Thursday, October 9, 2008

फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी !-मौसी_सीरीज़-२

"क्या करें मौसी ? आधे घंटे से पार्किंग ही नहीं मिल रही , उधर सगाई का मुहूर्त निकला जा रहा है ," मैंने बड़ी कातरता से पूछा|
"ये मुआ पार्किंग -शार्किंग तो अपने यहाँ नहीं होता | तेरे मौसाजी तो जहाँ कहीं गाडी खड़ी कर देते हैं और हम तो ऐसे ही चल देते हैं | यहाँ तो हर बात का बड़ा चक्कर है | हाँ..... अमरीका है भई ! " मौसी तो हर बात का दोषी अमरीका को ही मान लेती है | यहाँ तक की कहती हैं उनकी कमर का दर्द भी अम्रीका में ही हुआ है , इंडिया में तो भली चंगी थीं !

"अनिवेज़ , मौसी मैं आपको होटल के सामने ड्रॉप कर दूँगी | आप और मौसाजी उतर जाना | मैं कहीं दूर पार्क कर दूँगी | और मैं अपने आप आ जाऊंगी | फिर आपको देर नहीं होगी और ज़्यादा चलना भी नहीं पड़ेगा |" मैंने समझदारी दिखानी चाही |
" अरी मैं वारी जाऊं ... दिखता नहीं यहाँ इतने मुष्टंडे घूम रहे हैं | तुझे अकेली कैसे छोड़ दूँ | ज़माना अच्छा नहीं है और इतनी महंगी साड़ी और जेवर पहने है | कहीं कुछ हो गया तो .... चल चल , हम दो क़दम चल लेंगे तो पाँव नहीं टूट जायेंगे ..साथ आए हैं तो साथ ही जायेंगे... हाँ !" मौसी तुनक कर बोलीं |
सुनकर जी भर गया | आज मैं तीन बच्चों की माँ हूँ , रोज़ सौ से ज़्यादा मील ड्राइव कर के काम को जाती हूँ | लाखों तरह के लोगों से मिलती हूँ, और मौसी को आज भी मेरी वही चिंता है जो तब थी जब मैं अनब्याही थी | वाह ! ये बड़े बूढे भी कैसे होते हैं ! कभी बच्चों को बड़ा नहीं होने देते | वैसे बड़ा बनना भी कौन चाहता है !

चलो, एक जगह मिल गई और गाड़ी वहां खड़ी कर हम भागे भागे बार पहुंचे | जाने राजू ने सगाई एक बार में क्यों रखी थी | कितने अच्छे इंडियन रेस्तरां हैं, शायद सोचा होगा की क्या जगह दोनों घरों के लोगों को रास आएगी और अंत में एक बार चुना होगा | सही है , वो भारतीय हो या अंग्रेज, मय तो हरेक को भाती है | अब प्रॉब्लम ये था की मौसा, मौसी, मैं , मेरे "ये ", ईस्ट कोस्ट से आई मेरी मौसेरी दीदी, भैया और हम सबके बच्चे , इनमें से कोई भी "पीता" नहीं है | तो अब हम बार में क्या करें ? चलो, हमें तो समारोह से मतलब है, खाना पीना तो चलता रहता है |

हाइब्रिड सगाई थी यानी की दो कल्चर का कुलचा बनना था तो किसी को पता नहीं था की ऊंट किस और मुड़ेगा | चलो, देखते हैं ! रोजी के परिवार के सब सदस्यों से उसने हमें मिलाया - अंकल जौन, आंटी सामंथा, अंकल समूअल , और जाने कितने ही नाम उसने बताये होंगे | पर पहली ही बार में किसको इतने नाम याद हो सकते हैं | बस सब को देख कर मुस्कुरा ही सकते हैं और हें हें हें कर हंस सकते हैं | पर अगर पहचान ना हो तो कोई कितनी देर तक दांत दिखा सकता है | आख़िर थक कर किसी कोने में बैठ जाएगा | हमने भी ऐसा ही किया | हमारा समूचा कुटुंब एक हिस्से में पसर के बैठ गया | सब बच्चे बाहर बड़ी भाभी के साथ, लौंज में खेल रहे थे | शुकर है, अभी से उन्हें बार दिखाना सही नहीं है |
आरम्भ में लोगों के तीन गुट साफ़ दिख रहे थे | भारतीय वेश भूषा में सजे धजे हम थे - राजू के घरवाले , अंग्रेज़ी वस्त्र में चमक रहे थे रोजी के परिवार वाले और सबसे मज़े की बात है की सारे मेहमान जिनमें अधिकाँश भारतीय थे , सब ऐसे कपडों में आए थे जैसे हवाई में पिकनिक मना रहे हों | ओबामा और मकैन के दो गुटों के बीच झूलते ये वो "swing voters" से लग रहे थे | राजू के दोस्त थे - सभी लगभग उसी की उम्र के थे | सब के हाथों में गिलास था - औरत , मर्द , सब बराबर थे यहाँ |

लगा की ऐसे अलग द्वीप सा नहीं रहना चाहिए | जब इनसे रिश्ता होने जा रहा है तो सब से मिलना चाहिए | तो जाकर अंकल जौन को मैंने हेलो कहा | उनसे काफी देर बात हुई | बहुत अच्छा लगा सोच कर की अब हमारा परिवार इंटरनॅशनल हो गया है ! लेकिन हर 'हेप्पीनेस' कि एक कीमत होता है | खुशी को भी मुंह दिखाई तो देनी ही पड़ती है .....

अंकल जौन से बात हो ही रही थी कि उनका सेल फ़ोन बज उठा और वो 'एक्सयूज़ मी' कह कर बाहर चले गए | और खाली चेयर देख कर एक बन्दा जो पता नहीं रोजी का क्या लगता था , आकर बैठ गया |
"इंडियन वीमन आर वैरी प्रिटी " उसने कहा | मुस्कुरा कर मैंने उसके बात का समर्थन किया |
"but there is a lot of poverty in India...." उसकी इस बात पर मेरी मुस्कान रुक गई और साथ में मेरा समर्थन भी |
इससे पहले कि मैं जवाब देती राजू का एक दोस्त कह उठा -"येस् सर, यू आर राइट , it is just bad out there ..."

मैं हैरान थी कि कोई भारतीय जो कि भारत में ही पला बढ़ा है कैसे इस तरह से कह सकता है | मुझे उस अंग्रेज पे कतई रोष नहीं था जिसने ये मुद्दा उठाया पर उस सूडो अंग्रेज पर बहुत गुस्सा आ रहा था |
"पर आपकी परवरिश में उस देश का बहुत बड़ा योगदान है जनाब , ये आप कैसे भूल जाते हैं | मानती हूँ मुश्किलें हैं , हर देश में होती हैं , पर माँ कि खामियों से माँ को गन्दा नहीं कहते... माँ तो माँ होती है ..." मैंने उन्हें कहा |
"अगर आप इतनी बड़ी देश भक्त हैं तो यहाँ क्या कर रही हैं , जाइये न वापस | These indians are so hypocrite....so.." उसे अपनी बात ख़तम करने को शब्द नहीं मिल रहे थे |
"These indians..." शब्द जैसे मेरे मन में प्रतिध्वनि कर रहे थे ..
और वो अंग्रेज़ जिसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, अपनी बुधिमत्ता दिखाने को बोल पड़ा -
"..and it is very hot too... I am wondering if I should go to India for Rosy's wedding. We have been trying to plan another wedding here once they come back. I don't see a reason to go such a distance just for a ceremony. "

"actually... " इससे पहले कि में उसका एक सटीक जवाब दे पाती, मौसी की पुकार ने ध्यान बदल दिया |
"गुडिया , ज़रा आना , देख बेटा , मेरा एक ही बेटा है, और मुझे ये माहौल ज़रा भी सगाई सा नहीं लग रहा | कहाँ तो मैं खीर पूडी सारे गाँव में बांटती , गरीबों को ढेर सारा समान दान करती , गाना गाती - खूब नाचती .. यहाँ ना ही ढोलक है न बाजा, ये क्या सगाई हुई , अब क्या फोटो लेकर जाऊंगी और क्या लोगों को दिखाऊंगी ? "

"अरे मौसी खीर पूडी आज घर में करेंगे और आपकी नाच गाने कि तमन्ना तो अभी पूरी होती है " मैंने मौसी का दिल रखने को कह तो दिया पर इस अंग्रेज़ वातावरण में अपने ही देश के लोगों को - मुझे अपनी ही भाषा का गीत गाने का अनुरोध करने में बहुत डर लग रहा था | फिर लगा कि ऐसे कोई नहीं आएगा , पहले ख़ुद मुर्गा बनना पड़ेगा ..

इतने बड़े बार के हॉल के बीच खड़े होकर मैंने एक बार माता का ध्यान किया कि माँ इज्ज़त रख लेना फिर ज़ोर से सबको कहा - लेडिस एंड जेन्तल्मेन ! आज मैं अपने भैया- भाभी कि सगाई पर एक गीत गाना चाहती हूँ | अगर आपमें से किसीको यह गीत आता हो तो आप मेरा साथ दे सकते हैं |
भीड़ ने ज़ोर कि ताली से मेरा स्वागत किया |

"वाह वाह रामजी ..........जोड़ी क्या बनाई ......भैया और भाभी को बधाई हो बधाई "
एक बार लगा कि वाकई बिना किसी बाजे गाजे के मेरी आवाज़ बहुत नीरस लग रही है | कोई साथ भी नहीं दे रहा |
एक बार तो मेरे होंट कंपकंपा से गए ...
"सब रस्मों से बड़ी है जग में दिल से दिल कि सगाई ...."
पल्लू कमर में खोंसती हुई मेरी मौसी आयीं मेरा साथ देने के लिए | मौसी सिर्फ़ गाना ही नहीं गा रही थीं बड़े ही सुंदर ढंग से उस पर नाच भी रहीं थीं !

ओह ! सिर्फ़ एक साथ , एक हाथ भर से ही कितना बढ़ जाता है साहस , कितनी बढ़ जाती है हिम्मत ! अब तो सोच लिया बस कि चाहे जो हो गाना तो पूरा करना है | अब सारे हॉल में बहुत चुप्पी छा गई थी | तभी किसीने गिलासों पर चमचों से बहुत ही प्यारी ध्वनि का इजाद किया जो कि गीत पर बहुत जच रहा था | किसी ओर से किसीने टेबल पर ही तबला बजाना शुरू कर दिया था | तो अब तो भैया हमारे साथ सब साज जुड़ गए थे | और तो और वो सभी परकटी सूडो भारतीय लड़कियां भी धुन में हमारे साथ शुरू हो गयीं | गीत अब पूरी भी मस्ती पर आ गया था ...

"सुनो भाभी जी अजी आपके लिए , मेरे भैया ने बड़े तप हैं किए ..." मैंने रोजी को आँख मारते हुए कहा |
सोचा कि इन्हें क्या समझ आएगा ?
तपाक से रोजी बोली- ""रियली ?"

सारी जनता में जोरदार ठहाका गूँज उठा | चाहे रोजी गीत ना समझे पर वो मेरे भाव समझ रही थी !
और वो ही नहीं वहां आए सब अंग्रेज़ संगीत में छुपे इस प्यार को सुन पा रहे थे | शायद इसिलए वे सब धीरे धीरे अपने कुर्सियों से उठ कर हमारे साथ नाचने कि कोशिश कर रहे थे .....

गीत के ख़तम होते ही "वंस मोर , वंस मोर " से हॉल गूँज उठा |

मुझे मनचाहा वरदान मिला जैसे |
कब से उस सूडो को कुछ कि मैं कोशिश कर रही थी | और अब मेरे साथ ये सारे लोग उसे ये सुनाने से नहीं चूकेंगे -
मैंने गीत शुरू किया
"जहाँ पाँव में पायल , हाथों में कंगन , हो माथे पर बिंदिया ...." और जैसे मेरी आवाज़ भीड़ की आवाज़ में खो ही गई ..
"It happens only in India ! It happens only in India ! It happens only in India ! "

एक के बाद एक जाने कितने ही गीत हमने उस दिन गाये होंगे , जाने कितनी ही देर हम सब वहां नाचते रहे...जाने कितनी देर ....

पता नहीं ये नशा शराब का था , शाम का था या अपनों कि याद का था पर उस दिन उस अंग्रेज़ी बार में हर दिल झूम रहा था , गा रहा था और नाच रहा था |
और हाँ , वो अंग्रेज़ जो भारत कि "poverty" को लेकर बहुत परेशान था बाहर जाता जाता मुझसे पूछ गया - "Do you always have music and dance like this.... in your special occasions .... in those colorful dresses ?"
"well, usually not like this..............only much better !" मैंने हँसते हुए कहा |
"then I think I want to go for Rosy's marriage to India" वह बड़े ही एन्थु में बोल रहा था |

मेरी आँखें अब भी उस सूडो को ढूंढ रही थी | लग रहा था जैसे अब भी कुछ कहना बाकी है... पर वो अब वहां नहीं था ...मैं आज भी उसे ढूंढ रही हूँ | अगर कहीं वो दिख जाए तो उसे मेरी ओर से आप ज़रूर कह दीजियेगा -
(क्या कहा आप उसे पहचानेंगे कैसे - बहुत आसान है - एक वही है जो स्वयं भारतीय होकर भी कहेगा - ओह ! These indians.... बस वही है ...)..
तो उससे कहियेगा ..किसी अर्चना ने कहा था-

आज जो परदेस में इतराये जा रहे हैं,
निज देस भूल पर के गीत गाये जा रहे हैं..
पर पूछ लें जो हम इन्हें किसने दिए थे पर, जिसे
वो थाम के आकाश में लहराए जा रहे हैं ?

हम धूल हैं, वो हमको ये बताये जा रहे हैं,
अपनी ही तान , ख़ुद कि राग गाये जा रहे हैं,
न है कोई खुशी में , और न गम में कोई साथ है,
ख़ुद की पीठ अब वो थपथपाए जा रहे हैं ....


आपकी,
अर्चना

2 comments:

Bimal said...

wah Archana ji - Apne desh ki yaad taja ho gayi. Apni kala ko aur protsahan dijiye. Hamari subhkamnayen apke saath hain.

BrijmohanShrivastava said...

इतना गहरा अध्ययन और चिंतन -सहसा विश्वास नहीं होता कि बात इस ढंग से और इतनी गहराई से भी कही जासकती है -लेख बताता है कि अध्ययन कितना गहरा है -और स्कूल कालेज में पढी गई कवितायें जो अभी तक याद हैं यह बहुत अच्छी बात है किंतु आजकल भी अच्छी रचनाएं उपलब्ध है -पन्त जी है ,त्रिलोचन है ,शिवमंगलसिंह जी है ,जितना अध्ययन होगा लेखन में उतना ही निखार आएगा