Tuesday, September 30, 2008

छोटी छोटी बातों की है यादें बड़ी !-मौसी_सीरीज़-१

बड़ी खलबली मची है | हर तरफ़ कुछ न कुछ बिखरा है .. किसी का शर्ट प्रेस नहीं है तो किसी की बिंदी नहीं मिल रही | कभी कोई बच्चा रो रहा है तो किसी ओर हँसी के ठहाके सुने दे रहे हैं | बिल्कुल इंडिया की तरह लग रहा है | आज घर - एक घर की तरह लग रहा है ....

पर मौसी हैं की कोई फिकर नहीं है की क्या पहनेंगी ? बस सुबह से किचेन में लगी हैं, जाने क्या कर रही हैं | अरे यार , चलो मैं उन्हें तैयार करवाती हूँ , अभी एक घंटे में निकलना है ना | कहीं देर ना हो जाए | यहाँ तो इवेंट्स के टाइम बुक होते हैं तो बस वही टाइम मिलता है , उसे और खींच नहीं सकते | यहाँ वक्त के सब पाबन्द हैं | हम कभी ये सीख नहीं पाये , यहाँ दस साल रहने के बाद भी नहीं.. नागरिक बन गए तो क्या ...खून तो ओरिजनल है !

मौसी प्याज़ काट रही थीं , आँसू टप टप बहते ही जा रहे थे ...
"अरे रे मौसी जी ! लोग तो बेटी के ब्याह पर नैन भिगोते हैं , और आप तो बेटे की सगाई पर सेंटी हो रहे हो | क्या मौसी ?" मैंने मज़ाक में कहा |
"क्या बेटा और क्या बेटी अब तो सब समान है , गुडिया " उनका बड़ा उखडा उखडा सा जवाब था |
मुझे लगा की ये आँसू प्याज़ के नहीं हैं, किसी राज़ के हैं | वक्त नहीं था कुछ कहने सुनने के लिए | पर लगा ज़रूरी है सुनना - जो ये कहना चाहती हैं | अभी तक सब कुछ कितना जल्दी हो गया था |

कुछ दिनों पहले मौसी आयीं यहाँ , राजू की शादी तय करने | साथ लायीं ढेर सारी विवाह योग्य कन्याओं के फोटो और कुंडली | लगता था मौसी ने कोई matrimony की वेबसाइट नहीं छोड़ी थी , सब छान छान के अपने आई आई टी , आई आई एम् पास बेटे के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते ले कर आई थीं | मैंने भी अपने सर्कल के सभी लड़कयों से राजू का इंट्रो तो करा ही दिया था | पर राजू था की जैसे दुनिया से उसे कोई लेना देना नहीं था | एक ही शहर में रहकर भी वो कई महीनों से कभी हमसे मिलने नहीं आता था | मैं उससे मिलना चाहती तो काम का बहाना कर के टाल देता था | हाँ ! आज कल के लड़के अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं भई ! और वो भी अमेरिका में हैं तो बल्ले बल्ले !

छ न न ना ..........मौसी कटे प्याज़ का गरम तेल में छौंका लगा रही थीं |
"अच्छा सोचते हैं मौसी , आज के दिन तो और अच्छा सोचते हैं , देखो न कितनी अच्छी लड़की मिली है राजू को , हम आप ढूंढ के भी इतनी अच्छी नहीं ला सकते थे, उसके लिए, है नहीं क्या?" मैंने कहा |
"नहीं बेटा , मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है | देख ना, लड़की इंडियन नहीं गोरी है , क्रिस्तान है , पता नहीं ये ब्रह्मण का बेटा कैसे .... इसको ... चलो इसको भी अगर मैं भूल जाऊं ...पर साथ साथ रह रहे हैं इतने महीनों से .....और कभी बताया भी नहीं इसने ...कैसे .... कैसे अपनी माँ से कोई इस तरह कर सकता है (मौसी आँचल से आँख पोंछते हुए बोलीं )... इतना किया है ...एक ही तो बेटा है ... मैं वापस जाकर सबसे क्या कहूँगी ? इसने तो...इसने ...तो.. " मौसी का गला बहुत रुंध रहा था , रुक रहा था |
"इस.. ने ... तो .... बेटा .... मेरी नाक कटा दी... बेटा... मैं क्या करुँ, अब वापस नहीं जा पाऊंगी...मैं क्या मुंह लेकर जा... ऊँगी..ऊऊंंऊऊंं ऊऊंं " मौसी संभाल नहीं पायीं | घर में लोग थे, इस कारण ज़ोर से नहीं रो पा रहीं थीं |
"अरे मौसी किस ज़माने में रह रही हो , आजकल ज़माना बदल रहा है , देखो ये देस विदेस का चक्कर मन से निकाल दो , लड़की देखो तुम, कितना पढ़ी लिखी है , समझदार है , तुम तो भाग्य शाली हो , ज़रूर कोई पुण्य किया होगा जो ऐसी बहू पा रही हो " मैंने उनको हिम्मत देने की कोशिश की |
"गुडिया , हमें कौनसा उनके साथ रहना है , जो चाहें करें , पर मेरे बेटे के हमेशा साथ रहेगी , इसकी वो गारंटी देगी मुझे " मौसी आँख पोंछते हुए पूछीं |
"अच्छा आप ये बताओ मौसी, कि आज कि कोई इंडियन लड़की क्या ये गारंटी दे सकती है ? मौसी मैंने यहीं, अपने आंखों के सामने कितने ही इंडियन लोगों को डिवोर्स लेते देखा है | वो तो आपकी किस्मत है मौसी और आपका विश्वास "
"मैं तो सह लूंगी गुड्डो पर तेरे मौसा जी , और ये देखो इन दोनों को - चल रोजी तो नहीं जानती हमारे संस्कार पर राजू भी... तूने देखा ना कैसे कमर पकड़ पकड़ के चलते हैं , सब के सामने चूमा चाटी करते शर्म नहीं आती इन लम्पटों को ... मेरा तो जी बहुत घबरा रहा है बेटा ..सुबह से दुर्गा चालीसा पढ़ चुकी हूँ कितनी बार पर मन है कि बार बार उथल पुथल हो रहा है , क्या करुँ बेटा , तू ही बता .." मौसीजी कडचि ज़ोर ज़ोर से कढाई पर चला रही थीं | लग रहा था सारा गुस्सा सब्जी पर निकाल रही हैं |
"कुछ मत सोचो मौसी , बस राम का नाम लो और सब उस पर छोड़ दो , देखना सब अच्छा होगा, जब हम सब कुछ अपने आप करना चाहते हैं ना मौसी तो ना होने पर कष्ठ होता है | अरे ! कुछ उसके लिए छोड़ कर देखो , देखना फिर कैसे सब फिट फटांग होता है ! " आँख मारते हुए मैंने मौसी से कहा | "और फिलहाल तो आप तैयार हो जाओ | ये लो आपकी साड़ी मैंने निकाल दी है | इसे पहन लों | अरे, हमारी मौसी भी तो मुंडे दी माँ लगनी चाहिए | बाकी लोग जो पहनें , सो पहनें - कि फर्क पैंदा है ? अरे मौसी , इन गोरों को भी तो पता चले हमारी मौसी का जलवा !" मैंने उनको ज़रा हल्का फील कराने कि कोशिश में कहा |
"चल हट ! ज़रा देखती हूँ राजू ने शेरवानी पहनी या नहीं ... ये लड़का भी न ...."
मौसी साड़ी लेकर , मुंह पोंछते हुए , कुछ बुदबुदाते हुए चल पड़ी |
"गुडिया , सब्जी को देख लेना " पीछे से मौसी बोलती गयीं |
"हाँ मौसी सब्जी को कहीं नहीं जाना है , पर आप ....... " मेरी बात अब कोई नहीं सुन रहा था |

समय भी कैसे कैसे खेल खेलता है , कभी आगे ले जाता है और कभी बहुत पीछे .....


मुन्नी अभी अभी इंजीनियरिंग करके वापस घर आई थी | मम्मी पापा रिश्ते की खोज में थे | खाना खाकर सब बैठे ही थे की नर्मदा मौसी ने अपना पिटारा खोल दिया |
"सुन लीजिये भाई साहब , इससे अच्छा रिश्ता आपको नहीं मिलेगा " मौसी अपनी जिद पर अडी थीं |
"पर निम्मो तुम देखो ना ये रिश्ता अपनी मुन्नी को जचता नहीं है , हाँ थोडी सांवली है हमारी ..." पापा की बात काटते हुए मौसी गरजीं - "अजी हाँ ! बेटी को तो आप सर पर बैठा कर रखिये | घर पर बैठी रहेगी तो आपका ही नाम ख़राब होगा जीजाजी , मुझे क्या है , ज़रा आप सोचिये , रंग काला है , और उस पर इंजीनियरिंग , उमर वैसे भी हो गई है , कौन लेगा इसको , मैं तो कहती हूँ भाई साहब , काम ख़तम कीजिये और गंगा नहाइए , अभी एक और है ब्याहने को, ये जाए तो दूसरी को सोचो, क्या कहते हो ? बात आगे करुँ? " मौसी तो जैसे अपनी जीत सोच कर ही आई थीं |
"रुको ज़रा मुन्नी से पूछते हैं , फिर बताएँगे , तुम थोड़ा आराम कर लो निम्मो " पापा ने बड़ी स्थिरता से कहा |
"भाई साहब ! जब तक दीदी कि दो जवान बेटियाँ घर पे है कहाँ आराम मिलता है | छोटी तब भी निकल जायेगी - रंग चिट्टा है और लम्बाई भी खूब है, चिंता है तो मुझे इस कालो रानी कि है ... " मौसी को अपने ही मज़ाक पर हंसने कि आदत है |

शाम को मुन्नी लगी हुई थी -शायद कुछ फॉर्म भर रही थी |
"बेटा , ये निम्मो मौसी कोई रिश्ता लेकर आई है , सुना तुमने ? लड़का अच्छे घर का है - इंजिनियर है " पापा ने बड़े प्यार से मुन्नी से पूछा|
"पर पापा वो एक नम्बर का गधा है | डोनेशन कॉलेज से पढ़ा हुआ | एक बात पूछो तो नहीं आता | उसका दिमाग काम ही नही करता पापा | किसी भी रिश्ते में आदर का होना बहुत ज़रूरी है पापा, है न ?" मुन्नी ने बड़ी सादगी से पूछा |
"ये बात तो सही है बेटा पर कुछ तो हमें भी एडजस्ट करना होगा , देखो तुम टोपर हो अपने क्लास में - तो हर एक का दिमाग एक सा नहीं होता न बेटा , फिर अपनी बिरादरी का पढ़ा लिखा लड़का मिलना भी मुश्किल है | अगर तुम्हारे कोलेज का कोई तुम्हे पसंद हो तो तुम मुझे बता सकती हो " पापा दुनियादारी समझा रहे थे |
"नहीं पापा ऐसी बात नहीं है , आप मुझे जानते हैं , फिर ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? और ऐसा कहाँ लिखा है की बिरादरी में ही शादी करनी है ..बताइए " मुन्नी को ऐसी बात करते बड़ी शर्म आ रही थी |

कुछ समय बड़ी खामोशी थी उस कमरे में | बज रहा था तो बस वो पुराना पंखा जो हवा से ज़्यादा आवाज़ देता था |

"पापा , मेरा रंग काला क्यों है ? " एक बहुत ही अनदेखा सा सवाल पूछा मुन्नी ने |
"मम्मी तो गोरी हैं , रूपा भी गोरी है फिर मुझे आपने काला क्यों बनाया , पापा " मुन्नी की आंखों के कोने से कुछ चमक चमक कर दिख रहा था पर बाहर आते शायद डर रहा था |
"नहीं बेटा देखो जब इश्वर काला रंग देता है न तो वो उसमे कला भी छुपा कर दे देता है | हम सब काला रंग तो देखते हैं पर जो उस काला में कला देख लेगा न बेटा बस उसी के साथ आपको हम भेजेंगे | आप MBA के सारे फॉर्म देख कर भरना | हम निम्मो मौसी को "ना" कर देते हैं | और हमें पता है कि आपको किसी अच्छे बी-स्कूल में दाखिला ज़रूर मिलेगा " पापा ने मुन्नी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा |
.......................................

"अर्चना , कहाँ हो ? मैं आधे लोगों को ले जाता हूँ | तुम बाकी लोगों को अपनी गाड़ी में ले आना | सन फ्रांसिस्को में ट्रैफिक होगा | जल्दी निकलना | गराज से इन्होने मुझे आवाज़ लगायी तो मैं भूत से वर्तमान में आ गई | देखा मौसी अपनी साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थीं | बड़ी सुंदर लग रही थीं | मौसा जी भी कुरते में जच रहे थे |

"गुडिया आज तेरे साथ दुःख बाँट कर दिल हल्का हो गया " मौसी अब मुस्कुरा रही थीं |

बहुत अच्छा हुआ मौसी , रोना बहुत अच्छा होता है , सब दुःख बह जाते हैं, और अगर कोई साथ हो तो फिर शक्ति मिलती है, हौसला बढ़ता है | पर हर इंसान इतना भाग्यशाली नहीं होता निम्मो मौसी | किसी दिन मुन्नी , आपकी गुडिया, भी बहुत रोई थी मौसी , आपसे छुप कर | हाँ आज आप अपने किस्मत के रंग को नहीं बदल पा रहीं ,तब मुन्नी भी अपने रंग को नहीं बदल पा रही थी | पर मौसी , आज आप बहुत खुश होंगी ना, आपकी इकलौती बहू गोरी जो है .....

Monday, September 8, 2008

कभी कान्धा भीगा है आपका?_सोनी_सीरीज़_पार्ट १

कभी कान्धा भीगा है आपका? यूँ तो हम सब दिल भिगोते हैं , कभी कभी आँखें भी भीगती हैं , ये सब 'अपने' गम की निशानी हैं | लेकिन भीगा कान्धा, एक प्रतीक है, एक सहेली या दोस्त के दुःख का | किसी मित्र को आपकी ज़रूरत होती है तभी भीगता है आपका कान्धा |

मेरी एक सहेली है, बचपन की | चलो मैं उसका नामकरण करती हूँ- "सोनी" | सोनी आज के समाज के नारी की एक मिसाल है | माता पिता को जिस बेटी के कैरियर पर नाज़ हो , ऐसी है मेरी सोनी | जब वह बिजिनेस प्रेजेंटेशन करती है , तो कभी कोई उसकी कही बात पर ना नहीं कर सकता , कभी नहीं | अमरीका में आकर एक हिन्दुस्तानी लड़की, वो भी अकेली , इतने रौब से सत्ता बनाए रह रही है , नाज़ की बात है |
सोनी हफ्ते के सभी दिन जी भर के काम करती है | दिन क्या अरे ! वो तो रात रात भर काम करती है | अपने काम में बहुत उसकी बहुत निष्ठा है | और हमेशा रहती अगर उसकी मुलाक़ात 'डब्बा' से नहीं होती | हाँ बस यही नाम उस जनाब को सही सूट करता है | वैसे तो उन महाशय का एक भला सा नाम भी है लेकिन मेरा दिया गया ये नाम उनको बिल्कुल सही बैठता है |
हाँ , तो हमारे ये डब्बा जी भी एक जानी मानी हस्ती हैं और तिस पर शादी शुदा भी हैं | लेकिन अपने यौवन का रंग और प्रभाव घर से बाहर जमाने में आजमाने में पीछे नहीं रहते और दुर्भाग्यवश इस का शिकार बनी मेरी दोस्त !
जाने कैसा वक्त है आजकल | कहते हैं , इश्क कभी किया नहीं जाता , हो जाता है , पर ऐसा भी क्या इश्क जिसे नहीं होना चाहिए और फिर भी हो | सही बात की पैरवी नहीं करनी पड़ती और गलती की कोई सफाई चलती नहीं| है न?

मैं इसी बात से खुश थी की सोनी खुश है.... बहुत खुश ... चाहे वो खुशी उधार की हो !
पर हर उधारी की कीमत होती है, मूल के साथ सूद भी चुकाना पड़ता है | सोनी को शायद पता नहीं था |

अब फास्ट फॉरवर्ड आज तक....

शुकर की शाम थी | लोग वीकेंड के स्वागत में लगे थे ! अभी मैं आरती का दिया लगा ही रही थी की फ़ोन बजा घननन ....
"हाय ! आर्ची , आज ना बहुत ही सही सेटिंग है , तू जल्दी एवलोन आ जा ! बहुत मज़े करेंगे ! बिल्कुल हॉस्टल जैसी मस्ती करेंगे | " सोनी बहुत ही ज़्यादा उत्तेजित लग रही थी , स्वाभाविक रूप से भी ज़्यादा !
"अरे नहीं यार ! अभी तो आरती भी नहीं हुई है , खाना बनाकर, बच्चों को खिलाकर, उन्हें सुलाना है | और मम्मी बाउजी का भी देखना है ! यू केरी ऑन ! फिर कभी !
"आर्ची प्रोमिस ड्रिंक नहीं करेंगे , मुझे पता है तुम नहीं करती पर तुम्हे डांस अच्छा लगता है न , आज यहाँ बॉलीवुड नाईट है ! खूब डांस करेंगे पुराने दिनों जैसे , पूरी रात ...बिंदास , तुम अपना काम ख़तम करके आ जाना, साउंड्स लायिक अ प्लान , हाँ ?" सोनी जब कहती है तो हमेशा बड़े अधिकार से कहती है |
"नहीं रे ! मुझे तीन दिन से बुखार है , आज रेस्ट करना चाहती हूँ " मैंने कहा क्योंकि घर और ऑफिस के काम में मुझे कतई आराम नहीं मिल पाया था और बुखार से अभी पूरी तरह उठी नहीं थी मैं |
"आर्ची ! यू सक, भाड़ में जाओ !" सोनी की आवाज़ में एक अजीब सी झुन्झुलाहट थी , यूँ तो दफा होने को कहा उसने पर जाने क्यों लगा की बुला रही है , कुछ कहना चाहती है पर कह नहीं पा रही | शायद इस बात को कोई विश्वास न करे पर कई बार मुझे लगता है जैसे मैं लोगों के मन की बात सुन सकती हूँ, सबकी नहीं पर जो मेरे नज़दीक हैं , दिल के करीब हैं उनकी एक एक बात सुनाई देती है , उनके बिना कहे ! पता नहीं कैसे और जाने ये अच्छा है भी या नहीं , कभी कभी बहुत कष्ट प्रद होता है दिल की सुन पाना या सुन लेना !

सोनी की आवाज़ गूंजती ही रही , सब काम हो गया घर का , पर वो आवाज़ गई नहीं ! सन फ्रांसिस्को होता तो शायद मैं नहीं जाती पर एवलोन तो घर के पास ही था , सांता क्लारा का एक ही तो डांस क्लब है | मैंने सोचा मुझे उस से मिलना चाहिए पर अब रात के ग्यारह बजे , पता नहीं वो वहां पर अब तक होगी भी या नहीं |
उसके सेल फ़ोन का नम्बर मिलाया, पर लगा नहीं | शायद शोर गुल में सुनाई नहीं दिया होगा |

दुविधा में थी | कभी डांस क्लब देखा नहीं था | पता नहीं था की उसमे अन्दर कैसे जाते हैं | पर जाने वो पुकार कैसी थी की बस इतना ही याद है की मैं उठी , गाड़ी शुरू किया और एवलोन के बाहर मैं कार से उतरी | लोऊंज में बड़े अजीब तरह के लोग मिले | मन किया वापस भाग जाऊं | दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था की मैं उसे सुन पा रही थी | मैं सोच रही थी मैं यहाँ क्यों आई हूँ - किसी को पूछा भी नहीं घर में - न इनको , न मम्मी- बाउजी को | पर मुझे पता था की अगर मैं पूछती तो कभी आ नहीं पाती, कोई अनुमति नहीं देते ! और मुझे आना था , किसी को मेरी ज़रूरत थी ... शायद ..

जाने और क्या क्या देखना पड़ता अगर एक परिचित नहीं मिल जाते ! उन्हें देख कर पहले मैंने सोचा अरे बाप रे ! ये यहाँ ! चलो मैं कहीं छुप जाऊं लेकिन फिर मैंने सोचा की कम से कम इन्हे मुझसे ज़्यादा ज्ञान होगा | अरे, ये तो सोनी को भी पहचानते हैं , शायद उसे ढूँढने में मेरी मदद करेंगे |
वैसे तो इनका नाम हरी है पर अमरीकी अंदाज़ में इन्होने इसे "हैरी" कर दिया है | क्यों न करें ? अरे भाई जब संस्कार, रूप और दिनचर्या ही ढल गई है तो नाम क्या बड़ी चीज़ है ?
"हाय हैरी ! हाउ आर यू? " इस माहौल में मैं उन से किस तरह बात शुरू करुँ, समझ नहीं पा रही थी |
अर्चना ! वाट ऐ सर्प्रायिस ! तुम यहाँ , तुम्हारी तबियत तो ठीक है ? घर में कोई झगडा हुआ है क्या?
उसने बड़े आश्चर्य अंदाज़ से पहले मुझे देखा फिर मेरे सलवार कमीज़ को, जैसे कह रहा हो कम से कम कपड़े तो जगह देख कर पहना करो!
"अरे नहीं , वो दरअसल... एक्तुअल्ली ....मैं सोनिका गिल को ढूंढ रही थी " मैंने हकलाते हुए कहा |
"ओह सन्नी बेबी ! " अच्छा मैं तुम्हे ले चलता हूँ उसके पास | फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और तेज़ी से एक तरफ़ चल पड़ा | आम समय में उस से हाथ छुडाकर उसको एक तमाचा देना मेरा पहला ख्याल होता लेकिन कहते हैं औरत की एक sixth sense होती है | किसी की नियत समझने में सिर्फ़ एक नज़र ही काफ़ी होती है | बन्दा तेज़ था पर शरीफ था तो मैं चुप चाप उसका हाथ थामे उसके पीछे चल ली | जैसे ही अन्दर प्रविष्ट हुए , बहुत ही तेज़ संगीत ने कान फाड़ दिए ! और गाना भी क्या सही गाना था -

पप्पू के पास है MBA, करता है फ्रांस में होलीडे !
....वादों की घड़ी हाथों में, परफ्यूम गुची वाला,
पर पप्पू कैंट डांस साला ...
पप्पू नाच नहीं सकता ...

कई लोग - भारतीय, गोरे ,काले सभी अपने अपने ग्रुप में नाच रहे थे | मैंने सोचा था सोनी भी शायद ऐसे ही किसी टोली में होगी | पर सोनी ड्रिंक बार में बैठी थी -अकेली , पसीने से लथपथ, शायद मेरे आने से पहले ही बहुत डांस हो चुका था | टकीला के कई खाली गिलास सामने रखे थे | उसके कपड़े देख कर मैं हैरान थी की इतना भी पहनने की क्या ज़रूरत थी? इसे भी उतार देती , हु कयेर्स अनिवे ! देखते ही वो खड़ी हो गई उसी तरह जैसे बचपन में मैंने उसकी चोरी पकड़ ली हों और वो जल्दी से यह सोच रही हों की क्या बहाना बनाए ?

मुझे कोई बहाना नहीं चाहिए था , मुझे सोनी चाहिए थी और चाहिए थी उसकी खुशी |
"सोनी, एक बात करनी है , बाहर आओ " मैंने धीरे से कहा , पता नहीं क्यों मैं सोनी की तरह अधिकार से नहीं कह पाती हूँ |
पर बिना कुछ पूछे वो बाहर चल दी, मेरे साथ !
पर अब ध्यान आया की क्या पूछूं ? कैसे पूछूं? उसने तो कुछ कहा नहीं था | बात शुरू कैसे हों?

"कैसी हो तुम?" बहुत ही बोरिंग तरीके से बात शुरू की मैंने | और कुछ सूझा ही नहीं |

"ज़्यादा बनने की ज़रूरत नहीं है | तुम ये देखने आई हो की सोनी मर तो नहीं गई | मैं तुम्हे अच्छे से पहचानती हूँ| यू आर सच अ शो ऑफ़ | तुमने मेरे ब्रेक अप की ख़बर सुनी है और मुझे सुनाने आई हो | जस्ट गो टू हेल , लीव मी आलोन " उसने बात शुरू कि इतने भयंकर निनाद से की मेरे आंखों में आँसू आते आते रुक गए |
"नहीं सोनी, मुझे तुम्हारे ब्रेक अप के बारे में पता नहीं था , प्रोमिस !" मैंने कहा | कहते हुए मैं अपने कार में बैठ गई और फिर वो भी कुछ देर में मेरे पास आ गई जैसे जानती हो की मैं वहां आऊंगी , जैसे उसे बस इंतजार ही था |
फिर भी हिम्मत करके मैं बोली - "चलो , छोडो ! अच्छा बताओ तुमने कोई नया गाना सुना है, याद है जब हम एक ही रूम में रहते थे और पढ़ाई करके जब थक जाते थे तब सॉफ्ट म्यूजिक चला कर उसे सुनते सुनते सो जाते थे , कितने अच्छे दिन थे न , है न ? मैंने उसे शांत करने के उद्येश्य से बात को बदलना चाहा |

फिर उसके उत्तर को सुनने से पहले ही मैंने CD प्लेयर ऑन कर दिया | उमराव जान के ग़ज़ल चल रहे था |

हम दोनों चुप बैठे था और गाना बस गाना चल रहा था | पता नहीं वह क्या सोच रही थी पर चुप थी !

कब मिली थी, कहाँ बिछडी थी, हमें याद नहीं ,
ज़िन्दगी तुझको तो बस ख्वाब में देखा हमने ,
जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने ...
ए अदा और क्या सुनाएँ हाल अपना,
उम्र का लंबा सफर तय किया तनहा हमने ...

मुझे लगा की इस तरह के गीत उसे और दुखी करेंगे | मैंने CD बदल दी | पता नहीं कौन सा था | शायद नए गीतों का एक कोल्लेक्शन था | एक गीत बहुत ही सुंदर था उसमे - पता नहीं किस मूवी का है पर अच्छा लगता है सुन ने में | हम जब चुपचाप साथ बैठे था , बस हम दोनों , उस रात कार में ... बाहर बहुत अँधेरा था .. एक गीत ख़तम हुआ और वो गीत आया.....पता नहीं उस रात इतनी चुप्पी कैसे थी ? कोई आवाज़ नहीं थी , बस वे शब्द -

कहीं तो, होगी वो , दुनिया - जहाँ तू मेरे साथ है ,
जहाँ मैं, जहाँ तू, और जहाँ , बस तेरे-मेरे जज्बात हैं !

मुझे लगा , सोनी के गले में कोई आवाज़ रुक सी गई | मैं कुछ सुन ना चाहती थी | कुछ भी, मुझे लगा की उसका बोलना ज़रूरी है वरना वों, सोनी ,अपने ही बोझ से दब जायेगी |

जाने ना कहाँ वो दुनिया है , जाने ना वो है भी या नहीं !
जहाँ मेरी ज़िन्दगी मुझसे , इतनी खफा नहीं ..

जैसे ही मैंने नज़र उठाई सोनी की ओर, उस की आंखों में कुछ चमकता हुआ दिखा | कार में अँधेरा था | पर अब एक अजीब सी नजदीकी सी आ गई थी , मुझे लगा वो मेरे पास है, बहुत पास | फिर मेरे कंधों को जैसे किसी ने छुआ | देखा तो सोनी का झुका हुआ चेहरा था मेरे कन्धों पर था और जाने क्यों मेरा कंधा भीग रहा था | पहले लगा उसे रोकूँ, समझाऊँ पर फिर लगा नहीं इसे बहने देना चाहिए , ये आंसूं भी एक तरह के मैल होते हैं, अगर निकाले नहीं जाते तो जमते रहते हैं , और जाने कब तक डेरा जमाये रहते हैं, इनका बाहर निकल जाना ही अच्छा है |

गाना बजता रहा , सोनी रोती रही, मैं चुप रही और कंधा भीगता रहा |

सन्नाटा था, जाने अन्दर चल रही इतनी तेज़ चीख बाहर तक क्यों नहीं पहुँच रही थी |

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Friday, September 5, 2008

चाँद चकोर

किसी गुलसितां में चहकती थी हरदम ,
दो आंखों में उसकी महकती थी शबनम ,
सभी फूल पाती उसी पर फ़िदा थे ,
जो गूंजे सदा में उसी की सदा थे |

थी लाडो सभी की चहेती चकोर ,
कूदती भागती थी वो चारों ही ओर,
था मासूम दिल ऐसा , भोली सी सूरत ,
थी उसके लिए ये जहाँ खूबसूरत ,

एक दिन जो नज़र आसमां पर पड़ी ,
चाँद के चेहरे से उसकी आँखें लड़ी,
देखती ही रही कुछ भी बोले वो ,
मुस्कुराये मगर राज़ खोले वो ,

फिर कहा उसने ये बड़े दांव से,
चाँद ला दो मुझे आसमां गाँव से ,
सब हँसे चल रे पगली जिद नहीं ऐसे करते ,
कभी तारों को देखा है ज़मीं पे उतरते,

अगर वो ज़मीं पे सकता नहीं ,
तो में क्यों ख़ुद ही उस जाऊं वहीँ ,
यहीं तो दिखे है , उठाओ नज़र ,
हाथों से चूलूं , जो बढाऊं अगर ,

सब ये बोले जो दिखता है होता नहीं,
रेत के ढेर में पानी सोता नहीं ,
इश्क़ में कौन दुनिया में रोता नहीं ,
जो समझता है सपने पिरोता नहीं....


मानी उडी उड़ चली वो चकोर ,
दोनों पंख खोले वो अम्बर की ओर ,
दिन ही को देखा , रातों को जाना,
गर्मी सर्दी, हवा का ठिकाना ,

जो टूटा बुलंदी से दम आखरी,
तो प्यासी वो आके ज़मीं पे गिरी ,
अपने उजडे पंखों को मींचे हुए
पहुँची प्यासी पोखर साँस खींचे हुए ,

देखा जो पानी में था चाँद एक,
आई जान वापस , दिया मौत फ़ेंक ,
गई वो समझ दुनिया दारी को आज ,
लो तुम भी सुनो उस चकोरी का राज़ ,

जो ख्वाइश करो तुम कभी चाँद की ,
अपने घर में पानी का घडा डालना ,
जो सच्ची हो चाहत झुके आसमां,
हमसफ़र दिल तुम ज़रा बड़ा पालना |

Thursday, September 4, 2008

गंगा मौसी

किसी देश में नदी किनारे , था मेरा एक गाँव,
धेनु, धरा , धन, धाम प्रचुर था, थी पीपल की छाँव,

उसी गाँव में मेरी प्यारी गंगा मौसी रहती थी,
था कोई न रिश्ता उनसे, यूँ ही मौसी कहती थी ,

हर गर्मी में गाँव जो जाती मैं उनसे ही खेली थी,
मैं थी नौ की, बीस की वो थीं, मेरी वही सहेली थीं,

याद है मुझको वो गर्मी , मौसी की हुई सगाई थी ,
मेरी मौसी गाँव के सबसे ऊंचे घर में ब्याही थी,

स्वर्ण जडित गहनों में , मेरी मौसी रमा सरीखी थी ,
लेकिन जाने क्यों उनकी मुस्कान बहुत ही फीकी थी ?

अगली गर्मी की छुट्टी में मौसी घर लाला आया,
इक प्यासे के घर में जैसे अमृत का प्याला आया

अनपढ़ मौसी के कहने पर ही शिक्षा का फूल खिला .
उनकी शुभ दृष्टि से गाँव को प्रथम एक स्कूल मिला .

तब स्कूल में शिक्षक आए एक, ज्ञान से थे भरपूर,
अनुपम तेज था चेहरे पर , सब चिंताओं से वो थे दूर,

मौसी ने अपनी भी शिक्षा , बड़े शौक से करवाई
कितना रोई मैं जब, उनकी पहली चिट्टी घर आई

मेरी भी कॉलेज की अब , तैयारियां जोरों पे थी,
मेरी जैसे सालों की , प्रतियोगिता औरों से थी ,

अबकी गर्मी मौसी को पहचान नही मैं पाई थी,
कितनी आभा थी उनमें जब मुझसे मिलने आई थी ....

कुंदन जैसा रंग था उनका बालक सी थी चंचलता
रूप कमल सा खिला खिला और नैनों में थी संबलता l

मैंने पूछा मौसी से - क्या शिक्षा से ये पाया है?
वो मुस्काई, बोली -"पगली, मन में प्रेम समाया है" .

ज्ञान के ही सागर ने ,मेरे इस जीवन को है छुआ ,
पता नहीं कब, क्यों और कैसे, पर कुछ तो है अवश्य हुआ !

मैं चौंकी थी -"ओ मौसी ! तू भी तो बस ह्द करती है
अपनों को तो छोड़ दिया अब तू गैरों पे मरती है !

तू भगिनी, तनया भार्या है, तू ममता है, जाया है
फिर राधा मीरा के जैसा, कैसा रूप बनाया है?

वो बोली- मेरा विवेक न जाने भाव में कहाँ खो गया ?
मैंने तो कुछ किया नहीं, बस ये तो अपने आप हो गया !

पर मेरे ये संस्कार हैं , मर्यादा न छोडूंगी
अपने कर्तव्यों से भी मैं, कभी नहीं मुंह मोडूंगी

पर बतलाओ क्या खुशियों पर मेरा कुछ अधिकार नहीं?
कैसा नीरस बोझिल जीवन, जिसमे सच्चा प्यार नहीं..

मैंने सोचा देखूं मौसी की क्यों ऐसी मति हुई ?
और प्रेम के मार्ग पर उसकी , आज कहाँ तक गति हुई ?

अगले दिन देखा जब शिक्षक आए , उन्हें पढाने भाषा ,
देख रही थी मैं उनमें थी , भरी हुई अद्भुत अभिलाषा ,

इक मोटा सा परदा उन दोनों के बीच में तना खड़ा-
हया शर्म संकोच का पहरा- उस से भी था बहुत बड़ा !

देख रहे थे इक- दूजे को, फिर भी कैसे तृष्ण रहे-!
मेरे आगे मानो जैसे स्वयम ही राधा कृष्ण रहे .

ऐसी निर्मल प्रेम कथा को जाने किसकी नज़र लगी-?
प्रेम की दुश्मन दुनिया बन गई , उसको ये जब ख़बर लगी .

मौसी की आजादी पर फिर पाबंदों की पाश मिली,
विद्या के विद्याधर की पटरी के ऊपर लाश मिली,

याद मुझे है आज भी वो दिन, जब मेरा कौतुक जागा
सारा गाँव न्याय करने को था पचांयत में लागा !

कहलाई थी गंगा मौसी, कुलक्षनी , डायन कुलटा,
एक सीता समान नारी का, भाग्य हाय कैसा पलटा ?

फिर पंचों ने सोच समझ कर एक फ़ैसला था तोला ,
सब हो माफ़ तुझे जो "माफ़ी मांगे" , सबने ये बोला

मौसी ने जो कहा वहाँ - सब गाँव उसी से था गूंजा,
प्रेम किया है स्वच्छ हृदय से , ये ही बस मेरी पूजा,

चोरी नहीं , डकैती न की , नहीं दिखाई शक्ति है,
मर्यादा न तोडी है , ये मात्र हृदय की भक्ति है !

क्षमा जो मांगूंगी तो मेरा प्रेम यहाँ लज्जित होगा ,
इसकी खातिर मृत्यु भी आए , अंत मेरा सज्जित होगा ।

क्या अपराध ? दोष क्या मेरा ? , इससे किसको है हानि ?
क्या है ये अपराध अदम्य ,जो कही प्रेम की है बानी !

मीरा के गुण गाते हो तुम, राधा की करते पूजा
अपने ही आँगन में क्यों व्यवहार किया करते दूजा ?

तुमने तो व्यापार बनाया सब भावुक संबंधों को
हर रिश्ते के साथ बाँध कर इन झूठे अनुबंधों को

आज तुम्हें मैं जगा सकूं तो स्वयं आज मैं जागूंगी.
माफ़ करें , पर प्रेम की खातिर मैं माफ़ी न मांगूंगी !

जिसने चाहा ये समाज जागे , ख़ुद वो ही सो गई,
पर मर कर भी मौसी मेरी अमर सदा को हो गई !!!!

धन्यवाद देती हूँ श्री शरद तैलंग जी को जिन्होंने इस कविता की खामियां निकाल कर इसे तराशा है | इस कविता की पूर्णता में शरदजी का बहुत बड़ा हाथ है |
धन्यवाद शरदजी !