Tuesday, December 16, 2008

दिल का हाल सुने दिलवाला....

तन्मय सीरीज़ पार्ट

"तन्मय, तुमसे बड़ा ईडिअट मैंने आज तक नहीं देखा | विश्वास नहीं होता की तुम ऐसा कर सकते हो| क्यों तन्मय ? क्यों किया ऐसा तुमने ?" गुस्से में सुजाता कुछ भी कह रही थी |
"कम ओन, इसमे इतनी बड़ी बात क्या है ? " बड़ी सरलता से तन्मय ने कहा|
"बड़ी बात क्या है? ये तुम कह रहे हो | याद है तुम ही ने मुझे इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया था | मैं जानती हूँ तन्मय की इसके साथ क्या कुछ जुडा था तुम्हारा | इतना बड़ा प्रोजेक्ट फ़ेल हो गया तन्मय और तुमने मुझे बताया ही नहीं | मैं समझती थी की तुम मुझे अपना दोस्त समझते हो| तुमने इस काबिल भी नहीं समझा की अपनी बात खुल कर बता सको | छिः ! और ऊपर से मुझे ये कहा की सब मस्त हो गया | ये मस्त हुआ है? हाँ ?" सुजाता जाने क्यों इतना भड़क रही थी |
"तुम्हें किसने बताया ?" सवाल सीधा था|
"अरे इतनी भी डम्बो नहीं हूँ मैं | हाँ , हाय लेवल पर नहीं हूँ पर ग्रुप में तो हूँ | क्या समझे ? तुम नहीं बताओगे तो मुझे पता नहीं चलेगा? अब समझी मैं, क्यों इतने दिनों से मेरे सामने आते कतराते थे | एक पल में ही पराया कर दिया, नहीं क्या?" अब गुस्सा कम होते होते स्वर में उदासीनता झलक रही थी | और दरअसल गम और गुस्से का फर्क ज़्यादा होता भी नहीं है | कब क्या कौन सा रूप ले ले पता नहीं चलता |
"नहीं मैं तुम्हे भी दुखी नहीं करना चाहता था | जो हुआ सो हुआ | अब क्या कर सकते हैं ? तुम अभी अभी आई हो | और तुमने इतनी मेहनत की थी उस प्रोजेक्ट में, तुम्हें निराशा नहीं दिखनी चाहिए नहीं तो तुम्हारा मोरल डाउन हो जाएगा | " मुस्कुराते हुए तन्मय ने कहा |
"पर तुम ऐसा किस तरह कर पाये | इतना सब कुछ हो गया और तुम हँसते रहे | और तो और, तुमने मुझसे जगह भी पूछी जहाँ मंजुला को ले के जा सको | मैं समझी वाकई सब सही है | आई ऍम सो डम्ब ना !" माथे पर हाथ रखते हुए सुजाता ने कहा |
"ईडिअट! तुम्हारा बर्डे था उस दिन,पर बहुत देर हो गई थी | तुम्हारा ट्रीट भी देना है | उस दिन तो नहीं जा सके पर ये जानना चाहता था की किस जगह तुम्हें अच्छा लगता है | ताकि फिर कभी जा सकें | चलें आज, फ्रेश चोइस ? "खिलखिलाते हुए तन्मय ने कहा |
"शट अप्! मुझे अच्छी तरह से पता है की तुम किस दौर से गुज़र रहे हो | और ज़्यादा एक्टिंग मत करो | चलो वाक कर के आते हैं | और मुझे बताओ की ऐसा कैसे हुआ ? सब तो सही लग रहा था | एकदम सब फ़ेल कैसे हो गया ? " डांट ते हुए सुजाता ने कहा |

तन्मय ने वाक के दौरान सब विस्तार में बताया की किस तरह उसके कुछ प्रतिद्वंदियों ने कपट से उसका प्रोजेक्ट फ़ेल किया है , हालाँकि प्रोजेक्ट के लॉन्च से सबका भला होता | पर यह ज़ाहिर था की इसकी नाकामयाबी पर तन्मय बहुत बदल गया था | खुशी का मुखौटा जो उसने ओढ़ रखा था , उसके उतरते ही वो बहुत ही दिप्रेस्स्ड और चुप सा दिखने लगा |

किसी हँसते खेलते दोस्त को मुरझाते देख अच्छा नहीं लगता |

"कोई बात नहीं तन्मय फिर से ट्राई करेंगे | ये सब तो चलता रहता है | बुरे वक्त के कारण ही अच्छे दौर की कदर होती है | और बड़ी बात ये है की अब तुम्हे दोस्त-दुश्मनों की पहचान भी हो गई ताकि तुम उनसे सावधान रह सको | " सुजाता अपनी नसीहतें देने में देर नहीं करती थी |
"मेरी माँ, अब बस करो | "हाथ जोड़ते हुए तन्मय बोला | पर हँसी अब भी गायब थी |
"ऐसे कैसे बस करुँ? ऐसे ही मौकों के लिए मेरे पास बहुत सारे फंडे हैं | सुनाऊं? " तन्मय को हँसाना ज़रूरी था |
"ऐसे हाथ को क्रॉस कर के क्यों खड़े हो जैसे की अभी मुझसे लड़ने वाले हो ..." सुजाता ने बात बदलनी चाहिए |
"अब क्या लडूंगा? जहाँ लड़ना था वहां तो कुछ नहीं कर पाया ... सुजाता , बात घूम फिर कर वहीँ आ जाती है | हम चाहे जितना भी , कुछ भी कर लें , पर ये आख़िर नौकरी ही है, और हम हैं - नौकर !" अब धीरे धीरे रोष निकल रहा था |
अच्छा है, गम और गुस्से में फर्क नहीं होता | और दोनों का निकल जाना हरियाली की ओर पहला क़दम है |
तन्मय की बात जैसे अभी शुरू ही हुई थी -"तुम मानोगी नहीं , पिछले एक साल से मैंने क्या नहीं किया है ? गधे की तरह, दिन रात , सब कुछ भूल कर , लगा हुआ हूँ, सब लोग जानते हैं की कैसे हमने इस प्रोडक्ट को स्टार्ट किया है | ऐसे कैसे सब भूल सकते हैं लोग ? पता है सुजाता , मेरा एक प्रॉब्लम है , मैं अपने काम की मार्केटिंग नहीं करता , शायद इसी वजह से ... | "
"नहीं तन्मय , सब लोग जानते हैं , अच्छे वर्कर को पब्लिसिटी की ज़रूरत नहीं होती| और हाँ , सब जानते हैं तुम्हारी काबिलियत को | तुम्हें किसीको कुछ प्रूव करने की ज़रूरत ही नहीं है | "बीच में ही सुजाता बोल उठी |
"पर अब बहुत हो गया | तमन्ना को जानती हो न, मेरी बॉस , उसको पता है मेरा काम, फिर भी अपने दोस्त को ही सप्पोर्ट करती है | ओके , अब बहुत हो गया | अब मैं आठ घंटे ही काम करूंगा | अब और नहीं ... न पैसे बढाते हैं, न प्रमोशन देते हैं... न प्रोजेक्ट लॉन्च करते हैं.... कोई करे तो क्या करे ! " तन्मय की आवाज़ अब बहुत दूर दूर तक सुनी जा सकती थी |
"तन्मय मुझे पता है ! टीम में ही अगर लोग गुट बनाकर पॉलिटिक्स करने लगें तो बहुत मुश्किल हो जाता है | पर तुम रीयाक्ट मत करो , रेस्पोंसिब्ली एक्ट करो | देखना सब ठीक हो जाएगा | इश्वर का शुक्र करो की इस ख़राब इकोनोमी में तुम्हारे पास एक जॉब है | पता है , मेरे पास एक बहुत बड़ी दवा है , इस सिचुअशन से लड़ने का | " सुजाता बोली|
"ऐसा क्या है , ज़रा हम भी तो सुनें ..."तन्मय ने फिर से हाथों को क्रॉस किया , जैसे की लड़ने की पूरी तयारी में हो!
"तुम्हारी गुडिया है न, मुझे पता है उसमे तुम्हारी जान है .." सुजाता ने धीरे से कहा ..
"हाँ , वो तो है ... पर तुम्हें कैसे पता ?" तन्मय को आश्चर्य हुआ |
"अरे, लो कर लो बात ....एनीवे... मैं कह रही थी की ... आज ही अपने रूम में उसकी एक फोटो ठीक चेहरे के सामने लगाओ और रोज़ अपनी डायरी में एक बात ऐसी लिखो जो उसने कही हो या की हो | देखना अपने आप सब भूल कर मन अच्छा हो जाएगा | दरअसल, जब हम जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ भूल जाते हैं .. तो शायद जीवन भी हमें भूल जाता है | जीवन को फिर से अपने जीवन में लाओ तन्मय, सारेगामापा देखते हो? उसमे अस्मा कहती है न? .........." मुश्किल नहीं है "| है नहीं ..? " सुजाता की बात ख़तम होने से पहले ही तन्मय बोल पड़ा- "ओह माय गोड! शी इज सो क्यूट ! अरे यार , उस से पहले वो भी थी न, कौन थी वो ? माली नहीं मौली , माय गोड !, मैं मंजुला से कहता था - देखना ये लड़की जीतेगी ... मैया मैया..... क्या मस्त गाती थी मालूम .. "

सुजाता समझ गई थी की उसका दोस्त अब लौट आया है |
अब तन्मय हंस रहा था, बाकी सब बातें भूल के .. पुराने दिनों जैसे|
अब उसकी खुशी दिखावटी नहीं थी |

"तन्मय , याद है , कॉलेज में स्प्रिंग फेस्ट में हम सबने मिलकर एक गाना गाया था .. वो जो जीता वही सिकंदर से .. क्या था वो..." सुजाता याद करने की कोशिश करने लगी |
"अरे हाँ ! वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है .... टें टें टें टें टें .... अरे तुम भी गाओ न ... तुम भी तो ग्रुप में थी न ? याद नहीं है क्या ?" बड़ी मस्ती में तन्मय पूछ बैठा|
"चलो गाते हैं ..." सुजाता ने देख कर हँसते हुए कहा |

"वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है ,
हारी बाज़ी को जीतना जिसे आता है ,
निकलेंगे मैदान में जिस दिन हम झूम के ,
धरती डोलेगी ये क़दम चूम के,"

"नहीं समझे हैं , वो हमें, तो क्या जाता है ,
हारी बाज़ी को जीतना हमें आता है ".......................टें टें टें टें टें !
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

2 comments:

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

"वो सिकंदर ही दोस्तों कहलाता है ,
हारी बाज़ी को जीतना जिसे आता है ,
निकलेंगे मैदान में जिस दिन हम झूम के ,
धरती डोलेगी ये क़दम चूम के,"
सुंदर वर्णन ****MIND BLOWING

सुंदर वर्णन ****MIND BLOWING

PLEASE VISIT MY BLOG...........
"HEY PRABHU YEH TERAPANTH "
http://ombhiksuctup.blogspot.com/

Unknown said...

bahut bhadiya...aise he likhte rahiye....