Tuesday, September 20, 2011

आओ दिखलाती हूँ तुमको सियाटेल की एक रंगी शाम ....

शहर में बारिश और दिमाग में खारिश चल रही थी ... जब सुबह सवेरे मेरी फ्लाईट पहुंची सियाटेल के रोमांटिक शहर में .... अब आप पूछेंगे की भाई रोमांटिक तो बन्दे होते हैं ... कोई शहर रोमांटिक कैसे हो सकता है ? अरे जनाब अगर आप सियाटेल के मौसम को तनिक देख लेंगे तो जान पाएंगे की कोई शहर आशिकाना कैसे बनता है .... टेम्पेरचर में कमी, हवा में नमी, सांसें थमी - थमी ... यू डमी....आपको नहीं ...खुद को कह रही हूँ .. क्योंकि मैं तो झिलमिल के बारे में कहने जा रही थी और शहर पर ही अटक गयी..

हाँ ! तो बात यूं हुई की सियाटेल की भव्य नगरी में एक मौका मिला हमें कविता पाठ करने का | कार्यक्रम का नाम - " झिलमिल " | संस्था का नाम - प्रतिध्वनि ! नाम से ही एक पोसिटीव वायिब मिलता है ... जिसने भी रखा है, बहुत चुन के नाम रखा है .... वर्ना आज कल लोगों के नामकरण के तो क्या कहने - "खिचड़ी" , "कन्फ्युशन " पता नहीं क्या क्या |

पर सच मानिए , सियाटेल में बसे भारतीयों का एक अलग ही सऊर है.... एक क्लास है |
वे जानते हैं आदर कैसे दिया जाता है, कैसे किसी को अपना बनाया जाता है..

तो चलिए, चलते हैं ईस्ट बहाई सेण्टर जहाँ पर सितम्बर १७ को ओयोजित हुआ था - "झिलमिल" सियाटेल की सांस्कृतिक संस्था "प्रतिध्वनि" द्वारा |
प्रतिध्वनि के कर्ता धर्ता है- अगत्स्य कोहली जी, जो प्रसिद्द लेखक और कहानी कार नरेन्द्र कोहली जी की के सुपुत्र हैं |
इनका साथ देते हैं - मौसम जी , जिन्होंने संगीत के क्षेत्र में बहुत ख्याति हासिल की है | यद्यपि ये संगीत में पारंगत हैं , किन्तु साहित्य और काव्य जगत में भी इनकी बहुत रूचि है |
क्यों ना हो, इन्हें विरासत में जो मिली है ... मौसम जी के माता श्री और नानी जी हिंदी साहित्य के जाने माने कीर्ति स्तम्भ जो हैं |
प्रतिध्वनि के और भी बहुत सारे कार्य कर्ता हैं जिनसे मेरी मुलाक़ात हुई उस दिन...

तो भाई , हम पहुँच गए ठीक पांच बजे बहाई सेण्टर, अभी लोग आ ही रहे थे | स्वयं सेवी गन बड़े तल्लीन भाव से हॉल को सजाने में लगे थे |

अपने मोहल्ले को छोड़ अन्य जगह पर कविता बाज़ी करने में थोडा डर तो लगता है.... मुझे भी लगा |
पर अभिनव शुक्ल जी की ज़िम्मेदार और काव्यमई मंच सञ्चालन ने मुझे बहुत हिम्मत दी और हौसला बढाया |
अभिनव जी अमरीका में बसे एक नामी कवि हैं जिन्होंने भारत और अमरीका में आयोजित कई कवि सम्मेलनों में सम्मान पाया है |
ये मेरा गौरव है की मुझे उनके जैसे गुणी कवि के साथ एक ही मंच पर काव्य पाठ करने का मौका मिला |
और हमारी तिकड़ी के तीसरे आदरणीय कवि थे - श्री आचार्य प्रसाद द्विवेदी जी जो आये थे कनाडा के वेंकुवर से |

कार्य क्रम का आरम्भ किया गया माँ सरस्वती की पूजा के साथ और प्रस्तुत किया शहाना ने सरस्वती वंदना.. गीत अति मधुर और अच्छा था |
तत्पश्चात सेयाटेल के उभरते कलाकारों ने अपनी कवितायेँ प्रस्तुत की |
जहाँ कृष्णन ने अपनी कविता में समझाया की भ्रष्टाचार का मूल क्या है, वहीँ निहित ने बताया की दाढ़ी रखने में भूल क्या है |
अंकुर ने तो हंसा हंसा के लोट पोट कर दिया अपनी कविता के द्वारा |
कभी कभी लगता है कितनी प्रतिभा छुपी हुई है हमारे हर भारतीय में... ज़र्रा ज़र्रा एक आग लिए बैठी है..

फिर आरम्भ हुआ एक ऐसा दौर जो शुरू तो हुआ हास्य के साथ लेकिन आरम्भ से अंत तक आये हुए मेहमानों ने भावों के कई झूले- झूले |
कभी किसी के सपेरे जैसी झुल्फों से उलझते तो कभी "अंग प्रदर्शन" के मुद्दे पर ठहाके लगते |
कभी भारत-अमरीका की धारा बहती तो कभी जीवन की अनकही बातें कोई कविता चुपके से कह देती |

पता ही नहीं चला हँसते हँसाते कब मध्यांतर का समय हो गया | और हम चल दिए कुछ पेट पूजा करने के लिए|
बहुत से लोगों से मिलना हुआ | बहुत अच्छा लगा | कुछ मौज - कुछ मस्ती - बड़ा यंग सा क्राउड था |

मध्यांतर के बाद तीन कवयात्रियों को आमंत्रित किया गया कविता पाठ करने हेतु - ज्योति ने बताया की भारत से आकर अमरीका में वह क्या मिस करती है , अनु जी एक बहुत ही उम्दा कविता का पाठ किया जो जीवन की सत्यता बहुत सरल शब्दों में दर्शाता है | शांति जी ने भी एक मधुर कविता का पाठ किया |

फिर मुझे अपनी कविता कहने का मौका मिला | ईश्वर कृपा से लोगों ने बहुत प्यार दिया और मुझे ख़ुशी है की मैंने कुछ पल सब लोगों को थोड़ी सी ख़ुशी दी |
आचार्य द्विवेदी जी ने अपने मधुर गीतों एवं ग़ज़लों से सबका मन मोह लिया |
अंतिम में कविता कहने आये अभिनव जी - कहते हैं ना- He laughs best who laughs last!
अभिनव जी की कविता शैली, विषय चुनाव एवं परिमार्जित भाषा इस बात की गवाही है की शुद्ध एवं निर्मल आनंद हमेशा से ही कविता के नाम पर हो रहे स्टैंड अप कॉमेडी से जीतता आया है और हमेशा ही जीतेगा | अपनी हर बात को अभिनव ने कविता द्वारा कहा और अंतिम में उनकी कविता "सपना" में उन्होंने बताया अपने सपने के बारे में जिसमे उन्होंने एक ख्वाब देखा है की एक दिन भारत एक ऐसा सुपर पावर बन जायेगा की सारी दुनिया के लोग - अमरीका भी - वहां जाने के लिए उत्सुक होंगे | अपने इस कविता के लिए अभिनव ने सभा में उपस्थित सभी लोगों से "standing Ovation" पाया - हमें आप पर बहुत गर्व है अभिनव जी ! और गर्व है दीप्ति जी पर भी जो एक आदर्श पत्नी की तरह आप का साथ देतीं हैं और आप को उत्साहित करती हैं की आप अच्छा लिखें और आगे बढ़ें |

मित्रों, कई जगहों पर सम्मेलों में भाग लिया पर जाने क्यूँ सियाटेल की इस यात्रा से मन में अपार आनंद मिला है |
घर की तुलसी को ज्यूँ किसी ने आदर से , प्यार से कहा हो -

तुम पास हो, तभी तो ख़ास हो..
दुनिया में हैं बड़े फनकार मगर,
तुम एक अपने का एहसास हो ..


अपने सभी नए मित्रों के "नाम" एक उपहार -


अंकुर सी आस लिए, ज्योति की प्यास लिए,
निहित काल अगत्स्य का दान हुआ था..
मौसम भी था उदार, साहित्य का खुला द्वार,
घर की तुलसी का जहाँ मान हुआ था...

अद्भुत अभिनव प्रयास, अनुपम ज्यूँ कृष्ण रास,
भावों- प्रतिभाओं का ज्ञान हुआ था ..
झिलमिल हुई काव्य धनी, गूँज उठी प्रतिध्वनि ,
हिंद- भारती, तेरा कल्याण हुआ था !

Sunday, August 21, 2011

मौके की नजाकत

माँ कहती थी मौके की नजाकत देख के काम किया करो ..

यूँ लगता है जैसे की पिछले कुछ दिनों से 'नजाकत' से मेरा पाला कुछ ज्यादा ही पड़ रहा है | अब देखिये न - उस दिन मंदिर में माथा टेकने गए थे | मंदिर के प्रमुख ने कहा की मंदिर की रेनोवेशन के शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी है , फिर बहुत समय तक ऑडिटोरियम में कोई ओयोजन नहीं हो पायेगा , अगर कुछ करना है तो इसी महीने कर लो | बड़ी तमन्ना थी की बे एरिया के कवियों का एक दरबार किया जाए | सो, मन मचल गया... | लेकिन महीने का एक ही दिन हॉल खाली था जिसके आने में सिर्फ दस दिन बाकी थे | कैसे होगा इतनी जल्दी सब ? हो पायेगा की नहीं ? कवियों की लिस्ट बनाना, उनसे कन्फर्म करना | टिकट बेचना , स्टेज देकोराशन, बाप रे बाप इतना सारा काम ! बस दस दिन ! और फिर ऑफिस का काम भी जैसे सर पर फाँसी के फंदे की तरह लटक रहा था | नहीं हो पायेगा... मना कर दूं? किसी हाल में नहीं हो पायेगा... मना कर दूं? .. क्या फायदा ... हँसी उड़ेगी ...
"मौके की नजाकत ".... शायद इसे ही कहता हैं .....
मना करना कितना आसन है न .... सॉरी.... मैं नहीं कर सकती ... बस काम ख़तम !
पर मज़ा तो तब है जब खुद से कहा जाए ... ट्राई करने में क्या हर्ज़ है ..ज्यादा से ज्यादा कितना बुरा होगा...क्या बुरा होगा ... शायद कुछ अच्छा हो जाए... शायद...
"पर काफी लोग टिकट की वजह से नहीं आ पाते हैं ... क्या हम इसे फ्री कर लें?" मैंने पूछा |
"लेकिन मुफ्त चीज़ की लोग कदर नहीं करते... यूँ करते हैं , पांच डॉलर टिकट में खाना साथ कर देते हैं ... लोगों के पैसे वसूल हो जायेंगे... " प्रमुख बोले
"पर टिकट महंगा करेंगे तो कोई नहीं आएगा , पांच डॉलर से ज्यादा नहीं करेंगे.. ठीक है न ?" मैं जानती थी की मार्केट की मंदी का बहुत बुरा असर हो रहा है, ख़ास कर कवि सम्मलेन के टिकट की सेल में !
लोग हीरो हेरोइन को देखने के लिए पचास, सौ , हज़ार डॉलर तक देने के लिए तैयार रहते हैं ... पर अपने ही भाषा के बढ़ावे के लिए दो डॉलर भी बहुत महंगा जान पड़ता है|
हाय री हिंदी ! अब तेरा क्या बनेगा ?

दाम कम रखने हेतु इवेंट का कोई फ्लायेर नहीं छापा गया | टिकट भी नहीं छापे गए | जो आयेंगे उन्हें एंट्रेंस पर ही रीस्ट बेंड पहनाएंगे - प्लान किया गया |
मार्केटिंग के नाम पर सिर्फ एक डोक्युमेंट भेजा गया जगह जगह .. ईमेल गए, फेसबुक पर पोस्ट हुए |

दिन कम थे ... पर आशा बहुत ज्यादा | लोग ज़रूर आयेंगे ... ये मेरी आस नहीं ... मेरा विश्वास था ..

आते आते कवि दरबार का दिन भी आ गया ... अभी तक सोलह कवि कवयत्री कन्फर्म कर चुके थे |
लगा कम से कम ये सोलह तो ज़रूर आयेंगे और एक आध भाई बंधुओं को भी लेकर ही आयेंगे |

लगा.... अगर सौ लोग भी हो गए तो कोई मलाल नहीं रहेगा |

पांच बजे की शुरुआत थी ... मैं तीन बजे ही आकर सब काम कम्प्लीट करने की कोशिश कर रही थी |

कुर्सियां लग गयीं ... स्टेज सज गया .... मायिक जम गया ... अब बस लोग आने बाकी थे |

सोचा मैंने माता के दर्शन कर आऊँ........ मंदिर में कार्यक्रम होने का एक फायदा ये होता है की माता के दर्शन हो जाते हैं |

तो मैं चल दी मुख्य मंदिर की और... देखा बड़ी भीड़ जमी हुयी थी .... पूछा मैंने की क्या हो रहा है?

आज़ादी दिवस के उपलक्ष्य में एक बड़ी सी मंडली का कार्यक्रम होने वाला था ..... जिसमे बच्चे नृत्य, गायन, वादन इत्यादि करने वाले थे |
लेकिन मंदिर के जिस भाग में उनका प्रोग्राम होना था , वो जगह थोड़ी छोटी थी और तो और वहां पर हो रहा पूर्व कार्यक्रम समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था |
लोग बड़े परेशान हो रहे थे .... कब उनके बच्चे का अयिटेम हो वो और वो वहां से खिसकें ...

मैंने सोचा यही शायद विडम्बना है ... कहीं जगह ही जगह है - और लोग नहीं आ रहे ... और कहीं लोग ही लोग हैं -और जगह नहीं मिल रही...

मैंने जल्दी ही वहां से निकल पड़ी सोच कर की कहीं लोग न आ जाएँ और मैं इवेंट में न मिलूँ... अच्छा नहीं लगता ...

मैं दौड़ के वापस हॉल में पहुँच गयी... देखा की इतने बड़े हॉल में बस छः लोग बैठे हैं ... छः कवयात्रियाँ मात्र....

घडी के हिसाब से छह बज गए थे ..... और इतने बड़े हाल में दिख रहे थे ... बस छह .......

"मौके की नजाकत " कभी कभी बहुत दुःख देती है... डरा ही देती है जैसे ....
आँखों में आंसू आ गए... मैं हार गयी .... इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए था | स्टुपिड हूँ मैं ... क्या करूं? कैंसल कर दूं? पर अब क्या फायदा ?

जाने क्या हुआ... माता रानी की कृपा हुयी...
मैं मंदिर की परिसर की और भागी... देखा जिस मंडली को बच्चों का कार्य क्रम करना था वह अब भी अपनी सुनिश्चित जगह का इंतजार कर रहा था |

पता किया मैंने की उनके ग्रुप का करता धर्ता कौन है ? उस भद्र महिला से मिल कर उन्हें सुझाव दिया की क्यूँ न हम इन दोनों प्रोग्राम को एक साथ कर लें?

अपने कार्यक्रम की देरी के कारण वे पहले ही बहुत परेशान थीं.. पर थीं वे समझदार ... खुद निर्णय करने से पूर्व उन्होंने सभा में उपस्थित सभी लोगों से सलाह करी |

कुछ बात चीत के बाद ये बात पक्की हो गयी की दोनों कार्यक्रम एक साथ किया जाएगा |

वे सब हमारे हॉल में आ गए ... हमारा बड़ा सा हॉल भर गया .... चहल पहल ... घुंघरूओं की थाप , गीतों के सुर गूज उठे ...

उस कार्य क्रम की निर्धारित एंकर मेरी एक दोस्त ही निकली ... बस फिर क्या था | एक से भले दो! हम दोनों ने मिलकर सारे कार्यक्रम को ऐसे बांटा की पता ही नहीं चला कब चार घंटे बीत गए |
बच्चों के दो गीत/ नृत्य होते , तत्पश्चात दो कवि या कवयात्रियों को बुलाया जाता ....

हाँ , कुछ कुछ अच्छा हुआ तो कुछ कुछ बहुत अच्छा नहीं भी हुआ |

चूंकि दो कार्यक्रम साथ साथ चल रहे थे तो ज़ाहिर है वक़्त ज्यादा लगता है अपनी अपनी बारी आने में |

बहुत से कवयात्रियाँ एक निर्धारित समय लेकर आयीं थी .... देर होने के कारण वे अपनी कविता का पाठ नहीं कर पायीं |
[अब तक दस कवि - कवयत्री और आ गए थे तो कुल मिला कर करीं सोलह कवि हो गए थे |]
बहुत से बच्चे और उनके माता पिता देरी के कारण परेशान हो रहे थे |

हाँ , सब कुछ अच्छा अच्छा नहीं हो सकता.... पर हम प्रयास कर सकते हैं ... की सब अच्छा हो जाए ...

मुझे बहुत ख़ुशी है की आज ऐसे कई कवि कवयात्रियों को मौका मिला जिन्हें आज तक अपनी कविता कहने का कभी मौका नहीं मिला था | और उन्हें कई लोगों ने सुना ... सराहा... मेरा प्रयास सफल हुआ ...

छोटे छोटे बच्चों को एक स्टेज मिला.. एक छोटे से जगह के स्थान पर उन्हें एक सही मंच मिला, जिसका मुझे बहुत हर्ष है ! चिर काल तक वे अपनी मेहनत- अपने पर्फोर्मांस को रेकॉर्डिंग के ज़रिये एक उचित स्थान पर देखेंगे... बहुत ही अच्छा हुआ !

हाँ , लोगों को थोड़ी असुविधा हुई होगी... कुछ लोग कविता पाठ नहीं कर पाए... देर हो गयी ..
कुछ बच्चों के माता पिता परेशान जान पड़ रहे थे .. देर हो गयी...

मैं क्षमा प्रार्थी हूँ ...

चलिए, अगली बार कवि दरबार नहीं , कवि गोष्ठी करेंगे... जिसमे हमें हॉल भरने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी |

पर आज बहुत मज़ा आया....
जहाँ एक और हमने तीन साल की बिटिया अंजू का "जय हो" पर नाच देखा वहीँ दूसरी ओर पिच्यासी वर्ष के "विमल" जी की कविता सुनी जिन्हें बुन्देल खंड में राम लला सम्मान से नवाजा गया है |
आज वास्तव में संगम हो गया ....

माता रानी आज मैं तुमको मान गयी ... और हाँ बहुत बहुत धन्यवाद |

हे प्रभु ! यूँ तो मैंने कई काव्य गोष्ठियां, कवि सम्मलेन देखें हैं पर आज का अनुभव बहुत अनूठा था !

माँ सही कहती है मौके की नजाकत के साथ ...

Monday, December 27, 2010

Man proposes and God laughs!

They say it’s all in the mind. We design own lives. Of course, we try ... but there are things out there... which we don't know. Why we connect to some people and find others evil and a few others simply bland? There is no logic to sentiments, no manual for fate; there are no Ifs for love and no buts for emotions. I still believe there is magic in the world. I feel wonderful things will happen. I trust that extra-ordinary things do happen to ordinary people.... people like you, me and us.

But I know that it’s not in our hands, what we can do, is try and hope and wish and pray... but flowers bloom in its own time, luck has its own entourage and yes, there are surprises, around the corner... good, bad, ugly...

Man proposes and God laughs!

God laughs at our endeavor to comply with everything- Our zest to be a certified good person, socially, morally, ethically, professionally, and by means of all "--ly". We don't dare to question anything. What is has been and shall be.....We continue the legacy. And feel so proud about it. We give up and call it maturity.

We obsess so much of our new found sanity that we put blinders on our perspective and even wrap our dreams with the curtains of “Should Be’s”. We do not want to be the spoil sport. We bow to be accepted and eventually accept anything to reach that.

Welcome to reality!

Thursday, December 9, 2010

This too shall pass.....

Life is strange, isn't it? One moment you are on the top of the world and the next moment you find yourself in a gulf. Looking back you think - Did I do that? yes, of course, I did it. but then you fail to realize why you did so....

Tough times bring you back to reality. It makes your pride vanish. You become humble, honest and caring. You start becoming human.

But you don't feel happy. You still feel sad. You want to be happy, naturally. But things don't happen the way YOU want it to. Life has its own route of twists and turns.

I realize that God makes you stumble a little to control your pace, so that you don't run in to the deep holes. God gives us small problems so that we can be ready for the big ones.

But again, anything and everything that happens, has some good plans behind it, cause God makes them.... God cannot be wrong. I fully believe that.

I know this phase will pass too.... I'll be happy again. The happiness which will be mine, for which I will not fear, nor have guilt. I know it'll come, I know that.

Didi said I am adventurous- I take giant strides, sometimes I get lucky and get success - big time......if I fail, failure comes in the same magnanimity too. So, its a gamble. She takes low coins and is happy with the small results. I go with my instincts. Don't know why.... I do what my heart says.... at times end up in trouble.

But then sad phase of life makes us realize the beauty of good times. It makes us appreciate the people who have been good to us.

I am glad that I am not an average 'people' - walking on the pathway, I take the un-chartered road, I might fall down , I might get lost, I might die, but I am happy that I try.

God, plz bless me that I should never let go of this spirit. I should be always brave and curious to see what if...

But I should also take good care of my family and self, of my name and reputation. I will not do harm to anyone. I will not do anything that is wrong.

Thanks God for saving me ! for giving me another opportunity and for making me realize my mistake. I know your warning will help me reach bigger heights in life.

God, help me get my confidence and happiness back. help me keep my family happy. help me bond & connect with my husband and respect him for his ingenuity and simplicity. help me think about us instead of me.

God, give me the vision to see the difference between good and bad and to chose the correct path so that I can give good things to the world.

Help me take the right step at the right time and reach the right place, to be with the right people.

I love you God!

Friday, March 26, 2010

अमरीका में आकाश वाणी भाग 3

वक़्त कैसे बीतता है, पता ही नहीं चलता, है न ?

अब देखो, मुझे रेडियो में एंकर करते हुए दो महीने बीत गए हैं , पता ही नहीं चला ......... मुश्किलें तो आती रहीं ... रोज़ दफ्तर में देर से पहुंचना ... बच्चों को समय से पहले उठा कर जल्दी से स्कूल के लिए तैयार करना ... ताकि टाइम से रेडियो स्टेशन पहुँच सकूं , दोस्तों के सवाल पर की "शो के कितने पैसे मिलते हैं ...." उन्हें ये समझाना की रोज़ के सुबह के दो घंटे मैं अपने शौक़ के लिए शो में जाती हूँ... पैसों के लिए नहीं ...खुद के इस विश्वास को हर हाल में बनाए रखना..

पर बहुत मुश्किल होता है अपने शौक को ज़िन्दा रख पाना ... ख़ास कर जब उसकी टक्कर रोज़गार से हो .... बहुत बार सोचती हूँ क्या जीविका ही जीवन है , जी हाँ ... जीविका और जीवन के इस होड़ में जीत हमेशा जीविका की होती है , ये पैसा है ही ऐसी चीज़... हर कोई इसके पीछे भागता है ... मैं कोई भीड़ से हट कर तो नहीं हूँ न!

पर इससे पहले की मैं ये कहानी सुनाऊं की आज मैंने अपने इस जीवन से क्यूँ मुंह मोड़ा, मैं आपको अपने कुछ खट्टे मीठे अनुभव बताना चाहूंगी अपने इस छोटे से दौर के बारे में जो मैंने आवाज़ की दुनिया के दोस्तों के साथ बिताया ....

इस देसी स्टेशन पर रेडियो शो करने के घंटे के तीन सौ से पांच सौ रूपए तक देना पड़ता है, हर रेडियो शो के होस्ट को | अब इसकी भरपाई होती है एड्स एवं गेस्ट स्पीकर के द्वारा | हर एड के पचीस डॉलर और हर गेस्ट को प्रति घंटे के ढाई सौ से पांच से तक देने पड़ते हैं | अरे भाई, होस्ट को अपना ब्रेक इवेन भी तो करना होता है न | लेकिन गेस्ट स्पीकर भी अपनी कंपनी या प्रोडक्ट की मार्केटिंग करके अपना पैसा वसूल कर लेते हैं|
कभी डॉक्टर, कभी टैक्स कांसुल्तंत, कभी कोई ज्योतिष शाश्त्री तो कभी dentiste ....

तो मैंने सोचा अपने प्रोग्राम को मैं कुछ एड्स लेकर आऊँ तो शायद श्लोक को कुछ मदद मिले|
तो ये मेरा पहला तजुर्बा था किसी चीज़ की मार्केटिंग करने का | मैंने एक ब्यूटी पर्लोर की मालकिन से कहा की आपकी दुकान बहुत चलेगी जो आप हमारे साथ एड करोगे |

उसने बहुत इंटेरेस्ट दिखाया , और मेरा हौसला बढाया |
फिर धीरे से हमने उसे एड का दाम बताया .... तो उसका मुंह उतर आया...
हमें उसकी हालत पर प्यार आया ... तो हमने एक प्लान बनाया ....
हमने फ़रमाया ...
देखो आप एक या दो एड के तीस डॉलर देंगी ... लेकिन अगर आप पूरे चार हफ्ते के एड लेंगी....
तो देखेंगी....
की एड के दाम कम जायेंगे .... और बहुत से कस्टमर आपकी दुकान पर आयेंगे ...
और आपकी कम हम फीस कर देंगे, चलो तीस की जगह हम बीस कर देंगे ...
(सोचिये कितना भारी डिस्काउंट दिया था.... उनको attract करने के लिए ...)

सुनकर उसको चैन मिला, और उसका चेहरा खिला..

बोली वो के बीस डॉलर का बस एक एड में लूंगी, लेकिन उसके पैसे मैं उससे कस्टमर आने पर दूँगी |

ऐसे ऐसे कई बड़े बड़े अनुभव हमने पाए,
तो भैया, देसी जनता से बिजनेस करने से हम घबराए |

ये तो थी एड्स के मार्केटिंग की बातें.... वैसे कुछ अनुभव शो के भी आपको बताना चाहूंगी ...

श्लोक जो की प्रमुख होस्ट हैं ( मैं तो उनके साथ को-होस्ट हूँ ) कोशिश करते हैं की शो की मस्ती बनी रहे .. कभी गाना, कभी गप्पें , कभी कुइज़ और कभी समाचार ... रोड में ट्रेफिक से लेकर देश-विदेश के न्यूज़ और स्टोक के उतार चढाव को भी बताया जाता है | लोगों के साथ बातें करना एक बहुत ही पोपुलर अयिटेम होता है .... जाने क्यूँ लोग अपनी आवाज़ को रेडियो पर सुनना बहुत पसंद करते हैं , अपना नाम सुनकर लोग बाग़ बाग़ हो जाते हैं |
चाहे अपने घरों में अपने पार्टनर से प्रेम करें न करें लेकिन रेडियो पर उनके लिए फरमाईश के गीत ज़रूर बजवायेंगे | पूरी दुनिया के आगे अपने प्यार के इज़हार होने का अपना ही मज़ा होता है, अब ये अलग बात है की वो प्यार है भी की नहीं , वैसे की फरक पैंदा है ... वही सच है जो मीडिया कहे .. उसकी सच्चाई कौन परखता है ... किसके पास इतना वक़्त है ?

श्लोक जी कहते हैं की ऐसी मुद्दा उठाना चाहिए जिसपर बोलने के लिए लोगों को ज्यादा सोचना न पड़े | कुइज़ के लिए भी सवाल ऐसे पूछो की मज़ा भी आये लेकिन ज्यादा ज्ञान की ज़रुरत न पड़े |
मैं गंभीर प्रकृति की श्रेणी में आती हूँ | लेकिन चूंकि श्लोक जी को गुरु मान लिया है तो, बिना परखे, उनसे सीखने की उम्मीद में मैं इस इश्टाईल को अपनाने की कोशिश करती हूँ |

लेकिन मैं लोगों के इस टेस्ट से हैरान हूँ .... लोग चलते फिरते बस बॉलीवुड के गाने सुनना चाहते हैं | आज तक मैंने किसी को ये पूछते नहीं सुना भाई अपने रेडियो पर एक शो करो जिससे की गरीब लोगों का, दुखी आत्माओं का कुछ भला हो | देस छोड़ कर आये हुए वे लोग जो आकर यहाँ पर बेहद परेशान हैं, उनके लिए कुछ करो यार | एक प्रोग्राम हो जिसमे सिर्फ समाचार हो - लोकल, देस-विदेश की, पूरे संसार की |

मेरी एक सहेली है जिसका पति किसी दूसरी के साथ दिन -रात बिना झिझक के लगा रहता है | मेरी सहेली सब कुछ जाना कर अनजान बनी रहती है | कहती है , अगर हंगामा किया तो फिर बच्चों पर असर गलत पड़ेगा और फिर कमाई भी तो ये ही करते हैं , इस पराये देश में कहाँ कहाँ भटकती फिरूंगी ? इससे अच्छा है की परायों में रोऊँ , अपनों में ही रोना बेहतर है | अस्मा अकेली नहीं है इस तरह की मुश्किल में | आज कई ऐसे सम्माज के "ठेकेदार" हैं जो दोहरी ज़िन्दगी जी रहे हैं | घर की मुर्गी इन्हें हमेशा ही दाल बराबर लगती है | लेकिन इनका पर्दाफाश करने की जुर्रत कौन करे ? कौन बांधे बिल्ली के गले में घंटी ? और वो भी जब उन्हीं "ठेके दारों " से उन्हें पैसे मिल रहे हों अपने प्रोग्राम को आगे बढाने के लिए |

मेरे बच्चों को जो पंजाबी आंटी संभालती थी उनकी बड़ी अजीब कहानी थी | पंद्रह साल पहले उनके पति अमरीका आये थे , किसी एजेंट के साथ जिसने उनको बोर्डर पार करने में उनकी मदद की थी | लेकिन उस बोर्डर तक पहुँचते पहुँचते उन्हें करीब दो साल लग गए और फिर छह साल और लग गए उन्हें कुछ कमा कर एक "ज़िन्दगी" जीने में | करीब आठ साल के बाद हमारी आंटी जी को ये पता चला था की उनके पति अमरीका में पहुँच गए हैं , उन्हें ये भी नहीं पता था की ये जिंदा भी हैं या नहीं | फिर उन्हें यहाँ एक स्टेटस पाने के लिए अपनी खुद की बीवी को नकली तलाक देकर एक गोरी में से शादी करनी पड़ी | अब भी दिखावे के लिए वो अपनी बीवी के साथ बल्कि बल्कि उस गोरी के साथ रहते हैं | वाकई, क्या लाइफ है ! अपना देश छोड़ कर यहाँ आकर क्या हर कोई ख़ुशी पा जाता है ?

एक लड़का है .... जो पढने के लिए अमरीका आया , कुछ महीनों पहले | परदेस आने के लिए क्या हम इतने डेस्पेरेट होते हैं की ये पता ही नहीं होता की कहाँ जा रहे हैं, क्या करने जा रहे हैं ??? उसने किसी थर्ड ग्रेड कॉलेज में दाखिला ले तो लिया पर अब पैसे नहीं थे बाकी खर्चे के लिए ...| किसी लोकल... सेवेन लेवेन जैसी किसी दुकान पर काम करने लगा | आधी रात को किसी बन्दे ने उसे चोरी करते हुए.... गोली मार दी | अब उस गरीब की लाश को वापस भारत भेजने के लिए यहाँ के लोग चंदा जुटाने में लगे हैं |

मेरी एक सहेली थी, बचपन की ...किसी बॉडी शोप्पर से H 1 बनवा कर आ गयी .... इस ग्रेट धरती पर... लेकिन शायद रिसेसन का असर इनपर सबसे ज्यादा पड़ा |
नौकरी तो मिली नहीं पर.... हाँ खुद को इस देश में ( जब तक नौकरी नहीं मिलती ....की उम्मीद में ) एक नए रूप में देखा इन्होनें- एक कॉल गर्ल के रूप में | महान हैं वे 'लोग' जो लेकर आते हैं देस के 'foolon' को परदेस में खिलाने के लिए....

अरे मैं ये सब क्या कह रही हूँ .... मैं तो रेडियो शो के बारे में लिख रही थी | दरअसल मैं इस लिए लिख रही हूँ ताकि मैं सोच सकूं की मैं रेडियो पर किस तरह के शो करना या देखना चाहती हूँ |

मैं आसमा को रडियो पर लाना चाहती हूँ ताकि वो सारी दुनिया को बता सके की जो इंसान सारी दुनिया के आगे इतना अच्छा आदमी बनता है वो हकीकत में कितना दरिंदा है , शायद इससे कोई और मासूम भी हिम्मत कर सके की वो समाज के आगे आकर अपनी हालत बता सके | शायद हैवानियत ज़रा धीमी पड़ जाए .....शायद....

मैं आंटीजी को रेडियो पर लाना चाहती हूँ ताकि उन लोगों तक ये बात पहुंचे, जिनके दिलों में परदेस के सपने होते हैं, की परदेस भी कोई जन्नत नहीं है | अपना घर छोड़ने से पहले एक बार सभी पहलू देख ज़रूर लो |
बोर्डर पार करते हुए गोली दिल के पार भी हो सकती है यारा ....

मैंने इस देश का एक बहुत दहशत कारी रूप देखा है और ये सब अँधेरा इन उजालों के नीचे ही है ... कहीं छुपा हुआ ... पर है .. और इतना काला है जिसकी तुलना नहीं की जा सकती है ....

कहते हैं - Your talent is a gift of God .... how you use this is your gift to God|

लोग कहते हैं खुदा ने मुझे अच्छी आवाज़ दी है - बोलती हूँ तो लोगों को अच्छा लगता है, सोच ऐसी है की सही और गलत में फर्क कर सकती हूँ | खुदा ने मुझे टेलेंट दिया है तोहफे में | लेकिन इसे मैंने कभी इस्तेमाल नहीं किया | ए खुदा, अभी मेरा तुझको तोफहा देना बाकी है ... शायद कभी तेरा ये क़र्ज़ उतार सकूं...

सवाल ये है की क्या वाकई इस देसी रेडियो में इतनी हिम्मत होगी की इन सच्चाइयों को दुनिया को दिखा सके ? क्या मुझमे इतनी औकात है की मैं इसे सही रूप में दिखा सकूं?

पता नहीं .... फिलहाल तो मैं इतना बता दूं... की मेरी खुद की नौकरी बहुत ही डेंजर ज़ोन में है ... कब क्या हो जाए पता नहीं है .... वैसे भी मैं बिजनेज में फेल हूँ .... आपने ये तो पहले देख ही लिया होगा .... तो मेरी अपनी सत्ता डांवा डोल दिख रही है |

तो इस करके, अब मुझे रेडियो से दूर हटके अपनी जीविका पर ध्यान देना होगा | हर दिन काम से आते जाते वक़्त कभी रेडियो चल जाता था तो बहुत मलाल होता था .... काश मैं भी इस सैलाब का एक हिस्सा होती | काश मेरी जिम्मेदारियां इतनी न होती .... काश मैं कुछ कर पाती .... नहीं कर पाती हूँ .... इसलिए आज कल रेडियो नहीं सुनती हूँ ........

Wednesday, March 10, 2010

अमरीका में आकाश वाणी भाग २

कई गलत जगहों पर घूम फिर कर , ढूंढते ढूंढते मैं रेडियो स्टेशन पर पहुँच गयी | तीन बड़े बड़े लम्बे लम्बे टावर खड़े थे सामने जिन पर लाल बत्ती टिम-टिम कर रही थी |
मेरा दिल बहुत बुरी तरह से धड़क रहा था |बड़े दरवाज़े से अन्दर गयी तो वहां कोई नहीं था , एक अँगरेज़ के सिवा |
मैंने अपना नाम और मकसद बताया तो उसने जवाब दिया की अभी उस शो के लोग आये नहीं हैं |
टेबल पर तीन बड़े बड़े मायिक लगे थे | मैं एक मायिक के पास पड़े कुर्सी पर बैठ गयी |
"वो मेरी कुर्सी है... वहां मैं बैठता हूँ..." एक आवाज़ सुन कर मैं सिहर गयी |
"हाई ! मैं श्लोक हूँ और ये मेरी मैडम- ज्योति " अपना मशीन लगाते हुए श्लोक कहे जा रहे थे |

"कितना टाईम बाक़ी है ?" श्लोक ने उस अँगरेज़ से पूछा जो मेन मशीन चला रहा था |
" टेन सेकंड्स .." और फिर उलटी गिनती के ख़तम होते ही श्लोक ने अपने लैपटॉप से रेडियो का फीड स्टार्ट कर दिया |

"अरे वाह ! ये तो कमाल है " मैंने सोचा |

प्रोग्राम हिंदी गीतों का था | श्लोक और मुझे बारी बारी उन गीतों से लोगों का परिचय कराना था |
कभी शेरों का सहारा था, कभी चुटकुलों का तो कभी महज़ कुछ अच्छी सी बात बोल कर उन गीतों को हम शुरू कर देते थे |

प्रोग्राम के एक हिस्से में एक डॉक्टर भी आयीं थीं | मेरी तरह उनका भी पहला दिन था रेडियो पर | हम दोनों ही बहुत एक्साईटेड थे |कभी कभी लोग कॉल भी कर रहे थे अगर उन्हें कोई फरमाईश देनी हो या डॉक्टर से कोई सवाल हो या कोई भी बात करनी हो |

प्रोग्राम कब ख़तम हो गया, पता ही नहीं चला |दो घंटे जैसे मिनटों में उड़ गए |

शो के बीच में किसी ने कॉल कर के कहा की मेरी आवाज़ उन्हें बहुत अच्छी लगी | मुझे सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई|

शुक्रिया कह कर जब मैं अपने काम को ड्राईव कर थी तो लग रहा था कितना अच्छा होता जो मुझे यहीं काम मिल जाता | कम पैसे मिलें तब भी में यहाँ काम करने को तैयार हूँ | कितनी ख़ुशी होगी न अपने पसंदीदा काम में ही काम करने में| है न?

लेकिन यहाँ कोई ऐसा काम नहीं है |
तो कहानी का सार यही है की अपनी रोज़ी रोटी इसको आप नहीं बना सकते हैं |
लेकिन हाँ अगर रोज़ी रोटी का जुगाड़ आप कर चुके हैं तो उसके साथ आप इसे कर सकते हैं, शौकिया तौर पर |

पर मैं तो इसी में खुश थी मुझे एक मौक़ा मिला इस बढ़ते हुए सैलाब का एक हिस्सा बनने का|

अब देखो किस्मत क्या खेल दिखाए .....

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अमरीका में आकाश वाणी भाग १

कई साल पहले टेक्सास से वापस आते हुए मन में ख्याल आया था की कितना अच्छा होता अगर बे एरिया का भी अपना रेडियो स्टेशन होता | उस वक़्त टेक्सास में मैं "सलाम नमस्ते " - चौबीस घंटे वाला इंडियन रेडियो स्टेशन -सुन कर बहुत खुश हुयी थी|
बरसों बाद जब सुना की के.एल. ओ. के का एक नया रेडियो सेण्टर बे एरिया में खुलने जा रहा है तो मन ख़ुशी से झूम उठा|
फोन घुमाया, ईमेल किया की कुछ घंटों के लीज़ के लिए के लिए यह सेण्टर कितना चार्ज कर रही है |
दाम सुन कर सारे हौसले पस्त हो गए|

पता चला की आम तौर पर एक घंटे के लिए तीन सौ डॉलर से पांच सौ तक रेट हो सकता है|
ड्राइव टाइम यानी की जब लोग अपनी गाड़ियों में आते जाते हैं उस वक़्त रेट बढ़ कर पांच सौ या उस से भी अधिक हो जाता है|

तो फिर शो के पैसे कहाँ से आयेंगे ??? क्या इश्तेहारों और गेस्ट स्पीकर लोगों से इतना बन जायेगा |
और फिर एक फुल टाइम जॉब और फॅमिली की जिम्मेदारियों के साथ मुझे लगता नहीं की मैं इतने एड्स की मार्केटिंग कर पाऊंगी|
तो फिर मैं यही कर सकती हूँ की अगर किसी प्रोग्राम मैं हेल्प कर सकूं तो शायद उनकी कुछ मदद हो जाएगी और मेरा शौक़ भी पूरा हो जायेगा .... शायद ....

चलो, फिर मैंने सभी प्रोग्रामों को सुनना शुरू किया | मुझे इनमें से एक शो बहुत ही अच्छा लगा - "ख़ुशी सवेरे की" | लेकिन मुझे लगा की अगर शो और उसके होस्ट इतने माहिर हैं तो वो मुझे साथ क्यों लेंगे | मैं रुक गयी|

फिर मुझे बे एरिया में एक बहुत बड़ा टलेंट कांटेस्ट के आयोजन का मौका मिला | इसी इवेंट के प्रोमो के लिए मुझे अपने प्रिय रेडियो शो के होस्ट एवं उनकी फॅमिली से मिलने का मौक़ा मिला |हमारी इवेंट में बहुत सारे भाग लेने वाले लोग रेडियो पर सुन कर ही आये थे |

फर्स्ट लेस्सन - पहली सीख - मीडिया के पॉवर को कभी कम नहीं समझो | एक ही झटके में कितने सारे लोगों तक आपकी बात पहुँचती है | ये आप पर निर्भर है की आप अपनी ज़िम्मेदारी किस तरह से निभाते हैं | आप इसे हलके तरह से लेकर - सिर्फ 'फन' कह सकते हैं या इसके ज़रिये बड़े बड़े काम कर सकते हैं... जिसे लोगों का भला हो...

चलिए कहानी आगे सुनते हैं |

ज़िन्दगी चलती रही | इतनी हिम्मत नहीं हो पा रही थी की कदम बढ़ा कर रेडियो पर कुछ करा जाए|

डर डर के एक दिन ईमेल कर ही दिया, अपने फेवरेट शो के होस्ट से, की अगर हम भी आपके शो में कुछ मदद कर सकें तो हमें बड़ी ख़ुशी होगी|

कुछ दिनों तक जब कोई जवाब नहीं आया तो बात आई गयी सी हो गयी | चलो , हमने कोशिश तो की...

एक दिन इतवार को मेरे ईमेल का जवाब आया .... "हमें इस नंबर पर कॉल करें जल्दी..." ... अरे वाह ! मौका मिलते ही हमने नंबर घुमाया....

"दरअसल बात ये है की हम अपने श्रोताओं में से एक को चुनते हैं कुछ स्पेशल दिनों में हमारे शो में आने के लिए.. क्या आप कल हमारे साथ शो को एंकर करना चाहेंगी ?..." श्लोक, ("ख़ुशी सवेरे की" के करता धर्ता) और उसके होस्ट , खुद मुझसे बात कर रहे थे |

मुझे यकीन नहीं हो रहा था ... आई मीन ... अरे यार !...कल मेरा बर्डे था | शायद मेरे साथ कोई मज़ाक हो रहा है या शायद मेरे हसबेंड ने ये सब अरेंज किया है मुझे खुश करने के लिए |
मैं कई दिन से राज जी से भी बात कर रही थी की चलिए कुछ करते हैं... क्या उन्होंने ये सब करवाया है |
ऐसे कैसे हो सकता है , ठीक मेरे बर्डे के दिन मुझे उस काम के लिए बुलाया जा रहा है , जिसको करने की मेरी तमन्ना आज की नहीं ... बरसों की है |
चलो देखते हैं..

"ऑफ़ कोर्स .. मैं ज़रूर आना चाहूंगी आपके शो में कल .... और प्लीज़ बताइए अगर कोई तैयारी करने की ज़रुरत है..." मैंने पूछा |
"अगर लेकर कर आ सकें तो एक बिलकुल खुली सोच - एक ओपन माईंड लेकर कर आइयेगा " हँसते हुए श्लोक ने कहा |

शुक्रिया कहकर जैसे ही मैंने आई फ़ोन को बंद किया , मेरे पैर धरती पर तो पड़ ही नहीं रहे थे |

मैंने अपने पति को फटाफट फोन मिलाया और बताया जो अभी अभी हुआ था | मुझे लगा की अगर उन्होंने ये सब खुद अरेंज किया है तो शायद हंस देंगे और मुझे पता चल जायेगा |

लेकिन उनकी बातें और आव भाव से यूं लगा की उन्हें भी उतना ही आश्चर्य हुआ है जितना की मुझे हुआ था !

अब बस रात काटनी बाकी थी | कब सुबह हो और मैं देखूं की आखिर रेडियो स्टेशन में होता क्या है॥ आखिर कैसा होगा वो मंच जहाँ से लोग इतने प्यारे प्यारे गीत बजाते हैं ... बड़े बड़े लोगों से बात करते हैं... खूब मजाक- मस्ती भी करते हैं.... आखिर कैसा होगा .....

पूरी रात मुझे नींद नहीं आई ... हर आधे घंटे बाद मुझे लगा ... क्या सुबह हो गयी..... अरे अभी तो सिर्फ ढाई बजे हैं...

चलो, सुबह आखिरकार आ हो गयी |
घर के सभी काम निपटा कर , इनके और बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करके मैं खुद रेडी हो गयी जाने के लिए उस जगह पर जिसे देखने की ख्वाहिश हिलोरें ले रही थी |

घर से निकलने ही वाली थी की पीछे से आवाज़ आई | मैंने मुड कर देखा |

"हेप्पी बर्डे टू यू ! हेप्पी बर्डे टू यू ...... " अरे yaar ! मैं तो अपना जनम दिन भूल गयी थी |

उस परम पिता ने साल गिरह पर ही मुझे इतना अच्छा तोहफा जो दिया था .....

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आगे की कहानी पढ़िए भाग दो में .....