Monday, September 8, 2008

कभी कान्धा भीगा है आपका?_सोनी_सीरीज़_पार्ट १

कभी कान्धा भीगा है आपका? यूँ तो हम सब दिल भिगोते हैं , कभी कभी आँखें भी भीगती हैं , ये सब 'अपने' गम की निशानी हैं | लेकिन भीगा कान्धा, एक प्रतीक है, एक सहेली या दोस्त के दुःख का | किसी मित्र को आपकी ज़रूरत होती है तभी भीगता है आपका कान्धा |

मेरी एक सहेली है, बचपन की | चलो मैं उसका नामकरण करती हूँ- "सोनी" | सोनी आज के समाज के नारी की एक मिसाल है | माता पिता को जिस बेटी के कैरियर पर नाज़ हो , ऐसी है मेरी सोनी | जब वह बिजिनेस प्रेजेंटेशन करती है , तो कभी कोई उसकी कही बात पर ना नहीं कर सकता , कभी नहीं | अमरीका में आकर एक हिन्दुस्तानी लड़की, वो भी अकेली , इतने रौब से सत्ता बनाए रह रही है , नाज़ की बात है |
सोनी हफ्ते के सभी दिन जी भर के काम करती है | दिन क्या अरे ! वो तो रात रात भर काम करती है | अपने काम में बहुत उसकी बहुत निष्ठा है | और हमेशा रहती अगर उसकी मुलाक़ात 'डब्बा' से नहीं होती | हाँ बस यही नाम उस जनाब को सही सूट करता है | वैसे तो उन महाशय का एक भला सा नाम भी है लेकिन मेरा दिया गया ये नाम उनको बिल्कुल सही बैठता है |
हाँ , तो हमारे ये डब्बा जी भी एक जानी मानी हस्ती हैं और तिस पर शादी शुदा भी हैं | लेकिन अपने यौवन का रंग और प्रभाव घर से बाहर जमाने में आजमाने में पीछे नहीं रहते और दुर्भाग्यवश इस का शिकार बनी मेरी दोस्त !
जाने कैसा वक्त है आजकल | कहते हैं , इश्क कभी किया नहीं जाता , हो जाता है , पर ऐसा भी क्या इश्क जिसे नहीं होना चाहिए और फिर भी हो | सही बात की पैरवी नहीं करनी पड़ती और गलती की कोई सफाई चलती नहीं| है न?

मैं इसी बात से खुश थी की सोनी खुश है.... बहुत खुश ... चाहे वो खुशी उधार की हो !
पर हर उधारी की कीमत होती है, मूल के साथ सूद भी चुकाना पड़ता है | सोनी को शायद पता नहीं था |

अब फास्ट फॉरवर्ड आज तक....

शुकर की शाम थी | लोग वीकेंड के स्वागत में लगे थे ! अभी मैं आरती का दिया लगा ही रही थी की फ़ोन बजा घननन ....
"हाय ! आर्ची , आज ना बहुत ही सही सेटिंग है , तू जल्दी एवलोन आ जा ! बहुत मज़े करेंगे ! बिल्कुल हॉस्टल जैसी मस्ती करेंगे | " सोनी बहुत ही ज़्यादा उत्तेजित लग रही थी , स्वाभाविक रूप से भी ज़्यादा !
"अरे नहीं यार ! अभी तो आरती भी नहीं हुई है , खाना बनाकर, बच्चों को खिलाकर, उन्हें सुलाना है | और मम्मी बाउजी का भी देखना है ! यू केरी ऑन ! फिर कभी !
"आर्ची प्रोमिस ड्रिंक नहीं करेंगे , मुझे पता है तुम नहीं करती पर तुम्हे डांस अच्छा लगता है न , आज यहाँ बॉलीवुड नाईट है ! खूब डांस करेंगे पुराने दिनों जैसे , पूरी रात ...बिंदास , तुम अपना काम ख़तम करके आ जाना, साउंड्स लायिक अ प्लान , हाँ ?" सोनी जब कहती है तो हमेशा बड़े अधिकार से कहती है |
"नहीं रे ! मुझे तीन दिन से बुखार है , आज रेस्ट करना चाहती हूँ " मैंने कहा क्योंकि घर और ऑफिस के काम में मुझे कतई आराम नहीं मिल पाया था और बुखार से अभी पूरी तरह उठी नहीं थी मैं |
"आर्ची ! यू सक, भाड़ में जाओ !" सोनी की आवाज़ में एक अजीब सी झुन्झुलाहट थी , यूँ तो दफा होने को कहा उसने पर जाने क्यों लगा की बुला रही है , कुछ कहना चाहती है पर कह नहीं पा रही | शायद इस बात को कोई विश्वास न करे पर कई बार मुझे लगता है जैसे मैं लोगों के मन की बात सुन सकती हूँ, सबकी नहीं पर जो मेरे नज़दीक हैं , दिल के करीब हैं उनकी एक एक बात सुनाई देती है , उनके बिना कहे ! पता नहीं कैसे और जाने ये अच्छा है भी या नहीं , कभी कभी बहुत कष्ट प्रद होता है दिल की सुन पाना या सुन लेना !

सोनी की आवाज़ गूंजती ही रही , सब काम हो गया घर का , पर वो आवाज़ गई नहीं ! सन फ्रांसिस्को होता तो शायद मैं नहीं जाती पर एवलोन तो घर के पास ही था , सांता क्लारा का एक ही तो डांस क्लब है | मैंने सोचा मुझे उस से मिलना चाहिए पर अब रात के ग्यारह बजे , पता नहीं वो वहां पर अब तक होगी भी या नहीं |
उसके सेल फ़ोन का नम्बर मिलाया, पर लगा नहीं | शायद शोर गुल में सुनाई नहीं दिया होगा |

दुविधा में थी | कभी डांस क्लब देखा नहीं था | पता नहीं था की उसमे अन्दर कैसे जाते हैं | पर जाने वो पुकार कैसी थी की बस इतना ही याद है की मैं उठी , गाड़ी शुरू किया और एवलोन के बाहर मैं कार से उतरी | लोऊंज में बड़े अजीब तरह के लोग मिले | मन किया वापस भाग जाऊं | दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था की मैं उसे सुन पा रही थी | मैं सोच रही थी मैं यहाँ क्यों आई हूँ - किसी को पूछा भी नहीं घर में - न इनको , न मम्मी- बाउजी को | पर मुझे पता था की अगर मैं पूछती तो कभी आ नहीं पाती, कोई अनुमति नहीं देते ! और मुझे आना था , किसी को मेरी ज़रूरत थी ... शायद ..

जाने और क्या क्या देखना पड़ता अगर एक परिचित नहीं मिल जाते ! उन्हें देख कर पहले मैंने सोचा अरे बाप रे ! ये यहाँ ! चलो मैं कहीं छुप जाऊं लेकिन फिर मैंने सोचा की कम से कम इन्हे मुझसे ज़्यादा ज्ञान होगा | अरे, ये तो सोनी को भी पहचानते हैं , शायद उसे ढूँढने में मेरी मदद करेंगे |
वैसे तो इनका नाम हरी है पर अमरीकी अंदाज़ में इन्होने इसे "हैरी" कर दिया है | क्यों न करें ? अरे भाई जब संस्कार, रूप और दिनचर्या ही ढल गई है तो नाम क्या बड़ी चीज़ है ?
"हाय हैरी ! हाउ आर यू? " इस माहौल में मैं उन से किस तरह बात शुरू करुँ, समझ नहीं पा रही थी |
अर्चना ! वाट ऐ सर्प्रायिस ! तुम यहाँ , तुम्हारी तबियत तो ठीक है ? घर में कोई झगडा हुआ है क्या?
उसने बड़े आश्चर्य अंदाज़ से पहले मुझे देखा फिर मेरे सलवार कमीज़ को, जैसे कह रहा हो कम से कम कपड़े तो जगह देख कर पहना करो!
"अरे नहीं , वो दरअसल... एक्तुअल्ली ....मैं सोनिका गिल को ढूंढ रही थी " मैंने हकलाते हुए कहा |
"ओह सन्नी बेबी ! " अच्छा मैं तुम्हे ले चलता हूँ उसके पास | फिर उसने मेरा हाथ पकड़ा और तेज़ी से एक तरफ़ चल पड़ा | आम समय में उस से हाथ छुडाकर उसको एक तमाचा देना मेरा पहला ख्याल होता लेकिन कहते हैं औरत की एक sixth sense होती है | किसी की नियत समझने में सिर्फ़ एक नज़र ही काफ़ी होती है | बन्दा तेज़ था पर शरीफ था तो मैं चुप चाप उसका हाथ थामे उसके पीछे चल ली | जैसे ही अन्दर प्रविष्ट हुए , बहुत ही तेज़ संगीत ने कान फाड़ दिए ! और गाना भी क्या सही गाना था -

पप्पू के पास है MBA, करता है फ्रांस में होलीडे !
....वादों की घड़ी हाथों में, परफ्यूम गुची वाला,
पर पप्पू कैंट डांस साला ...
पप्पू नाच नहीं सकता ...

कई लोग - भारतीय, गोरे ,काले सभी अपने अपने ग्रुप में नाच रहे थे | मैंने सोचा था सोनी भी शायद ऐसे ही किसी टोली में होगी | पर सोनी ड्रिंक बार में बैठी थी -अकेली , पसीने से लथपथ, शायद मेरे आने से पहले ही बहुत डांस हो चुका था | टकीला के कई खाली गिलास सामने रखे थे | उसके कपड़े देख कर मैं हैरान थी की इतना भी पहनने की क्या ज़रूरत थी? इसे भी उतार देती , हु कयेर्स अनिवे ! देखते ही वो खड़ी हो गई उसी तरह जैसे बचपन में मैंने उसकी चोरी पकड़ ली हों और वो जल्दी से यह सोच रही हों की क्या बहाना बनाए ?

मुझे कोई बहाना नहीं चाहिए था , मुझे सोनी चाहिए थी और चाहिए थी उसकी खुशी |
"सोनी, एक बात करनी है , बाहर आओ " मैंने धीरे से कहा , पता नहीं क्यों मैं सोनी की तरह अधिकार से नहीं कह पाती हूँ |
पर बिना कुछ पूछे वो बाहर चल दी, मेरे साथ !
पर अब ध्यान आया की क्या पूछूं ? कैसे पूछूं? उसने तो कुछ कहा नहीं था | बात शुरू कैसे हों?

"कैसी हो तुम?" बहुत ही बोरिंग तरीके से बात शुरू की मैंने | और कुछ सूझा ही नहीं |

"ज़्यादा बनने की ज़रूरत नहीं है | तुम ये देखने आई हो की सोनी मर तो नहीं गई | मैं तुम्हे अच्छे से पहचानती हूँ| यू आर सच अ शो ऑफ़ | तुमने मेरे ब्रेक अप की ख़बर सुनी है और मुझे सुनाने आई हो | जस्ट गो टू हेल , लीव मी आलोन " उसने बात शुरू कि इतने भयंकर निनाद से की मेरे आंखों में आँसू आते आते रुक गए |
"नहीं सोनी, मुझे तुम्हारे ब्रेक अप के बारे में पता नहीं था , प्रोमिस !" मैंने कहा | कहते हुए मैं अपने कार में बैठ गई और फिर वो भी कुछ देर में मेरे पास आ गई जैसे जानती हो की मैं वहां आऊंगी , जैसे उसे बस इंतजार ही था |
फिर भी हिम्मत करके मैं बोली - "चलो , छोडो ! अच्छा बताओ तुमने कोई नया गाना सुना है, याद है जब हम एक ही रूम में रहते थे और पढ़ाई करके जब थक जाते थे तब सॉफ्ट म्यूजिक चला कर उसे सुनते सुनते सो जाते थे , कितने अच्छे दिन थे न , है न ? मैंने उसे शांत करने के उद्येश्य से बात को बदलना चाहा |

फिर उसके उत्तर को सुनने से पहले ही मैंने CD प्लेयर ऑन कर दिया | उमराव जान के ग़ज़ल चल रहे था |

हम दोनों चुप बैठे था और गाना बस गाना चल रहा था | पता नहीं वह क्या सोच रही थी पर चुप थी !

कब मिली थी, कहाँ बिछडी थी, हमें याद नहीं ,
ज़िन्दगी तुझको तो बस ख्वाब में देखा हमने ,
जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने ...
ए अदा और क्या सुनाएँ हाल अपना,
उम्र का लंबा सफर तय किया तनहा हमने ...

मुझे लगा की इस तरह के गीत उसे और दुखी करेंगे | मैंने CD बदल दी | पता नहीं कौन सा था | शायद नए गीतों का एक कोल्लेक्शन था | एक गीत बहुत ही सुंदर था उसमे - पता नहीं किस मूवी का है पर अच्छा लगता है सुन ने में | हम जब चुपचाप साथ बैठे था , बस हम दोनों , उस रात कार में ... बाहर बहुत अँधेरा था .. एक गीत ख़तम हुआ और वो गीत आया.....पता नहीं उस रात इतनी चुप्पी कैसे थी ? कोई आवाज़ नहीं थी , बस वे शब्द -

कहीं तो, होगी वो , दुनिया - जहाँ तू मेरे साथ है ,
जहाँ मैं, जहाँ तू, और जहाँ , बस तेरे-मेरे जज्बात हैं !

मुझे लगा , सोनी के गले में कोई आवाज़ रुक सी गई | मैं कुछ सुन ना चाहती थी | कुछ भी, मुझे लगा की उसका बोलना ज़रूरी है वरना वों, सोनी ,अपने ही बोझ से दब जायेगी |

जाने ना कहाँ वो दुनिया है , जाने ना वो है भी या नहीं !
जहाँ मेरी ज़िन्दगी मुझसे , इतनी खफा नहीं ..

जैसे ही मैंने नज़र उठाई सोनी की ओर, उस की आंखों में कुछ चमकता हुआ दिखा | कार में अँधेरा था | पर अब एक अजीब सी नजदीकी सी आ गई थी , मुझे लगा वो मेरे पास है, बहुत पास | फिर मेरे कंधों को जैसे किसी ने छुआ | देखा तो सोनी का झुका हुआ चेहरा था मेरे कन्धों पर था और जाने क्यों मेरा कंधा भीग रहा था | पहले लगा उसे रोकूँ, समझाऊँ पर फिर लगा नहीं इसे बहने देना चाहिए , ये आंसूं भी एक तरह के मैल होते हैं, अगर निकाले नहीं जाते तो जमते रहते हैं , और जाने कब तक डेरा जमाये रहते हैं, इनका बाहर निकल जाना ही अच्छा है |

गाना बजता रहा , सोनी रोती रही, मैं चुप रही और कंधा भीगता रहा |

सन्नाटा था, जाने अन्दर चल रही इतनी तेज़ चीख बाहर तक क्यों नहीं पहुँच रही थी |

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4 comments:

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ हमने भी अपने इस नाजुक कंधे पर ढेरो दोस्तों के आंसू रखे है ओर अपने आंसू से ढेरो कंधे भ्गोये है ....दोस्त होते ही है कन्धा देने के लिए...आपने मन से लिखा है.........

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी बहुत ही गहरी सोच के मालिक हैं आप बहुत ही गहरा आर्टिकल लिखा है आपने दिल से

Advocate Rashmi saurana said...

kitani gahari soch hai aapki. bhut sundar lekh. badhai ho.

hindi-nikash.blogspot.com said...

अर्चना जी,

आपकी इस रचना पर सबसे पहले मैं ये कहना चाहता हूँ कि इस के शीर्षक से हिन्दी में एक नया मुहावरा प्रादुर्भूत होता है. वो मुहावरा है- "कंधा भीगना". इसका अर्थ हुआ - किसी के दुःख-दर्द में शरीक होना, सहानुभूति व्यक्त करना, भावनात्मक सहारा देना. इसका वाक्य में प्रयोग कुछ इस तरह हो सकता है- " मैं सबके दुःख दर्द में उनका साथ देता रहा पर जब मुझ पर विपत्ति का पहाड़ टूटा तो अपना कंधा भिगोने
वाला भी कोई न मिला." इसी प्रकार से और भी ............ .

आपने उदाहरण में "आँखें भीगना" और "दिल भीगना" मुहावरे का ज़िक्र किया है. ये दोनों मुहावरे भिन्न अर्थों में हिन्दी में स्थापित हैं और बखूबी इस्तेमाल किए जाते हैं.

भाषा की समृद्धि ऐसे ही बढ़ती है. कोई नई अवधारणा जब भली-भांति अनुभवों की भट्टी में पक कर शब्दों का रूप लेती है तो वह सर्वजनीन सरोकारों की पैरोकार हो जाती है और निरंतर प्रयुक्त होते रहने से उसे भाषा में भी मान्यता मिल जाती है. ये मुहावरा भी अपने मौलिक अर्थ के साथ प्रयुक्त होता रहेगा और हिन्दी की श्रीवृद्धि करेगा ऐसी कामना की जाना चाहिए.

किसी भी भाषा में मुहावरे गढ़ पाना बहुत मुश्किल काम होता है. इसके लिए प्रदीर्घ अनुभव, सूक्ष्म संवेदनशीलता और अबाध भाषिक सामर्थ्य की आवश्यकता होती है. आपने ये मुहावरा गढा, केवल यही बात सिद्ध करती है की आप प्रदीर्घ अनुभव, सूक्ष्म संवेदनशीलता और अबाध भाषिक सामर्थ्य से लैस रचनाकार हैं.

संस्कृत में एक उक्ति है- "गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति". इसका अर्थ है- गद्य लेखन ही कवि की सामर्थ्य की कसौटी है. अर्थात, जो कवि जितना स्पष्ट, सुगठित, सारपूर्ण और प्रभावी गद्य लिख पाता है वो उतना ही समर्थ कवि भी होता है. यानी किसी कवि के कवित्व का मूल्यांकन करना हो तो उसके द्वारा लिखे गए गद्य का अध्ययन व मीमांसा करना अनिवार्य है. मैंने आपकी यह पहली गद्य रचना पढी है जिसमें मुझे
आपके काव्य-कर्म की दिशा, और विमा को परखने का मौका मिला.

संस्मरणात्मक शैली व आत्मनेपद में लिखी हुई यह रचना कहानी भी है, कथा भी. इसमें रिपोर्ताज और डायरी जैसी आधुनिक विधाओं के गुण भी हैं और "गद्यगीत" का लालित्य भी. इसमें गद्यगीत के व्याकरण के अनुरूप थोडा सा शिल्पगत परिवर्तन-संशोधन किया जाए तो ये एक बहुत अच्छा गद्यगीत बन सकता है.

प्रसंगतः मैं ये कहना चाहूँगा कि "गद्यगीत" हिन्दी साहित्य की लुप्तप्राय विधा है. रचना की शास्त्रीयता व शिल्प पर फिलहाल इतना ही. .........

अब आते हैं इस रचना के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष पर- जो इसकी भावुकता, जिजीविषा, और अर्थगत सन्दर्भों की जीवन्तता में सन्निहित है.

सोनी बहुत मेहनती है, अपने कार्य के प्रति वफादार- किंतु वह मशीन नहीं है. वो एक जीती-जागती नारी है, जिसमें सारी स्त्रियोचित ........ या व्यापक रूप में कहें तो मानवोचित अनुभूतियाँ भी अपने पूर्ण जाग्रत रूप में हैं. उन्हें बांधा नहीं जा जा सकता और ना ही उनका दमन किया जा सकता है. इसीलिये वो "डब्बा" से प्रेम कर बैठी. उसका डब्बा से प्रेम, आधुनिक व्यावसायिक और मशीनी युग में तेजी से मशीन में
तब्दील हो रहे इंसान की अस्वीकृति और छटपटाहट की मुखर अभिव्यंजना है. जिस दिन सोनी के भीतर से प्रेम ख़त्म हो जायेगा उस दिन वो मशीन बन जायेगी. प्रेम करके उसने अपने भीतर के मानव को नवजीवन दे दिया. प्रेम तो हो जाने वाली भावना है. (मेरे एक फोटोग्राफ़र मित्र ने एक बार बताया था कि "अच्छी फोटो खींची नही जातीं, बल्कि खिंच जातीं हैं.") अच्छी कविता लिखी नहीं जाती बल्कि लिख जाती है. यही बात
प्रेम के साथ है. तो सोनी को प्रेम होना ही था तभी तो उसके भीतर की स्त्री जीवित रह सकी-!

रचना का दूसरा हिस्सा जो प्रवाचक ने अवलोन में गुज़ारा वो हिस्सा समकालीन दौर के उथले और निस्सार होते जा रहे जीवन-दर्शन का शब्द-चित्र है. भौतिक समृद्धि ने व्यक्ति को भीड़ में अकेला कर दिया है. उसे अकेलेपन से डर लगने लगा है, क्योंकि वो वहाँ बिल्कुल अकेला होता है. अपने आप से वो कबका दूर जा चुका है. ऐसे समय में उसे इन्हीं खोखली स्थितियों में अस्थायी सुकून मिलता है. यह चित्रण बहुत
सशक्त किया गया है.

रचना के तीसरे हिस्से में जब सोनी का आक्रोश प्रवाचक के ऊपर फूटता है तो उस समय वो उस सारे समाज के ख़िलाफ़ बोल रही होती है जो एक ककून की तरह उसे चारों और से घेरे हुए है और जिसे उसकी भावनाओं की कोई परवाह नहीं है. वो एक कर्मठ जुझारू और मेहनती लडकी है इसलिए अपनी पराजय स्वीकार न कर पाने का क्षोभ भी उसकी बातों और हरकतों से झलकता है.

अन्तिम हिस्से में सोनी और प्रवाचक के मध्य शब्दहीन संवाद सारे यथार्थ को जीवंत कर के जमी हुई बर्फ को पिघला देते हैं और तब भीगता हुआ कंधा एक नई, ऊर्जावान, रचनात्मक और सार्थक सुबह की आधारशिला रखने का घोषणापत्र जारी करता है.

बहुत अच्छी भावपूर्ण रचना के लिए सिर्फ़ बधाई काफी नहीं है-........... ......... ........

आनंदकृष्ण, जबलपुर

मोबाइल : 09425800818