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" सुजाता, कॉफी पीने चलोगी?" बहुत सकपकाते हुए तन्मय पूछ पाया था फ़ोन पर|
"चलो" एक शब्द का जवाब सुनकर शायद तन्मय को बहुत हैरानी हुई| सोचा था कुछ सवाल जवाब होगा | क्यों ? कहाँ ? कब ? कैसे ? कितनी सारी प्रक्टिस भी की थी उसने उन सवालों का अंदेशा कर के| सोचने लगा अब भूमिका कैसे बाँधूं? ...
कुछ देर की चुप्पी के बाद कुछ कुछ रटा रटाया बाहर आ ही गया -"दरअसल, मुझे बहुत ज़ोर से सर दर्द हो रहा है , इसलिए कॉफी पीने का मन कर रहा था | सो मैंने सोचा की अगर तुम भी चलती तो कुछ देर बैठ कर पुराने दिनों की बातें करते | कितना वक्त गुज़र गया है इस दौरान , है ना ? "
"हाँ, सही कह रहे हो ! काफ़ी कुछ गुज़र गया है...खैर , चलो " पीछे कंप्यूटर की टिक टिक बता रही थी की सुजाता फ़ोन पर बात करते करते अपना काम किए जा रही थी| इंसान कितने सारे काम एक साथ कर सकता है - फ़ोन पर बात करना, कंप्यूटर पर काम करना, पुरानी बातें याद करना, सोचना , मुस्कुराना ....
कहने को तो इंजीनियरिंग कॉलेज था पर बेहद रुढिवादी विचार धारा के लोग रहते थे वहां | आज के ज़माने की तरह चलन नहीं था तब | प्यार की कोई जुबां नहीं होती थी , कुछ कहा नहीं जाता था ............... शायद उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी | आपस की समझ बहुत तेज़ होती थी | हाँ , तभी तो प्रोफ़ेसर के सवाल पर कई बार सुजाता और तन्मय का जवाब एक ही साथ आता था ... एक ही जवाब ....चाहे सही हो या ग़लत ... फिर सबका हँसना .......... और दोनों का झेंपना ! आज कल कहाँ वो मासूमियत रही | शायद आज भी इश्क होता है , होता होगा .....
चार सालों में मुश्किल से चार बार उन्हें ऐसा वक्त मिला होगा जिसमे तसल्ली से वे कुछ बतिया सके हों | और उन्ही चार मुलाकातों में एक वो भी था-- फैरवेल पार्टी का आखरी दिन जब उन दोनों को मिल कर हॉल के गेट को सजानाथा | यूँ तो छः लोगों को मिल कर करना था ये काम पर जहाँ बाकी लोक नौ बजे की जगह ग्यारह बजे पहुंचे थे , तन्मय वहां पर सुबह आठ बजे से बैठा था | कोई बात नहीं हुई थी पर जाने कैसे सुजाता भी वहां सवा आठ बजे ही आ गई |
"मैं सोच रहा था की काम जल्दी हो जाए इसीलिए आ गया " तन्मय हड़बड़ी में कह उठा |
"ओफ्फो , मैंने तुमसे पूछा है क्या ? वो हथौडा देना " मुंह में सुई पकड़े सुजाता ने कहा |
"ये लो ..." बिना देखे हथौडा देते हुए हाथ अचानक सुजाता के हाथ से टकरा गया | हथौडा गिर गया | सुजाता के पाँव पर |
"आय ऍम सो सॉरी , ओह माय गौड़ ! रियली सॉरी ..." बड़े ही खेद भाव से तन्मय कहता गया, बार बार |
"इट्स ओके , अब अपना काम करो , सब लोग आते ही होंगे " सुजाता ने दर्द छुपाते हुए कहा |
"सुजाता , सुना है तुम प्लेसमेंट नहीं ले रही हो, डिग्री के बाद क्या प्लान है ? क्या शादी वादी..." कहना कुछ था और कुछ और ही कह रहा था |
"अरे नहीं ! अभी तो कुछ बनना है , आगे पढ़ना है ... अमेरिका जाना है .... और तुम क्या बनने की सोच रहे हो ?
"कुछ न कुछ.... तो बन ही जाऊंगा .." मायूसी छुपाने की कोशिश करते तन्मय ने कहा |
"हाँ तन्मय , तुम वाकई कुछ बन गए हो " कॉफी पीने जाते हुए सुजाता ने कहा |
"तुम ने भी तो बहुत नाम कर लिया है बहुत अच्छा लगा सुनकर , वैसे मुझे बहुत सर दर्द हो रहा था , इसीलिए कॉफी पीने को तुम्हें कहा था , वरना और कोई बात नहीं है " तन्मय दोबारा सफाई दे रहा था |
"मैंने तुमसे पूछा है क्या ? तुम भी न....." मुंह बिचकाते हुए सुजाता बोली |
"क्या पिओगी?" कैफे में तन्मय ने पूछा |
"नहीं मैं अभी खाना खा कर आई हूँ , तुम पियो , मैं तो सिर्फ़ वाक करने के लिए आई थी | तुम ले लो ..फिर गप्पे मारेंगे..." कहते हुए वो काउंटर से दूसरी और चली गई |
सुजाता ने अभी अभी नई नौकरी शुरू की थी | पहले ही मीटिंग में एक पहचाने चेहरे को देख सुजाता की बोलती बंद हो गई थी | यहाँ तक की जब उसके बोलने की बारी थी तब भी उसे कुछ सूझ नहीं रहा था | क्या टी.के. ही तन्मय था ???? इतनी बार ईमेल से बात चीत हुई होगी इस टी.के के साथ , और कभी भी इसने बताया नहीं की ये ही ...| इसे तो पता होगा ....शायद नहीं...... नहीं नहीं ज़रूर पता होगा .... और फिर भी नहीं बताया .... क्यों?
सामने तन्मय एक कॉफी के दो हिस्से कर रहा था |
" क्यों कॉफी ठंडा कर रहे हो ? मिस्टर टी के ! " व्यंग करते हुए सुजाता बोली |
"हा हाहा हाहा दरअसल , एक साल से तुम्हें पहचान गया था पर कभी बात करने की हिम्मत नहीं हो पाई | फिर मैंने सोचा पता नहीं तुम यहाँ ज्वाइन करोगी भी या नहीं ... करो तो तुम्हे पता चल ही जायेगा और जो नहीं करो तो फिर नहीं की सी बात ...अरे हाँ कॉफी ठंडा नहीं कर रहा हूँ , तुम्हारे लिए आधा अलग कर रहा हूँ | ये लो ... " कप थमाते हुए कुछ बूँदें छलक गयीं |
" ओह आय ऍम सो सॉरी , आई रियली ऍम " नैपकिन देते हुए तन्मय फिर से वही प्रतीत हो रहा था - वही दस साल पहले वाला तन्मय - भोला भाला - घबराया हुआ सा - साफ़ दिल में बहुत सारा प्यार लिए...पर तब भी कितनी बंदिशें थीं और अब भी हैं , सिर्फ़ नाम बदल गए हैं |
"तन्मय कितने बच्चे हैं तुम्हारे ? और मैडम जॉब करती हैं ?" बात आगे बढाते हुए सुजाता ने पूछा |
"तुमसे एक बढ़कर है | तुम्हारे दो हैं और मेरे तीन हैं | मंजुला - माय वाइफ - काम नहीं करती है | अभी बच्चे छोटे हैं |" कॉफी पीते पीते तन्मय बोला |
"तुम्हें कैसे मालूम मेरे दो बच्चे हैं ? वैरी फनी !" सुजाता ज़रा घबरा गई |
" अरे डरो मत ! अक्तुअली मुझे हमारे डिपार्टमेन्ट के सब लड़कियों के बारे में बहुत कुछ पता है | मैं क्या..... मुझे लगता है , सब लड़कों को सब लड़कियों की हिस्ट्री और जिओग्राफी के बारे में बहुत कुछ पता होता है , और मैं तुम्हें पहले से जानता हूँ , तो रूचि होना स्वाभाविक है " कहते कहते मुस्कुराने लगा|
सुजाता ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी |
"तुम बहुत बदल गए हो तन्मय, विश्वास नहीं होता की ये तुम कह रहे हो , सच विश्वास नहीं होता !" हँसी दबाते हुए सुजाता चहकी |
"पर तुम बिल्कुल वैसी ही हो सुजाता, बिल्कुल वैसी, जैसी थी..... हाँ ये बात तो मैं भी मानता हूँ की विश्वास मुझे भी नहीं होता .... कभी सोचा ही नहीं था की तुमसे कभी बात होगी .... इस तरह ... can't just believe it .... "बड़ी संजीदगी थी कहने में |
"अच्छा चलो अपनी फॅमिली फोटो दिखाओ मुझे .. और हाँ ये बताओ की क्या क्या शौक़ हैं जनाब के ? म्यूजिक , डांस , स्पोर्ट्स क्या ..."बात बदलने के लिए नई बात छेड़ी सुजाता ने |
"पैसा कमाना - अब बस एक ये ही शौक़ रह गया है | इंडिया से इसी के लिए यहाँ आया और अब भी यहीं पड़ा हूँ पर अभी तक ना ही फाइनेंस में और ना ही पोजीशन में कुछ कमाल कर पाया हूँ , बस यही दुःख रहता है |" मुट्ठी भींचते हुए वो उत्तेजित हो गया |
"अरे अरे , ऐसा मत कहो , भगवान् गुस्सा हो जायेंगे | इश्वर का दिया सब कुछ है तुम्हारे पास , अगर कदर नहीं करोगे तो फिर अच्छा नहीं होगा .....उसका शुक्रिया अदा करो और खुश रहो .... " मस्त होकर सुजाता बोली |
"तुम्हारी यही बात मुझे सीखनी है - लाइफ को फुल जीना | कैसे करती हो ? " तन्मय का एक बहुत ही टिपिकल स्टाइल है बात करने का , खासकर जब वो बातों में बहुत तल्लीन हो जाता था - अपने हाथों को चेहरे केसामने रख कर , आंखों को छोटा छोटा कर घूरने की दृष्टि से एक स्मित मुस्कान लिए, देखना |
"छोटी छोटी बातों में खुशी ढूँढो तन्मय ! बहुत हिम्मत, हौसला और सुकून पाओगे | वैसे भी किसे पता है कल का ; तो आज तो बिंदास होकर रहो न ... अरे एक बात तुम्हें याद है , जब में इंटर कॉलेज कांटेस्ट में गई थी तो तुमने एकगुड लुक्क चार्म दिया था मुझे - गणेश जी का एक लोकेट - पता है उसी लोकेट को थाम कर मैंने कितने सार कांटेस्ट जीते थे | बात किसी चीज़ की नहीं होती तन्मय, उसमे बसे विश्वास की होती है |" सुजाता बड़े भावः से कह रही थी और तन्मय उसे सुनकर , उसे देख कर मुस्कुराये जा रहा था |
"सुजाता, शादी के पहले किसी से दोस्ती नहीं हुई तुम्हारी ?" कुछ सुनने के ख्याल से सवाल उठाया तन्मय ने |
"मेरे बहुत सारे दोस्त हैं तन्मय | हाँ अगर तुम ये पूछ रहे हो की कोई अफयेर तो नहीं हुआ तो सुनो -इन सब बातों में लूक्स बहुत मायने रखता है - and I was never pretty enough !"
"I was ..what ?" तन्मय का अजीब सा सवाल आया |
"अच्छा बाबा आय वास नहीं , आय ऍम नोट प्रेटी एनफ , अब खुश ...?" सुजाता ने हँसते हुए कहा |
"अरे, मैं .." तन्मय बात पूरी नहीं कर पाया |
बहुत देर बातें होती रहीं- कुछ नई , कुछ पुरानी , कुछ हँसी, कुछ यूँ ही , कुछ अनकही, कुछ अनसुनी .....
"चलो चलते हैं बहुत बातें हो गयीं " उठते हुए सुजाता ने कहा|
कैफे के बाहर बारिश का मौसम था | हलके अंधेरे में स्ट्रीट लाइट की हलकी रौशनी सी छाई थी | बहुत सर्दी थी |
"चलो वापस चलते हैं, तुमने जैकेट भी नहीं पहनी है " अचानक सुजाता ने ध्यान दिया |
"नहीं नहीं , मुझे सर्दी नहीं लग रही है , कुछ और देर वाक कर सकते हैं , अगर तुम्हारा कोई ज़रूरी काम न हो " तन्मय बुदबुदाते हुए चल रहा था |
" अरे वाह ! देखो न कितना सुंदर है ये सीन , आय मीन , पूरा मैरीन ड्राइव लग रहा है , है न ?" सुजाता ने कहा |
वो शाम का नज़ारा , बारिश की बूँदें , हलोजन बल्ब की मध्हम रोशनी ,हरसू खामोशी , उस पल का एहसास , किसी का साथ और दिल में सुकून , क्या कोई दौलत ऐसी खुशी दे सकता है | पता नहीं ...शायद नहीं....
तन्मय ने बहुत ही धीरे से कहा -"पता है सुजाता मैं करीब दस साल से इसी रस्ते जाता हूँ पर कभी देखा नहीं था शायद कभी ध्यान गया ही नहीं | वाक़ई आज बहुत सुंदर लग रहा है |"
वक्त बीतता रहा | देखते देखते ट्रेल पूरा हो गया |
"दरअसल मुझे बहुत सर दर्द हो रहा था, तभी मैंने कॉफी के लिए कहा था , वरना मैं तुम्हें दीस्तर्ब नहीं करता " कहते कहते तन्मय लिफ्ट से बाहर आ कर अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया |
"ओफ्फो " सुजाता ने लिफ्ट का दरवाज़ा बंद किया |
सुजाता अब लिफ्ट में अकेली थी |
"तन्मय , तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और हरदम रहोगे , और ये तुम जानते भी हो ....
... पर अब वक्त बदल गया है , ज़िन्दगी बदल गई है तन्मय , अब मुझे एक औरत की तरह नहीं एक दोस्त की तरह देखो तन्मय वरना ..... पता नहीं .... " सुजाता लिफ्ट में खड़ी खड़ी अपने आप से बात कर रही थी | सोच सोच कर खिल खिला रही थी |
"सोचो तो , अगर मैं आज के इस किस्से को मोनिका को बताऊँ तो हॉस्टल मैं कितन हल्ला होगा - ओहो ! सुजाता कॉफी पीने गई थी , तन्मय के साथ , क्या क्या हुआ , बताओ न , क्या बातें हुयीं ? और.. साथ चाय पीना , और वों भी आधी आधी , बाकी गर्ल्स कितना जलेंगी ... आमने सामने बैठ कर बातें करना , कितना धमाका होगा हॉस्टल में, और फिर हम दोनों का साथ साथ टहलना, कॉलेज में जैसे आग लग जायेगी...
shut up , सुजाता कॉलेज बीते अरसा गुज़र गया है | ये ज़िन्दगी है , कॉलेज नहीं ....
सुजाता ने अपने पॉकेट से कुछ निकाला और मुस्कुराने लगी | कुछ खास नहीं था , एक पुराना सा गुड लक् चार्म था गणेशजी का ....
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2 comments:
कहानी अच्छी लगी, मालुम नहीं कहां, पर मन को छूती है।
आदर सहित, कुछ सुझाव,
(१) आपने कई जगह खड़ी-पायी या विराम चिन्ह (।) वाक्य के आखरी शब्द के तुरन्त बाद न लगा कर एक स्पेस देकर लगाया है। इसलिये कुछ जगह अगली पंक्ति पर चला गया है। मेरे विचार से यह वाक्य के अन्तिम शब्द के तुरन्त बाद लगना चाहिये, जैसा कि मैंने इस टिप्पणी में लगाया है।
(२) यह वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें। मेरे जैसे कमज़ोर आंख वालों को मुश्किल करता है। मुझे तीन बार कोशिश करनी पड़ी। इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन लगा लें।
dostee ka meethaa ahsaas hai padhkar bahut achchha lagaa
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