते थे, उसके लिए, है नहीं क्या?" मैंने कहा |
"नहीं बेटा , मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है | देख ना, लड़की इंडियन नहीं गोरी है , क्रिस्तान है , पता नहीं ये ब्रह्मण का बेटा कैसे .... इसको ... चलो इसको भी अगर मैं भूल जाऊं ...पर साथ साथ रह रहे हैं इतने महीनों से .....और कभी बताया भी नहीं इसने ...कैसे .... कैसे अपनी माँ से कोई इस तरह कर सकता है (मौसी आँचल से आँख पोंछते हुए बोलीं )... इतना किया है ...एक ही तो बेटा है ... मैं वापस जाकर सबसे क्या कहूँगी ? इसने तो...इसने ...तो.. " मौसी का गला बहुत रुंध रहा था , रुक रहा था |
"इस.. ने ... तो .... बेटा .... मेरी नाक कटा दी... बेटा... मैं क्या करुँ, अब वापस नहीं जा पाऊंगी...मैं क्या मुंह लेकर जा... ऊँगी..ऊऊंंऊऊंं ऊऊंं " मौसी संभाल नहीं पायीं | घर में लोग थे, इस कारण ज़ोर से नहीं रो पा रहीं थीं |
"अरे मौसी किस ज़माने में रह रही हो , आजकल ज़माना बदल रहा है , देखो ये देस विदेस का चक्कर मन से निकाल दो , लड़की देखो तुम, कितना पढ़ी लिखी है , समझदार है , तुम तो भाग्य शाली हो , ज़रूर कोई पुण्य किया होगा जो ऐसी बहू पा रही हो " मैंने उनको हिम्मत देने की कोशिश की |
"गुडिया , हमें कौनसा उनके साथ रहना है , जो चाहें करें , पर मेरे बेटे के हमेशा साथ रहेगी , इसकी वो गारंटी देगी मुझे " मौसी आँख पोंछते हुए पूछीं |
"अच्छा आप ये बताओ मौसी, कि आज कि कोई इंडियन लड़की क्या ये गारंटी दे सकती है ? मौसी मैंने यहीं, अपने आंखों के सामने कितने ही इंडियन लोगों को डिवोर्स लेते देखा है | वो तो आपकी किस्मत है मौसी और आपका विश्वास "
"मैं तो सह लूंगी गुड्डो पर तेरे मौसा जी , और ये देखो इन दोनों को - चल रोजी तो नहीं जानती हमारे संस्कार पर राजू भी... तूने देखा ना कैसे कमर पकड़ पकड़ के चलते हैं , सब के सामने चूमा चाटी करते शर्म नहीं आती इन लम्पटों को ... मेरा तो जी बहुत घबरा रहा है बेटा ..सुबह से दुर्गा चालीसा पढ़ चुकी हूँ कितनी बार पर मन है कि बार बार उथल पुथल हो रहा है , क्या करुँ बेटा , तू ही बता .." मौसीजी कडचि ज़ोर ज़ोर से कढाई पर चला रही थीं | लग रहा था सारा गुस्सा सब्जी पर निकाल रही हैं |
"कुछ मत सोचो मौसी , बस राम का नाम लो और सब उस पर छोड़ दो , देखना सब अच्छा होगा, जब हम सब कुछ अपने आप करना चाहते हैं ना मौसी तो ना होने पर कष्ठ होता है | अरे ! कुछ उसके लिए छोड़ कर देखो , देखना फिर कैसे सब फिट फटांग होता है ! " आँख मारते हुए मैंने मौसी से कहा | "और फिलहाल तो आप तैयार हो जाओ | ये लो आपकी साड़ी मैंने निकाल दी है | इसे पहन लों | अरे, हमारी मौसी भी तो मुंडे दी माँ लगनी चाहिए | बाकी लोग जो पहनें , सो पहनें - कि फर्क पैंदा है ? अरे मौसी , इन गोरों को भी तो पता चले हमारी मौसी का जलवा !" मैंने उनको ज़रा हल्का फील कराने कि कोशिश में कहा |
"चल हट ! ज़रा देखती हूँ राजू ने शेरवानी पहनी या नहीं ... ये लड़का भी न ...."
मौसी साड़ी लेकर , मुंह पोंछते हुए , कुछ बुदबुदाते हुए चल पड़ी |
"गुडिया , सब्जी को देख लेना " पीछे से मौसी बोलती गयीं |
"हाँ मौसी सब्जी को कहीं नहीं जाना है , पर आप ....... " मेरी बात अब कोई नहीं सुन रहा था |

समय भी कैसे कैसे खेल खेलता है , कभी आगे ले जाता है और कभी बहुत पीछे .....


मुन्नी अभी अभी इंजीनियरिंग करके वापस घर आई थी | मम्मी पापा रिश्ते की खोज में थे | खाना खाकर सब बैठे ही थे की नर्मदा मौसी ने अपना पिटारा खोल दिया |
"सुन लीजिये भाई साहब , इससे अच्छा रिश्ता आपको नहीं मिलेगा " मौसी अपनी जिद पर अडी थीं |
"पर निम्मो तुम देखो ना ये रिश्ता अपनी मुन्नी को जचता नहीं है , हाँ थोडी सांवली है हमारी ..." पापा की बात काटते हुए मौसी गरजीं - "अजी हाँ ! बेटी को तो आप सर पर बैठा कर रखिये | घर पर बैठी रहेगी तो आपका ही नाम ख़राब होगा जीजाजी , मुझे क्या है , ज़रा आप सोचिये , रंग काला है , और उस पर इंजीनियरिंग , उमर वैसे भी हो गई है , कौन लेगा इसको , मैं तो कहती हूँ भाई साहब , काम ख़तम कीजिये और गंगा नहाइए , अभी एक और है ब्याहने को, ये जाए तो दूसरी को सोचो, क्या कहते हो ? बात आगे करुँ? " मौसी तो जैसे अपनी जीत सोच कर ही आई थीं |
"रुको ज़रा मुन्नी से पूछते हैं , फिर बताएँगे , तुम थोड़ा आराम कर लो निम्मो " पापा ने बड़ी स्थिरता से कहा |
"भाई साहब ! जब तक दीदी कि दो जवान बेटियाँ घर पे है कहाँ आराम मिलता है | छोटी तब भी निकल जायेगी - रंग चिट्टा है और लम्बाई भी खूब है, चिंता है तो मुझे इस कालो रानी कि है ... " मौसी को अपने ही मज़ाक पर हंसने कि आदत है |

शाम को मुन्नी लगी हुई थी -शायद कुछ फॉर्म भर रही थी |
"बेटा , ये निम्मो मौसी कोई रिश्ता लेकर आई है , सुना तुमने ? लड़का अच्छे घर का है - इंजिनियर है " पापा ने बड़े प्यार से मुन्नी से पूछा|
"पर पापा वो एक नम्बर का गधा है | डोनेशन कॉलेज से पढ़ा हुआ | एक बात पूछो तो नहीं आता | उसका दिमाग काम ही नही करता पापा | किसी भी रिश्ते में आदर का होना बहुत ज़रूरी है पापा, है न ?" मुन्नी ने बड़ी सादगी से पूछा |
"ये बात तो सही है बेटा पर कुछ तो हमें भी एडजस्ट करना होगा , देखो तुम टोपर हो अपने क्लास में - तो हर एक का दिमाग एक सा नहीं होता न बेटा , फिर अपनी बिरादरी का पढ़ा लिखा लड़का मिलना भी मुश्किल है | अगर तुम्हारे कोलेज का कोई तुम्हे पसंद हो तो तुम मुझे बता सकती हो " पापा दुनियादारी समझा रहे थे |
"नहीं पापा ऐसी बात नहीं है , आप मुझे जानते हैं , फिर ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? और ऐसा कहाँ लिखा है की बिरादरी में ही शादी करनी है ..बताइए " मुन्नी को ऐसी बात करते बड़ी शर्म आ रही थी |

कुछ समय बड़ी खामोशी थी उस कमरे में | बज रहा था तो बस वो पुराना पंखा जो हवा से ज़्यादा आवाज़ देता था |

"पापा , मेरा रंग काला क्यों है ? " एक बहुत ही अनदेखा सा सवाल पूछा मुन्नी ने |
"मम्मी तो गोरी हैं , रूपा भी गोरी है फिर मुझे आपने काला क्यों बनाया , पापा " मुन्नी की आंखों के कोने से कुछ चमक चमक कर दिख रहा था पर बाहर आते शायद डर रहा था |
"नहीं बेटा देखो जब इश्वर काला रंग देता है न तो वो उसमे कला भी छुपा कर दे देता है | हम सब काला रंग तो देखते हैं पर जो उस काला में कला देख लेगा न बेटा बस उसी के साथ आपको हम भेजेंगे | आप MBA के सारे फॉर्म देख कर भरना | हम निम्मो मौसी को "ना" कर देते हैं | और हमें पता है कि आपको किसी अच्छे बी-स्कूल में दाखिला ज़रूर मिलेगा " पापा ने मुन्नी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा |
.......................................

"अर्चना , कहाँ हो ? मैं आधे लोगों को ले जाता हूँ | तुम बाकी लोगों को अपनी गाड़ी में ले आना | सन फ्रांसिस्को में ट्रैफिक होगा | जल्दी निकलना | गराज से इन्होने मुझे आवाज़ लगायी तो मैं भूत से वर्तमान में आ गई | देखा मौसी अपनी साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थीं | बड़ी सुंदर लग रही थीं | मौसा जी भी कुरते में जच रहे थे |

"गुडिया आज तेरे साथ दुःख बाँट कर दिल हल्का हो गया " मौसी अब मुस्कुरा रही थीं |

बहुत अच्छा हुआ मौसी , रोना बहुत अच्छा होता है , सब दुःख बह जाते हैं, और अगर कोई साथ हो तो फिर शक्ति मिलती है, हौसला बढ़ता है | पर हर इंसान इतना भाग्यशाली नहीं होता निम्मो मौसी | किसी दिन मुन्नी , आपकी गुडिया, भी बहुत रोई थी मौसी , आपसे छुप कर | हाँ आज आप अपने किस्मत के रंग को नहीं बदल पा रहीं ,तब मुन्नी भी अपने रंग को नहीं बदल पा रही थी | पर मौसी , आज आप बहुत खुश होंगी ना, आपकी इकलौती बहू गोरी जो है .....

Monday, September 8, 2008

कभी कान्धा भीगा है आपका?_सोनी_सीरीज़_पार्ट १

कभी कान्धा भीगा है आपका? यूँ तो हम सब दिल भिगोते हैं , कभी कभी आँखें भी भीगती हैं , ये सब 'अपने' गम की निशानी हैं | लेकिन भीगा कान्धा, एक प्रतीक है, एक सहेली या दोस्त के दुःख का | किसी मित्र को आपकी ज़रूरत होती है तभी भीगता है आपका कान्धा |

मेरी एक सहेली है, बचपन की | चलो मैं उसका नामकरण करती हूँ- "सोनी" | सोनी आज के समाज के नारी की एक मिसाल है | माता पिता को जिस बेटी के कैरियर पर नाज़ हो , ऐसी है मेरी सोनी | जब वह बिजिनेस प्रेजेंटेशन करती है , तो कभी कोई उसकी कही बात पर ना नहीं कर सकता , कभी नहीं | अमरीका में आकर एक हिन्दुस्तानी लड़की, वो भी अकेली , इतने रौब से सत्ता बनाए रह रही है , नाज़ की बात है |
सोनी हफ्ते के सभी दिन जी भर के काम करती है | दिन क्या अरे ! वो तो रात रात भर काम करती है | अपने काम में बहुत उसकी बहुत निष्ठा है | और हमेशा रहती अगर उसकी मुलाक़ात 'डब्बा' से नहीं होती | हाँ बस यही नाम उस जनाब को सही सूट करता है | वैसे तो उन महाशय का एक भला सा नाम भी है लेकिन मेरा दिया गया ये नाम उनको बिल्कुल सही बैठता है |
हाँ , तो हमारे ये डब्बा जी भी एक जानी मानी हस्ती हैं और तिस पर शादी शुदा भी हैं | लेकिन अपने यौवन का रंग और प्रभाव घर से बाहर जमाने में आजमाने में पीछे नहीं रहते और दुर्भाग्यवश इस का शिकार बनी मेरी दोस्त !
जाने कैसा वक्त है आजकल | कहते हैं , इश्क कभी किया नहीं जाता , हो जाता है , पर ऐसा भी क्या इश्क जिसे नहीं होना चाहिए और फिर भी हो | सही बात की पैरवी नहीं करनी पड़ती और गलती की कोई सफाई चलती नहीं| है न?

मैं इसी बात से खुश थी की सोनी खुश है.... बहुत खुश ... चाहे वो खुशी उधार की हो !
पर हर उधारी की कीमत होती है, मूल के साथ सूद भी चुकाना पड़ता है | सोनी को शायद पता नहीं था |

अब फास्ट फॉरवर्ड आज तक....

शुकर की शाम थी | लोग वीकेंड के स्वागत में लगे थे ! अभी मैं आरती का दिया लगा ही रही थी की फ़ोन बजा घननन ....
"हाय ! आर्ची , आज ना बहुत ही सही सेटिंग है , तू जल्दी एवलोन आ जा ! बहुत मज़े करेंगे ! बिल्कुल हॉस्टल जैसी मस्ती करेंगे | " सोनी बहुत ही ज़्यादा उत्तेजित लग रही थी , स्वाभाविक रूप से भी ज़्यादा !
"अरे नहीं यार ! अभी तो आरती भी नहीं हुई है , खाना बनाकर, बच्चों को खिलाकर, उन्हें सुलाना है | और मम्मी बाउजी का भी देखना है ! यू केरी ऑन ! फिर कभी !
"आर्ची प्रोमिस ड्रिंक नहीं करेंगे , मुझे पता है तुम नहीं करती पर तुम्हे डांस अच्छा लगता है न , आज यहाँ बॉलीवुड नाईट है ! खूब डांस करेंगे पुराने दिनों जैसे , पूरी रात ...बिंदास , तुम अपना काम ख़तम करके आ जाना, साउंड्स लायिक अ प्लान , हाँ ?" सोनी जब कहती है तो हमेशा बड़े अधिकार से कहती है |
"नहीं रे ! मुझे तीन दिन से बुखार है , आज रेस्ट करना चाहती हूँ " मैंने कहा क्योंकि घर और ऑफिस के काम में मुझे कतई आराम नहीं मिल पाया था और बुखार से अभी पूरी तरह उठी नहीं थी मैं |
"आर्ची ! यू सक, भाड़ में जाओ !" सोनी की आवाज़ में एक अजीब सी झुन्झुलाहट थी , यूँ तो दफा होने को कहा उसने पर जाने क्यों लगा की बुला रही है , कुछ कहना चाहती है पर कह नहीं पा रही | शायद इस बात को कोई विश्वास न करे पर कई बार मुझे लगता है जैसे मैं लोगों के मन की बात सुन सकती हूँ, सबकी नहीं पर जो मेरे नज़दीक हैं , दिल के करीब हैं उनकी एक एक बात सुनाई देती है , उनके बिना कहे ! पता नहीं कैसे और जाने ये अच्छा है भी या नहीं , कभी कभी बहुत कष्ट प्रद होता है दिल की सुन पाना या सुन लेना !

सोनी की आवाज़ गूंजती ही रही , सब काम हो गया घर का , पर वो आवाज़ गई नहीं ! सन फ्रांसिस्को होता तो शायद मैं नहीं जाती पर एवलोन तो घर के पास ही था , सांता क्लारा का एक ही तो डांस क्लब है | मैंने सोचा मुझे उस से मिलना चाहिए पर अब रात के ग्यारह बजे , पता नहीं वो वहां पर अब तक होगी भी या नहीं |
उसके सेल फ़ोन का नम्बर मिलाया, पर लगा नहीं | शायद शोर गुल में सुनाई नहीं दिया होगा |

दुविधा में थी | कभी डांस क्लब देखा नहीं था | पता नहीं था की उसमे अन्दर कैसे जाते हैं | पर जाने वो पुकार कैसी थी की बस इतना ही याद है की मैं उठी , गाड़ी शुरू किया और एवलोन के बाहर मैं कार से उतरी | लोऊंज में बड़े अजीब तरह के लोग मिले | मन किया वापस भाग जाऊं | दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था की मैं उसे सुन पा रही थी | मैं सोच रही थी मैं यहाँ क्यों आई हूँ - किसी को पूछा भी नहीं घर में - न इनको , न मम्मी- बाउजी को | पर मुझे पता था की अगर मैं पूछती तो कभी आ नहीं पाती, कोई अनुमति नहीं देते ! और मुझे आना था , किसी को मेरी ज़रूरत थी ... शायद ..

जाने और क्या क्या देखना पड़ता अगर एक परिचित नहीं मिल जाते ! उन्हें देख कर पहले मैंने सोचा अरे बाप रे ! ये यहाँ ! चलो मैं कहीं छुप जाऊं लेकिन फिर मैंने सोचा की कम से कम इन्हे मुझसे ज़्यादा ज्ञान होगा | अरे, ये तो सोनी को भी पहचानते हैं , शायद उसे ढूँढने में मेरी मदद करेंगे |
वैसे तो इनका नाम हरी है पर अमरीकी अंदाज़ में इन्होने इसे "हैरी" कर दिया है | क्यों न करें ? अरे भाई जब संस्कार, रूप और दिनचर्या ही ढल गई है तो नाम क्या बड़ी चीज़ है ?
"हाय हैरी ! हाउ आर यू? " इस माहौल में मैं उन से किस तरह बात शुरू करुँ, समझ नहीं पा रही थी |
अर्चना ! वाट ऐ सर्प्रायिस ! तुम यहाँ , तुम्हारी तबियत तो ठीक है ? घर में कोई झगडा हुआ है क्या?
उसने बड़े आश्चर्य अंदाज़ से पहले मुझे देखा फिर मेरे सलवार कमीज़ को, जैसे कह रहा हो कम से कम कपड़े तो जगह देख कर पहना करो!
"अरे नहीं , वो दरअसल... एक्तुअल्ली ....मैं सोनिका गिल को ढूंढ रही थी " मैंने हकलाते हुए कहा |
"ओह सन्नी बेबी ! " अच्छा मैं तुम्हे ले चलता हूँ उसके पास | फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और तेज़ी से एक तरफ़ चल पड़ा | आम समय में उस से हाथ छुडाकर उसको एक तमाचा देना मेरा पहला ख्याल होता लेकिन कहते हैं औरत की एक sixth sense होती है | किसी की नियत समझने में सिर्फ़ एक नज़र ही काफ़ी होती है | बन्दा तेज़ था पर शरीफ था तो मैं चुप चाप उसका हाथ थामे उसके पीछे चल ली | जैसे ही अन्दर प्रविष्ट हुए , बहुत ही तेज़ संगीत ने कान फाड़ दिए ! और गाना भी क्या सही गाना था -

पप्पू के पास है MBA, करता है फ्रांस में होलीडे !
....वादों की घड़ी हाथों में, परफ्यूम गुची वाला,
पर पप्पू कैंट डांस साला ...
पप्पू नाच नहीं सकता ...

कई लोग - भारतीय, गोरे ,काले सभी अपने अपने ग्रुप में नाच रहे थे | मैंने सोचा था सोनी भी शायद ऐसे ही किसी टोली में होगी | पर सोनी ड्रिंक बार में बैठी थी -अकेली , पसीने से लथपथ, शायद मेरे आने से पहले ही बहुत डांस हो चुका था | टकीला के कई खाली गिलास सामने रखे थे | उसके कपड़े देख कर मैं हैरान थी की इतना भी पहनने की क्या ज़रूरत थी? इसे भी उतार देती , हु कयेर्स अनिवे ! देखते ही वो खड़ी हो गई उसी तरह जैसे बचपन में मैंने उसकी चोरी पकड़ ली हों और वो जल्दी से यह सोच रही हों की क्या बहाना बनाए ?

मुझे कोई बहाना नहीं चाहिए था , मुझे सोनी चाहिए थी और चाहिए थी उसकी खुशी |
"सोनी, एक बात करनी है , बाहर आओ " मैंने धीरे से कहा , पता नहीं क्यों मैं सोनी की तरह अधिकार से नहीं कह पाती हूँ |
पर बिना कुछ पूछे वो बाहर चल दी, मेरे साथ !
पर अब ध्यान आया की क्या पूछूं ? कैसे पूछूं? उसने तो कुछ कहा नहीं था | बात शुरू कैसे हों?

"कैसी हो तुम?" बहुत ही बोरिंग तरीके से बात शुरू की मैंने | और कुछ सूझा ही नहीं |

"ज़्यादा बनने की ज़रूरत नहीं है | तुम ये देखने आई हो की सोनी मर तो नहीं गई | मैं तुम्हे अच्छे से पहचानती हूँ| यू आर सच अ शो ऑफ़ | तुमने मेरे ब्रेक अप की ख़बर सुनी है और मुझे सुनाने आई हो | जस्ट गो टू हेल , लीव मी आलोन " उसने बात शुरू कि इतने भयंकर निनाद से की मेरे आंखों में आँसू आते आते रुक गए |
"नहीं सोनी, मुझे तुम्हारे ब्रेक अप के बारे में पता नहीं था , प्रोमिस !" मैंने कहा | कहते हुए मैं अपने कार में बैठ गई और फिर वो भी कुछ देर में मेरे पास आ गई जैसे जानती हो की मैं वहां आऊंगी , जैसे उसे बस इंतजार ही था |
फिर भी हिम्मत करके मैं बोली - "चलो , छोडो ! अच्छा बताओ तुमने कोई नया गाना सुना है, याद है जब हम एक ही रूम में रहते थे और पढ़ाई करके जब थक जाते थे तब सॉफ्ट म्यूजिक चला कर उसे सुनते सुनते सो जाते थे , कितने अच्छे दिन थे न , है न ? मैंने उसे शांत करने के उद्येश्य से बात को बदलना चाहा |

फिर उसके उत्तर को सुनने से पहले ही मैंने CD प्लेयर ऑन कर दिया | उमराव जान के ग़ज़ल चल रहे था |

हम दोनों चुप बैठे था और गाना बस गाना चल रहा था | पता नहीं वह क्या सोच रही थी पर चुप थी !

कब मिली थी, कहाँ बिछडी थी, हमें याद नहीं ,
ज़िन्दगी तुझको तो बस ख्वाब में देखा हमने ,
जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने ...
ए अदा और क्या सुनाएँ हाल अपना,
उम्र का लंबा सफर तय किया तनहा हमने ...

मुझे लगा की इस तरह के गीत उसे और दुखी करेंगे | मैंने CD बदल दी | पता नहीं कौन सा था | शायद नए गीतों का एक कोल्लेक्शन था | एक गीत बहुत ही सुंदर था उसमे - पता नहीं किस मूवी का है पर अच्छा लगता है सुन ने में | हम जब चुपचाप साथ बैठे था , बस हम दोनों , उस रात कार में ... बाहर बहुत अँधेरा था .. एक गीत ख़तम हुआ और वो गीत आया.....पता नहीं उस रात इतनी चुप्पी कैसे थी ? कोई आवाज़ नहीं थी , बस वे शब्द -

कहीं तो, होगी वो , दुनिया - जहाँ तू मेरे साथ है ,
जहाँ मैं, जहाँ तू, और जहाँ , बस तेरे-मेरे जज्बात हैं !

मुझे लगा , सोनी के गले में कोई आवाज़ रुक सी गई | मैं कुछ सुन ना चाहती थी | कुछ भी, मुझे लगा की उसका बोलना ज़रूरी है वरना वों, सोनी ,अपने ही बोझ से दब जायेगी |

जाने ना कहाँ वो दुनिया है , जाने ना वो है भी या नहीं !
जहाँ मेरी ज़िन्दगी मुझसे , इतनी खफा नहीं ..

जैसे ही मैंने नज़र उठाई सोनी की ओर, उस की आंखों में कुछ चमकता हुआ दिखा | कार में अँधेरा था | पर अब एक अजीब सी नजदीकी सी आ गई थी , मुझे लगा वो मेरे पास है, बहुत पास | फिर मेरे कंधों को जैसे किसी ने छुआ | देखा तो सोनी का झुका हुआ चेहरा था मेरे कन्धों पर था और जाने क्यों मेरा कंधा भीग रहा था | पहले लगा उसे रोकूँ, समझाऊँ पर फिर लगा नहीं इसे बहने देना चाहिए , ये आंसूं भी एक तरह के मैल होते हैं, अगर निकाले नहीं जाते तो जमते रहते हैं , और जाने कब तक डेरा जमाये रहते हैं, इनका बाहर निकल जाना ही अच्छा है |

गाना बजता रहा , सोनी रोती रही, मैं चुप रही और कंधा भीगता रहा |

सन्नाटा था, जाने अन्दर चल रही इतनी तेज़ चीख बाहर तक क्यों नहीं पहुँच रही थी |

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Archanapanda.com | archana on YouTube | kavitayen | chintan | quotes | jokes |

Friday, September 5, 2008

चाँद चकोर

किसी गुलसितां में चहकती थी हरदम ,
दो आंखों में उसकी महकती थी शबनम ,
सभी फूल पाती उसी पर फ़िदा थे ,
जो गूंजे सदा में उसी की सदा थे |

थी लाडो सभी की चहेती चकोर ,
कूदती भागती थी वो चारों ही ओर,
था मासूम दिल ऐसा , भोली सी सूरत ,
थी उसके लिए ये जहाँ खूबसूरत ,

एक दिन जो नज़र आसमां पर पड़ी ,
चाँद के चेहरे से उसकी आँखें लड़ी,
देखती ही रही कुछ भी बोले वो ,
मुस्कुराये मगर राज़ खोले वो ,

फिर कहा उसने ये बड़े दांव से,
चाँद ला दो मुझे आसमां गाँव से ,
सब हँसे चल रे पगली जिद नहीं ऐसे करते ,
कभी तारों को देखा है ज़मीं पे उतरते,

अगर वो ज़मीं पे सकता नहीं ,
तो में क्यों ख़ुद ही उस जाऊं वहीँ ,
यहीं तो दिखे है , उठाओ नज़र ,
हाथों से चूलूं , जो बढाऊं अगर ,

सब ये बोले जो दिखता है होता नहीं,
रेत के ढेर में पानी सोता नहीं ,
इश्क़ में कौन दुनिया में रोता नहीं ,
जो समझता है सपने पिरोता नहीं....


मानी उडी उड़ चली वो चकोर ,
दोनों पंख खोले वो अम्बर की ओर ,
दिन ही को देखा , रातों को जाना,
गर्मी सर्दी, हवा का ठिकाना ,

जो टूटा बुलंदी से दम आखरी,
तो प्यासी वो आके ज़मीं पे गिरी ,
अपने उजडे पंखों को मींचे हुए
पहुँची प्यासी पोखर साँस खींचे हुए ,

देखा जो पानी में था चाँद एक,
आई जान वापस , दिया मौत फ़ेंक ,
गई वो समझ दुनिया दारी को आज ,
लो तुम भी सुनो उस चकोरी का राज़ ,

जो ख्वाइश करो तुम कभी चाँद की ,
अपने घर में पानी का घडा डालना ,
जो सच्ची हो चाहत झुके आसमां,
हमसफ़र दिल तुम ज़रा बड़ा पालना |

Thursday, September 4, 2008

गंगा मौसी

किसी देश में नदी किनारे , था मेरा एक गाँव,
धेनु, धरा , धन, धाम प्रचुर था, थी पीपल की छाँव,

उसी गाँव में मेरी प्यारी गंगा मौसी रहती थी,
था कोई न रिश्ता उनसे, यूँ ही मौसी कहती थी ,

हर गर्मी में गाँव जो जाती मैं उनसे ही खेली थी,
मैं थी नौ की, बीस की वो थीं, मेरी वही सहेली थीं,

याद है मुझको वो गर्मी , मौसी की हुई सगाई थी ,
मेरी मौसी गाँव के सबसे ऊंचे घर में ब्याही थी,

स्वर्ण जडित गहनों में , मेरी मौसी रमा सरीखी थी ,
लेकिन जाने क्यों उनकी मुस्कान बहुत ही फीकी थी ?

अगली गर्मी की छुट्टी में मौसी घर लाला आया,
इक प्यासे के घर में जैसे अमृत का प्याला आया

अनपढ़ मौसी के कहने पर ही शिक्षा का फूल खिला .
उनकी शुभ दृष्टि से गाँव को प्रथम एक स्कूल मिला .

तब स्कूल में शिक्षक आए एक, ज्ञान से थे भरपूर,
अनुपम तेज था चेहरे पर , सब चिंताओं से वो थे दूर,

मौसी ने अपनी भी शिक्षा , बड़े शौक से करवाई
कितना रोई मैं जब, उनकी पहली चिट्टी घर आई

मेरी भी कॉलेज की अब , तैयारियां जोरों पे थी,
मेरी जैसे सालों की , प्रतियोगिता औरों से थी ,

अबकी गर्मी मौसी को पहचान नही मैं पाई थी,
कितनी आभा थी उनमें जब मुझसे मिलने आई थी ....

कुंदन जैसा रंग था उनका बालक सी थी चंचलता
रूप कमल सा खिला खिला और नैनों में थी संबलता l

मैंने पूछा मौसी से - क्या शिक्षा से ये पाया है?
वो मुस्काई, बोली -"पगली, मन में प्रेम समाया है" .

ज्ञान के ही सागर ने ,मेरे इस जीवन को है छुआ ,
पता नहीं कब, क्यों और कैसे, पर कुछ तो है अवश्य हुआ !

मैं चौंकी थी -"ओ मौसी ! तू भी तो बस ह्द करती है
अपनों को तो छोड़ दिया अब तू गैरों पे मरती है !

तू भगिनी, तनया भार्या है, तू ममता है, जाया है
फिर राधा मीरा के जैसा, कैसा रूप बनाया है?

वो बोली- मेरा विवेक न जाने भाव में कहाँ खो गया ?
मैंने तो कुछ किया नहीं, बस ये तो अपने आप हो गया !

पर मेरे ये संस्कार हैं , मर्यादा न छोडूंगी
अपने कर्तव्यों से भी मैं, कभी नहीं मुंह मोडूंगी

पर बतलाओ क्या खुशियों पर मेरा कुछ अधिकार नहीं?
कैसा नीरस बोझिल जीवन, जिसमे सच्चा प्यार नहीं..

मैंने सोचा देखूं मौसी की क्यों ऐसी मति हुई ?
और प्रेम के मार्ग पर उसकी , आज कहाँ तक गति हुई ?

अगले दिन देखा जब शिक्षक आए , उन्हें पढाने भाषा ,
देख रही थी मैं उनमें थी , भरी हुई अद्भुत अभिलाषा ,

इक मोटा सा परदा उन दोनों के बीच में तना खड़ा-
हया शर्म संकोच का पहरा- उस से भी था बहुत बड़ा !

देख रहे थे इक- दूजे को, फिर भी कैसे तृष्ण रहे-!
मेरे आगे मानो जैसे स्वयम ही राधा कृष्ण रहे .

ऐसी निर्मल प्रेम कथा को जाने किसकी नज़र लगी-?
प्रेम की दुश्मन दुनिया बन गई , उसको ये जब ख़बर लगी .

मौसी की आजादी पर फिर पाबंदों की पाश मिली,
विद्या के विद्याधर की पटरी के ऊपर लाश मिली,

याद मुझे है आज भी वो दिन, जब मेरा कौतुक जागा
सारा गाँव न्याय करने को था पचांयत में लागा !

कहलाई थी गंगा मौसी, कुलक्षनी , डायन कुलटा,
एक सीता समान नारी का, भाग्य हाय कैसा पलटा ?

फिर पंचों ने सोच समझ कर एक फ़ैसला था तोला ,
सब हो माफ़ तुझे जो "माफ़ी मांगे" , सबने ये बोला

मौसी ने जो कहा वहाँ - सब गाँव उसी से था गूंजा,
प्रेम किया है स्वच्छ हृदय से , ये ही बस मेरी पूजा,

चोरी नहीं , डकैती न की , नहीं दिखाई शक्ति है,
मर्यादा न तोडी है , ये मात्र हृदय की भक्ति है !

क्षमा जो मांगूंगी तो मेरा प्रेम यहाँ लज्जित होगा ,
इसकी खातिर मृत्यु भी आए , अंत मेरा सज्जित होगा ।

क्या अपराध ? दोष क्या मेरा ? , इससे किसको है हानि ?
क्या है ये अपराध अदम्य ,जो कही प्रेम की है बानी !

मीरा के गुण गाते हो तुम, राधा की करते पूजा
अपने ही आँगन में क्यों व्यवहार किया करते दूजा ?

तुमने तो व्यापार बनाया सब भावुक संबंधों को
हर रिश्ते के साथ बाँध कर इन झूठे अनुबंधों को

आज तुम्हें मैं जगा सकूं तो स्वयं आज मैं जागूंगी.
माफ़ करें , पर प्रेम की खातिर मैं माफ़ी न मांगूंगी !

जिसने चाहा ये समाज जागे , ख़ुद वो ही सो गई,
पर मर कर भी मौसी मेरी अमर सदा को हो गई !!!!

धन्यवाद देती हूँ श्री शरद तैलंग जी को जिन्होंने इस कविता की खामियां निकाल कर इसे तराशा है | इस कविता की पूर्णता में शरदजी का बहुत बड़ा हाथ है |
धन्यवाद शरदजी !

Tuesday, August 19, 2008

ईदगाह

ईदगाह
( मुशी प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' पर आधारित )


हामिद था एक अच्छा बेटा अपनी माँ का प्यारा ,
बूढी आमना की धुंधली आंखों का तारा ,
गाँव में जब मेला था पाक ईद के मौके पर ,
लगी हुई थी खालिदा , रोटी में चूल्हे चौके पर ,
पोता मेरा खाना खाकर मेले में फिर जायेगा ,
सब बच्चों के जैसे वो भी भर भर खुशियाँ पायेगा ,

होते जो पैसे मुझपे दे देती भर के हाथ ,
लेकिन बस ये तीन पैसे हैं दूँ जो तेरे साथ ,
पैसे वो लेकर के हामिद भागा भर के दम ,
तीन पैसे भी लगे उसको छह लाखों से कम,

सोचा उसने क्या लूँ में, अपने इतने पैसों में ,
लूँ मिठाई या खेल खिलौने , चुनना है ऐसों में ,
फिर देखा एक कोने में एक बन्दा था कुछ सिमटा ,
बेच रहा था चीख चीख कर वो लोहे का चिमटा...

याद गया हामिद को जब रात चूल्हा चलता है ,
बिन चिमटे के हर रोटी पर हाथ माँ का जलता है ,
छ: पैसे का था पर चिमटा सोचा कैसे लूँगा,
बोला भइया तीन का दे दे , ले के माँ को दूँगा ,

बच्चे की जो देखी सूरत बोला चिम्टेवाला ,
ले ले बेटा तीन में तू, जा ईद मनाले आला ,
लौट रहे थे जब घर को सब बच्चे मिल कर बोले ,
अपने सामानों की पुड़िया आओ अब हम खोलें ,

हँसें देख हामिद का चिमटा लेकिन हामिद बोला,
तुमपे तो सब कांच या मिटटी है, टूट पड़े जो डोला ,
मेरे लोहे का चिमटा है , मजबूती का नाम ,
रहे संग ये हरदम मेरे , मदद करे हर काम ,

आई दौडी माँ आँगन तक देखूं हामिद को मेरे ,
क्या खाया मेले में तूने, क्या भाया मन को तेरे ?

खाना खाकर निकला था माँ मैं भूख थी कुछ मुझको ,
पर मेले से एक चिमटा माँ , लाया हूँ मैं तुझको ,
अबकी जब रोटी सेकेगी, तू चिमटे के साथ ,
होगी मुझको बहुत खुशी की जले तेरे हाथ ,
माँ के आँसू रुक सके फिर , पंख लगे थे पाँव में,
आज फ़रिश्ता ईदगाह से आया था ख़ुद गाँव में !