Friday, March 26, 2010

अमरीका में आकाश वाणी भाग 3

वक़्त कैसे बीतता है, पता ही नहीं चलता, है न ?

अब देखो, मुझे रेडियो में एंकर करते हुए दो महीने बीत गए हैं , पता ही नहीं चला ......... मुश्किलें तो आती रहीं ... रोज़ दफ्तर में देर से पहुंचना ... बच्चों को समय से पहले उठा कर जल्दी से स्कूल के लिए तैयार करना ... ताकि टाइम से रेडियो स्टेशन पहुँच सकूं , दोस्तों के सवाल पर की "शो के कितने पैसे मिलते हैं ...." उन्हें ये समझाना की रोज़ के सुबह के दो घंटे मैं अपने शौक़ के लिए शो में जाती हूँ... पैसों के लिए नहीं ...खुद के इस विश्वास को हर हाल में बनाए रखना..

पर बहुत मुश्किल होता है अपने शौक को ज़िन्दा रख पाना ... ख़ास कर जब उसकी टक्कर रोज़गार से हो .... बहुत बार सोचती हूँ क्या जीविका ही जीवन है , जी हाँ ... जीविका और जीवन के इस होड़ में जीत हमेशा जीविका की होती है , ये पैसा है ही ऐसी चीज़... हर कोई इसके पीछे भागता है ... मैं कोई भीड़ से हट कर तो नहीं हूँ न!

पर इससे पहले की मैं ये कहानी सुनाऊं की आज मैंने अपने इस जीवन से क्यूँ मुंह मोड़ा, मैं आपको अपने कुछ खट्टे मीठे अनुभव बताना चाहूंगी अपने इस छोटे से दौर के बारे में जो मैंने आवाज़ की दुनिया के दोस्तों के साथ बिताया ....

इस देसी स्टेशन पर रेडियो शो करने के घंटे के तीन सौ से पांच सौ रूपए तक देना पड़ता है, हर रेडियो शो के होस्ट को | अब इसकी भरपाई होती है एड्स एवं गेस्ट स्पीकर के द्वारा | हर एड के पचीस डॉलर और हर गेस्ट को प्रति घंटे के ढाई सौ से पांच से तक देने पड़ते हैं | अरे भाई, होस्ट को अपना ब्रेक इवेन भी तो करना होता है न | लेकिन गेस्ट स्पीकर भी अपनी कंपनी या प्रोडक्ट की मार्केटिंग करके अपना पैसा वसूल कर लेते हैं|
कभी डॉक्टर, कभी टैक्स कांसुल्तंत, कभी कोई ज्योतिष शाश्त्री तो कभी dentiste ....

तो मैंने सोचा अपने प्रोग्राम को मैं कुछ एड्स लेकर आऊँ तो शायद श्लोक को कुछ मदद मिले|
तो ये मेरा पहला तजुर्बा था किसी चीज़ की मार्केटिंग करने का | मैंने एक ब्यूटी पर्लोर की मालकिन से कहा की आपकी दुकान बहुत चलेगी जो आप हमारे साथ एड करोगे |

उसने बहुत इंटेरेस्ट दिखाया , और मेरा हौसला बढाया |
फिर धीरे से हमने उसे एड का दाम बताया .... तो उसका मुंह उतर आया...
हमें उसकी हालत पर प्यार आया ... तो हमने एक प्लान बनाया ....
हमने फ़रमाया ...
देखो आप एक या दो एड के तीस डॉलर देंगी ... लेकिन अगर आप पूरे चार हफ्ते के एड लेंगी....
तो देखेंगी....
की एड के दाम कम जायेंगे .... और बहुत से कस्टमर आपकी दुकान पर आयेंगे ...
और आपकी कम हम फीस कर देंगे, चलो तीस की जगह हम बीस कर देंगे ...
(सोचिये कितना भारी डिस्काउंट दिया था.... उनको attract करने के लिए ...)

सुनकर उसको चैन मिला, और उसका चेहरा खिला..

बोली वो के बीस डॉलर का बस एक एड में लूंगी, लेकिन उसके पैसे मैं उससे कस्टमर आने पर दूँगी |

ऐसे ऐसे कई बड़े बड़े अनुभव हमने पाए,
तो भैया, देसी जनता से बिजनेस करने से हम घबराए |

ये तो थी एड्स के मार्केटिंग की बातें.... वैसे कुछ अनुभव शो के भी आपको बताना चाहूंगी ...

श्लोक जो की प्रमुख होस्ट हैं ( मैं तो उनके साथ को-होस्ट हूँ ) कोशिश करते हैं की शो की मस्ती बनी रहे .. कभी गाना, कभी गप्पें , कभी कुइज़ और कभी समाचार ... रोड में ट्रेफिक से लेकर देश-विदेश के न्यूज़ और स्टोक के उतार चढाव को भी बताया जाता है | लोगों के साथ बातें करना एक बहुत ही पोपुलर अयिटेम होता है .... जाने क्यूँ लोग अपनी आवाज़ को रेडियो पर सुनना बहुत पसंद करते हैं , अपना नाम सुनकर लोग बाग़ बाग़ हो जाते हैं |
चाहे अपने घरों में अपने पार्टनर से प्रेम करें न करें लेकिन रेडियो पर उनके लिए फरमाईश के गीत ज़रूर बजवायेंगे | पूरी दुनिया के आगे अपने प्यार के इज़हार होने का अपना ही मज़ा होता है, अब ये अलग बात है की वो प्यार है भी की नहीं , वैसे की फरक पैंदा है ... वही सच है जो मीडिया कहे .. उसकी सच्चाई कौन परखता है ... किसके पास इतना वक़्त है ?

श्लोक जी कहते हैं की ऐसी मुद्दा उठाना चाहिए जिसपर बोलने के लिए लोगों को ज्यादा सोचना न पड़े | कुइज़ के लिए भी सवाल ऐसे पूछो की मज़ा भी आये लेकिन ज्यादा ज्ञान की ज़रुरत न पड़े |
मैं गंभीर प्रकृति की श्रेणी में आती हूँ | लेकिन चूंकि श्लोक जी को गुरु मान लिया है तो, बिना परखे, उनसे सीखने की उम्मीद में मैं इस इश्टाईल को अपनाने की कोशिश करती हूँ |

लेकिन मैं लोगों के इस टेस्ट से हैरान हूँ .... लोग चलते फिरते बस बॉलीवुड के गाने सुनना चाहते हैं | आज तक मैंने किसी को ये पूछते नहीं सुना भाई अपने रेडियो पर एक शो करो जिससे की गरीब लोगों का, दुखी आत्माओं का कुछ भला हो | देस छोड़ कर आये हुए वे लोग जो आकर यहाँ पर बेहद परेशान हैं, उनके लिए कुछ करो यार | एक प्रोग्राम हो जिसमे सिर्फ समाचार हो - लोकल, देस-विदेश की, पूरे संसार की |

मेरी एक सहेली है जिसका पति किसी दूसरी के साथ दिन -रात बिना झिझक के लगा रहता है | मेरी सहेली सब कुछ जाना कर अनजान बनी रहती है | कहती है , अगर हंगामा किया तो फिर बच्चों पर असर गलत पड़ेगा और फिर कमाई भी तो ये ही करते हैं , इस पराये देश में कहाँ कहाँ भटकती फिरूंगी ? इससे अच्छा है की परायों में रोऊँ , अपनों में ही रोना बेहतर है | अस्मा अकेली नहीं है इस तरह की मुश्किल में | आज कई ऐसे सम्माज के "ठेकेदार" हैं जो दोहरी ज़िन्दगी जी रहे हैं | घर की मुर्गी इन्हें हमेशा ही दाल बराबर लगती है | लेकिन इनका पर्दाफाश करने की जुर्रत कौन करे ? कौन बांधे बिल्ली के गले में घंटी ? और वो भी जब उन्हीं "ठेके दारों " से उन्हें पैसे मिल रहे हों अपने प्रोग्राम को आगे बढाने के लिए |

मेरे बच्चों को जो पंजाबी आंटी संभालती थी उनकी बड़ी अजीब कहानी थी | पंद्रह साल पहले उनके पति अमरीका आये थे , किसी एजेंट के साथ जिसने उनको बोर्डर पार करने में उनकी मदद की थी | लेकिन उस बोर्डर तक पहुँचते पहुँचते उन्हें करीब दो साल लग गए और फिर छह साल और लग गए उन्हें कुछ कमा कर एक "ज़िन्दगी" जीने में | करीब आठ साल के बाद हमारी आंटी जी को ये पता चला था की उनके पति अमरीका में पहुँच गए हैं , उन्हें ये भी नहीं पता था की ये जिंदा भी हैं या नहीं | फिर उन्हें यहाँ एक स्टेटस पाने के लिए अपनी खुद की बीवी को नकली तलाक देकर एक गोरी में से शादी करनी पड़ी | अब भी दिखावे के लिए वो अपनी बीवी के साथ बल्कि बल्कि उस गोरी के साथ रहते हैं | वाकई, क्या लाइफ है ! अपना देश छोड़ कर यहाँ आकर क्या हर कोई ख़ुशी पा जाता है ?

एक लड़का है .... जो पढने के लिए अमरीका आया , कुछ महीनों पहले | परदेस आने के लिए क्या हम इतने डेस्पेरेट होते हैं की ये पता ही नहीं होता की कहाँ जा रहे हैं, क्या करने जा रहे हैं ??? उसने किसी थर्ड ग्रेड कॉलेज में दाखिला ले तो लिया पर अब पैसे नहीं थे बाकी खर्चे के लिए ...| किसी लोकल... सेवेन लेवेन जैसी किसी दुकान पर काम करने लगा | आधी रात को किसी बन्दे ने उसे चोरी करते हुए.... गोली मार दी | अब उस गरीब की लाश को वापस भारत भेजने के लिए यहाँ के लोग चंदा जुटाने में लगे हैं |

मेरी एक सहेली थी, बचपन की ...किसी बॉडी शोप्पर से H 1 बनवा कर आ गयी .... इस ग्रेट धरती पर... लेकिन शायद रिसेसन का असर इनपर सबसे ज्यादा पड़ा |
नौकरी तो मिली नहीं पर.... हाँ खुद को इस देश में ( जब तक नौकरी नहीं मिलती ....की उम्मीद में ) एक नए रूप में देखा इन्होनें- एक कॉल गर्ल के रूप में | महान हैं वे 'लोग' जो लेकर आते हैं देस के 'foolon' को परदेस में खिलाने के लिए....

अरे मैं ये सब क्या कह रही हूँ .... मैं तो रेडियो शो के बारे में लिख रही थी | दरअसल मैं इस लिए लिख रही हूँ ताकि मैं सोच सकूं की मैं रेडियो पर किस तरह के शो करना या देखना चाहती हूँ |

मैं आसमा को रडियो पर लाना चाहती हूँ ताकि वो सारी दुनिया को बता सके की जो इंसान सारी दुनिया के आगे इतना अच्छा आदमी बनता है वो हकीकत में कितना दरिंदा है , शायद इससे कोई और मासूम भी हिम्मत कर सके की वो समाज के आगे आकर अपनी हालत बता सके | शायद हैवानियत ज़रा धीमी पड़ जाए .....शायद....

मैं आंटीजी को रेडियो पर लाना चाहती हूँ ताकि उन लोगों तक ये बात पहुंचे, जिनके दिलों में परदेस के सपने होते हैं, की परदेस भी कोई जन्नत नहीं है | अपना घर छोड़ने से पहले एक बार सभी पहलू देख ज़रूर लो |
बोर्डर पार करते हुए गोली दिल के पार भी हो सकती है यारा ....

मैंने इस देश का एक बहुत दहशत कारी रूप देखा है और ये सब अँधेरा इन उजालों के नीचे ही है ... कहीं छुपा हुआ ... पर है .. और इतना काला है जिसकी तुलना नहीं की जा सकती है ....

कहते हैं - Your talent is a gift of God .... how you use this is your gift to God|

लोग कहते हैं खुदा ने मुझे अच्छी आवाज़ दी है - बोलती हूँ तो लोगों को अच्छा लगता है, सोच ऐसी है की सही और गलत में फर्क कर सकती हूँ | खुदा ने मुझे टेलेंट दिया है तोहफे में | लेकिन इसे मैंने कभी इस्तेमाल नहीं किया | ए खुदा, अभी मेरा तुझको तोफहा देना बाकी है ... शायद कभी तेरा ये क़र्ज़ उतार सकूं...

सवाल ये है की क्या वाकई इस देसी रेडियो में इतनी हिम्मत होगी की इन सच्चाइयों को दुनिया को दिखा सके ? क्या मुझमे इतनी औकात है की मैं इसे सही रूप में दिखा सकूं?

पता नहीं .... फिलहाल तो मैं इतना बता दूं... की मेरी खुद की नौकरी बहुत ही डेंजर ज़ोन में है ... कब क्या हो जाए पता नहीं है .... वैसे भी मैं बिजनेज में फेल हूँ .... आपने ये तो पहले देख ही लिया होगा .... तो मेरी अपनी सत्ता डांवा डोल दिख रही है |

तो इस करके, अब मुझे रेडियो से दूर हटके अपनी जीविका पर ध्यान देना होगा | हर दिन काम से आते जाते वक़्त कभी रेडियो चल जाता था तो बहुत मलाल होता था .... काश मैं भी इस सैलाब का एक हिस्सा होती | काश मेरी जिम्मेदारियां इतनी न होती .... काश मैं कुछ कर पाती .... नहीं कर पाती हूँ .... इसलिए आज कल रेडियो नहीं सुनती हूँ ........

Wednesday, March 10, 2010

अमरीका में आकाश वाणी भाग २

कई गलत जगहों पर घूम फिर कर , ढूंढते ढूंढते मैं रेडियो स्टेशन पर पहुँच गयी | तीन बड़े बड़े लम्बे लम्बे टावर खड़े थे सामने जिन पर लाल बत्ती टिम-टिम कर रही थी |
मेरा दिल बहुत बुरी तरह से धड़क रहा था |बड़े दरवाज़े से अन्दर गयी तो वहां कोई नहीं था , एक अँगरेज़ के सिवा |
मैंने अपना नाम और मकसद बताया तो उसने जवाब दिया की अभी उस शो के लोग आये नहीं हैं |
टेबल पर तीन बड़े बड़े मायिक लगे थे | मैं एक मायिक के पास पड़े कुर्सी पर बैठ गयी |
"वो मेरी कुर्सी है... वहां मैं बैठता हूँ..." एक आवाज़ सुन कर मैं सिहर गयी |
"हाई ! मैं श्लोक हूँ और ये मेरी मैडम- ज्योति " अपना मशीन लगाते हुए श्लोक कहे जा रहे थे |

"कितना टाईम बाक़ी है ?" श्लोक ने उस अँगरेज़ से पूछा जो मेन मशीन चला रहा था |
" टेन सेकंड्स .." और फिर उलटी गिनती के ख़तम होते ही श्लोक ने अपने लैपटॉप से रेडियो का फीड स्टार्ट कर दिया |

"अरे वाह ! ये तो कमाल है " मैंने सोचा |

प्रोग्राम हिंदी गीतों का था | श्लोक और मुझे बारी बारी उन गीतों से लोगों का परिचय कराना था |
कभी शेरों का सहारा था, कभी चुटकुलों का तो कभी महज़ कुछ अच्छी सी बात बोल कर उन गीतों को हम शुरू कर देते थे |

प्रोग्राम के एक हिस्से में एक डॉक्टर भी आयीं थीं | मेरी तरह उनका भी पहला दिन था रेडियो पर | हम दोनों ही बहुत एक्साईटेड थे |कभी कभी लोग कॉल भी कर रहे थे अगर उन्हें कोई फरमाईश देनी हो या डॉक्टर से कोई सवाल हो या कोई भी बात करनी हो |

प्रोग्राम कब ख़तम हो गया, पता ही नहीं चला |दो घंटे जैसे मिनटों में उड़ गए |

शो के बीच में किसी ने कॉल कर के कहा की मेरी आवाज़ उन्हें बहुत अच्छी लगी | मुझे सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई|

शुक्रिया कह कर जब मैं अपने काम को ड्राईव कर थी तो लग रहा था कितना अच्छा होता जो मुझे यहीं काम मिल जाता | कम पैसे मिलें तब भी में यहाँ काम करने को तैयार हूँ | कितनी ख़ुशी होगी न अपने पसंदीदा काम में ही काम करने में| है न?

लेकिन यहाँ कोई ऐसा काम नहीं है |
तो कहानी का सार यही है की अपनी रोज़ी रोटी इसको आप नहीं बना सकते हैं |
लेकिन हाँ अगर रोज़ी रोटी का जुगाड़ आप कर चुके हैं तो उसके साथ आप इसे कर सकते हैं, शौकिया तौर पर |

पर मैं तो इसी में खुश थी मुझे एक मौक़ा मिला इस बढ़ते हुए सैलाब का एक हिस्सा बनने का|

अब देखो किस्मत क्या खेल दिखाए .....

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अमरीका में आकाश वाणी भाग १

कई साल पहले टेक्सास से वापस आते हुए मन में ख्याल आया था की कितना अच्छा होता अगर बे एरिया का भी अपना रेडियो स्टेशन होता | उस वक़्त टेक्सास में मैं "सलाम नमस्ते " - चौबीस घंटे वाला इंडियन रेडियो स्टेशन -सुन कर बहुत खुश हुयी थी|
बरसों बाद जब सुना की के.एल. ओ. के का एक नया रेडियो सेण्टर बे एरिया में खुलने जा रहा है तो मन ख़ुशी से झूम उठा|
फोन घुमाया, ईमेल किया की कुछ घंटों के लीज़ के लिए के लिए यह सेण्टर कितना चार्ज कर रही है |
दाम सुन कर सारे हौसले पस्त हो गए|

पता चला की आम तौर पर एक घंटे के लिए तीन सौ डॉलर से पांच सौ तक रेट हो सकता है|
ड्राइव टाइम यानी की जब लोग अपनी गाड़ियों में आते जाते हैं उस वक़्त रेट बढ़ कर पांच सौ या उस से भी अधिक हो जाता है|

तो फिर शो के पैसे कहाँ से आयेंगे ??? क्या इश्तेहारों और गेस्ट स्पीकर लोगों से इतना बन जायेगा |
और फिर एक फुल टाइम जॉब और फॅमिली की जिम्मेदारियों के साथ मुझे लगता नहीं की मैं इतने एड्स की मार्केटिंग कर पाऊंगी|
तो फिर मैं यही कर सकती हूँ की अगर किसी प्रोग्राम मैं हेल्प कर सकूं तो शायद उनकी कुछ मदद हो जाएगी और मेरा शौक़ भी पूरा हो जायेगा .... शायद ....

चलो, फिर मैंने सभी प्रोग्रामों को सुनना शुरू किया | मुझे इनमें से एक शो बहुत ही अच्छा लगा - "ख़ुशी सवेरे की" | लेकिन मुझे लगा की अगर शो और उसके होस्ट इतने माहिर हैं तो वो मुझे साथ क्यों लेंगे | मैं रुक गयी|

फिर मुझे बे एरिया में एक बहुत बड़ा टलेंट कांटेस्ट के आयोजन का मौका मिला | इसी इवेंट के प्रोमो के लिए मुझे अपने प्रिय रेडियो शो के होस्ट एवं उनकी फॅमिली से मिलने का मौक़ा मिला |हमारी इवेंट में बहुत सारे भाग लेने वाले लोग रेडियो पर सुन कर ही आये थे |

फर्स्ट लेस्सन - पहली सीख - मीडिया के पॉवर को कभी कम नहीं समझो | एक ही झटके में कितने सारे लोगों तक आपकी बात पहुँचती है | ये आप पर निर्भर है की आप अपनी ज़िम्मेदारी किस तरह से निभाते हैं | आप इसे हलके तरह से लेकर - सिर्फ 'फन' कह सकते हैं या इसके ज़रिये बड़े बड़े काम कर सकते हैं... जिसे लोगों का भला हो...

चलिए कहानी आगे सुनते हैं |

ज़िन्दगी चलती रही | इतनी हिम्मत नहीं हो पा रही थी की कदम बढ़ा कर रेडियो पर कुछ करा जाए|

डर डर के एक दिन ईमेल कर ही दिया, अपने फेवरेट शो के होस्ट से, की अगर हम भी आपके शो में कुछ मदद कर सकें तो हमें बड़ी ख़ुशी होगी|

कुछ दिनों तक जब कोई जवाब नहीं आया तो बात आई गयी सी हो गयी | चलो , हमने कोशिश तो की...

एक दिन इतवार को मेरे ईमेल का जवाब आया .... "हमें इस नंबर पर कॉल करें जल्दी..." ... अरे वाह ! मौका मिलते ही हमने नंबर घुमाया....

"दरअसल बात ये है की हम अपने श्रोताओं में से एक को चुनते हैं कुछ स्पेशल दिनों में हमारे शो में आने के लिए.. क्या आप कल हमारे साथ शो को एंकर करना चाहेंगी ?..." श्लोक, ("ख़ुशी सवेरे की" के करता धर्ता) और उसके होस्ट , खुद मुझसे बात कर रहे थे |

मुझे यकीन नहीं हो रहा था ... आई मीन ... अरे यार !...कल मेरा बर्डे था | शायद मेरे साथ कोई मज़ाक हो रहा है या शायद मेरे हसबेंड ने ये सब अरेंज किया है मुझे खुश करने के लिए |
मैं कई दिन से राज जी से भी बात कर रही थी की चलिए कुछ करते हैं... क्या उन्होंने ये सब करवाया है |
ऐसे कैसे हो सकता है , ठीक मेरे बर्डे के दिन मुझे उस काम के लिए बुलाया जा रहा है , जिसको करने की मेरी तमन्ना आज की नहीं ... बरसों की है |
चलो देखते हैं..

"ऑफ़ कोर्स .. मैं ज़रूर आना चाहूंगी आपके शो में कल .... और प्लीज़ बताइए अगर कोई तैयारी करने की ज़रुरत है..." मैंने पूछा |
"अगर लेकर कर आ सकें तो एक बिलकुल खुली सोच - एक ओपन माईंड लेकर कर आइयेगा " हँसते हुए श्लोक ने कहा |

शुक्रिया कहकर जैसे ही मैंने आई फ़ोन को बंद किया , मेरे पैर धरती पर तो पड़ ही नहीं रहे थे |

मैंने अपने पति को फटाफट फोन मिलाया और बताया जो अभी अभी हुआ था | मुझे लगा की अगर उन्होंने ये सब खुद अरेंज किया है तो शायद हंस देंगे और मुझे पता चल जायेगा |

लेकिन उनकी बातें और आव भाव से यूं लगा की उन्हें भी उतना ही आश्चर्य हुआ है जितना की मुझे हुआ था !

अब बस रात काटनी बाकी थी | कब सुबह हो और मैं देखूं की आखिर रेडियो स्टेशन में होता क्या है॥ आखिर कैसा होगा वो मंच जहाँ से लोग इतने प्यारे प्यारे गीत बजाते हैं ... बड़े बड़े लोगों से बात करते हैं... खूब मजाक- मस्ती भी करते हैं.... आखिर कैसा होगा .....

पूरी रात मुझे नींद नहीं आई ... हर आधे घंटे बाद मुझे लगा ... क्या सुबह हो गयी..... अरे अभी तो सिर्फ ढाई बजे हैं...

चलो, सुबह आखिरकार आ हो गयी |
घर के सभी काम निपटा कर , इनके और बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करके मैं खुद रेडी हो गयी जाने के लिए उस जगह पर जिसे देखने की ख्वाहिश हिलोरें ले रही थी |

घर से निकलने ही वाली थी की पीछे से आवाज़ आई | मैंने मुड कर देखा |

"हेप्पी बर्डे टू यू ! हेप्पी बर्डे टू यू ...... " अरे yaar ! मैं तो अपना जनम दिन भूल गयी थी |

उस परम पिता ने साल गिरह पर ही मुझे इतना अच्छा तोहफा जो दिया था .....

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आगे की कहानी पढ़िए भाग दो में .....