Wednesday, October 29, 2008

कम्बक़्त इश्क है जो.- सोनी_सीरीज़ पार्ट २

आज सोनी का जन्म दिन है | मुझे अच्छे से याद है | कैसे भूल सकती हूँ | हॉस्टल में उसे मेरे हाथ की बनी केक सबसे अच्छी लगती थी | किसी को नहीं देती थी | अकेले सारा का सारा खा लेती थी !
आज इतवार है | पता नहीं अभी उठी होगी की नहीं ..
"हे, सोनी, मैं हूँ ... उठ गई तुम ?" फ़ोन के उठते ही मैंने पूछा |
"एक मिनट , देता हूँ में ...हनी , योर्स ....." डिब्बे (उसका दोस्त जिसे मैं डिब्बा कहती हूँ ) की आवाज़ सुन कर मैं चौंक गई !
"हाय आर्ची ! कैसी हो? और सुनाओ ..." जिसको आवाज़ सुनने को मैं तरस रही थी अब उसकी आवाज़ सुन इतना गुस्सा आ रहा था ...
"ये क्या है सोनी, फिर तुम... क्यों ? .. नहीं यार .. मत करो..सब जान कर भी ... कैसे तुम ऐसे कर सकती हो .. " मेरा सवाल जैसे अटक रहा था | क्या पूछूं और कैसे ?
".......... ये डिब्बा तुम्हारे घर क्या कर रहा है ? " एक ही साँस में मैंने पूछ डाला |
"भजन -कीर्तन करने आया था ,और हाँ उसका नाम ऋषभ है ,डिब्बा नहीं !" सोनी ने चुटकी मारते हुए कहा | और ठहाके मार के हंसने लगी |
"ऐसे क्यों जवाब करती हो " रुआंसे भाव से मैंने कहा|
"और क्या कहूँ , तुम सवाल ही ऐसे करती हो | जब जानती हो तो पूछती क्यों हो .... मेरे मुंह से सुनने के लिए ... हाँ सोनी ये करती है .. सोनी वो करती है ... मैं भी इंसान हूँ, कोई मशीन नहीं.. हरेक की कुछ ज़रूरतें होती हैं .... बरडे गिफ्ट था मेरा ... ओ माय गोड ! इट वास सो कूल !" सोनी कहे जा रही थी और जाने किस कान से मैं सुने जा रही थी |
"यार जीवन तो ख़राब कर रही हो, अपना नाम पर दाग मत लगने दो | कल तुम्हें इस बात का अफ़सोस होगा ... बहुत अफ़सोस ... तुम्हारा भला चाहती हूँ | कहना फ़र्ज़ था , आगे तुम्हारी मर्ज़ी ..." शब्दों को फेंकते हुए मैंने कहा | बड़ी कोशिश कर रही थी की अपनी झुन्झुलाहट को ज़ाहिर न होने दूँ | पर उस पर मिठास की परत चढा नहीं पा रही थी | उसे अपना जो मानती थी और अपनी चीज़ का नुक्सान किसे अच्छा लगता है ?
"अच्छा सुन आर्ची आज मेरी पार्टी में तुझे आना आना है | बस तू , मैं और ऋषभ, कैसा रहेगा ? लंच 'अम्बर' में, मुझे वहां बहुत मज़ा आता है | देख आज मेरा जन्म दिन है , मेरी खुशी के लिए ही आजा, प्लीज़ !" उसने बड़े प्यार से कहा |
जी कर रहा था कह दूँ डिब्बे के साथ मैं खाने पे आऊँ , ऐसे बुरे दिन मेरे नहीं हैं ! पर आज उसका ख़ास दिन है और मुझे पता है अगर मैं न जाऊं तो वो दुखी होगी जो ग़लत होगा |
"कौन सा वाला अम्बर ?- 'संताना रो' वाला ? "
"ओ तुस्सी ग्रेट हो यारा , हाँ वही वही, एक बजे तक आ जाना | महसूस कर पा रही थी की मेरी स्वीकृति उसके लिए कितने मायने रखती है | चाहे कितना ही कोई फॉरवर्ड बन जायें , चाहत रहती है की हमारे अपने हमें अपनाएँ , मन से | पर मैं अभी तक सोनी के इस "माडर्न" रूप को अपना नही पायी थी पर अपनी नाराज़गी कभी और दिन समझाऊंगी उसे | आज उसके मन की होनी चाहिए | आज उसका दिन है |
बच्चों को तैयार कर इनके साथ सौकर क्लास भेजने के बाद मैं चल पड़ी पार्टी के लिए |
कहते हैं तीन का हिसाब सही नही बैठता | बचपन में सुनते थे- तीन तिगाड़ा, काम बिगाडा ... जाने आज क्या काम बिगाड़ने वाला था .. पता नही ..
जब मैं वहां पहुँची तो वो दोनों पहले ही पहुँच चुके थे | बातें करते करते खूब हंस रहे थे | मुझे देख कर चुप हो गए |
"हाय सोनी, हे ऋषभ" मैंने दोनों को मुस्कुराते हुए कहा | पर चाह कर भी चेहरे पर प्राक्रतिक खुशी नही ला पाई |
"थैंक्स , तुम आई , बहुत अच्छा लगा, सोनी से तुम्हारे बारे में बहुत सुना है " ऋषभ ने कहा| मुझे आश्चर्य हुआ | जिसे मैंने इतना कुछ भला बुरा कहा है वो मुझसे इतने प्यार से क्यों कह रहा है , कैसे कह रहा है ?
पर मैं इतनी बेवकूफ नही हूँ..मुझे पता है ... हाथी के दांत खाने के और होते हैं ...और दिखाने के और ...
जैसे ही मैं बैठी , सोनी का सेल बज उठा और वो हमें कुछ इशारा कर के बाहर की ओर चल दी |
अब इसे कहता हैं - करेले पर नीम चढा ! डिब्बे के साथ में अकेले रहना ! कभी कभी इश्वर भी अजीब मज़ाक करता है , जिसे आप सबसे ज़्यादा नफरत करते हैं, ठीक उसी के सामने लाकर बिठा देता है ! और मजबूर कर देता है की आप मुस्कुराते रहें ... चाहे दिल कर रहा हो की उसे ज़ोर से एक तमाचा लगाया जाए ....
"आप कुछ लेंगी ...?" तहजीब के साथ "ऋषभ" ने कहा |
"आप.. माने ...... कोई भी.... ऐसा कैसे कर सकता है ?" मैं और बन नहीं पायी |
"क्या कर सकता है?...आप ज़रा खुल कर बतायेंगी " बड़े सहज भाव से प्रश्न का प्रत्युत्तर प्रश्न बन कर आया |
"आप शादी शुदा हैं ... , फिर आप किसी के साथ ऐसा धोखा कैसे कर सकते हैं ? और आपको सोनी ही मिली थी सारे जहाँ में ... आपको पता है ...I have always hated you... ALWAYS" शब्दों के साथ साथ मेरी आँखें भी जैसे उसे चीर डालना चाहती थीं |
"आराम से,अर्चना जी आराम से , चलो अच्छा है , आपका ज्वार निकल गया | इसका अन्दर रहना अच्छा नहीं होता | फिर ये बढ़ता ही रहता है | एक काम करते हैं पहले आपको जो भी कहना है, कह दीजिये | फिर अगर आप मुझे सिर्फ़ दस मिनट दें तो मैं भी कुछ कहना चाहूँगा | ठीक है ?" जैसे मेरे इतने बाणों का उसपर कोई असर हुआ ही नहीं |
"नहीं और कुछ नहीं कहना मुझे ,और मैं कुछ सुनना भी नहीं चाहती, मुझे पता है , मीठी मीठी बातों से आप सोनी को भरमा सकते हैं , मुझे नहीं ... " मैं दूसरी तरफ़ मुंह करके बैठ गई | देखा अब भी सोनी फ़ोन पर लगी हुई थी |
ओफो ! ये सोनी भी अजीब जगह छोड़ कर चली गई |
"अर्चना जी , एक बात बताओ, आप अपने पति से ज़्यादा प्यार करती हो या सोनी से ?" सरल सवाल नहीं था ये |
"ये क्या मजाक है, सब रिश्तों की अपनी जगह है , आप ऐसे कैसे नाप तोल कर सकते हैं, हाँ ?" मैं बरसी |
"यही मेरे साथ भी हुआ है , कुछ रिश्ते हमें दिए जाते हैं, कुछ हम बनाते हैं | आखिर में बस वही रहता है जो सच्चा होता है | मैं झूठ तो नहीं कह रहा न ? दोस्ती तो किसी से भी हो जाती है, इसमे कोई लिंग भेद नहीं कर सकते हैं आप | सोनी भी मेरी ऐसी ही दोस्त है, या यूँ कहिये की मेरी एक ही और सबसे अच्छी दोस्त है | उसके साथ मुझे बहुत खुशी मिलती है | उसके साथ कुछ वक्त बिताने के लिए मैं कहीं से भी आ सकता हूँ , कुछ भी कर सकता हूँ | कोई अपेक्षा नहीं होती सिर्फ़ ये साथ ही काफ़ी होता है ....और .." इससे पहले की कुछ और कहते मेरे मुंह से निकल गया -
"आप बड़ी अच्छी तरह से डबल गेम खेल रहे हैं | उधर घर में मोनाजी और इधर सोनी को जाने क्या क्या कहानी सुनाते हैं | आखिर क्या कमी है मोनाजी में ? शायद आप जैसों का एक से मन नहीं भरता ... " कह कर ख़ुद अपनी बातों पर मुझे शर्म आ गई |
वे कुछ देर चुप रहे और अपने हाथ में थामे गिलास को देखते रहे फिर यकायक बोले -
"आपको पता है अर्चना जी बड़े बड़े घरों में सुंदर परदे क्यों लगाये जाते हैं ? ताकि अन्दर की बदसूरती पता न चले | मैं यह कभी नहीं कहता पर आज लगता है कुछ हल्का हो ही जाऊं | वैसे भी कल किसने देखा है | मोना एक बहुत ही आधुनिक विचारों की लड़की है | कभी कभी मोना और सोनी को नापते हुए बड़ी हँसी आती है | मेरा सोनी से कोई रिश्ता नहीं है पर जिस तरह से हमें एक दूसरे की बात समझ आती है , चाहे हम उसे कहें या न कहें , कोई मान नहीं सकता | आपको पता है, दुनिया में सब कुछ मिल सकता है पर खरा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है और अगर कहीं आपको वह मिल जाए तो कोशिश कीजियेगा की वह खो न जाए |" उनकी बात बहुत दिल से आ रही थी, इसीलिए सच लग रही थी |
"तो फिर आप इस रिश्ते को सामाजिक मोहर क्यों नहीं लगा देते | एक से तलाक और एक से शादी कोई नई बात तो नहीं होगी आपके 'माडर्न' जगत में ..." उनकी रूमानी बातों को सामाजिक मोड़ देना चाहा मैंने |
"मेरे बस में होता तो ये कब का हो चुका होता | सोनी शादी नहीं करना चाहती | कहती है उसके बाद सब बदल जायेगा | जो कशिश है , वो चली जायेगा | फिर ज़िन्दगी आम हो जायेगी | प्यार शायद ख़त्म हो जाएगा | मुझे सब कुछ मंज़ूर है जब तक सोनी खुश है | एक बात सच बताइए , आपने कभी प्यार किया है? ज़िन्दगी में कभी ज़रूर कीजियेगा, हर मायने बदल जायेंगे " ऋषभ दूर खड़ी सोनी को देख कर कहे जा रहा था |
"पर फिर भी आप मोनाजी को तो धोखा दे रहे हैं न ? उन्हें भी तो आपसे कुछ उम्मीदें होंगीं |" मैंने अपना आखिरी दांव भी आजमाना चाहा |
"देखिये , मैं पंजाब के एक बहुत छोटे से गाँव से आया था अमरीका | घर वालों ने हमारी शादी करवा दी इतने बड़े घर में , मुझे ग्रीन कार्ड मिल गया | कुछ दिन बहुत अच्छे गए पर फिर लगा की सब जैसे एक फरेब है, उपरी दिखावा , बस शोशे बाज़ी | कहीं चैन से सुकून की बात नहीं है | बस एक फास्ट टेंपो , एक दौड़, एक समझौता , ये नए समाज के नए उसूल , ये दोहरी नीति , आपने पढ़ा अखबार आज का ?- "executive by day, swinger by night " , हहहाआ हाहाहा " कहते कहते वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे | पर ज़्यादा हंसने से आखों में पानी आ जाता है | हाँ , ऋषभ अपने हँसी के आंसू पोंछ रहे थे |
"ये swinger क्या होता है ऋषभ जी ?" मुझे लगा ज़रूर कुछ गड़बड़ है इसमे | शायद वायिफ अब्यूस का कोई नाम होता होगा| लगा मुझे नहीं पूछना चाहिए था | अब जो पूछ ही लिया है, अब क्या कर सकते हैं ?
"वो.. जब न ..... दरअसल .. वेल .... आप गूगल कीजिये ... आपको पता चल जायेगा ...." वे बोले |
ठीक इसी वक्त किसी ने मेरे काँधे पर हाथ रखा , देखा तो सोनी वापस आ गई थी |
"क्या बात हो रही थी , ज़रा हम भी तो सुनें ?" सोनी आते ही शुरू हो गई |
"सोनी swinger क्या होता है ?" एक दम मुंह से निकल गया मेरे|
" वो तुम ऋषभ की मैडम से पूछो, क्यों रिश , तुम्हें भी तो मोना ने ही समझाया था ,पहले थीओरी और फिर लैब , राइट ? " सोनी ने हँसते हुए कहा |
" मुड के क्या देखना सोनू ? लाइफ मूव्स ऑन| हाँ अर्चना जी , मैं क्या कह रहा था ? ये की आज जीवन और समाज के पहलू बहुत बदल रहे हैं | सिर्फ़ फेस वेल्यू से आप रिश्ते की प्लेस वेल्यू का अंदाजा नहीं लगा सकते | मुझे लगता है जैसे मैंने अभी हाल ही में ख़ुद को डिस्कोवर किया है | एक नया इंसान बन गया हूँ मैं | हँसना , गाना , रोना , प्यार करना, गीत गाना सीख गया हूँ मैं | हाँ ,लोग शायद इसे उस निगाह से ना देख पायें जिस नज़रिए से इसे मैं देख रहा हूँ | लेकिन मुझे पता है की मैं ग़लत नहीं हूँ | अगर इतनी खुशी मिल रही है, तो ये ग़लत हो ही नहीं सकता |" ऋषभ कुछ और कहें उसी वक्त बैरा एक छोटा सा केक लेकर आया जिसपर लिखा था - हैप्पी बरडे , फॉर माय बेस्ट फ्रेंड !

मैंने अपने फ़ोन कैमरा से उनका फोटो लेना चाहा | थोड़ा दूर जाना पड़ेगा , अच्छी फोटो तभी आएगी |
हाँ थोडी दूर से देख कर लगा सचमुच बहुत अच्छा और साफ़ दिख रहा था |
मैं भी अब धीरे धीरे अपनी आंखों से देख रही थी इस प्यार को , समाज या रूढियों के नहीं |सोनी ने आँख मूँद कर कुछ सोचा , शायद कुछ माँगा , फिर मोमबत्ती फूंक कर रौशनी बुझा दी |

एक बहुत पुरानी ग़ज़ल बज रही थी रेस्तरां में -

ज़िन्दगी तेरे गम ने हमें रिश्ते नए समझाए ,
मिले तो हमें धूप में मिले पेड़ों के ठंडे साए ...
हाँ , तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी , हैरान हूँ मैं ,
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं .......

मैंने अपने फ़ोन -कैमरे में उनकी खुशियों को क़ैद करके उसका हिस्सा बनना चाहा -
"क्लिक" !

Thursday, October 9, 2008

फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी !-मौसी_सीरीज़-२

"क्या करें मौसी ? आधे घंटे से पार्किंग ही नहीं मिल रही , उधर सगाई का मुहूर्त निकला जा रहा है ," मैंने बड़ी कातरता से पूछा|
"ये मुआ पार्किंग -शार्किंग तो अपने यहाँ नहीं होता | तेरे मौसाजी तो जहाँ कहीं गाडी खड़ी कर देते हैं और हम तो ऐसे ही चल देते हैं | यहाँ तो हर बात का बड़ा चक्कर है | हाँ..... अमरीका है भई ! " मौसी तो हर बात का दोषी अमरीका को ही मान लेती है | यहाँ तक की कहती हैं उनकी कमर का दर्द भी अम्रीका में ही हुआ है , इंडिया में तो भली चंगी थीं !

"अनिवेज़ , मौसी मैं आपको होटल के सामने ड्रॉप कर दूँगी | आप और मौसाजी उतर जाना | मैं कहीं दूर पार्क कर दूँगी | और मैं अपने आप आ जाऊंगी | फिर आपको देर नहीं होगी और ज़्यादा चलना भी नहीं पड़ेगा |" मैंने समझदारी दिखानी चाही |
" अरी मैं वारी जाऊं ... दिखता नहीं यहाँ इतने मुष्टंडे घूम रहे हैं | तुझे अकेली कैसे छोड़ दूँ | ज़माना अच्छा नहीं है और इतनी महंगी साड़ी और जेवर पहने है | कहीं कुछ हो गया तो .... चल चल , हम दो क़दम चल लेंगे तो पाँव नहीं टूट जायेंगे ..साथ आए हैं तो साथ ही जायेंगे... हाँ !" मौसी तुनक कर बोलीं |
सुनकर जी भर गया | आज मैं तीन बच्चों की माँ हूँ , रोज़ सौ से ज़्यादा मील ड्राइव कर के काम को जाती हूँ | लाखों तरह के लोगों से मिलती हूँ, और मौसी को आज भी मेरी वही चिंता है जो तब थी जब मैं अनब्याही थी | वाह ! ये बड़े बूढे भी कैसे होते हैं ! कभी बच्चों को बड़ा नहीं होने देते | वैसे बड़ा बनना भी कौन चाहता है !

चलो, एक जगह मिल गई और गाड़ी वहां खड़ी कर हम भागे भागे बार पहुंचे | जाने राजू ने सगाई एक बार में क्यों रखी थी | कितने अच्छे इंडियन रेस्तरां हैं, शायद सोचा होगा की क्या जगह दोनों घरों के लोगों को रास आएगी और अंत में एक बार चुना होगा | सही है , वो भारतीय हो या अंग्रेज, मय तो हरेक को भाती है | अब प्रॉब्लम ये था की मौसा, मौसी, मैं , मेरे "ये ", ईस्ट कोस्ट से आई मेरी मौसेरी दीदी, भैया और हम सबके बच्चे , इनमें से कोई भी "पीता" नहीं है | तो अब हम बार में क्या करें ? चलो, हमें तो समारोह से मतलब है, खाना पीना तो चलता रहता है |

हाइब्रिड सगाई थी यानी की दो कल्चर का कुलचा बनना था तो किसी को पता नहीं था की ऊंट किस और मुड़ेगा | चलो, देखते हैं ! रोजी के परिवार के सब सदस्यों से उसने हमें मिलाया - अंकल जौन, आंटी सामंथा, अंकल समूअल , और जाने कितने ही नाम उसने बताये होंगे | पर पहली ही बार में किसको इतने नाम याद हो सकते हैं | बस सब को देख कर मुस्कुरा ही सकते हैं और हें हें हें कर हंस सकते हैं | पर अगर पहचान ना हो तो कोई कितनी देर तक दांत दिखा सकता है | आख़िर थक कर किसी कोने में बैठ जाएगा | हमने भी ऐसा ही किया | हमारा समूचा कुटुंब एक हिस्से में पसर के बैठ गया | सब बच्चे बाहर बड़ी भाभी के साथ, लौंज में खेल रहे थे | शुकर है, अभी से उन्हें बार दिखाना सही नहीं है |
आरम्भ में लोगों के तीन गुट साफ़ दिख रहे थे | भारतीय वेश भूषा में सजे धजे हम थे - राजू के घरवाले , अंग्रेज़ी वस्त्र में चमक रहे थे रोजी के परिवार वाले और सबसे मज़े की बात है की सारे मेहमान जिनमें अधिकाँश भारतीय थे , सब ऐसे कपडों में आए थे जैसे हवाई में पिकनिक मना रहे हों | ओबामा और मकैन के दो गुटों के बीच झूलते ये वो "swing voters" से लग रहे थे | राजू के दोस्त थे - सभी लगभग उसी की उम्र के थे | सब के हाथों में गिलास था - औरत , मर्द , सब बराबर थे यहाँ |

लगा की ऐसे अलग द्वीप सा नहीं रहना चाहिए | जब इनसे रिश्ता होने जा रहा है तो सब से मिलना चाहिए | तो जाकर अंकल जौन को मैंने हेलो कहा | उनसे काफी देर बात हुई | बहुत अच्छा लगा सोच कर की अब हमारा परिवार इंटरनॅशनल हो गया है ! लेकिन हर 'हेप्पीनेस' कि एक कीमत होता है | खुशी को भी मुंह दिखाई तो देनी ही पड़ती है .....

अंकल जौन से बात हो ही रही थी कि उनका सेल फ़ोन बज उठा और वो 'एक्सयूज़ मी' कह कर बाहर चले गए | और खाली चेयर देख कर एक बन्दा जो पता नहीं रोजी का क्या लगता था , आकर बैठ गया |
"इंडियन वीमन आर वैरी प्रिटी " उसने कहा | मुस्कुरा कर मैंने उसके बात का समर्थन किया |
"but there is a lot of poverty in India...." उसकी इस बात पर मेरी मुस्कान रुक गई और साथ में मेरा समर्थन भी |
इससे पहले कि मैं जवाब देती राजू का एक दोस्त कह उठा -"येस् सर, यू आर राइट , it is just bad out there ..."

मैं हैरान थी कि कोई भारतीय जो कि भारत में ही पला बढ़ा है कैसे इस तरह से कह सकता है | मुझे उस अंग्रेज पे कतई रोष नहीं था जिसने ये मुद्दा उठाया पर उस सूडो अंग्रेज पर बहुत गुस्सा आ रहा था |
"पर आपकी परवरिश में उस देश का बहुत बड़ा योगदान है जनाब , ये आप कैसे भूल जाते हैं | मानती हूँ मुश्किलें हैं , हर देश में होती हैं , पर माँ कि खामियों से माँ को गन्दा नहीं कहते... माँ तो माँ होती है ..." मैंने उन्हें कहा |
"अगर आप इतनी बड़ी देश भक्त हैं तो यहाँ क्या कर रही हैं , जाइये न वापस | These indians are so hypocrite....so.." उसे अपनी बात ख़तम करने को शब्द नहीं मिल रहे थे |
"These indians..." शब्द जैसे मेरे मन में प्रतिध्वनि कर रहे थे ..
और वो अंग्रेज़ जिसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, अपनी बुधिमत्ता दिखाने को बोल पड़ा -
"..and it is very hot too... I am wondering if I should go to India for Rosy's wedding. We have been trying to plan another wedding here once they come back. I don't see a reason to go such a distance just for a ceremony. "

"actually... " इससे पहले कि में उसका एक सटीक जवाब दे पाती, मौसी की पुकार ने ध्यान बदल दिया |
"गुडिया , ज़रा आना , देख बेटा , मेरा एक ही बेटा है, और मुझे ये माहौल ज़रा भी सगाई सा नहीं लग रहा | कहाँ तो मैं खीर पूडी सारे गाँव में बांटती , गरीबों को ढेर सारा समान दान करती , गाना गाती - खूब नाचती .. यहाँ ना ही ढोलक है न बाजा, ये क्या सगाई हुई , अब क्या फोटो लेकर जाऊंगी और क्या लोगों को दिखाऊंगी ? "

"अरे मौसी खीर पूडी आज घर में करेंगे और आपकी नाच गाने कि तमन्ना तो अभी पूरी होती है " मैंने मौसी का दिल रखने को कह तो दिया पर इस अंग्रेज़ वातावरण में अपने ही देश के लोगों को - मुझे अपनी ही भाषा का गीत गाने का अनुरोध करने में बहुत डर लग रहा था | फिर लगा कि ऐसे कोई नहीं आएगा , पहले ख़ुद मुर्गा बनना पड़ेगा ..

इतने बड़े बार के हॉल के बीच खड़े होकर मैंने एक बार माता का ध्यान किया कि माँ इज्ज़त रख लेना फिर ज़ोर से सबको कहा - लेडिस एंड जेन्तल्मेन ! आज मैं अपने भैया- भाभी कि सगाई पर एक गीत गाना चाहती हूँ | अगर आपमें से किसीको यह गीत आता हो तो आप मेरा साथ दे सकते हैं |
भीड़ ने ज़ोर कि ताली से मेरा स्वागत किया |

"वाह वाह रामजी ..........जोड़ी क्या बनाई ......भैया और भाभी को बधाई हो बधाई "
एक बार लगा कि वाकई बिना किसी बाजे गाजे के मेरी आवाज़ बहुत नीरस लग रही है | कोई साथ भी नहीं दे रहा |
एक बार तो मेरे होंट कंपकंपा से गए ...
"सब रस्मों से बड़ी है जग में दिल से दिल कि सगाई ...."
पल्लू कमर में खोंसती हुई मेरी मौसी आयीं मेरा साथ देने के लिए | मौसी सिर्फ़ गाना ही नहीं गा रही थीं बड़े ही सुंदर ढंग से उस पर नाच भी रहीं थीं !

ओह ! सिर्फ़ एक साथ , एक हाथ भर से ही कितना बढ़ जाता है साहस , कितनी बढ़ जाती है हिम्मत ! अब तो सोच लिया बस कि चाहे जो हो गाना तो पूरा करना है | अब सारे हॉल में बहुत चुप्पी छा गई थी | तभी किसीने गिलासों पर चमचों से बहुत ही प्यारी ध्वनि का इजाद किया जो कि गीत पर बहुत जच रहा था | किसी ओर से किसीने टेबल पर ही तबला बजाना शुरू कर दिया था | तो अब तो भैया हमारे साथ सब साज जुड़ गए थे | और तो और वो सभी परकटी सूडो भारतीय लड़कियां भी धुन में हमारे साथ शुरू हो गयीं | गीत अब पूरी भी मस्ती पर आ गया था ...

"सुनो भाभी जी अजी आपके लिए , मेरे भैया ने बड़े तप हैं किए ..." मैंने रोजी को आँख मारते हुए कहा |
सोचा कि इन्हें क्या समझ आएगा ?
तपाक से रोजी बोली- ""रियली ?"

सारी जनता में जोरदार ठहाका गूँज उठा | चाहे रोजी गीत ना समझे पर वो मेरे भाव समझ रही थी !
और वो ही नहीं वहां आए सब अंग्रेज़ संगीत में छुपे इस प्यार को सुन पा रहे थे | शायद इसिलए वे सब धीरे धीरे अपने कुर्सियों से उठ कर हमारे साथ नाचने कि कोशिश कर रहे थे .....

गीत के ख़तम होते ही "वंस मोर , वंस मोर " से हॉल गूँज उठा |

मुझे मनचाहा वरदान मिला जैसे |
कब से उस सूडो को कुछ कि मैं कोशिश कर रही थी | और अब मेरे साथ ये सारे लोग उसे ये सुनाने से नहीं चूकेंगे -
मैंने गीत शुरू किया
"जहाँ पाँव में पायल , हाथों में कंगन , हो माथे पर बिंदिया ...." और जैसे मेरी आवाज़ भीड़ की आवाज़ में खो ही गई ..
"It happens only in India ! It happens only in India ! It happens only in India ! "

एक के बाद एक जाने कितने ही गीत हमने उस दिन गाये होंगे , जाने कितनी ही देर हम सब वहां नाचते रहे...जाने कितनी देर ....

पता नहीं ये नशा शराब का था , शाम का था या अपनों कि याद का था पर उस दिन उस अंग्रेज़ी बार में हर दिल झूम रहा था , गा रहा था और नाच रहा था |
और हाँ , वो अंग्रेज़ जो भारत कि "poverty" को लेकर बहुत परेशान था बाहर जाता जाता मुझसे पूछ गया - "Do you always have music and dance like this.... in your special occasions .... in those colorful dresses ?"
"well, usually not like this..............only much better !" मैंने हँसते हुए कहा |
"then I think I want to go for Rosy's marriage to India" वह बड़े ही एन्थु में बोल रहा था |

मेरी आँखें अब भी उस सूडो को ढूंढ रही थी | लग रहा था जैसे अब भी कुछ कहना बाकी है... पर वो अब वहां नहीं था ...मैं आज भी उसे ढूंढ रही हूँ | अगर कहीं वो दिख जाए तो उसे मेरी ओर से आप ज़रूर कह दीजियेगा -
(क्या कहा आप उसे पहचानेंगे कैसे - बहुत आसान है - एक वही है जो स्वयं भारतीय होकर भी कहेगा - ओह ! These indians.... बस वही है ...)..
तो उससे कहियेगा ..किसी अर्चना ने कहा था-

आज जो परदेस में इतराये जा रहे हैं,
निज देस भूल पर के गीत गाये जा रहे हैं..
पर पूछ लें जो हम इन्हें किसने दिए थे पर, जिसे
वो थाम के आकाश में लहराए जा रहे हैं ?

हम धूल हैं, वो हमको ये बताये जा रहे हैं,
अपनी ही तान , ख़ुद कि राग गाये जा रहे हैं,
न है कोई खुशी में , और न गम में कोई साथ है,
ख़ुद की पीठ अब वो थपथपाए जा रहे हैं ....


आपकी,
अर्चना