बड़ी खलबली मची है | हर तरफ़ कुछ न कुछ बिखरा है .. किसी का शर्ट प्रेस नहीं है तो किसी की बिंदी नहीं मिल रही | कभी कोई बच्चा रो रहा है तो किसी ओर हँसी के ठहाके सुने दे रहे हैं | बिल्कुल इंडिया की तरह लग रहा है | आज घर - एक घर की तरह लग रहा है ....
पर मौसी हैं की कोई फिकर नहीं है की क्या पहनेंगी ? बस सुबह से किचेन में लगी हैं, जाने क्या कर रही हैं | अरे यार , चलो मैं उन्हें तैयार करवाती हूँ , अभी एक घंटे में निकलना है ना | कहीं देर ना हो जाए | यहाँ तो इवेंट्स के टाइम बुक होते हैं तो बस वही टाइम मिलता है , उसे और खींच नहीं सकते | यहाँ वक्त के सब पाबन्द हैं | हम कभी ये सीख नहीं पाये , यहाँ दस साल रहने के बाद भी नहीं.. नागरिक बन गए तो क्या ...खून तो ओरिजनल है !
मौसी प्याज़ काट रही थीं , आँसू टप टप बहते ही जा रहे थे ...
"अरे रे मौसी जी ! लोग तो बेटी के ब्याह पर नैन भिगोते हैं , और आप तो बेटे की सगाई पर सेंटी हो रहे हो | क्या मौसी ?" मैंने मज़ाक में कहा |
"क्या बेटा और क्या बेटी अब तो सब समान है , गुडिया " उनका बड़ा उखडा उखडा सा जवाब था |
मुझे लगा की ये आँसू प्याज़ के नहीं हैं, किसी राज़ के हैं | वक्त नहीं था कुछ कहने सुनने के लिए | पर लगा ज़रूरी है सुनना - जो ये कहना चाहती हैं | अभी तक सब कुछ कितना जल्दी हो गया था |
कुछ दिनों पहले मौसी आयीं यहाँ , राजू की शादी तय करने | साथ लायीं ढेर सारी विवाह योग्य कन्याओं के फोटो और कुंडली | लगता था मौसी ने कोई matrimony की वेबसाइट नहीं छोड़ी थी , सब छान छान के अपने आई आई टी , आई आई एम् पास बेटे के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते ले कर आई थीं | मैंने भी अपने सर्कल के सभी लड़कयों से राजू का इंट्रो तो करा ही दिया था | पर राजू था की जैसे दुनिया से उसे कोई लेना देना नहीं था | एक ही शहर में रहकर भी वो कई महीनों से कभी हमसे मिलने नहीं आता था | मैं उससे मिलना चाहती तो काम का बहाना कर के टाल देता था | हाँ ! आज कल के लड़के अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं भई ! और वो भी अमेरिका में हैं तो बल्ले बल्ले !
छ न न ना ..........मौसी कटे प्याज़ का गरम तेल में छौंका लगा रही थीं |
"अच्छा सोचते हैं मौसी , आज के दिन तो और अच्छा सोचते हैं , देखो न कितनी अच्छी लड़की मिली है राजू को , हम आप ढूंढ के भी इतनी अच्छी नहीं ला सकते थे, उसके लिए, है नहीं क्या?" मैंने कहा |
"नहीं बेटा , मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है | देख ना, लड़की इंडियन नहीं गोरी है , क्रिस्तान है , पता नहीं ये ब्रह्मण का बेटा कैसे .... इसको ... चलो इसको भी अगर मैं भूल जाऊं ...पर साथ साथ रह रहे हैं इतने महीनों से .....और कभी बताया भी नहीं इसने ...कैसे .... कैसे अपनी माँ से कोई इस तरह कर सकता है (मौसी आँचल से आँख पोंछते हुए बोलीं )... इतना किया है ...एक ही तो बेटा है ... मैं वापस जाकर सबसे क्या कहूँगी ? इसने तो...इसने ...तो.. " मौसी का गला बहुत रुंध रहा था , रुक रहा था |
"इस.. ने ... तो .... बेटा .... मेरी नाक कटा दी... बेटा... मैं क्या करुँ, अब वापस नहीं जा पाऊंगी...मैं क्या मुंह लेकर जा... ऊँगी..ऊऊंंऊऊंं ऊऊंं " मौसी संभाल नहीं पायीं | घर में लोग थे, इस कारण ज़ोर से नहीं रो पा रहीं थीं |
"अरे मौसी किस ज़माने में रह रही हो , आजकल ज़माना बदल रहा है , देखो ये देस विदेस का चक्कर मन से निकाल दो , लड़की देखो तुम, कितना पढ़ी लिखी है , समझदार है , तुम तो भाग्य शाली हो , ज़रूर कोई पुण्य किया होगा जो ऐसी बहू पा रही हो " मैंने उनको हिम्मत देने की कोशिश की |
"गुडिया , हमें कौनसा उनके साथ रहना है , जो चाहें करें , पर मेरे बेटे के हमेशा साथ रहेगी , इसकी वो गारंटी देगी मुझे " मौसी आँख पोंछते हुए पूछीं |
"अच्छा आप ये बताओ मौसी, कि आज कि कोई इंडियन लड़की क्या ये गारंटी दे सकती है ? मौसी मैंने यहीं, अपने आंखों के सामने कितने ही इंडियन लोगों को डिवोर्स लेते देखा है | वो तो आपकी किस्मत है मौसी और आपका विश्वास "
"मैं तो सह लूंगी गुड्डो पर तेरे मौसा जी , और ये देखो इन दोनों को - चल रोजी तो नहीं जानती हमारे संस्कार पर राजू भी... तूने देखा ना कैसे कमर पकड़ पकड़ के चलते हैं , सब के सामने चूमा चाटी करते शर्म नहीं आती इन लम्पटों को ... मेरा तो जी बहुत घबरा रहा है बेटा ..सुबह से दुर्गा चालीसा पढ़ चुकी हूँ कितनी बार पर मन है कि बार बार उथल पुथल हो रहा है , क्या करुँ बेटा , तू ही बता .." मौसीजी कडचि ज़ोर ज़ोर से कढाई पर चला रही थीं | लग रहा था सारा गुस्सा सब्जी पर निकाल रही हैं |
"कुछ मत सोचो मौसी , बस राम का नाम लो और सब उस पर छोड़ दो , देखना सब अच्छा होगा, जब हम सब कुछ अपने आप करना चाहते हैं ना मौसी तो ना होने पर कष्ठ होता है | अरे ! कुछ उसके लिए छोड़ कर देखो , देखना फिर कैसे सब फिट फटांग होता है ! " आँख मारते हुए मैंने मौसी से कहा | "और फिलहाल तो आप तैयार हो जाओ | ये लो आपकी साड़ी मैंने निकाल दी है | इसे पहन लों | अरे, हमारी मौसी भी तो मुंडे दी माँ लगनी चाहिए | बाकी लोग जो पहनें , सो पहनें - कि फर्क पैंदा है ? अरे मौसी , इन गोरों को भी तो पता चले हमारी मौसी का जलवा !" मैंने उनको ज़रा हल्का फील कराने कि कोशिश में कहा |
"चल हट ! ज़रा देखती हूँ राजू ने शेरवानी पहनी या नहीं ... ये लड़का भी न ...."
मौसी साड़ी लेकर , मुंह पोंछते हुए , कुछ बुदबुदाते हुए चल पड़ी |
"गुडिया , सब्जी को देख लेना " पीछे से मौसी बोलती गयीं |
"हाँ मौसी सब्जी को कहीं नहीं जाना है , पर आप ....... " मेरी बात अब कोई नहीं सुन रहा था |
समय भी कैसे कैसे खेल खेलता है , कभी आगे ले जाता है और कभी बहुत पीछे .....
मुन्नी अभी अभी इंजीनियरिंग करके वापस घर आई थी | मम्मी पापा रिश्ते की खोज में थे | खाना खाकर सब बैठे ही थे की नर्मदा मौसी ने अपना पिटारा खोल दिया |
"सुन लीजिये भाई साहब , इससे अच्छा रिश्ता आपको नहीं मिलेगा " मौसी अपनी जिद पर अडी थीं |
"पर निम्मो तुम देखो ना ये रिश्ता अपनी मुन्नी को जचता नहीं है , हाँ थोडी सांवली है हमारी ..." पापा की बात काटते हुए मौसी गरजीं - "अजी हाँ ! बेटी को तो आप सर पर बैठा कर रखिये | घर पर बैठी रहेगी तो आपका ही नाम ख़राब होगा जीजाजी , मुझे क्या है , ज़रा आप सोचिये , रंग काला है , और उस पर इंजीनियरिंग , उमर वैसे भी हो गई है , कौन लेगा इसको , मैं तो कहती हूँ भाई साहब , काम ख़तम कीजिये और गंगा नहाइए , अभी एक और है ब्याहने को, ये जाए तो दूसरी को सोचो, क्या कहते हो ? बात आगे करुँ? " मौसी तो जैसे अपनी जीत सोच कर ही आई थीं |
"रुको ज़रा मुन्नी से पूछते हैं , फिर बताएँगे , तुम थोड़ा आराम कर लो निम्मो " पापा ने बड़ी स्थिरता से कहा |
"भाई साहब ! जब तक दीदी कि दो जवान बेटियाँ घर पे है कहाँ आराम मिलता है | छोटी तब भी निकल जायेगी - रंग चिट्टा है और लम्बाई भी खूब है, चिंता है तो मुझे इस कालो रानी कि है ... " मौसी को अपने ही मज़ाक पर हंसने कि आदत है |
शाम को मुन्नी लगी हुई थी -शायद कुछ फॉर्म भर रही थी |
"बेटा , ये निम्मो मौसी कोई रिश्ता लेकर आई है , सुना तुमने ? लड़का अच्छे घर का है - इंजिनियर है " पापा ने बड़े प्यार से मुन्नी से पूछा|
"पर पापा वो एक नम्बर का गधा है | डोनेशन कॉलेज से पढ़ा हुआ | एक बात पूछो तो नहीं आता | उसका दिमाग काम ही नही करता पापा | किसी भी रिश्ते में आदर का होना बहुत ज़रूरी है पापा, है न ?" मुन्नी ने बड़ी सादगी से पूछा |
"ये बात तो सही है बेटा पर कुछ तो हमें भी एडजस्ट करना होगा , देखो तुम टोपर हो अपने क्लास में - तो हर एक का दिमाग एक सा नहीं होता न बेटा , फिर अपनी बिरादरी का पढ़ा लिखा लड़का मिलना भी मुश्किल है | अगर तुम्हारे कोलेज का कोई तुम्हे पसंद हो तो तुम मुझे बता सकती हो " पापा दुनियादारी समझा रहे थे |
"नहीं पापा ऐसी बात नहीं है , आप मुझे जानते हैं , फिर ऐसा क्यों पूछ रहे हैं? और ऐसा कहाँ लिखा है की बिरादरी में ही शादी करनी है ..बताइए " मुन्नी को ऐसी बात करते बड़ी शर्म आ रही थी |
कुछ समय बड़ी खामोशी थी उस कमरे में | बज रहा था तो बस वो पुराना पंखा जो हवा से ज़्यादा आवाज़ देता था |
"पापा , मेरा रंग काला क्यों है ? " एक बहुत ही अनदेखा सा सवाल पूछा मुन्नी ने |
"मम्मी तो गोरी हैं , रूपा भी गोरी है फिर मुझे आपने काला क्यों बनाया , पापा " मुन्नी की आंखों के कोने से कुछ चमक चमक कर दिख रहा था पर बाहर आते शायद डर रहा था |
"नहीं बेटा देखो जब इश्वर काला रंग देता है न तो वो उसमे कला भी छुपा कर दे देता है | हम सब काला रंग तो देखते हैं पर जो उस काला में कला देख लेगा न बेटा बस उसी के साथ आपको हम भेजेंगे | आप MBA के सारे फॉर्म देख कर भरना | हम निम्मो मौसी को "ना" कर देते हैं | और हमें पता है कि आपको किसी अच्छे बी-स्कूल में दाखिला ज़रूर मिलेगा " पापा ने मुन्नी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा |
.......................................
"अर्चना , कहाँ हो ? मैं आधे लोगों को ले जाता हूँ | तुम बाकी लोगों को अपनी गाड़ी में ले आना | सन फ्रांसिस्को में ट्रैफिक होगा | जल्दी निकलना | गराज से इन्होने मुझे आवाज़ लगायी तो मैं भूत से वर्तमान में आ गई | देखा मौसी अपनी साड़ी का पल्लू ठीक कर रही थीं | बड़ी सुंदर लग रही थीं | मौसा जी भी कुरते में जच रहे थे |
"गुडिया आज तेरे साथ दुःख बाँट कर दिल हल्का हो गया " मौसी अब मुस्कुरा रही थीं |
बहुत अच्छा हुआ मौसी , रोना बहुत अच्छा होता है , सब दुःख बह जाते हैं, और अगर कोई साथ हो तो फिर शक्ति मिलती है, हौसला बढ़ता है | पर हर इंसान इतना भाग्यशाली नहीं होता निम्मो मौसी | किसी दिन मुन्नी , आपकी गुडिया, भी बहुत रोई थी मौसी , आपसे छुप कर | हाँ आज आप अपने किस्मत के रंग को नहीं बदल पा रहीं ,तब मुन्नी भी अपने रंग को नहीं बदल पा रही थी | पर मौसी , आज आप बहुत खुश होंगी ना, आपकी इकलौती बहू गोरी जो है .....
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3 comments:
बहुत ही अच्छी कहानी । मौसी का दुख भी अपनी जगह सही है और निम्मो का भी ,पर निम्मो जवान है पढीलिखी है स्मार्ट है अपना प्रॉब्लेम हल कर सकती है । मौसीजी का बुढापा कैसे गुजरेगा ?
वाह! अर्चना, बहुत अच्छी कहानी लिखी है, और कहने का ढंग भी बहुत बढ़िया।
अरे आशा जोगलेकर जी, निर्मला मौसी ही निम्मो मौसी हैं भई!
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