आज सोनी का जन्म दिन है | मुझे अच्छे से याद है | कैसे भूल सकती हूँ | हॉस्टल में उसे मेरे हाथ की बनी केक सबसे अच्छी लगती थी | किसी को नहीं देती थी | अकेले सारा का सारा खा लेती थी !
आज इतवार है | पता नहीं अभी उठी होगी की नहीं ..
"हे, सोनी, मैं हूँ ... उठ गई तुम ?" फ़ोन के उठते ही मैंने पूछा |
"एक मिनट , देता हूँ में ...हनी , योर्स ....." डिब्बे (उसका दोस्त जिसे मैं डिब्बा कहती हूँ ) की आवाज़ सुन कर मैं चौंक गई !
"हाय आर्ची ! कैसी हो? और सुनाओ ..." जिसको आवाज़ सुनने को मैं तरस रही थी अब उसकी आवाज़ सुन इतना गुस्सा आ रहा था ...
"ये क्या है सोनी, फिर तुम... क्यों ? .. नहीं यार .. मत करो..सब जान कर भी ... कैसे तुम ऐसे कर सकती हो .. " मेरा सवाल जैसे अटक रहा था | क्या पूछूं और कैसे ?
".......... ये डिब्बा तुम्हारे घर क्या कर रहा है ? " एक ही साँस में मैंने पूछ डाला |
"भजन -कीर्तन करने आया था ,और हाँ उसका नाम ऋषभ है ,डिब्बा नहीं !" सोनी ने चुटकी मारते हुए कहा | और ठहाके मार के हंसने लगी |
"ऐसे क्यों जवाब करती हो " रुआंसे भाव से मैंने कहा|
"और क्या कहूँ , तुम सवाल ही ऐसे करती हो | जब जानती हो तो पूछती क्यों हो .... मेरे मुंह से सुनने के लिए ... हाँ सोनी ये करती है .. सोनी वो करती है ... मैं भी इंसान हूँ, कोई मशीन नहीं.. हरेक की कुछ ज़रूरतें होती हैं .... बरडे गिफ्ट था मेरा ... ओ माय गोड ! इट वास सो कूल !" सोनी कहे जा रही थी और जाने किस कान से मैं सुने जा रही थी |
"यार जीवन तो ख़राब कर रही हो, अपना नाम पर दाग मत लगने दो | कल तुम्हें इस बात का अफ़सोस होगा ... बहुत अफ़सोस ... तुम्हारा भला चाहती हूँ | कहना फ़र्ज़ था , आगे तुम्हारी मर्ज़ी ..." शब्दों को फेंकते हुए मैंने कहा | बड़ी कोशिश कर रही थी की अपनी झुन्झुलाहट को ज़ाहिर न होने दूँ | पर उस पर मिठास की परत चढा नहीं पा रही थी | उसे अपना जो मानती थी और अपनी चीज़ का नुक्सान किसे अच्छा लगता है ?
"अच्छा सुन आर्ची आज मेरी पार्टी में तुझे आना आना है | बस तू , मैं और ऋषभ, कैसा रहेगा ? लंच 'अम्बर' में, मुझे वहां बहुत मज़ा आता है | देख आज मेरा जन्म दिन है , मेरी खुशी के लिए ही आजा, प्लीज़ !" उसने बड़े प्यार से कहा |
जी कर रहा था कह दूँ डिब्बे के साथ मैं खाने पे आऊँ , ऐसे बुरे दिन मेरे नहीं हैं ! पर आज उसका ख़ास दिन है और मुझे पता है अगर मैं न जाऊं तो वो दुखी होगी जो ग़लत होगा |
"कौन सा वाला अम्बर ?- 'संताना रो' वाला ? "
"ओ तुस्सी ग्रेट हो यारा , हाँ वही वही, एक बजे तक आ जाना | महसूस कर पा रही थी की मेरी स्वीकृति उसके लिए कितने मायने रखती है | चाहे कितना ही कोई फॉरवर्ड बन जायें , चाहत रहती है की हमारे अपने हमें अपनाएँ , मन से | पर मैं अभी तक सोनी के इस "माडर्न" रूप को अपना नही पायी थी पर अपनी नाराज़गी कभी और दिन समझाऊंगी उसे | आज उसके मन की होनी चाहिए | आज उसका दिन है |
बच्चों को तैयार कर इनके साथ सौकर क्लास भेजने के बाद मैं चल पड़ी पार्टी के लिए |
कहते हैं तीन का हिसाब सही नही बैठता | बचपन में सुनते थे- तीन तिगाड़ा, काम बिगाडा ... जाने आज क्या काम बिगाड़ने वाला था .. पता नही ..
जब मैं वहां पहुँची तो वो दोनों पहले ही पहुँच चुके थे | बातें करते करते खूब हंस रहे थे | मुझे देख कर चुप हो गए |
"हाय सोनी, हे ऋषभ" मैंने दोनों को मुस्कुराते हुए कहा | पर चाह कर भी चेहरे पर प्राक्रतिक खुशी नही ला पाई |
"थैंक्स , तुम आई , बहुत अच्छा लगा, सोनी से तुम्हारे बारे में बहुत सुना है " ऋषभ ने कहा| मुझे आश्चर्य हुआ | जिसे मैंने इतना कुछ भला बुरा कहा है वो मुझसे इतने प्यार से क्यों कह रहा है , कैसे कह रहा है ?
पर मैं इतनी बेवकूफ नही हूँ..मुझे पता है ... हाथी के दांत खाने के और होते हैं ...और दिखाने के और ...
जैसे ही मैं बैठी , सोनी का सेल बज उठा और वो हमें कुछ इशारा कर के बाहर की ओर चल दी |
अब इसे कहता हैं - करेले पर नीम चढा ! डिब्बे के साथ में अकेले रहना ! कभी कभी इश्वर भी अजीब मज़ाक करता है , जिसे आप सबसे ज़्यादा नफरत करते हैं, ठीक उसी के सामने लाकर बिठा देता है ! और मजबूर कर देता है की आप मुस्कुराते रहें ... चाहे दिल कर रहा हो की उसे ज़ोर से एक तमाचा लगाया जाए ....
"आप कुछ लेंगी ...?" तहजीब के साथ "ऋषभ" ने कहा |
"आप.. माने ...... कोई भी.... ऐसा कैसे कर सकता है ?" मैं और बन नहीं पायी |
"क्या कर सकता है?...आप ज़रा खुल कर बतायेंगी " बड़े सहज भाव से प्रश्न का प्रत्युत्तर प्रश्न बन कर आया |
"आप शादी शुदा हैं ... , फिर आप किसी के साथ ऐसा धोखा कैसे कर सकते हैं ? और आपको सोनी ही मिली थी सारे जहाँ में ... आपको पता है ...I have always hated you... ALWAYS" शब्दों के साथ साथ मेरी आँखें भी जैसे उसे चीर डालना चाहती थीं |
"आराम से,अर्चना जी आराम से , चलो अच्छा है , आपका ज्वार निकल गया | इसका अन्दर रहना अच्छा नहीं होता | फिर ये बढ़ता ही रहता है | एक काम करते हैं पहले आपको जो भी कहना है, कह दीजिये | फिर अगर आप मुझे सिर्फ़ दस मिनट दें तो मैं भी कुछ कहना चाहूँगा | ठीक है ?" जैसे मेरे इतने बाणों का उसपर कोई असर हुआ ही नहीं |
"नहीं और कुछ नहीं कहना मुझे ,और मैं कुछ सुनना भी नहीं चाहती, मुझे पता है , मीठी मीठी बातों से आप सोनी को भरमा सकते हैं , मुझे नहीं ... " मैं दूसरी तरफ़ मुंह करके बैठ गई | देखा अब भी सोनी फ़ोन पर लगी हुई थी |
ओफो ! ये सोनी भी अजीब जगह छोड़ कर चली गई |
"अर्चना जी , एक बात बताओ, आप अपने पति से ज़्यादा प्यार करती हो या सोनी से ?" सरल सवाल नहीं था ये |
"ये क्या मजाक है, सब रिश्तों की अपनी जगह है , आप ऐसे कैसे नाप तोल कर सकते हैं, हाँ ?" मैं बरसी |
"यही मेरे साथ भी हुआ है , कुछ रिश्ते हमें दिए जाते हैं, कुछ हम बनाते हैं | आखिर में बस वही रहता है जो सच्चा होता है | मैं झूठ तो नहीं कह रहा न ? दोस्ती तो किसी से भी हो जाती है, इसमे कोई लिंग भेद नहीं कर सकते हैं आप | सोनी भी मेरी ऐसी ही दोस्त है, या यूँ कहिये की मेरी एक ही और सबसे अच्छी दोस्त है | उसके साथ मुझे बहुत खुशी मिलती है | उसके साथ कुछ वक्त बिताने के लिए मैं कहीं से भी आ सकता हूँ , कुछ भी कर सकता हूँ | कोई अपेक्षा नहीं होती सिर्फ़ ये साथ ही काफ़ी होता है ....और .." इससे पहले की कुछ और कहते मेरे मुंह से निकल गया -
"आप बड़ी अच्छी तरह से डबल गेम खेल रहे हैं | उधर घर में मोनाजी और इधर सोनी को जाने क्या क्या कहानी सुनाते हैं | आखिर क्या कमी है मोनाजी में ? शायद आप जैसों का एक से मन नहीं भरता ... " कह कर ख़ुद अपनी बातों पर मुझे शर्म आ गई |
वे कुछ देर चुप रहे और अपने हाथ में थामे गिलास को देखते रहे फिर यकायक बोले -
"आपको पता है अर्चना जी बड़े बड़े घरों में सुंदर परदे क्यों लगाये जाते हैं ? ताकि अन्दर की बदसूरती पता न चले | मैं यह कभी नहीं कहता पर आज लगता है कुछ हल्का हो ही जाऊं | वैसे भी कल किसने देखा है | मोना एक बहुत ही आधुनिक विचारों की लड़की है | कभी कभी मोना और सोनी को नापते हुए बड़ी हँसी आती है | मेरा सोनी से कोई रिश्ता नहीं है पर जिस तरह से हमें एक दूसरे की बात समझ आती है , चाहे हम उसे कहें या न कहें , कोई मान नहीं सकता | आपको पता है, दुनिया में सब कुछ मिल सकता है पर खरा प्यार मिलना बहुत मुश्किल है और अगर कहीं आपको वह मिल जाए तो कोशिश कीजियेगा की वह खो न जाए |" उनकी बात बहुत दिल से आ रही थी, इसीलिए सच लग रही थी |
"तो फिर आप इस रिश्ते को सामाजिक मोहर क्यों नहीं लगा देते | एक से तलाक और एक से शादी कोई नई बात तो नहीं होगी आपके 'माडर्न' जगत में ..." उनकी रूमानी बातों को सामाजिक मोड़ देना चाहा मैंने |
"मेरे बस में होता तो ये कब का हो चुका होता | सोनी शादी नहीं करना चाहती | कहती है उसके बाद सब बदल जायेगा | जो कशिश है , वो चली जायेगा | फिर ज़िन्दगी आम हो जायेगी | प्यार शायद ख़त्म हो जाएगा | मुझे सब कुछ मंज़ूर है जब तक सोनी खुश है | एक बात सच बताइए , आपने कभी प्यार किया है? ज़िन्दगी में कभी ज़रूर कीजियेगा, हर मायने बदल जायेंगे " ऋषभ दूर खड़ी सोनी को देख कर कहे जा रहा था |
"पर फिर भी आप मोनाजी को तो धोखा दे रहे हैं न ? उन्हें भी तो आपसे कुछ उम्मीदें होंगीं |" मैंने अपना आखिरी दांव भी आजमाना चाहा |
"देखिये , मैं पंजाब के एक बहुत छोटे से गाँव से आया था अमरीका | घर वालों ने हमारी शादी करवा दी इतने बड़े घर में , मुझे ग्रीन कार्ड मिल गया | कुछ दिन बहुत अच्छे गए पर फिर लगा की सब जैसे एक फरेब है, उपरी दिखावा , बस शोशे बाज़ी | कहीं चैन से सुकून की बात नहीं है | बस एक फास्ट टेंपो , एक दौड़, एक समझौता , ये नए समाज के नए उसूल , ये दोहरी नीति , आपने पढ़ा अखबार आज का ?- "executive by day, swinger by night " , हहहाआ हाहाहा " कहते कहते वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे | पर ज़्यादा हंसने से आखों में पानी आ जाता है | हाँ , ऋषभ अपने हँसी के आंसू पोंछ रहे थे |
"ये swinger क्या होता है ऋषभ जी ?" मुझे लगा ज़रूर कुछ गड़बड़ है इसमे | शायद वायिफ अब्यूस का कोई नाम होता होगा| लगा मुझे नहीं पूछना चाहिए था | अब जो पूछ ही लिया है, अब क्या कर सकते हैं ?
"वो.. जब न ..... दरअसल .. वेल .... आप गूगल कीजिये ... आपको पता चल जायेगा ...." वे बोले |
ठीक इसी वक्त किसी ने मेरे काँधे पर हाथ रखा , देखा तो सोनी वापस आ गई थी |
"क्या बात हो रही थी , ज़रा हम भी तो सुनें ?" सोनी आते ही शुरू हो गई |
"सोनी swinger क्या होता है ?" एक दम मुंह से निकल गया मेरे|
" वो तुम ऋषभ की मैडम से पूछो, क्यों रिश , तुम्हें भी तो मोना ने ही समझाया था ,पहले थीओरी और फिर लैब , राइट ? " सोनी ने हँसते हुए कहा |
" मुड के क्या देखना सोनू ? लाइफ मूव्स ऑन| हाँ अर्चना जी , मैं क्या कह रहा था ? ये की आज जीवन और समाज के पहलू बहुत बदल रहे हैं | सिर्फ़ फेस वेल्यू से आप रिश्ते की प्लेस वेल्यू का अंदाजा नहीं लगा सकते | मुझे लगता है जैसे मैंने अभी हाल ही में ख़ुद को डिस्कोवर किया है | एक नया इंसान बन गया हूँ मैं | हँसना , गाना , रोना , प्यार करना, गीत गाना सीख गया हूँ मैं | हाँ ,लोग शायद इसे उस निगाह से ना देख पायें जिस नज़रिए से इसे मैं देख रहा हूँ | लेकिन मुझे पता है की मैं ग़लत नहीं हूँ | अगर इतनी खुशी मिल रही है, तो ये ग़लत हो ही नहीं सकता |" ऋषभ कुछ और कहें उसी वक्त बैरा एक छोटा सा केक लेकर आया जिसपर लिखा था - हैप्पी बरडे , फॉर माय बेस्ट फ्रेंड !
मैंने अपने फ़ोन कैमरा से उनका फोटो लेना चाहा | थोड़ा दूर जाना पड़ेगा , अच्छी फोटो तभी आएगी |
हाँ थोडी दूर से देख कर लगा सचमुच बहुत अच्छा और साफ़ दिख रहा था |
मैं भी अब धीरे धीरे अपनी आंखों से देख रही थी इस प्यार को , समाज या रूढियों के नहीं |सोनी ने आँख मूँद कर कुछ सोचा , शायद कुछ माँगा , फिर मोमबत्ती फूंक कर रौशनी बुझा दी |
एक बहुत पुरानी ग़ज़ल बज रही थी रेस्तरां में -
ज़िन्दगी तेरे गम ने हमें रिश्ते नए समझाए ,
मिले तो हमें धूप में मिले पेड़ों के ठंडे साए ...
हाँ , तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी , हैरान हूँ मैं ,
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं .......
मैंने अपने फ़ोन -कैमरे में उनकी खुशियों को क़ैद करके उसका हिस्सा बनना चाहा -
"क्लिक" !
Wednesday, October 29, 2008
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1 comment:
ज़िन्दगी तेरे गम ने हमें रिश्ते नए समझाए ,
मिले तो हमें धूप में मिले पेड़ों के ठंडे साए ...
हाँ , तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी , हैरान हूँ मैं ,
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं .......
life should go on
visit my dustbin if possible
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