Tuesday, August 11, 2009

ये जो मन की सीमा रेखा है ...

ये क्यूबिकल भी कितने खुले होते हैं न .... भावनाओं जैसे ...
कहाँ से कौन सी बात अनचाहे ही कानों में पड़ जाए, पता ही नहीं चलता | यूं तो सबको क्यूब एटिकेट खूब सिखाया जाता है - दूसरों की बात नहीं सुनते, दूसरों की मेल नहीं पढ़ते |
पर हम भी तो इंसान हैं .. कैसे बच सकेंगे.. . हंसी से... दर्द से... आंसू से ... प्यार से .....

"तुषार ऐसे करो तुम मेरे क्यूब में आ जाओ , यहीं पर ये काम निपटा लेंगे और जल्दी हो जायेगा ....." कोमल ने अपने सह कर्मी को फोन पर समझाया |
हमारा ये फ्लोर लगभग खाली ही था | गिने चुने लोगों की सीट थी यहाँ पर, बाकी सारा फ्लोर जैसे खाली था | काम करने वाले भी ज्यादातर घर से ही काम करते थे | बुरा हो मेरे मेनेजर का जो मुझे आज तक घर से काम करने की अनुमति नहीं देता है |

"हाँ देखो इस को यहाँ से हटाना है ... और देखो इसकी वजह से यहाँ बग आ रहा है..." कुछ देर में ही तुषार और कोमल अपने काम में व्यस्त हो गए | मेरा भी ध्यान अपने स्क्रीन पर केन्द्रित हो गया |

रोज़ इन दोनों की बातों को सुन सुन मुझे बहुत अच्छा लगता था| इस नीरवता और सन्नाटे को चुनौती देता हुआ इन दोनों का अनर्गल प्रलाप मुझे जीवित रखता था | धीरे धीरे जैसे मुझे इन दोनों से बहुत अपनापन सा आने लगा था .....जैसे एक आदत सी पड़ गयी इनकी आवाजों की|

पर कभी ध्यान नहीं दिया की क्या कहते हैं , उनके काम की बातें हैं , मुझे क्या?

पर पिछले कुछ दिनों से इनकी बातें कुछ बदल सी रही थीं | धीरे धीरे कुछ कुछ हंसी सुनाई पड़ती, कभी कभी शायद काम के बीचों बीच कुछ अपनी बातें भी हो जाती थीं |

"तुषार तुम्हें पता है, आज न कैफेटेरिया में एक नयी चीज़ आई है , चलो लेकर आते हैं, साथ में वाक भी कर लेंगे |" कोमल ने कहा |
इनकी बातों से अप्रत्यक्ष रूप से मैं अपने जीवन को पुनः जी रही थी | एक प्यार भरी ज़िन्दगी |
पर शायद इन्हें अपने ही एहसासों के पनपने का भान नहीं था |

"पता है तुषार, आज न ,बासु क्या पूछता है मुझे ? तुम तुषार को कैसे जानती हो? अरे, मैंने कहा हम साथ काम करते हैं " कोमल ने तुनकते हुए कहा |
"उसे इतनी तुम्हारी फ़िक्र क्यों हो रही है ? और उसने ऐसा सवाल क्यूँ किया ..." हंसते हुए तुषार बोला |
"छोडो उसे , अच्छा बताओ , इस इस्शु को कैसे सोल्व करें.." बात घुमाते हुए कोमल ने काम शुरू कर दिया | बात आई गयी हो गयी |

"पता है मुझे न प्रॉब्लम है कुछ, थोडा हेल्प कर पाओगे तुषार " शेर मिजाज़ वाली कोमल की एक बार मिमियाती सी आवाज़ सुन मुझे बड़ा अचम्भा हुआ |
"हे बड़ी, वाट्स अप्? " तुषार अपने अंदाज़ से बोल पड़ा |

"तुषार मेरे मन में कुछ गलत भावनाएं आ रही हैं कुछ , पता नहीं कैसे और क्यूँ | मैं इनसे लड़ने की बहुत कोशिश कर रही हूँ पर ये मेरे मन से जाती ही नहीं हैं , गलत भावनाओं पर काबू कैसे करते हैं तुषार , अगर तुम्हें पता हो तो बताओगे |" कोमल ने सहजता से अपने मन की बात कही |
"नहीं कोमल, हम सबके मन में कई तरह की बातें आती हैं , पर बुरे भावनाओं को बुरा जान पाना , ये भी एक अच्छे इंसान की पहचान होती है | अब देखा तो, मुझे इतनी बार मन करता है की अपने इस गधे बॉस को जाकर दो थप्पड़ मार कर आऊँ पर कभी मैंने ये नहीं सोचा की ये भावना गलत है | तुम अपनी भावना में गुड-बेड़ फर्क कर पा रही हो , बड़ी बात है ! " तुषार ने काम करते करते कहा |
"ओफ्फो मैंने कोई सर्टिफिकेट नहीं माँगा तुमसे की मैं गुड हूँ की बेड़ .... मैं परेशान हूँ .... की मेरा मन मेरा कहा नहीं मानता .... यहाँ वहां भटकता है ... मन काबू मैं कैसे करते हैं ???..... " कोमल वाकई परेशान लग रही थी |

"अरे यार ये जो प्रोब्लेम्स होते हैं न , छोटे मोटे और तेम्पोरारी होते हैं, देखो तुम्हारी जो प्रॉब्लम है , जो कुछ भी है , ज्यादा बड़ी नहीं है, इश्वर का ध्यान करो .... और ये छोटे मोटे प्रोब्लेम्स को भूल जाओ ... " तुषार बड़े ज्ञानी की तरह कह रहा था |

"तुम्हें किसने कहा की मेरा प्रॉब्लम छोटा है..... काम में बिलकुल ध्यान नहीं लग रहा ..... यार मुझे खुद में कोई और मिल रही है जो मेरी बात न सुनती है और न ही सुनना चाहती है .... मुझे अपने आप को वापस पाना है तुषार ... कुछ सुझाव दो.."

कोमल की बात मुझे कुछ कुछ समझ आ रही थी|

"उपवास किया है तुमने कभी? देखो, मुझे जीवन में सबसे अच्छा लगता है- अच्छा खाना | लेकिन खुद पर काबू सबसे पहले शुरू होती है -उपवास से - जब आप अपनी ज़रूरतों को रोक पाते हैं | कभी उपवास कर के देखो , देखना तुम्हारे सब प्रोब्लेम्स यूं ठीक हो जायेंगे... यूं " चुटकी बजा बजा कर तुषार जवाब दे रहा था |

अगले दिन फोन पर कोमल अपने शेर अंदाज़ से कह रही थी - "नहीं आज तुम अपना काम करो , मेरे पास बहुत पेंडिंग वर्क है, शायद हफ्ता भर लग जाए, चलो मेरा काम हो जाए तो बताऊंगी, तब तक तुम अपना काम करो, और मैं अपना काम करूंगी .. ..... नहीं .... चाहे जितनी देर लगे .... अब ऐसे ट्राई करेंगे... ओके तो फिर बाय " कोमल की बोली असामान्य थी , कोई भी जान सकता था |

दो तीन हफ्तों तक कोई आवाज़ नहीं पड़ी कानों में |
मुझे बहुत जिज्ञासा हुई की क्या हो गया ? क्या दोनों में कोई झगडा हो गया था ? आखिर हमेशा हंसने बोलने वाले इन दोनों बच्चों में क्या अन-बन हो गयी ? अरे प्यार हो गया है तो आपस में बात कर लो , शादी कर लो.. हाँ?

मैं उनकी हंसी और किलकारी बहुत मिस कर रही थी |

फिर से सन्नाटे और नीरवता का राज था |

एक दिन मैंने सोचा की कोमल से बात की जाए | कितनी हैरत की बात है न की इतने पास रहते हुए भी कितनी बार आप लोगों को पहचानते नहीं हैं | सोचा आज मौका है चलो दोस्ती की जाये |

क्यूब के बाहर पहुँच कर हल्का सा नोक् किया ही था की कोमल ने मेरी और देखा |

"हेल्लो मेरा नाम दिव्या है और मैं आपके क्यूब की उस और बैठती हूँ, आपसे कभी मिलना नहीं हुआ , सोचा आज हेल्लो कहूँ |" होंटों पर हंसी लाने की कोशिश करते हुए मैने कहा |

"ओ वाऊ ! मुझे तो पता ही नहीं था की कोई उस और भी है | लास्ट मंथ तो खाली था | क्या अभी आये हो?" कोमल आश्चर्य चकित थी|
"हाँ , अभी कुछ ही हफ्ते हुए हैं यहाँ |" उसके क्यूब में नज़र दौड़ते हुए मैंने कहा|

आँख एक फॅमिली फोटो पर अटक गयी | पूछा मैंने -"ये किसकी फॅमिली है? बड़ी प्यारी बच्ची है "

"ये गुडिया है..... मेरी बेटी " मुस्काते हुए कोमल का उत्तर सुनकर बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को संभाला |

"सो क्यूट ........"कहकर फिर मैं अपनी क्यूब की तरफ वापस आ गयी |

रह रह कर मन घूम रहा था | मेरी तंद्रा तब टूटी जब एक पहचानी आवाज़ ने मुझे चौंकाया -"हे बड़ी !"

आवाज़ तुषार की थी, कोमल के क्यूब से -- ".... और सुनो ....सोनिया कहती है अबके प्रिअस लेंगे, बताओ तो सिविक ठीक रहेगा या प्रिअस ? पहले ये कहो की तुम ने मुझसे बात क्यों नहीं की इतने दिनों से ?... इतना भाव क्यों खा रही हो ?? " तुषार का लहजा वही था ...सामान्य ... नैचुरल .....

कोमल अपना काम करते करते ही कह रही थी - "उपवास कर रही थी ....तुमने बताया था न ... हर प्रॉब्लम सोल्व हो जाती है ... मेरी तो नहीं हुई ...... कुछ और उपाय बताओ..."

"अरे अभी तो जन्माष्टमी में दो दिन हैं , तुम्हारे यहाँ क्या पहले से ही करने लगते हैं , किस चीज़ का उपवास है तुम्हारा ?" मैं तुषार के इस भोले सवाल पर हैरान थी | क्या सचमुच वो इतना नादान था?

"तुम्हें इससे क्या मतलब है ? तुम तो मुझे कोई रास्ता बताओ की अगर मैं कुछ गलत सोच रही हूँ तो मुझे क्या करना चाहिए ? .....तुम तो बड़े प्रक्टिकल हो .. तुम्हें पता होगा ...." तुषार को देखते हुए कोमल ने धीमे से पूछा |

"सही है , प्रक्टिकल होना चाहिए .... देखो अगर तुम अपने प्रॉब्लम से राहत चाहती हो तो कोई दूसरी बड़ी प्रॉब्लम को ले आओ ... नहीं तो पेनांस अर्थात प्रायश्चित करो...अगर तुमसे जाने अनजाने कोई गलती हो रही है तो इस बात की खुद को सज़ा दो... फिर अपने आप ही गलती करना बंद हो जायेगी | सही कहा न मैंने ?" कोमल की टेबल पर रखे किताब को बिना पूछे उठा कर तुषार पढने लगा|

"पेनांस... प्रायश्चित ... हाँ सही है .... वही सही है " बुदबुदाते हुए कोमल की आवाज़ बंद हो गयी |

मैंने अपने आई फोन को कानों में लगाया |
सच है - बुरी बात है औरों की बातें सुनना ...

क्या करें ये क्यूबिकल भी कितने खुले होते हैं न .... भावनाओं जैसे ...

Thursday, July 23, 2009

अफसाना लिख रही हूँ - भारत गाथा -२

"चाची, एक और पूडी देना " घर में खाना परोसने का काम बुलबुल था ; बच्चे कभी पूडी कभी सब्जी कभी खीर की मांग किये जा रहे थे | इतनी ख़ुशी थी की हर बच्चा स्वतः ही खाना बड़ी इच्छा से और बड़ी मात्रा में स्नेह से खा रहा था | और इन सबसे दूर बुलबुल के बच्चे विडियो गेम्स जैसी तुच्छ काम में उलझे हुए थे |
"बेटा, खाना खा लो न " झुंझलाते हुए बुलबुल ने दूर से कहा |
"but I already ate mom ... I ate one whole poori ...." नज़र अपने गेम पर ही टिकाते हुए अंश बोला |
"गधा कहीं का , एक पूडी खा कर इतरा रहा है | "बुलबुल मन ही मन बुदबुदाई | "बच्चे दस दस यूं ही खा रहे हैं , पता नहीं मेरे बच्चों को सलीके से खाना कब आएगा | " कान्हा को पूडी देते हुए बुलबुल ने सोचा |
"बेटा एक नहीं मोर खाते हैं , देखो कान्हा कितना छोटा है तुमसे ,फिर भी वन से मोर खाता है , चलो रेस करते हैं , देखते हैं कौन ज्यादा खा सकता है , फिर उसको मैं प्राईज़ दूँगी, ठीक है?" झूठी आस खुद को जता रही थी बुलबुल की शायद अंश या अनुराग खा लें.... एक और पूडी .... पर वो क्यों खाने लगे ?

"ये सब तुम्हारी गलती है , जो तुम इन्हें अपने हाथों से खिलाती हो न , इन्हें अपने आप खाना आता ही नहीं है " तनुष बुलबुल की मनोस्थिति देख कर दूर से ही बोल पड़े |

"हाँ , सब मेरी ही गलती है | इनको खाना नहीं आता , सो मेरी गलती ... ठीक से पोट्टी सीट इस्तेमाल नहीं कर सकते सो भी मेरी गलती | बच्चे वहां पैदा किये हैं , अब यहाँ की जीवन चर्या सीखने में इन्हें थोडी दिक्कत तो आएगी , है नहीं क्या?" और जैसे बुलबुल की अभी बात ख़तम नहीं हुयी हो .... आवाज़ को ज़रा धीमे करते हुए उसने फिर से कहा --"और ज़रा सा तुम भी कभी कभार दर्शन दे दो तो एहसान हो जाए , यहाँ आते ही जैसे तुम्हारे तो पर लग जाते हैं ....बच्चों का सारा काम मुझ पर ही आ जाता है | एक तो इतनी गर्मी, उसपर से डेढ़ गज के घूंघट की बंदिश , तुम्हारी तो मौज है - निक्कर में घूमते रहते हो ....|'
"चाची , पूडी ... और थोडी खीर भी ..." आवाज़ आई | "हाँ बेटा अभी लायी, " बुलबुल भागी |

दोपहर में यहाँ थकी हारी दुनिया थोडी देर सो जाती है | बुलबुल ने भी आज ये निर्णय लिया की थोडा रेस्ट किया जाए |

अभी पलंग पर पाँव रखा ही था की अनुराग रोता हुआ आ धमका -
"mom, kanha does not play fair , he cheats.... I think he is very spoiled.... " अनुराग ने शिकायत की |

"पहली बात अनुराग की आप हिंदी में बात करो ...अरे , कोशिश तो करो बेटा ...और दूसरी बात की हर बात पर मम्मा के पास नहीं आते हैं , अपने आप हेंडल करते हैं | " अभी अनुराग को समझा ही रही थी की अंश दूसरी शिकायत लेकर आ गया -
"mom, khushboo said a bad word ...."

बुलबुल उन्नीसवीं बार अपने बच्चों की प्रॉब्लम सोल्व करने के लिए गयी |

ये हमारे 'अमरीकन' बच्चे जाने किस मिटटी से बने होते हैं - इतने सीधे होते हैं की कोई भी गधा बना जाए | इस बात का ज्ञान तब हुआ जब भारत के बच्चों से इनका डायरेक्ट पाला पड़ा | दरअसल, इनकी गलती नहीं है | अमरीका में हर बात पर इन्हें नियम पालना सिखाया जाता है | वहां का जीवन वहां के ट्रैफिक की तरह सधा हुआ है - सब गाडियाँ अपनी लेन में जाएँगी, कोई किसी के साथ दखल अंदाजी नहीं करेगी | पर शायद देश की पैदाइश इंसान को स्मार्ट बना देती है - स्ट्रीट स्मार्ट ! रोज़मर्रा की स्ट्रगल, अपना हक पाने के लिए उसका छीनना जैसे ज़रूरी हो जाता है | जीवन ही की तरह यहाँ ट्रैफिक का कोई भरोसा नहीं होता - कहीं से भी, कोई भी, कहीं भी, कभी भी मार जाए , कह नहीं सकते , अगर आपको इसी में चलना है तो खुद को बचाते हुए आगे बढ़ना है | यहाँ के बच्चे अब ये सीख गए हैं | मैं इन बच्चों में अपने बचपन की छवि देखती हूँ - अच्छा लगता है - मैंने भी जीवन ऐसे ही सीखा था पर जाने मेरे बच्चे ये कभी सीख पाएंगे या नहीं ....बुलबुल मन ही मन इन ख्यालों में उलझी हुयी थी की अंश फिर से कोई बात ले कर आ गया |

"मॉम, में टी वी देखते हें तो कान्हा अपना चेंनेल लगाते हें ...मेरे गारी भी ले लेते हें ... "अंश के मुंह से टूटी फूटी हिंदी बहुत अच्छी लग रही थी |
"बेटा गारी नहीं गाडी ..बोलो "गाडी".... "बुलबुल ने सुधारा|

"मॉम, तुम चलेंगे तो वो सुनेंगे, मेरे बात नहीं ... " अंश की आदत बन गयी थी अब हर बात माँ से करवाने की |
पर अब बुलबुल ने नया तरीका अपनाने की सोची |

"बेटा अगर आप अपने आप इसको सोल्व नहीं कर सकते तो मॉम आपको हेल्प नहीं करेगी .." ढीठ बन कर बुलबुल लेट गयी |

कुछ सोच कर अंश लौट गया , फिर कुछ ही देर में वापस आया पर बुलबुल के पास नहीं आया , बड़ी दीदी के पास |

"बरी माँ , कान्हा बेड़ वर्ड बोलते है , मेरे को कुत्ता बोलते हें | " मासूमियत से अंश ने कहा |

बिस्तर में पड़ी पड़ी ही बड़ी दीदी चिल्लायीं - "अबे कान्हा , कुत्ता काहे कहता है...... दूं कान के नीचे खींच के एक ... सारी हुशियारी निकल जायेगी ......कमीना कहीं का ..... " जाने अंश क्या समझा पर बिना कुछ कहे चला गया |

पांच मिनट बाद डरते सहमते हुए अंश फिर से बुलबुल के सिरहाने खडा था पर कुछ कहने से डर रहा था ...

"मॉम, कान्हा मेरे को मारते हें , ब्लड भी निकाल दिए हैं |देखो .... " आँखों में आँसू भर के अंश अपनी माँ को अपनी ज़ख्मी कलाई दिखा रहा था |

दिल में छलकते ममता के ज्वार को रोकते हुए बुलबुल ने कहा - "बेटा अगर आपको कोई मारता है, तो आप उसको डबल मारो पर अगर ऐसे रोते हुए मम्मा पास आओगे तो मम्मा आपको और मारेगी | समझे ?"

एक बार को अंश की आँखें बड़ी हुयीं - ऐसा उसे किसी टीचर ने नहीं कहा था , कभी भी | शायद शिक्षा गलत थी बुलबुल की, पर सामयिक थी .. और ज़रूरी भी ... अंश उठ कर वापस चला गया |

काफी समय तक बड़े कमरे से कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी तो बुलबुल उठ कर देखने गयी की आखिर माजरा क्या है ? कान्हा ने फिर से परेशान तो नहीं किया .....

देखा तो दीवान पर कान्हा और अंश एक साथ लेटे हुए हैं और अंश अपना कार्टून नेटवर्क का प्रोग्राम देख रहा है | पता नहीं क्या हुआ पर अंश ने अपना अधिकार लेना सीख लिया था ... .....|

अगले दिन खाने की पंगत में अंश और अनुराग दोनों को ही बैठा देखा तो बहुत ख़ुशी हुई | साथ में आश्चर्य हुआ की धीरे धीरे सबके साथ ये खाना सीख रहे हैं , अपने आप !

अब हिंदी भी काफी सुधर गयी थी बच्चों की |

और ....अभी आये आये नहीं थे की जाने के दिन भी आ गए |

भाषा, जीवन, खान-पान , रहन -सहन, रिश्ते सब की यादें साथ लेकर वापस आये ये छोटे छोटे अमरीकन बच्चे |
सचमुच, इससे बेहतर कल्चरल इमर्सन प्रोग्राम बुलबुल को अपने बच्चों के लिए कहीं नहीं मिल सकता था |
कुछ हद तक वे स्ट्रीट स्मार्ट बन गए थे ..... शायद .........

Wednesday, July 22, 2009

कभी नीम नीम कभी शहद शहद - (भारत गाथा -१ )


आज चार बजे आँख खुल गयी ... कल तीन बजे ही सुबह हो गयी थी और परसों तो एक बजे से ही नींद उछन गयी थी | भारत से अमरीका पहुँचते पहुँचते समय बदल जाता है ..... हाँ वाकई समय बदल जाता है | साथ बदल जाती है इंसान की सोच और रवैया | ये बदलाव मैं खुद में महसूस कर रही हूँ | पता नहीं सही है की गलत | बस है तो है | जैसे कोई लड़की अपने ससुराल से मायके जाती है बहुत खुश होकर ...... फिर महसूस करती है की सब कुछ कितना बदला बदला सा है , क्या ये सचमुच उसका आपना घर है ? या कभी था ?

"ब्यऊली , क्या लायी हो मेरे लिए | अपनी सूँ, तुम्हारी बड़ी याद आती है | आती हो तो साल दो साल बाद | होरी दिवारी क्या देख पाती होगी परदेस में ?" जमुना ताई बड़ी आशा से बैठी थीं देहरी पर |
"नहीं ताई , इस बार इतना काम था आखरी दिन तक, की कुछ ज्यादा सामान खरीद नहीं पायी | चलो यहीं से मैं आपके लिए एक अच्छी सी साडी खरीदवा दूँगी | " बुलबुल ने सोचा की शायद अपनी कमी को पूरी कर पायेगी इसी बहाने |
" हम्बे " ताई की भीषण हम्बे ने हिला कर रख दिया बुलुबुल को | "यहाँ की लेनी होती तो हभाल ले लेती , उहाँ की चाहिए .... मुहेल्ले में दिखाओंगी की अमरीकन बहु लायी है अपनी चचिया सास कूँ |" ताई भी हमारे जेनरेशन एक्स से कोई कम नहीं है - चाहिए तो हर चीज़ पश्चिम की , चाहे वो बुरा करे या भला |

"अरे मैं तो मजाक कर रही थी, लाऊंगी क्यों नहीं | अपनी जमुना ताई के लिए बढ़िया सी लिपस्टिक लाई हूँ | ये लो ताई, खूब होंट रचियो ... " रेव्लोन की अपनी लिए खरीदी हुई लिपस्टिक उनको थमाते हुए बुलबुल ने कहा |

सूखे हुए चेहरे पर सहसा ही मुस्कान फैल गयी | "तेरे आदमी बच्चा खुस रहे बहु, तेरा लाला जिए " आशीर्वाद देते हुए ताई चलने को उठीं |

और मैं ? क्या आदमी बच्चे की ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है ? मेरी क्या कोई अपनी ख़ुशी नहीं है ?

ओह शीट ! जस्ट फगेट इट ! मैं कितनी सेल्फिश हूँ न ...

"बिना पूछे कोई भी सामान किसी को मत दिया करो " मुड़ते ही सास की चेतावनी का सामना करना पड़ा |
"जी मम्मीजी , अगली बार से आपको पूछ कर दिया करूंगी " बुलबुल को इस बात का भान था की बात सामान की नहीं है , बात अधिकार की है | बड़े बूढे अपनी उपस्थिति का आभास अपनी पूछ से पाते हैं | ठीक है , नो प्रॉब्लम !

अमरीका में रहते रहते शायद मेरी सोच सीमित हो गयी है | मेरा परिवार मेरे लिए सिर्फ पति और बच्चे हैं | इसी कारण तो जब अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीद कर लायी तो बाकी बच्चों का ख्याल नहीं आया -फिर जेठानी जी ने कितना हंगामा कर दिया था - "ये बात गलत है बुलबुल, जब कुछ लाओ तो सब बच्चों के लिए लाया करो " गुस्से पर प्यार की परत चढाते हुए दीदी बोलीं |
"जी दीदी, सॉरी मेरी गलती हो गयी | ज़रूर ध्यान रखूँगी " सकपकाते हुए बुलबुल ने उत्तर दिया |

दीदी कितना काम करती हैं | बाप रे ! सुबह से लेकर शाम किचन के अन्दर - किचन जहाँ आग बरसती है - उसी में हर वक़्त लगी रहती हैं | हर 'आदमी' को रोटी गरम गरम चाहिए !!! वर्ना सास चिल्लायेंगी - क्यूँ री ! रोज़ आठ आठ फुलकिया मारती है , आदमी को ताती ताती रोटी सकने को तेरे हाथ टूट ... |
और भैया घर में घुसते ही अपने आने की घोषणा कर देंगे - "अरी, कहाँ मर गयी ? रोटी मिलेगी ...? "

बुलबुल को ये समझ नहीं आती थी की सब 'आदमी' एक साथ क्यूँ नहीं आते ताकि दीदी एक ही बार सबकी रोटी बना दें - ससुर जी अपने समय से आयेंगे , भैया अपने अनुसार , छोटे भैया अपनी ही धुन के मालिक हैं , पर सब लोगों में एक समानता है की कोई भी रोटी हॉट केस से नहीं खायेंगे | सबको रोटी "गरम गरम " चाहिए |

"दीदी, आप सबको कहती क्यों नहीं हैं की या तो एक साथ आयें या फिर हॉट केस में रखी रोटी खाएं | आपको बार बार परेशान नहीं होना होगा | " बुलबुल ने सुझाया |

"का है बुलबुल, दो रोटी सेकनी है, हम पे का कमाई है ? हाँ ? तुम कमाती हो | तुमपे सौ काम है | हमारा तो काम ही रोटी पानी का है | मरद बच्चा को खाना नहीं दे पाए तो हमारी घर में का जगह .... | हम तो इन्ही से है, नहीं क्या ?" पल्लू से अपना पसीना पोंछते हुए दीदी ने कहा |

"नहीं दीदी, हर किसी की अपनी जगह होती है दीदी , और जितना काम आप करती हैं , उतनी तो मैं सौ जन्मों में भी नहीं कर पाऊंगी | रोज़ दिन में दो बार धार काढ के लाना, इतने बड़े घर में झाडू पोंछा, पूरे घर की रसोई- हर बार पचास पचास रोटी बनाना - इतने तरह की सब्जियां , उसपे भैया से इतनी खरी खोटी सुनना, दीदी कुछ गलती तो आपकी भी है , क्यूंकि आप ऐसा होने देती हैं ..." बुलबुल एक लय में कहती जा रही थी |

"गावन में तो ऐसा ही है बुलबुल, तुम शहर में रही हो ना , तोय कछु सल् ना है ...." दीदी बृज भाषा में कहती हैं |

"दीदी, इतना फैला हुआ खेत - कारोबार है , इश्वर के दया से धन की कोई कमी नहीं है , बाऊजी से कहकर एक नौकर क्यूँ नहीं लगवा देते ? ज़रा हाथ बंट जायेगा |" सवाल प्रक्टिकल था |

"घर में बहु बेटी के रहते नौकर को घर के अन्दर कौन आने देगा | बोलो तो? अरे , और मजदूर उतनी और हमें रोटी बनानी होगी | " सहसा दीदी को कुछ याद आया और वो बोलीं - "चलो बुलबुल, बालिका वधू का टेम हो गया , चलो देखते हैं | "

एक चीज़ तो वाकई काबिले-तारीफ़ है जो कहीं नहीं मिलेगी सिवाय मेरे देश के - वो है ख़ुशी , हर हाल में भी खुश रहने की कला | हर दुःख दर्द में भी दीदी जब कलर्स चैनल पर अपनी पसंदीदा शो देखती हैं तो उनकी ख़ुशी देखते बनती है |

मेरी ससुराल एक टिपिकल गाँव में है | अच्छा है, भारत दर्शन सही रूप से करती हूँ , बिना किसी मिलावट के |

दीदी सीरियल के किसी बात पर ठहाके लगाती हैं की दरवाज़े पर आवाज़ होती है - "कहाँ मर गयी.... रोटी.."

Friday, April 10, 2009

एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते भाग १

ऑफिस का काम ख़त्म नहीं हुआ था | पर मन ही नहीं लग रहा था | छोडो कल करेंगे ... किसी भी बात में फोकस नहीं हो रहा था | कार के ऑन होते ही सी डी प्लेयर बज उठा | दिन का सबसे अच्छा वक़्त होता है बिना कुछ सोचे , बिना किसी शोर के, बस चुप चाप गाना सुनना , कोई भी ...

मर जावां मर जावां ...........तेरे इश्क पे.. मर जावां
भीगे भीगे सपनो का जैसे ख़त है
हाय.. गीली गीली चाहत की जैसे लत है ,
मर जावां मर जावां .........तेरे इश्क पे.. मर जावां

"आकांक्षा तुम न बिलकुल क्रेजी हो , कुछ भी बोलती हो , और ये नया स्टाइल क्या है , लफंगों जैसा... "टपका डालने का "... ओह माई गौड़ , तुम्हारा कुछ नहीं बन सकता ... " चादर समेटते हुए साधना ने कहा |
हॉस्टल में एक कमरे में तीन लड़कियां रहती थीं | तीनों के बिस्तर जैसे उनके मालिकों की गाथा सुनाती थी | साधना के बिस्तर पर हमेशा उसकी किताबें सोती थीं -बिखरी हुईं, चाहे परीक्षा हों या नहीं, ठीक उसी तरह जैसे चारु के बेड पर नेल पोलिश और मेक अप का सामान हरदम डेरा लगाए रहता था | जिस दिन ड्रेस के साथ मेचिंग इअर टोप्स या नेकलेस नहीं मिलता था उस दिन चारु का क्लास में दिल नहीं लगता था | आकांक्षा के तो कहने ही क्या थे | सबसे साफ़ सुथरा बेड उसी का होता था | हो भी क्यूँ नहीं , कभी इस्तेमाल हो तो मैला हो न !

"आइसा क्या, बोले तो राजा आइसा इच बोलता है तो भीडू अपुन भी ... क्या है न अपुन का स्टाइल है, क्या !" कोलर खीचते हुए आकांक्षा ने कहा |
"राजा तुम्हारा नया दोस्त है क्या?" चादर झाड़ के बिछाते हुए साधना ने पूछा |
"यू आर सो डम, एक लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते - "मैंने प्यार किया" पिक्चर का मारा हुआ है ये डैलोग... " बिस्तर पर पसरते हुए आकांक्षा ने कहा |
"क्यूँ नहीं हो सकते अक्कू ? जैसे तुम मेरी दोस्त हो , वैसे ही कोई लड़का भी तो मेरा दोस्त हो सकता है ना !" बिस्तर के किनारों पर चादर खोंचते हुए साधना बोली |
"ओ मैडम , तेरी शादी होने वाली है , अपने पति परमेश्वर को मत कहना की कोई लड़का मेरा "दोस्त" है वर्ना शादी से पहले ही तेरा तलाक हो जायेगा |" कानों में वाक्मेन देते हुए जवाब दिया गया |
"मुझे लगता है दोस्ती अपनी जगह है और हर रिश्ता अपनी जगह | रिश्ते बनाए जाते हैं पर दोस्त हम खुद चुनते हैं | जहाँ सोच मिलती है दोस्ती होना स्वाभाविक है , चाहे वो लड़का हो या लड़की..... नहीं क्या? "
"बोले तो.... तेरी बात झक्कास है बाप ! पर अखा वर्ल्ड में कोई ऐसा मर्द नहीं मिलेंगा जो किसी औरत को एक औरत के फॉर्म में नहीं देखेंगा .. वोले तो ... औरत में एक दोस्त देखने से पहले दोस्त में औरत को पहले देखेंगा ... अपना चल्लिंज है बॉस ...शर्त लगा के बोलता है बाप ... लड़का लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते .. " कुछ और कहने ही वाली थी की हॉल से किसी ने चिल्ला कर कहा - "आकांक्षा विसिटर फॉर यू !"

"पीईन्न्न्न्न्न्न्न" पीछे से किसी ने जोर से हार्न दिया तो ध्यान १०१ के फ्रीवे पर वापस आया |

सी डी अब भी गाना सुना रही थी |

सोचे, दिल के ऐसा काश हो ....... तुझको एक नज़र...... मेरी तलाश हो ,
हो जैसे ख्वाब है आँखों में बसे मेरी , ..........वैसे नींद पे सलवटे पड़े तेरी ........
भीगे भीगे अरमानो की ना हद है ...........
हाय.. गीली गीली ख्वाहिश भी तो बेहद है !!!!!!!
मर जावां ............मर जावां ...........तेरे इश्क पे............मर जावां |

गाडी सामने रोकी ही थी की आकांक्षा बाहर आ गयी | इतने सालों बाद भी ये बिलकुल वैसी ही है ...

"गाडी चलाती हो या बैलगाडी चलाती हो ? मेरी फ्लाईट मिस ना हो जाए | भागो ...." अपना सूटकेस गाडी के पीछे सीट पर फेंकते हुए आकांक्षा चिल्ला उठी | "और ये देवदास सी शक्ल क्यूँ बनायी है ? कौन मर गया ? मरा तो मर गया तुम इतना टेंसन क्यूँ ले रही हो ? " बिना कुछ सुने कहते जाना आकांक्षा की पुरानी आदत है|

"कुछ नहीं , साउथ वेस्ट की फ्लाईट है क्या ? कितने बजे की है | वापस कब आओगी ? पिक कर लूं तुम्हें ?" बात घुमाते हुए साधना गाडी घुमाने लगी|
"अबे , अभी गयी ही नहीं और आने की टेंशन ...तुम या तो गए कल में रहती हो या आने वाले में, आज में क्यूँ नहीं रहती हो? यू आर इम्पोसिबल ! " बहुत प्यार करती है आकांक्षा, पर कुछ लोगों के इज़हार का तरीका अलग होता है|

"अक्कू, विश्वास ने मुझे हर्ट किया | पता है.." शब्द ढूँढने में लग गयी साधना .............. " तुम सच कहती थी आकांक्षा - दोस्ती नहीं होती किसी भी आदमी-औरत में - सिर्फ एक तलाश होती है , पता नहीं क्या ढूंढते हैं एक दूसरे में | गलती मेरी ही होगी | शायद मेरे ही इशारे गलत होंगे | मुझे लगा की अच्छी अच्छी बातों से मैं किसी की डिप्रेसन दूर कर दूँगी | फिर कुछ ऐसा कहा उसने की मेरी बोलती बंद हो गयी ........
मेरा विश्वास टूट गया आकांक्षा आज मेरा विश्वास सचमुच टूट गया ............"

सी डी के गीत को बदलने की कोशिश कर रही थी साधना | और आकांक्षा अपने आई फ़ोन पर अपने ईमेल चेक किये जा रही थी |
"तुम्हें मुझ पर बहुत हंसी रही होगी ना | कितनी सिल्ली बातों पर ध्यान देती है | खुद तो परेशान होती है ही औरों को भी परेशान कर देती है | सॉरी यार , तुम अपना काम करो | "साधना हडबडा कर कह रही थी |
एक के बाद एक गीत बदल रही थी साधना, शायद मन नहीं बना पा रही थी की कौन सा गाना सही है |
किसी एक पर हाथ रुक गया ..
आकांक्षा ने आई फ़ोन एक तरफ रखा और कहा -"क्या हुआ डिंकी, इतनी सी बात पर इतना तूफ़ान क्यूँ उठा रही हो ? घंटों घंटों बात कर सकती हो पर किसी ने छू क्या लिया तो क्या दाग लग जायेगा तुम्हें .. दाग .. माय फ़ुट ? ये सती सावित्री का नाटक तो रहने ही दो | अच्छा बताओ, तुमने अपनी हर प्रॉब्लम उसके साथ शेयर की है की नहीं , यहाँ तक की मुझे लगता है की मुझे भी जो बातें नहीं बतायीं उसे बताई होंगी क्योंकि जितना तुमको मैं जानती हूँ, तुम्हारे पेट में कुछ बात तो रुकेगी नहीं .." हंसते हुए आकांक्षा कह गयी |
"हाँ , ये तो सच है, तभी तो लगा की हम अच्छे दोस्त हैं ... या शायद ..... थे ... की हम हर दुःख सुख में साथ थे | लगता था की कोई है जो समझता है | पर हर रिश्ते की एक सीमा होती है ना , एक मर्यादा होती है , है की नहीं ,हाँ ? बताओ तुम? हाँ ?" अपनी बात का समर्थन चाह रही थी साधना |
" ओ मेरी धन्नो रानी ! ये शरीर कुछ नहीं होता है | आज मरे तो लोग कल दो दिन कहेंगे | अगर तुम मन से किसी से जुड़े हो तो तन का मिलना कोई पाप नहीं होता |" आकांक्षा माडर्न है |
"ये लो मैं किस से पूछ बैठी | तुम मेरी बात कभी समझ ही नहीं पाओगी..... तुम बिलकुल मेरे जैसी नहीं हो ... या फिर मैं तुम्हारे जैसी नहीं हूँ.. पता नहीं क्यूँ या फिर कैसे हम आज तक निभा पा रहे हैं ? अब देखो , तुम भी तो मेरी दोस्त हो, तुमने तो कभी नहीं कहा की तुम मुझे .... वैल.. जाने दो ... | हर चीज़ कायदे में ही अच्छी लगती है | और फिर .." अपनी बात को जस्टिफाई करने की जैसे सोच ली हो साधना ने | ड्राप ऑफ़ ज़ोन आ चुका था |
"तुम अगर ज़रा सी भी सुन्दर होती तो मेरे मन में ये बात आ सकती थी | क्या करें ..... यू आर नॉट सेक्सी एनफ फॉर मी! अब पता नहीं उसे क्या दिखा | एक काम करो, उसे मेरा फोन नंबर देना | वैसे वो इतना बुरा भी नहीं है | जब तुम उसको मेरे साथ देखोगी और जलोगी तब भागी भागी आओगी ....हा हा हा हा हा " आकांक्षा हंसती है, तो बहुत जोर से हंसती है |
"ओफ्फो अब बस करो , जाओ तुम्हारी फ्लाईट न मिस हो जाये , हेप्पी जर्नी " उसे विदा अब के साधना एयर पोर्ट पर ही कुछ देर रुक गयी |

देख रही थी साधना लोगों को अपने प्रिय जनों को छोड़ते हुए .. कोई गले मिल रही थी तो कोई आंसू बहा रहा था | कितना दुःख होता है न किसी अपने को विदा करते हुए ... सोच रही थी ...काश मुझे भी कोई रुला दे | रोना अच्छा होता है , दिल हल्का हो जाता है ...दिल इतना भारी लग रहा था पर रोना ही नही आ रहा था | सी डी पर गाना अब भी बज रहा था |
देखो तो , बिना शिकायत किये ये मशीन बजता ही रहता है , ये मशीन बनना कितना अच्छा होता है | बस जो करना है, सो करना है | कोई आव नहीं , भाव नहीं , ताव नहीं, चाव नहीं ,तनाव नहीं , ... कुछ भी तो नहीं होता है ... हाँ , मशीन बनना सबसे फायदेमंद होता है
... चलो मशीन बन जाते हैं |

Friday, March 27, 2009

फूल भी हो दरमियाँ तो फासले हुए !

ईमेल दूसरी बार खोला .....सोच कर की शिष्टता के लिए ही सही , जवाब तो देना चाहिए |
पर फिर से बंद कर दिया .. नहीं , क्या फायदा ...फिर से वही होगा ....नो, नॉट अगेन ......

जब से विश्वास टूटा है , दोस्तों पर से , दोस्ती पर से , किसी से हँस के बात करने को भी मन नहीं करता है | लगता है , हर कोई सिर्फ किसी मकसद से ही मिल रहा है , कोई मतलब है हर किसी के ..बात करने का .....

...या शायद मैं भी ऐसी ही तो नहीं हूँ? हो सकता है, बिलकुल हो सकता है , दूसरों की गलती देखने से पहले मुझे अपने गिरेबान में भी झांकना होगा | या शायद मैंने दोस्त ही ऐसे चुने हैं ... पता नहीं ...

पता है संसार में सबसे बड़ी ख़ुशी क्या है ? जब आप मन से किसी को अपना मित्र मानते हैं , किसी के साथ आप इतना जुड़ जाते हैं की पता ही नहीं चलता की बात करते करते कितनी देर हो गयी .... मज़े की बात तो ये है की आपको ये भी याद नहीं रहता की आपने बात क्या की पर हाँ , कुछ तो बात होगी जो इतने घंटे बीत गए ... जब आप अपना हर कार्य ये सोच कर करते हैं की - अरे , ये ड्रेस अगर आकांक्षा देखेगी तो कितना हँसेगी , नहीं इसे नहीं इसे खरीदूंगी , मुझे पता है उसका टेस्ट मुझसे अच्छा है, उसे ये ही अच्छा लगेगा, हाँ ये लेना चाहिए .... देखो न , अगर इस रोल में विश्वास देखगा तो सोचेगा मुझे एक्टिंग नहीं आती , मैं ये रोल नहीं करूंगी , मैं इस से अच्छा कर सकती हूँ ... और करूंगी ...

कितना अच्छा लगता है जब आप अपने आप को स्ट्रेच करते हैं क्योंकि आप कुछ प्रूव करना चाहते हैं , उन लोगों को जो मायने रखते हैं, आपके लिए ........

पता है संसार का सबसे बड़ा दुःख क्या है ? जब आप अपने उन्हीं मित्रों से दूर हो जाते हैं ..... मन से .... |

कुछ भी तो नहीं बदलता संसार में ... सब कुछ जैसा था, वैसे ही चलता है ..... पर आप बदल जाते हैं ... आपकी सोच बदल जाती है | फिर न वो विश्वास रहता है, न ही आकांक्षाएं .......... विवेक तो जैसे मर ही जाता है |

फिर कोई भूले बिसरे आपक उदास चेहरे पे जो पूछ ले की क्या हुआ तो बस इतना कहते बनता है की तबियत ख़राब हो गयी है , और क्या कह सकते हैं.... हर रिश्ते को यहाँ मुहर लगानी ज़रूरी है , फिर वो रिश्ता जो था , है नहीं , उसकी मौत का सदमा, किस तरह से इज़हार किया जा सकता है .... क्या बेवकूफी है ... ओफ्फो !

नए ईमेल के आइकन ने ध्यान फिर से खींच लिया |

"साधनाजी, आपको याद है , गत समारोह में मैं आपसे मिला था | आपने मुझे एक्टिंग के क्षेत्र में प्रयास करने को कहा | आज मैंने पहली बार स्टेज पर परफोर्म किया है | मेरे मित्रों ने मेरे इस प्रथम अभियान को बहुत सराहा | आपका बहुत धन्यवाद , जो आज मैंने अरसे बाद फिर से अपने पसंदीदा कार्य में कदम रखा !!!! "

अरे ! ये अंकुर पागल है क्या ? कहा न मैंने इसको मुझे इस से बात नहीं करनी है | कोई ज़बरदस्ती है ... इतने सारे ईमेल ... मुझे क्या है ... देने दो.... अपने आप बंद हो जायेगा ......

अंकुर की ईमेल में मुझे अपना अतीत दिखता है | हाँ ... वही भाव जो मेरे थे , कुछ समय पहले ... वही भोलापन, वही निश्चलता , वही भाषा का प्रवाह, बिना रुके बोलते जाने की दौड़ , बिना किसीकी सुने बस अपने कहते रहने की चाह ..... हर नयी मुलाक़ात से एक नयी दोस्ती की आशा , सच अंकुर बिलकुल मेरे जैसा है ... या शायद मैं उसके जैसी थी ....

पर अब मैं संभल गयी हूँ ... समझ गयी हूँ ....... रिश्तों में इतनी दुनियादारी देख चुकी हूँ की अब दुनियादारी पर ही रिश्तेदारी निभा रही हूँ | अब अंकुर को जवाब देना उसका हौसला बढ़ाना होगा.... गलत होगा |

लेकिन, एक मिनट ... रुको...

पर ये एक मौका भी है कई बातों को झूठ साबित करने का | है नहीं क्या?

मैंने जितनी दोस्ती की , गलत साबित हुई .... पर मैंने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी की ... फिर हुआ क्या ? मन में विश्वास की जगह ये छि : भावना कैसे आ गयी ? हर बात पर मैंने पहल की, शिकायत का कभी मौका नहीं दिया पर हर बार धोखा ही देखा , हर जगह स्वार्थ जीत गया , और मेरा विश्वास हार गया |

पर हर किसी के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए | अंकुर वो है .... जो मैं थी, इश्वर उसके विश्वास को बनाए रखे ... उसके साथ मेरे जैसा व्यवहार ना हो....उसका दोस्ती पर से भरोसा नहीं उठाना चाहिए ... और मैं शायद उसमे उसकी मदद कर सकती हूँ ... कम से कम कोशिश कर सकती हूँ ... की उसका हौसला बना रहे ... मैं उसे जानती नहीं हूँ . ..... पर इतना जानती हूँ की उसमे बहुत काबिलियत है... बहुत जोश है ... एक दिन कुछ बन ने की क्षमता रखता है... बशर्ते उसका मनोबल न टूटे |

हाथ स्वतः ईमेल का जवाब लिखने लगे-
अंकुर, पहली सफलता पर बहुत बहुत बधाई ! ऑडिशन पर ही मुझे पता चल गया था की तुम्हारा स्टेज पर अच्छा नियंत्रण है | बस अब अपने काम में लग जाओ और निरंतर आगे बढ़ते रहो |
शुभकामनाओं सहित,
साधना

सेंड का बटन दबाते ही एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी | कितनी अजीब बात है न , किसी को ख़ुशी देने से खुद को भी कितना अच्छा लगता है |
सच विश्वास , आकांक्षा और विवेक , तुम लोगों की आज बहुत याद आ रही है ... दिल कर रहा है तुम सब के साथ अपनी नयी ख़ुशी बांटने का... लेकिन तुम सब अब बहुत आगे की सोचने लगे हो ... बहुत तेज़ भागने लगे हो ... लेकिन पता है क्या कहते हैं ... चूहे की दौड़ में तुम कहीं भी रहो, आखिर चूहे ही रहोगे , है न.... दोस्तों, एक बार इंसान बन कर देखो तो सही .... तुम मुझे वहीँ खडा पाओगे जहाँ से हम अलग रस्ते गए थे ....

चलो, तुम्हें तुम्हारी दौड़ मुबारक हो ...

अल दी बेस्ट !

Tuesday, March 24, 2009

नाम का इनाम !

साधना को रात भर नींद नहीं आई थी |
आज उसे देश का सबसे बड़ा सम्मान जो मिलने वाला था - फिल्म जगत की सबसे मशहूर अदाकारा होने का | ये कलाकार भी अजीब होते हैं | इनके लिए क्या जीवन है और क्या अभिनय , ठीक से कहा नहीं जा सकता |

ख़ुशी तो थी ही पर एक तरह का डर भी था - क्या होगा, कैसे होगा, कुछ गड़बड़ न हो जाए | चलो देखी जायेगी |

ट्रोफी हाथ में लेकर वो सबसे पहले अपने दोस्तों के पास जायेगी | उसके दोस्त बहुत ही गिने चुने हैं - पर बहुत क्लोज़ है उनसे | एक रिश्ता सा बांध गया था इन तीनों के साथ - विश्वास, विवेक और आकांक्षा | तीनों ही अलग अलग तरह से उस से परिचित हैं | आकांक्षा बचपन की सहेली है तो विवेक कॉलेज का दोस्त| विश्वास से पहचान तो एक्टिंग के सिलिसिले में ही हुई थी |

आज का दिन बहुत लम्बा लग रहा था | इंतजार था की कब शाम हो और वो घडी आये जिसमे उसके सारे सपने सच हों | आज तक शादी को टालती आई है ताकी कुछ बन जाए तो फिर शान से अपनी गृहस्ती बसाए |

उसका हाथ बढा की आकांक्षा से बात करे और अपनी ख़ुशी और डर दोनों के बारे में बताये | नहीं नहीं , शायद उसे लगेगा की शो ऑफ़ कर रही है | उसे पता तो चलेगा ही , चलो उसे ही कॉल करने दो | फिर देर तक बात करूंगी ....

बाथरूम से निकली ही थी की सेल फोन का गीत बज उठा | टोन फ्रेंड का था सो उसने उठाया | सोचा शायद आकांक्षा का होगा - विश्वास का था |

"मुबारकें , मैंने सुना बड़ी स्टार बन गयी हो | मुझे पता था की एक दिन तुम नाम करोगी | बहुत बधाई !" एक अरसे बाद विश्वास की आवाज़ सुन कर साधना को बहुत आश्चर्य हो रहा था | जब दोनों एक ही मूवी में काम कर रहे थे तो बहुत ही अच्छी दोस्ती हो गयी थी | लेकिन विश्वास की दोस्ती के मायने और मापदंड साधना से अलग थे | सो कुछ समय की दोस्ती के बाद वे अलग रस्ते चले गए थे |
"शुक्रिया ,आपने फोन किया , बहुत ख़ुशी हुई | समारोह में आ पाएंगे ?" साधना ने सवाल किया |

"नहीं, समय थोडा कम है | आ नहीं पाऊँगा | पर मैंने तुम्हें याद दिलाने के लिए कॉल किया है की आज जब तुम्हें अवार्ड मिले तो थेंक यू लिस्ट में मेरा नाम लेना मत भूलना | याद है , तुमने कहा था की तुम्हारी सफलता की सीढी मुझसे शुरू हुई थी ...मैंने ही तुम्हें उस डिरेक्टर से मिलाया था जिसके साथ तुम्हें ये अवार्ड दिया जा रहा है | " विश्वास की बात पर साधना को विश्वास नहीं हो रहा था |
"आपकी इंट्रो को मैं पहले ही एक्नोलेज कर चुकी हूँ | और इसके सिवा मैं आपके लिए कुछ नहीं कहना चाहती ..." साधना कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पर कुछ सोच कर रुक सी गयी | कई सवाल थे जिनके जवाब मांगने बाकी थे , कई आंसू थे जिनकी वजह अभी तक साफ़ नहीं थे | और आज इतने दिनों बाद सिर्फ ... इसीलिए फोन किया गया था की समाज में नाम ..

"छी: ....सच , जो सुना ... अभी तक कानों को यकीन नहीं हो रहा है .... इश्वर जो करता है , अच्छा होता है | शुकर है ऐसे मित्र से मित्र का न होना बेहतर है | जस्ट फोगेट ईट ... " साधना खुद को दिलासा देना चाह रही थी पर जैसे रह रह कर एक प्रश्न काट रहा था - "कोई ऐसा कह कैसे सकता है ? आई मीन ... ...हद है !"

सुबह सुबह ही मूड ख़राब सा हो गया |

न चाहते हुए भी हाथ फोन तक पहुँच गए | नंबर आकांक्षा का घुमाया | उधर से एक पहचानी आवाज़ सुनकर बहुत ख़ुशी हुई |

"हाई मैडम , किसी मीटिंग में हो क्या ? बड़ी आवाज़ आ रही है पीछे से | " साधना ने पूछा |

"ओ नो, मैं और ऋषभ लॉस वेगास आये हैं , शोर उसी का है |" बड़ी अलसाई आवाज़ से जवाब आया | लग रहा था की मय और मस्ती खूब जोर मार था |

"अरे , तुम आज शाम समारोह में नहीं आ रही हो क्या? ये क्या बात .." गुस्से से साधना बोली |

"ओह्हो , यार मैं तो भूल ही गयी | तेरी अवार्ड सेरीमनी आज है ? ओह माई गोड | अब तो देर हो गयी | शीट, मेरा तो लॉस हो गया" , आकांक्षा परेशान लग रही थी |

"चल कोई बात नहीं , टी वी पर आयेगा सात बजे , ज़रूर देखना | "साधना ने दुखी होकर कहा |

"नो मेन ! बात तुम्हारे शो की नहीं है , मुझे राठोड जी से मिलना था | उनसे मेरी बात हुई थी उनके कंपनी प्रोजेक्ट के बारे में, और कहीं उनसे मिलना मुश्किल होता है | पर वो तुम्हारे बड़े फेन हैं | इवेंट में ज़रूर आएंगे | अरे यार, प्लीज़ , डू मी अ फ़ेवोर | प्लीज़ उनसे कह देना की प्रोजेक्ट मुझे ही दें.....प्लीज़ साधना ..... देखो प्रोजेक्ट का १० % मैं तुम्हें दे दूँगी| अब खुश ... कर दोगी न .... जस्ट से येस ! ... " आकांक्षा बड़े ही अधिकार से कहती है , चाहे जो कहे |

"आकांक्षा , राठोड जी नियत के साफ़ इंसान नहीं हैं | अगर मेरी मानो तो उनसे दूर रहो और मुझे भी उनसे मिलने को मत कहो | आकांक्षा ...." साधना बात पूरी भी नहीं कर पाई थी की आकांक्षा चीख उठी |

"तुम्हें कुछ नहीं करना स्वीटी , बस हें हें फें फें कर दो ज़रा सा और कह दो मेरा नाम .. वो समझ जायेंगे " आकांक्षा हंसते हुए बोली |

"पर तुम कब समझोगी आकांक्षा .... आई विश यु कुड .....! " साधना को लगा अगर थोडी देर और फ़ोन को पकड़ी रही तो फ़ोन पर ही रो देगी | इसीलिए जल्दी से कुछ बहाना बना कर फ़ोन काट दिया उसने |

"आज दिन ही ख़राब है , किसी का कोई दोष नहीं है | खैर, कोई बात नहीं ....."


शाम को चार बजे, अपने निर्धारित समय से ब्यूटी पार्लोर की लड़की आ गई थी साधना को सजाने के लिए |

कृत्रिम लिपा पुती, ये शो शे बाज़ी , ये तेज़ रौशनी , ये लायिम लाइट -- जीवन के अंधेरे को शायद थोडी देर के लिए ढक देते हैं , पर उसके बाद ...

शो शुरू होने में कुछ ही देर बाकी था | साधना को अभी तक यूँ लग रहा था की उसके दोस्त मजाक कर रहे हैं और अन्तिम क्षण में आकर उसे चौंका देंगे जैसे बच्चे करते हैं - देखो, सरप्रयिज़ ! हम सब आ गए |
फिर साधना कितनी खुश हो जायेगी और सब भूल जायेगी |

सोचते सोचते सेल फ़ोन पर SMS का आइकन देख कर ठिठक गई |

उसे पता था | विवेक का होगा | शायद देर हो गई उसे आने में और उसकी माफ़ी मांग रहा है | घर परिवार वाला बंदा है | देर तो लग ही जाती है | चलो, माफ़ कर दूँगी | मंजुला भी साथ आ रही होगी शायद ! बहुत अच्छी बात है |

उसने SMS पढ़ा , फिर सेल फ़ोन ऑफ़ कर दिया |

साधना का नाम माइक पर दुबारा पुकारा गया |
किसी ने साधना को ध्यान दिलाया की जाओ साधना , तुम्हें बुला रहे हैं | तालियों से हॉल गूँज रहा था |

साधना के ज़ेहन में SMS के शब्द घूम रहे थे |

"साधना, आज शो में आ नहीं पाएंगे। ऑफिस में ज़रूरी काम आ गया है | और हाँ, एक रेकुएस्ट है | तुम्हारा सौंड सिस्टम चाहिए एक दिन के लिए | मैं ही आ के ले जाऊंगा | तुम रामू को बता देना| आज तुम्हारे लिए कितने लोग ताली बजायेंगे | तुम्हारे कितने नए फ्रेंड्स बनेंगे , फिर पुराने फ्रेंड्स को मत भूल जाना ... "


साधना ट्रोफी हाथ में लेकर खड़ी थी | मंद मंद मुस्कुरा रही थी | अब वाकई उसे एक्टिंग करना आ गया था|
ये कलाकार भी अजीब होते हैं | इनके लिए क्या जीवन है और क्या अभिनय , ठीक से कहा नहीं जा सकता ......

Tuesday, January 13, 2009

मत थम ....जरा आहिस्ता चल........

"कनिका, तुम्हें पता है दुनिया का सबसे शांत ज्वालामुखी कहाँ है ?" किचेन में सफाई करते हुए सुजाता ने अपनी सहेली से फ़ोन पर पूछा|
"अरे यार , इतनी रात को तुम्हें जी. के. सूझ रहा है ? चलो, तुम्हीं बता दो कहाँ है ?" कनिका ने बहुत ही अलसाए ढंग से कहा |
"हमारे दिल में पागल ! हा हा हा" हँसते हुए सुजाता ने कहा |
"वैरी फनी, हाँ ? अच्छा वाक पे चलोगी ? मुझे बहुत काम है और नींद आ रही है | थोड़ा घूम आयेंगे तो फ्रेश हो जायेंगे |"कनिका ने जम्हाई लेते हुए पूछा |
"आइडिया बुरा नहीं है | वैसे भी बच्चे सो गए हैं | और ये कंप्यूटर पर लगे हुए हैं | चल , दो जन चलेंगे तो दिल लगा रहेगा |" झटपट जैकेट पहन कर सुजाता घर से बाहर आ गई | पाँच मिनट में पड़ोस की कनिका भी हिलते डुलते आ गई |
"और काम कैसे चल रहा है मैडम? कैसा है तुम्हारा तन्मय ?" मुस्काते हुए कनिका बोली |
"अब मजाक मत करो यार , वैसे भी बस नौकरी ही है , कोई बहुत बड़ी बात नहीं है | और बाई द वे , वो 'मेरा' तन्मय नहीं है | बस एक पुराना दोस्त था और अब तो वो भी आई गई सी बात हो गई है | देखो तुम, जब तुम्हें कोई बचपन की सहेली मिलती है तो पहले कितनी खुशी होती है, है की नहीं? बताओ तुम .... पर फिर लगता है - बिग डील ! " मुंह बिचकाते हुए सुजाता ने कहा |
"काम ठीक है, दोस्त भी ठीक ही है तो फिर ये शांत ज्वालामुखी का फंडा क्या है ? अबे, कोई गड़बड़ तो नहीं ..." कनिका ने हाथ उठाते हुए थप्पड़ का इशारा किया |
"ओह नो ! क्या बात कर रही हो ? तुम भी न ... कुछ भी कहती हो ... मैंने तो यूँ ही कहा था | तुम्हें पता है कनिका दुनिया का सबसे बड़ा दुःख क्या है?.......................... किसी भी बात का काम्प्लेक्स होना ! अगर तुम्हें इस बात का बार बार एहसास कराया जाए की तुम किसी बात में किसी से कम हो, तो सोचो किसी का कांफिडेंस कितना हिल सकता है .... " सहसा ही जैसे सुजाता को कुछ याद आया |
"क्या हुआ यार , किसी ने कुछ कहा क्या? बता ना क्या हुआ "कनिका ने सुजाता को पकड़ कर कहा |
" रुक ना, बताती हूँ......ऑफिस में ना .... मेरे कुछ ही दिन पहले कशिश ने काम शुरू किया था| यार, तन्मय की डायरेक्ट रिपोर्ट है | आई आई टी और स्तान्फोर्ड की टोप्पर है | बहुत ही ज़्यादा स्मार्ट और बेलेंस्ड लड़की है | दुर्भाग्य वश मैंने भी उसी टाइम में ज्वाइन किया है | अब सब लोग मेरा काम उसी के साथ नापते हैं | आज मीटिंग में भी तन्मय एक घंटा उसी का गुन बखान किए जा रहा था | उससे ये सीखना चाहिए , उसका लॉजिक देखो , उसका ये, उसका वो... अरे मैं मैं हूँ , मुझे किसी के जैसे बनने की ना इच्छा है ना ज़रूरत | हाँ मैं उसके जैसी नहीं हूँ, पर वो भी मेरी जैसी नहीं है | और पता है , क्या हुआ ... " उदास से चेहरे में सुजाता बोली |
"क्या ?" कनिका सुन रही थी और सुजाता अपनी सारी भडास जैसे एक ही साथ निकाल रही थी |
"आज मुझे मेनेजर ने राउटर को कोंफिगर करने के लिए दिया था | मैंने कभी भी ये किया नहीं था | हमेशा कोडिंग की और अब तो वो भी नहीं दिया मुझे , अब तो टेस्टिंग में ही दिन बीत रहे हैं | वो मेनेजर भी ना इतना इदिअट है की पूछो मत | थोड़ा सा हेल्प भी नही किया उसने, बस लो और करो जी | अनिवे, मैं अपना ट्राई कर रही थी की वहां से तन्मय किसी कारणवश गुज़रा, मेरी मति मारी गई थी की मैंने उससे राउटर के बारे में पूछ लिया | बहुत बड़ी गलती की | आगे से उससे बात भी नहीं करनी चाहिए , नहीं करूंगी, आई प्रोमिस !" गुस्से से अब सुजाता मुट्ठी भींच रही थी |
"पर हुआ क्या , कुछ बताओगी या बस ऐसे ही एक्टिंग मारोगी " कनिका ने उत्सुकता वश कहा |
"उसने बताया और कुछ इस तरह, की मुझे जता दिया की मुझे कुछ नहीं आता .... और मुझे आज बहुत ख़राब लग रहा है .... कुछ इस तरह जैसे वाकई मैं... कनिका क्या मैं रियली स्टूपिड हूँ ? मैं आज सोच रही हूँ की क्यों मुझे मेरा मेनेजर कोई भी क्रिटिकल काम नहीं देता , बाकी सबको देता है , क्यों ?" सुजाता ने उम्मीद की की शायद कोई मरहम कनिका रख देगी ..

"हाँ , स्टूपिड तो तुम हो ..पर बहुत ही क्यूट स्टूपिड ... और क्यूटनेस से भी बढ़कर है तुम्हारा ड्राइव " खिलखिलाते हुए कनिका ने कहा | "अरे पागल, तुम्हारी टीम में लोग दस साल से काम कर रहे हैं तो क्रिटिकल काम तो उनको ही मिलेगा ना | तुम तो अभी सीख रही हो, अभी से कैसे कोई बड़ा काम तुम्हें सौंप देगा ? बस जो तुम्हें मिले उसे ध्यान से करो, सब अपने आप ठीक हो जाएगा| हाँ , तो तुम्हारा राउटर कॉन्फिगर हो गया आज?"
"नहीं , कहाँ हुआ , कुछ प्रॉब्लम हुआ फिर काम अधूरा रहा |मैंने ऐसे ही कह दिया की मेरा थोड़ा दिमाग कम है शायद , इसीलिए बात समझ नहीं आ रही ... तो पता है तन्मय क्या कहता है ...... कहता है ... वैसे भी गर्ल्स लोगों का दिमाग कम होता है .... हाउ मीन ना ? ....मैंने उससे कह दिया ......ऐसा .. नहीं है .....ज्यादातर गर्ल्स लोग बहुत स्मार्ट और इंटेलिजेंट होते हैं |" इससे ज़्यादा शायद और बुरा नहीं मिल सकता था सुनने में |
मैं ग़लत थी | इससे भी ज़्यादा सुनने को मिल सकता था |
"पता है फिर तन्मय क्या कहता है - हाँ गर्ल्स स्मार्ट होती हैं - कशिश जैसे |" सुजाता ने कनिका को देखा फिर ज़मीन की तरफ़ जैसे की कुछ गिर गया हो और ढूँढने की कोशिश कर रही हो |
"तुम्हें इतना बुरा क्यूं लगा | कशिश की तारीफ से या तन्मय ने की, इस बात से ?" कनिका सवाल पे सवाल कर रही थी |
"चलो छोडो भी, की फरक पैंदा है | बात किसने की ये नही है पर क्यों की | और वो भी किसी और को नीचा दिखाते हुए | तुम्हें लग रहा होगा की मैं जल रही हूँ | हाँ सच है | पर उससे ज़्यादा मुझे काम्प्लेक्स हो रहा है | पता है दुनिया में सबसे खतरनाक गिरना क्या होता है, जब हमारा कांफिडेंस गिर जाता है और मुझे यहाँ पर ऐसा ही लग रहा है | मुझे पता है मुझे बहुत सारी बातें नहीं पता हैं, पर मैं कोशिश कर रही हूँ | पर अगर हर मोड़ पर कोई टोक दे तो फिर तुम बताओ ...... | यहाँ पर हर बन्दा या तो दस पन्द्रह साल से काम कर रहा है या फिर किसी बड़ी नामी गिरामी कॉलेज का टोप्पर है | मानती हूँ मेरी हस्ती थोडी कम है पर मैं भी कोई कम नहीं हूँ | देख लेना, बस एक साल में मैं अपनी पहचान बना लूंगी फिर ये सब जो हैं ना , देखते रह जायेंगे | " सुजाता अपने ही भाव के ज्वार भाता से आश्चर्य चकित थी |
"ये हुई ना बात , क्या स्टाइल है, जियो मेरी जान ! ये एकदम इतना दम कहाँ से आया ?" कनिका ने कोहनी मारते हुए पूछा|
"पता नहीं , जब वाक पर निकले तो बहुत घुटन सी थी पर बात करते करते ऐसे लगा जैसे सब लावा बह गया और ज्वालामुखी जैसे सचमुच शांत हो गया हो | अच्छा हुआ हम आज घूमने आए | रोज़ आया करेंगे , ठीक?" बड़ी ही जोश में सुजाता ने कहा |
" कल की सोचेंगे कल को, अब जाओ और आराम से सो जाओ .....ना कशिश की चिंता करो और ना ही काम की | बस अपना हौसला बनाए रखो, किसी को उसे छूने मत दो , ओके?"

"थेंक्स यार , बस किसी से बात ही कर लो दिल खोल कर , तो कितना हल्का लगता है | तुम्हारा शुक्रिया कैसे करुँ? थेंक्स सो मच ! " सुजाता बहुत खुश लग रही थी |
" किसी ने मुझे यही बात समझाई थी | मैंने तुम्हें पास कर दिया | जब तुम्हें लगे की कोई ऐसा है जिसे तुम्हारी ज़रूरत है तो उसकी मदद करना, उससे बात करना , बस मुझे शुक्रिया कह दिया समझना , ठीक है?" कनिका ने सुजाता के गालों पर थपकी मारते हुए कहा |

"बिल्कुल, चलो गुड नाईट , फिर मिलेंगे ..." सुजाता कूदते हुए अपने घर वापस आ गई |

सुजाता अब अगले दिन का इंतजार कर रही थी |
वो कल ऑफिस में राउटर को सही तरीके के कॉन्फिगर करेगी , बिना किसी के मदद के |

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Tuesday, January 6, 2009

अपना भी कोई एक घर होगा !

"अगर कौडियों में सबसे अच्छे इलाके में घर चाहिए तो अभी के अभी इस पते पर पहुँच जाओ .... और सुनो मेरा अप्रूवल पेपर ले जाना .... और हाँ बस उनके रेट पर ऑफर दे देना | मैं कल ही वापस आ रहा हूँ |" देव, हमारे एजेंट ने एक ही साँस में इतनी लम्बी बात कह डाली | ऐसा लग रहा था की जैसे लॉटरी की टिकेट लग गई हो और बस उसे भुनाने की देर हो |

वाकई कुपर्तिनो में इस दर पर ये घर नामुमकिन सा लगा | फिर पता चला की ये एक फोर क्लोस्ड घर है जिसे बैंक जल्द से जल्द बेचना चाहती है | इसी कारण इसका दाम कम रखा है ताकि बिक जाए |

तनुष बहुत खुश थे | हम करीब तीन साल से घर ढूंढ रहे हैं | ऐसा घर जो हमारे बजट में आ जाए, जिसमे स्कूल अच्छे हों और जिसमें कम से कम दो बाथरूम हों ! पिछले दस साल से एक बाथरूम के कोंडो में झेल रहे आंसूओं को तो बस हम ही जानते हैं | लेकिन सिलिकन वेळी में शायद सब लोग यही चाहते हैं जो हम चाहते हैं | तभी तो पचास हज़ार डॉलर ज़्यादा ऑफ़र देने पर भी हमें घर नहीं मिला था एक बार | ऐसे में इतने कम दर पर ये घर एक दुआ कबूल होने के जैसा था |

हम जिस कपड़े में थे उसी में निकल पड़े | बच्चे एक बर्थडे पार्टी में गए हुए थे | सोचा लौटते हुए उन्हें ले लेंगे | तब तक ये काम बन जाए तो ...

बाहर से घर देखने में बुरा नहीं था | वैसे भी लुक्स पर कौन जाता है | जो दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज़ है ?

हम जैसे अन्दर जा रहे थे तो कुछ लोग बाहर आ रहे थे | एक अजीब सी परेशानी सी दिखी उनके चेहरे पर, जाने क्यों ?

अन्दर माहौल बहुत बिखरा बिखरा सा था | जैसे कोई बहुत ही हफ्रा तफरी में गया हो और जल्दबाजी में आधा समान छूट गया हो | देख के थोड़ा सा नर्वस लगा |

जाने किसकी नौकरी छूट गई होगी , जाने क्या मुसीबत होगी उसके सर पर, जाने कहाँ गया होगा उसका परिवार घर छोड़ कर , जाने ... मेरी सोच टूट गई जैसे ही मैं मास्टर बेड रूम में गई और एक बड़े से टूटे हुए आइने में मैंने अपने आप को देखा |

उस कमरे की एक एक चीज़ जैसे बड़ी तस्सली से लगाई गई हो | वो क्लोसेट का डिजाइनर दरवाज़ा हो या खिड़कियों पर गोल्ड फ्रेम का डेकोरेसन | हर चीज़ की एक ख़ास खूबसूरती थी जैसे किसी ने बड़ी फुर्सत से उसे चुना हो पर जितना प्यार , उतना ही क्रोश निकाला गया है, ऐसा लग रहा था ...क्योंकि उस कमरे की हर एक डिजाइनर चीज़ टूटी हुई थी... तोडी गई थी ... बड़ी बेरहमी से... वैसे भी हम उसी पर ही तो अपना गुस्सा निकाल सकते हैं जिस से हम प्यार करते हों, बहुत प्यार करते हों ...

अमरीका भर में बहुत ही बुरा वक्त चल रहा है | जिस देश को मैंने कभी इतने उन्नत स्टेज पर देखा था , वहीँ पर आज ऐसी दुर्दशा देख कर मन द्रवित हो जाता है | जाने ये मुआ रिसेसन कब जायेगा | कब लोगों की दहशत ख़तम होगी | आज हर आदमी घर से यही सोच कर निकलता है की शाम तक उसकी नौकरी सलामत रहे | रोटी पानी बनी रहे | किसी को भी आज जॉब सिक्यूरिटी नहीं रही | कल क्या हो ये कोई नहीं कह सकता |

अचानक अपना नाम सुनकर मैंने हाँ कहा | लगा तनुष बुला रहे हैं शायद |
"क्या है, तुमने बुलाया ?" बाहर आते हुए मैंने पूछा |
"नहीं तो , तुम्हारे कान बज रहे हैं क्या ? अच्छा देखो , मैंने इनके एजेंट से बात कर ली है | सब कुछ हो जाएगा | आज के आज ही सब फिट कर देते हैं , अभी ये घर मार्केट में आया भी नहीं है, कम दाम में मिल जायेगा ... " तनुष बहुत उत्तेजित लग रहे थे |

"ज़रा रुक जाओ .." एक अजीब सा डर लग रहा था |

क़दम अपने आप ही एक के बाद एक कमरों में जा रहे थे | हर कमरा एक अलग कहानी कह रहा था |
टूटे दर्पण वाला कमरा मास्टर बेडरूम था | ये वाला कमरा शायद बच्चों का होगा | अभी तक दीवारों पर प्रिंसेस के पोस्टर लगे हुए थे | उनकी बेटी या बेटियाँ होंगीं | छोटी होंगीं | अलमारी से अब तक गन्दगी साफ़ नहीं हुई थी | बिखरे बिखरे अखबार और यहाँ वहां के डॉक्यूमेंट भरे पड़े थे | समय कम था फिर भी मन में बात जागी की देखूं तो डॉक्यूमेंट से कुछ पता चले | हाथ लगा ही था की एक बड़ा सा फाइल निचे गिर गया और सारे कागज़ कमरे भर में बिखर गए |
अरे अरे ! उसे समेटने के लिए मैं झुक गई ताकि फिर उसे अपने जगह पर रख दूँ |

जल्दी जल्दी करने की कोशिश कर रही थी | पर जैसे हर पन्ने को पढ़ ने का मन कर रहा था |

और फिर कुछ हाथ लगा | उसकी पीठ थी मेरे हाथ में.... एक फोटो का पिछला हिस्सा... सफ़ेद होता है न जो | मुझे पता था की ये उन्हीं लोगों का होगा जिनका ये घर था | मुझे देखना नहीं चाहिए ... दुःख होगा | नहीं नहीं , इसे फेंको और यहाँ से भाग जाओ | जाओ ... मैंने कहा न |

पर जैसे पाँव उठते ही नहीं थे | हाथ उस फोटो को छोड़ने को तैयार ही नहीं थी | किसी का दुःख देख कर तुम्हें क्या मिलेगा , तुम जाती क्यों नहीं हो? पर मैंने फोटो को मोडा और उन को देखा ...

परिवार चाइना का लग रहा था | फोटो उनके बच्चे के पहले जनम दिन का था शायद | इसी घर में लिया गया था उस बड़े वाले लिविंग रूम में | भरा पूरा परिवार हंस रहा था | दो बूढे माँ बाप भी दिख रहे थे पीछे खड़े हुए | बड़ी रौनक छाई हुई थी, बहुत ...

"और सुनो , इतना काम पड़ा है और मैडम आंसू टपका रही हैं " तनुष कमरे में आते हुए बोल पड़े |

मुझे पता ही नहीं चला कब आँख भर आई थी | आंसूं बह रहे थे और मुझे होश ही नहीं था | मैं भी इतनी स्टूपिड हूँ न !
ओ माय गौड़ ! मैं आँख पोंछने की इतनी कोशिश कर रही थी पर जैसे रुकते ही नहीं थे | तनुष से मुंह छुपा कर मैं बाथरूम मैं घुस गई |

मुझे इतना कमज़ोर नहीं होना चाहिए | ऐसी भी क्या भावुकता | न जान न पहचान , और ये सब तो होता रहता है| शायद वे लोग आज भी खुश हैं , जहाँ भी हैं | और तुम्हारे परेशान होने से किसी का भला तो नहीं होगा न .... तुम क्या कर सकती हो, जो होना था वो तो हो चुका है |

ख़ुद को मन भर का हौसला देने के बाद , बहते हुए दरिया को बाँधने के बाद , जैसे ही नज़र उठाई , एक बड़े से पोस्टर से मैं टकरा गई .... ठीक मेरे सामने था ... मुझे कुछ कहता हुआ ... मुझपे हँसता हुआ .... या शायद रोता हुआ .... उस पर प्रभु ईसू का फोटो था ... क्रॉस पर लटकते हुए ... एक औरत हाथ जोड़े खड़ी थी क्रॉस के नीचे.... और कुछ लिखा था...

"...... This too shall pass !"

फिर न मैंने ख़ुद को समझाने की कोशिश की और न ही वहां रहने की| बाहर तनुष खड़े थे |
भाग कर उनसे लिपटते ही मेरा बाँध टूट गया | फूट फूट कर आंसू बाहर आ रह थे |

"तनुष हम यहाँ नहीं रहेंगे, मुझे नहीं चाहिए ये घर| इसकी गंध में एक उमस है , एक आह है | तनुष, हमें यहाँ नहीं रहना तनुष , नहीं रहना हमें यहाँ .... ऊं ऊं ऊं ......भगवान् न करे ... अगर कल हमारे साथ ऐसा कुछ... " मेरे मुंह से कुछ भी निकाल रहा था , बिना सोचे बोल रही थी मैं |

"पागल हो तुम. अरे ऐसा डील फिर नहीं मिलने वाला | हमारा सब रेडी है | बस साईन करने की देरी भर है | चलो चलो ज़्यादा इमोसनल नहीं होते हैं | आते ही सत्य नारायण पाठ करवाएंगे | सो, हवा भी शुद्ध हो जायेगी | कब से कह रही हो कोंडो में जगह कम पड़ रही है | एक बाथरूम में कितनी दिक्कत आ रही है | और सुन लो , अब तो जो घर आयेंगे मार्केट में, उनमे से आधे इसी तरह के होंगे | अब हर घर से तुम्हें आह सुनाई दे तो फिर भइया हो गया बेडा पार ... " तनुष मेरी बात को सुन ही नहीं पा रहे थे शायद या मैं ही कुछ ज़्यादा सुन रही थी ... पता नहीं ....

"नहीं तनुष, हर घर से एक ध्वनि आती है, एक वयिब होता है, मुझे यहाँ पर किसी की हाय सुनाई देती है | जब मैं यहाँ आई थी तब मुझे कुछ नहीं था पर यहाँ कुछ है , जिसे मैंने फील किया है | तुम्हें नहीं लग रहा ... कुछ अन्दर से ..." मुझे यकीन नहीं हो रहा था की जिसे मैं अपने में इतना धड़कता हुआ महसूस कर रही हूँ , वो किसी और को क्यूँ नहीं हो रहा ????

"तनुष , हम अपने छोटे से कोंडो में ही रह लेंगे | अब प्लीज़ चलो यहाँ से ......प्लीज़ .......... "

तनुष मौके की नजाकत को समझते हुए बाहर आ गए , वैन का लौक खोला और गाड़ी स्टार्ट की |
अपना बेल्ट बांधते हुए मेरे मुंह में ये गीत बार बार आ रहा था -".. किसी का प्यार न टूटे, किसी का घर द्वार न छूटे ..." |

उस घर से अपने घर तक आते आते तीन घरों पर "Bank Owned" का बोर्ड लगा हुआ देखा |

सी डी पर गीत बज रहा था -

इन भूल भुलैया गलियों में अपना भी कोई एक घर होगा ,
अम्बर पे खुलेगी खिड़की या खिड़की पे खुला अम्बर होगा ,

पल भर के लिए इन आंखों में हम एक ज़माना ढूंढते हैं ...
आबोदाना ढूंढते हैं एक, आशियाना ढूंढते हैं .......