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Thursday, October 9, 2008

फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी !-मौसी_सीरीज़-२

"क्या करें मौसी ? आधे घंटे से पार्किंग ही नहीं मिल रही , उधर सगाई का मुहूर्त निकला जा रहा है ," मैंने बड़ी कातरता से पूछा|
"ये मुआ पार्किंग -शार्किंग तो अपने यहाँ नहीं होता | तेरे मौसाजी तो जहाँ कहीं गाडी खड़ी कर देते हैं और हम तो ऐसे ही चल देते हैं | यहाँ तो हर बात का बड़ा चक्कर है | हाँ..... अमरीका है भई ! " मौसी तो हर बात का दोषी अमरीका को ही मान लेती है | यहाँ तक की कहती हैं उनकी कमर का दर्द भी अम्रीका में ही हुआ है , इंडिया में तो भली चंगी थीं !

"अनिवेज़ , मौसी मैं आपको होटल के सामने ड्रॉप कर दूँगी | आप और मौसाजी उतर जाना | मैं कहीं दूर पार्क कर दूँगी | और मैं अपने आप आ जाऊंगी | फिर आपको देर नहीं होगी और ज़्यादा चलना भी नहीं पड़ेगा |" मैंने समझदारी दिखानी चाही |
" अरी मैं वारी जाऊं ... दिखता नहीं यहाँ इतने मुष्टंडे घूम रहे हैं | तुझे अकेली कैसे छोड़ दूँ | ज़माना अच्छा नहीं है और इतनी महंगी साड़ी और जेवर पहने है | कहीं कुछ हो गया तो .... चल चल , हम दो क़दम चल लेंगे तो पाँव नहीं टूट जायेंगे ..साथ आए हैं तो साथ ही जायेंगे... हाँ !" मौसी तुनक कर बोलीं |
सुनकर जी भर गया | आज मैं तीन बच्चों की माँ हूँ , रोज़ सौ से ज़्यादा मील ड्राइव कर के काम को जाती हूँ | लाखों तरह के लोगों से मिलती हूँ, और मौसी को आज भी मेरी वही चिंता है जो तब थी जब मैं अनब्याही थी | वाह ! ये बड़े बूढे भी कैसे होते हैं ! कभी बच्चों को बड़ा नहीं होने देते | वैसे बड़ा बनना भी कौन चाहता है !

चलो, एक जगह मिल गई और गाड़ी वहां खड़ी कर हम भागे भागे बार पहुंचे | जाने राजू ने सगाई एक बार में क्यों रखी थी | कितने अच्छे इंडियन रेस्तरां हैं, शायद सोचा होगा की क्या जगह दोनों घरों के लोगों को रास आएगी और अंत में एक बार चुना होगा | सही है , वो भारतीय हो या अंग्रेज, मय तो हरेक को भाती है | अब प्रॉब्लम ये था की मौसा, मौसी, मैं , मेरे "ये ", ईस्ट कोस्ट से आई मेरी मौसेरी दीदी, भैया और हम सबके बच्चे , इनमें से कोई भी "पीता" नहीं है | तो अब हम बार में क्या करें ? चलो, हमें तो समारोह से मतलब है, खाना पीना तो चलता रहता है |

हाइब्रिड सगाई थी यानी की दो कल्चर का कुलचा बनना था तो किसी को पता नहीं था की ऊंट किस और मुड़ेगा | चलो, देखते हैं ! रोजी के परिवार के सब सदस्यों से उसने हमें मिलाया - अंकल जौन, आंटी सामंथा, अंकल समूअल , और जाने कितने ही नाम उसने बताये होंगे | पर पहली ही बार में किसको इतने नाम याद हो सकते हैं | बस सब को देख कर मुस्कुरा ही सकते हैं और हें हें हें कर हंस सकते हैं | पर अगर पहचान ना हो तो कोई कितनी देर तक दांत दिखा सकता है | आख़िर थक कर किसी कोने में बैठ जाएगा | हमने भी ऐसा ही किया | हमारा समूचा कुटुंब एक हिस्से में पसर के बैठ गया | सब बच्चे बाहर बड़ी भाभी के साथ, लौंज में खेल रहे थे | शुकर है, अभी से उन्हें बार दिखाना सही नहीं है |
आरम्भ में लोगों के तीन गुट साफ़ दिख रहे थे | भारतीय वेश भूषा में सजे धजे हम थे - राजू के घरवाले , अंग्रेज़ी वस्त्र में चमक रहे थे रोजी के परिवार वाले और सबसे मज़े की बात है की सारे मेहमान जिनमें अधिकाँश भारतीय थे , सब ऐसे कपडों में आए थे जैसे हवाई में पिकनिक मना रहे हों | ओबामा और मकैन के दो गुटों के बीच झूलते ये वो "swing voters" से लग रहे थे | राजू के दोस्त थे - सभी लगभग उसी की उम्र के थे | सब के हाथों में गिलास था - औरत , मर्द , सब बराबर थे यहाँ |

लगा की ऐसे अलग द्वीप सा नहीं रहना चाहिए | जब इनसे रिश्ता होने जा रहा है तो सब से मिलना चाहिए | तो जाकर अंकल जौन को मैंने हेलो कहा | उनसे काफी देर बात हुई | बहुत अच्छा लगा सोच कर की अब हमारा परिवार इंटरनॅशनल हो गया है ! लेकिन हर 'हेप्पीनेस' कि एक कीमत होता है | खुशी को भी मुंह दिखाई तो देनी ही पड़ती है .....

अंकल जौन से बात हो ही रही थी कि उनका सेल फ़ोन बज उठा और वो 'एक्सयूज़ मी' कह कर बाहर चले गए | और खाली चेयर देख कर एक बन्दा जो पता नहीं रोजी का क्या लगता था , आकर बैठ गया |
"इंडियन वीमन आर वैरी प्रिटी " उसने कहा | मुस्कुरा कर मैंने उसके बात का समर्थन किया |
"but there is a lot of poverty in India...." उसकी इस बात पर मेरी मुस्कान रुक गई और साथ में मेरा समर्थन भी |
इससे पहले कि मैं जवाब देती राजू का एक दोस्त कह उठा -"येस् सर, यू आर राइट , it is just bad out there ..."

मैं हैरान थी कि कोई भारतीय जो कि भारत में ही पला बढ़ा है कैसे इस तरह से कह सकता है | मुझे उस अंग्रेज पे कतई रोष नहीं था जिसने ये मुद्दा उठाया पर उस सूडो अंग्रेज पर बहुत गुस्सा आ रहा था |
"पर आपकी परवरिश में उस देश का बहुत बड़ा योगदान है जनाब , ये आप कैसे भूल जाते हैं | मानती हूँ मुश्किलें हैं , हर देश में होती हैं , पर माँ कि खामियों से माँ को गन्दा नहीं कहते... माँ तो माँ होती है ..." मैंने उन्हें कहा |
"अगर आप इतनी बड़ी देश भक्त हैं तो यहाँ क्या कर रही हैं , जाइये न वापस | These indians are so hypocrite....so.." उसे अपनी बात ख़तम करने को शब्द नहीं मिल रहे थे |
"These indians..." शब्द जैसे मेरे मन में प्रतिध्वनि कर रहे थे ..
और वो अंग्रेज़ जिसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, अपनी बुधिमत्ता दिखाने को बोल पड़ा -
"..and it is very hot too... I am wondering if I should go to India for Rosy's wedding. We have been trying to plan another wedding here once they come back. I don't see a reason to go such a distance just for a ceremony. "

"actually... " इससे पहले कि में उसका एक सटीक जवाब दे पाती, मौसी की पुकार ने ध्यान बदल दिया |
"गुडिया , ज़रा आना , देख बेटा , मेरा एक ही बेटा है, और मुझे ये माहौल ज़रा भी सगाई सा नहीं लग रहा | कहाँ तो मैं खीर पूडी सारे गाँव में बांटती , गरीबों को ढेर सारा समान दान करती , गाना गाती - खूब नाचती .. यहाँ ना ही ढोलक है न बाजा, ये क्या सगाई हुई , अब क्या फोटो लेकर जाऊंगी और क्या लोगों को दिखाऊंगी ? "

"अरे मौसी खीर पूडी आज घर में करेंगे और आपकी नाच गाने कि तमन्ना तो अभी पूरी होती है " मैंने मौसी का दिल रखने को कह तो दिया पर इस अंग्रेज़ वातावरण में अपने ही देश के लोगों को - मुझे अपनी ही भाषा का गीत गाने का अनुरोध करने में बहुत डर लग रहा था | फिर लगा कि ऐसे कोई नहीं आएगा , पहले ख़ुद मुर्गा बनना पड़ेगा ..

इतने बड़े बार के हॉल के बीच खड़े होकर मैंने एक बार माता का ध्यान किया कि माँ इज्ज़त रख लेना फिर ज़ोर से सबको कहा - लेडिस एंड जेन्तल्मेन ! आज मैं अपने भैया- भाभी कि सगाई पर एक गीत गाना चाहती हूँ | अगर आपमें से किसीको यह गीत आता हो तो आप मेरा साथ दे सकते हैं |
भीड़ ने ज़ोर कि ताली से मेरा स्वागत किया |

"वाह वाह रामजी ..........जोड़ी क्या बनाई ......भैया और भाभी को बधाई हो बधाई "
एक बार लगा कि वाकई बिना किसी बाजे गाजे के मेरी आवाज़ बहुत नीरस लग रही है | कोई साथ भी नहीं दे रहा |
एक बार तो मेरे होंट कंपकंपा से गए ...
"सब रस्मों से बड़ी है जग में दिल से दिल कि सगाई ...."
पल्लू कमर में खोंसती हुई मेरी मौसी आयीं मेरा साथ देने के लिए | मौसी सिर्फ़ गाना ही नहीं गा रही थीं बड़े ही सुंदर ढंग से उस पर नाच भी रहीं थीं !

ओह ! सिर्फ़ एक साथ , एक हाथ भर से ही कितना बढ़ जाता है साहस , कितनी बढ़ जाती है हिम्मत ! अब तो सोच लिया बस कि चाहे जो हो गाना तो पूरा करना है | अब सारे हॉल में बहुत चुप्पी छा गई थी | तभी किसीने गिलासों पर चमचों से बहुत ही प्यारी ध्वनि का इजाद किया जो कि गीत पर बहुत जच रहा था | किसी ओर से किसीने टेबल पर ही तबला बजाना शुरू कर दिया था | तो अब तो भैया हमारे साथ सब साज जुड़ गए थे | और तो और वो सभी परकटी सूडो भारतीय लड़कियां भी धुन में हमारे साथ शुरू हो गयीं | गीत अब पूरी भी मस्ती पर आ गया था ...

"सुनो भाभी जी अजी आपके लिए , मेरे भैया ने बड़े तप हैं किए ..." मैंने रोजी को आँख मारते हुए कहा |
सोचा कि इन्हें क्या समझ आएगा ?
तपाक से रोजी बोली- ""रियली ?"

सारी जनता में जोरदार ठहाका गूँज उठा | चाहे रोजी गीत ना समझे पर वो मेरे भाव समझ रही थी !
और वो ही नहीं वहां आए सब अंग्रेज़ संगीत में छुपे इस प्यार को सुन पा रहे थे | शायद इसिलए वे सब धीरे धीरे अपने कुर्सियों से उठ कर हमारे साथ नाचने कि कोशिश कर रहे थे .....

गीत के ख़तम होते ही "वंस मोर , वंस मोर " से हॉल गूँज उठा |

मुझे मनचाहा वरदान मिला जैसे |
कब से उस सूडो को कुछ कि मैं कोशिश कर रही थी | और अब मेरे साथ ये सारे लोग उसे ये सुनाने से नहीं चूकेंगे -
मैंने गीत शुरू किया
"जहाँ पाँव में पायल , हाथों में कंगन , हो माथे पर बिंदिया ...." और जैसे मेरी आवाज़ भीड़ की आवाज़ में खो ही गई ..
"It happens only in India ! It happens only in India ! It happens only in India ! "

एक के बाद एक जाने कितने ही गीत हमने उस दिन गाये होंगे , जाने कितनी ही देर हम सब वहां नाचते रहे...जाने कितनी देर ....

पता नहीं ये नशा शराब का था , शाम का था या अपनों कि याद का था पर उस दिन उस अंग्रेज़ी बार में हर दिल झूम रहा था , गा रहा था और नाच रहा था |
और हाँ , वो अंग्रेज़ जो भारत कि "poverty" को लेकर बहुत परेशान था बाहर जाता जाता मुझसे पूछ गया - "Do you always have music and dance like this.... in your special occasions .... in those colorful dresses ?"
"well, usually not like this..............only much better !" मैंने हँसते हुए कहा |
"then I think I want to go for Rosy's marriage to India" वह बड़े ही एन्थु में बोल रहा था |

मेरी आँखें अब भी उस सूडो को ढूंढ रही थी | लग रहा था जैसे अब भी कुछ कहना बाकी है... पर वो अब वहां नहीं था ...मैं आज भी उसे ढूंढ रही हूँ | अगर कहीं वो दिख जाए तो उसे मेरी ओर से आप ज़रूर कह दीजियेगा -
(क्या कहा आप उसे पहचानेंगे कैसे - बहुत आसान है - एक वही है जो स्वयं भारतीय होकर भी कहेगा - ओह ! These indians.... बस वही है ...)..
तो उससे कहियेगा ..किसी अर्चना ने कहा था-

आज जो परदेस में इतराये जा रहे हैं,
निज देस भूल पर के गीत गाये जा रहे हैं..
पर पूछ लें जो हम इन्हें किसने दिए थे पर, जिसे
वो थाम के आकाश में लहराए जा रहे हैं ?

हम धूल हैं, वो हमको ये बताये जा रहे हैं,
अपनी ही तान , ख़ुद कि राग गाये जा रहे हैं,
न है कोई खुशी में , और न गम में कोई साथ है,
ख़ुद की पीठ अब वो थपथपाए जा रहे हैं ....


आपकी,
अर्चना

Tuesday, September 30, 2008

छोटी छोटी बातों की है यादें बड़ी !-मौसी_सीरीज़-१

बड़ी खलबली मची है | हर तरफ़ कुछ न कुछ बिखरा है .. किसी का शर्ट प्रेस नहीं है तो किसी की बिंदी नहीं मिल रही | कभी कोई बच्चा रो रहा है तो किसी ओर हँसी के ठहाके सुने दे रहे हैं | बिल्कुल इंडिया की तरह लग रहा है | आज घर - एक घर की तरह लग रहा है ....

पर मौसी हैं की कोई फिकर नहीं है की क्या पहनेंगी ? बस सुबह से किचेन में लगी हैं, जाने क्या कर रही हैं | अरे यार , चलो मैं उन्हें तैयार करवाती हूँ , अभी एक घंटे में निकलना है ना | कहीं देर ना हो जाए | यहाँ तो इवेंट्स के टाइम बुक होते हैं तो बस वही टाइम मिलता है , उसे और खींच नहीं सकते | यहाँ वक्त के सब पाबन्द हैं | हम कभी ये सीख नहीं पाये , यहाँ दस साल रहने के बाद भी नहीं.. नागरिक बन गए तो क्या ...खून तो ओरिजनल है !

मौसी प्याज़ काट रही थीं , आँसू टप टप बहते ही जा रहे थे ...
"अरे रे मौसी जी ! लोग तो बेटी के ब्याह पर नैन भिगोते हैं , और आप तो बेटे की सगाई पर सेंटी हो रहे हो | क्या मौसी ?" मैंने मज़ाक में कहा |
"क्या बेटा और क्या बेटी अब तो सब समान है , गुडिया " उनका बड़ा उखडा उखडा सा जवाब था |
मुझे लगा की ये आँसू प्याज़ के नहीं हैं, किसी राज़ के हैं | वक्त नहीं था कुछ कहने सुनने के लिए | पर लगा ज़रूरी है सुनना - जो ये कहना चाहती हैं | अभी तक सब कुछ कितना जल्दी हो गया था |

कुछ दिनों पहले मौसी आयीं यहाँ , राजू की शादी तय करने | साथ लायीं ढेर सारी विवाह योग्य कन्याओं के फोटो और कुंडली | लगता था मौसी ने कोई matrimony की वेबसाइट नहीं छोड़ी थी , सब छान छान के अपने आई आई टी , आई आई एम् पास बेटे के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते ले कर आई थीं | मैंने भी अपने सर्कल के सभी लड़कयों से राजू का इंट्रो तो करा ही दिया था | पर राजू था की जैसे दुनिया से उसे कोई लेना देना नहीं था | एक ही शहर में रहकर भी वो कई महीनों से कभी हमसे मिलने नहीं आता था | मैं उससे मिलना चाहती तो काम का बहाना कर के टाल देता था | हाँ ! आज कल के लड़के अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं भई ! और वो भी अमेरिका में हैं तो बल्ले बल्ले !

छ न न ना ..........मौसी कटे प्याज़ का गरम तेल में छौंका लगा रही थीं |
"अच्छा सोचते हैं मौसी , आज के दिन तो और अच्छा सोचते हैं , देखो न कितनी अच्छी लड़की मिली है राजू को , हम आप ढूंढ के भी इतनी अच्छी नहीं ला सकते थे, उसके लिए, है नहीं क्या?" मैंने कहा |
"नहीं बेटा , मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है | देख ना, लड़की इंडियन नहीं गोरी है , क्रिस्तान है , पता नहीं ये ब्रह्मण का बेटा कैसे .... इसको ... चलो इसको भी अगर मैं भूल जाऊं ...पर साथ साथ रह रहे हैं इतने महीनों से .....और कभी बताया भी नहीं इसने ...कैसे .... कैसे अपनी माँ से कोई इस तरह कर सकता है (मौसी आँचल से आँख पोंछते हुए बोलीं )... इतना किया है ...एक ही तो बेटा है ... मैं वापस जाकर सबसे क्या कहूँगी ? इसने तो...इसने ...तो.. " मौसी का गला बहुत रुंध रहा था , रुक रहा था |
"इस.. ने ... तो .... बेटा .... मेरी नाक कटा दी... बेटा... मैं क्या करुँ, अब वापस नहीं जा पाऊंगी...मैं क्या मुंह लेकर जा... ऊँगी..ऊऊंंऊऊंं ऊऊंं " मौसी संभाल नहीं पायीं | घर में लोग थे, इस कारण ज़ोर से नहीं रो पा रहीं थीं |
"अरे मौसी किस ज़माने में रह रही हो , आजकल ज़माना बदल रहा है , देखो ये देस विदेस का चक्कर मन से निकाल दो , लड़की देखो तुम, कितना पढ़ी लिखी है , समझदार है , तुम तो भाग्य शाली हो , ज़रूर कोई पुण्य किया होगा जो ऐसी बहू पा रही हो " मैंने उनको हिम्मत देने की कोशिश की |
"गुडिया , हमें कौनसा उनके साथ रहना है , जो चाहें करें , पर मेरे बेटे के हमेशा साथ रहेगी , इसकी वो गारंटी देगी मुझे " मौसी आँख पोंछते हुए पूछीं |
"अच्छा आप ये बताओ मौसी, कि आज कि कोई इंडियन लड़की क्या ये गारंटी दे सकती है ? मौसी मैंने यहीं, अपने आंखों के सामने कितने ही इंडियन लोगों को डिवोर्स लेते देखा है | वो तो आपकी किस्मत है मौसी और आपका विश्वास "
"मैं तो सह लूंगी गुड्डो पर तेरे मौसा जी , और ये देखो इन दोनों को - चल रोजी तो नहीं जानती हमारे संस्कार पर राजू भी... तूने देखा ना कैसे कमर पकड़ पकड़ के चलते हैं , सब के सामने चूमा चाटी करते शर्म नहीं आती इन लम्पटों को ... मेरा तो जी बहुत घबरा रहा है बेटा ..सुबह से दुर्गा चालीसा पढ़ चुकी हूँ कितनी बार पर मन है कि बार बार उथल पुथल हो रहा है , क्या करुँ बेटा , तू ही बता .." मौसीजी कडचि ज़ोर ज़ोर से कढाई पर चला रही थीं | लग रहा था सारा गुस्सा सब्जी पर निकाल रही हैं |
"कुछ मत सोचो मौसी , बस राम का नाम लो और सब उस पर छोड़ दो , देखना सब अच्छा होगा, जब हम सब कुछ अपने आप करना चाहते हैं ना मौसी तो ना होने पर कष्ठ होता है | अरे ! कुछ उसके लिए छोड़ कर देखो , देखना फिर कैसे सब फिट फटांग होता है ! " आँख मारते हुए मैंने मौसी से कहा | "और फिलहाल तो आप तैयार हो जाओ | ये लो आपकी साड़ी मैंने निकाल दी है | इसे पहन लों | अरे, हमारी मौसी भी तो मुंडे दी माँ लगनी चाहिए | बाकी लोग जो पहनें , सो पहनें - कि फर्क पैंदा है ? अरे मौसी , इन गोरों को भी तो पता चले हमारी मौसी का जलवा !" मैंने उनको ज़रा हल्का फील कराने कि कोशिश में कहा |
"चल हट ! ज़रा देखती हूँ राजू ने शेरवानी पहनी या नहीं ... ये लड़का भी न ...."
मौसी साड़ी लेकर , मुंह पोंछते हुए , कुछ बुदबुदाते हुए चल पड़ी |
"गुडिया , सब्जी को देख लेना " पीछे से मौसी बोलती गयीं |
"हाँ मौसी सब्जी को कहीं नहीं जाना है , पर आप ....... " मेरी बात अब कोई नहीं सुन रहा था |

समय भी कैसे कैसे खेल खेलता है , कभी आगे ले जाता है और कभी बहुत पीछे .....


मुन्नी अभी अभी इंजीनियरिंग करके वापस घर आई थी | मम्मी पापा रिश्ते की खोज में थे | खाना खाकर सब बैठे ही थे की नर्मदा मौसी ने अपना पिटारा खोल दिया |
"सुन लीजिये भाई साहब , इससे अच्छा रिश्ता आपको नहीं मिलेगा " मौसी अपनी जिद पर अडी थीं |
"पर निम्मो तुम देखो ना ये रिश्ता अपनी मुन्नी को जचता नहीं है , हाँ थोडी सांवली है हमारी ..." पापा की बात काटते हुए मौसी गरजीं - "अजी हाँ ! बेटी को तो आप सर पर बैठा कर रखिये | घर पर बैठी रहेगी तो आपका ही नाम ख़राब होगा जीजाजी , मुझे क्या है , ज़रा आप सोचिये , रंग काला है , और उस पर इंजीनियरिंग , उमर वैसे भी हो गई है , कौन लेगा इसको , मैं तो कहती हूँ भाई साहब , काम ख़तम कीजिये और गंगा नहाइए , अभी एक और है ब्याहने को, ये जाए तो दूसरी को सोचो, क्या कहते हो ? बात आगे करुँ? " मौसी तो जैसे अपनी जीत सोच कर ही आई थीं |
"रुको ज़रा मुन्नी से पूछते हैं , फिर बताएँगे , तुम थोड़ा आराम कर लो निम्मो " पापा ने बड़ी स्थिरता से कहा |
"भाई साहब ! जब तक दीदी कि दो जवान बेटियाँ घर पे है कहाँ आराम मिलता है | छोटी तब भी निकल जायेगी - रंग चिट्टा है और लम्बाई भी खूब है, चिंता है तो मुझे इस कालो रानी कि है ... " मौसी को अपने ही मज़ाक पर हंसने कि आदत है |

शाम को मुन्नी लगी हुई थी -शायद कुछ फॉर्म भर रही थी |
"बेटा , ये निम्मो मौसी कोई रिश्ता लेकर आई है , सुना तुमने ? लड़का अच्छे घर का है - इंजिनियर है " पापा ने बड़े प्यार से मुन्नी से पूछा|
"पर पापा वो एक नम्बर का गधा है | डोनेशन कॉलेज से पढ़ा हुआ | एक बात पूछो तो नहीं आता | उसका दिमाग काम ही नही करता पापा | किसी भी रिश्ते में आदर का होना बहुत ज़रूरी है पापा, है न ?" मुन्नी ने बड़ी सादगी से पूछा |
"ये बात तो सही है बेटा पर कुछ तो हमें भी एडजस्ट करना होगा , देखो तुम टोपर हो अपने क्लास में - तो हर एक का दिमाग एक सा नहीं होता न बेटा , फिर अपनी बिरादरी का पढ़ा लिखा लड़का मिलना भी मुश्किल है | अगर तुम्हारे कोलेज का कोई तुम्हे पसंद हो तो तुम मुझे बता सकती हो " पापा दुनियादारी समझा रहे थे |
"नहीं पापा ऐसी बात नहीं है , आप मुझे जानते हैं , फिर ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? और ऐसा कहाँ लिखा है की बिरादरी में ही शादी करनी है ..बताइए " मुन्नी को ऐसी बात करते बड़ी शर्म आ रही थी |

कुछ समय बड़ी खामोशी थी उस कमरे में | बज रहा था तो बस वो पुराना पंखा जो हवा से ज़्यादा आवाज़ देता था |

"पापा , मेरा रंग काला क्यों है ? " एक बहुत ही अनदेखा सा सवाल पूछा मुन्नी ने |
"मम्मी तो गोरी हैं , रूपा भी गोरी है फिर मुझे आपने काला क्यों बनाया , पापा " मुन्नी की आंखों के कोने से कुछ चमक चमक कर दिख रहा था पर बाहर आते शायद डर रहा था |
"नहीं बेटा देखो जब इश्वर काला रंग देता है न तो वो उसमे कला भी छुपा कर दे देता है | हम सब काला रंग तो देखते हैं पर जो उस काला में कला देख लेगा न बेटा बस उसी के साथ आपको हम भेजेंगे | आप MBA के सारे फॉर्म देख कर भरना | हम निम्मो मौसी को "ना" कर देते हैं | और हमें पता है कि आपको किसी अच्छे बी-स्कूल में दाखिला ज़रूर मिलेगा " पापा ने मुन्नी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा |
.......................................

"अर्चना , कहाँ हो ? मैं आधे लोगों को ले जाता हूँ | तुम बाकी लोगों को अपनी गाड़ी में ले आना | सन फ्रांसिस्को में ट्रैफिक होगा | जल्दी निकलना | गराज से इन्होने मुझे आवाज़ लगायी तो मैं भूत से वर्तमान में आ गई | देखा मौसी अपनी साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थीं | बड़ी सुंदर लग रही थीं | मौसा जी भी कुरते में जच रहे थे |

"गुडिया आज तेरे साथ दुःख बाँट कर दिल हल्का हो गया " मौसी अब मुस्कुरा रही थीं |

बहुत अच्छा हुआ मौसी , रोना बहुत अच्छा होता है , सब दुःख बह जाते हैं, और अगर कोई साथ हो तो फिर शक्ति मिलती है, हौसला बढ़ता है | पर हर इंसान इतना भाग्यशाली नहीं होता निम्मो मौसी | किसी दिन मुन्नी , आपकी गुडिया, भी बहुत रोई थी मौसी , आपसे छुप कर | हाँ आज आप अपने किस्मत के रंग को नहीं बदल पा रहीं ,तब मुन्नी भी अपने रंग को नहीं बदल पा रही थी | पर मौसी , आज आप बहुत खुश होंगी ना, आपकी इकलौती बहू गोरी जो है .....