Saturday, December 13, 2008

कतरा कतरा मिलता है ..कतरा कतरा पीने दो ....

"सुजाता, लगता है मुझे अवोइड करने की कोशिश कर रही हो | क्यों सही कहा न ??" तन्मय ने मुस्कुराते हुए कहा |
"कोशिश नहीं तन्मय , कर रही हूँ | काम बहुत आ गया है " सुजाता ने व्यस्तता जताते हुए कहा |
"मेरी टीम को जोइन क्यों नहीं किया , और तो और, किसी इंडियन को नहीं बल्कि उस चपटे मेनेजर को चुना | मेरी रिपोर्ट बनती तो तुम्हारा करियर कहाँ पहुँच जाता , कुछ पता है ?" तन्मय अपना रोष निकाल रहा था |
"नहीं, दोस्त को बॉस नहीं बनाना चाहिए | कंफ्लिक्ट अफ इंटरेस्ट हो जाएगा | वैसे भी मेरी हामी तो नाम मात्र की थी , निर्णय तो पहले ही लिया जा चुका था | इतनी बड़ी कंपनी में पॉलिटिक्स भी बड़ी बड़ी होती है | अच्छा ये बताओ इस तरफ़ कैसे आना हुआ ? सर दर्द कर रहा है , काफी पीना है ? हा हा हा " सुजाता को वह पहला दिन याद आते ही हँसी नहीं रूकती थी |
"नहीं सूजी ! एक बहुत ज़रूरी लेख लिखना है , वैसे तो मुझे लिखना चाहिए पर प्लीज़ , तुम लिख दो | अगर ये प्रोजेक्ट सफल हो जाए तो लंच पे चलेंगे | पक्का!"फिर तन्मय ने विस्तार से बताया की इस प्रोजेक्ट का कितना महत्व था उसके लिए |
"ठीक है , चलेंगे, पर अभी नहीं , हो सके तो बारह तारीख फ्री रखना, उस दिन कुछ ख़ास है मेरे लिए , उस दिन चलेंगे, ओके? " सुजाता ने हँसते हुए कहा |
"तुम्हारा बर्थडे है क्या ?" हटात ही तन्मय पूछ बैठा |
"अरे नहीं ! इस उम्र में बर्थडे तो याद भी नहीं रहता ... उस दिन बताऊंगी क्या ख़ास है | अच्छा अब जाओ , मुझे बहुत काम है" सुजाता ने कंप्यूटर पर नज़रें गडाते हुए कहा |
कई दिनों की मेहनत के बाद प्रोजेक्ट का वह महत्वपूर्ण लेख तैयार हो गया |

प्रोजेक्ट कामयाब रहा |

आज बारह तारीख है | कई दिनों से तन्मय दिखा नहीं है | हाँ , इतनी ज़िम्मेदारी के काम पर समय का होश कहाँ रहता है ? चलो कोई बात नहीं | फोरगेट ईट ! यह सोच कर सुजाता अपने काम में लग गई |

डेढ़ बजे बड़ी ही हड़बड़ी में तन्मय ने फ़ोन पर पूछा - "क्या खाना वाना खा लिया क्या?"
कुछ सोच कर सुजाता ने कहा -"हाँ !" हालाँकि टेबल पर भरा हुआ बॉक्स रखा हुआ था , अन छुआ !
"चलो अच्छा हुआ | अभी पन्द्रह मिनट में मेरी एक और मीटिंग है | दस मिनट में खाना खाना है | चलो मैं भागता हूँ | बाद में फ़ोन करूंगा |" तन्मय के बात करते हुए खाने की आवाज़ साथ में आ रही थी |
"ओफ्फो, चैन से खाना खाया करो,एनीवे , तुम्हारी लाइफ है , जो चाहो.."

सामने ही अपने मेनेजर को देख कर सुजाता ने कहा -"चपटा सामने ही है, बाद में ..बाय "
"sujata, I have to go out for some work, can you attend the group meet on behalf of the group. It starts in seqoia at 2 in 10 minutes ? " उसने पूछा |
"स्युअर , नो प्रॉब्लम " सुजाता ने कहा और अपनी कॉपी लेकर चल दी सेकोइया की ओर|
दरवाज़ा खुलते ही सबसे पहले नज़र तन्मय पर ही पड़ी |
कभी कभी हम वही देखते हैं, शायद, जो हम देखना चाहते हैं ..
अच्छा, तो वह खाते खाते इसी मीटिंग की बात कर रहा था |
पर इस वक्त वह 'विरोधी' टीम से था | मीटिंग में कई बार सुजाता को तन्मय और अन्य लोगों की बातों का विरोध करना पड़ा और कई बार उसकी बातों को भी काटा गया | होता है ..

शाम को घर जल्दी जाना था , बच्चों को टाइम से लेना ज़रूरी है वरना फाईन लग जाएगा | और अभी बस एक ही घंटा बाकी है | पर जैसे कुछ बाकी रह गया था |
सुजाता से फ़ोन किया तन्मय को |
"क्या कुछ देर बाद तुम्हें फ़ोन करुँ?" जवाब में तन्मय ने दबे स्वर में कहा |
लगा जैसे कोई हाय - प्रोफाइल बात चीत चल रही थी वहाँ |
"ओके" कह कर सुजाता ने फ़ोन काट दिया |

आधे घंटे बाद सुजाता ने फ़िर कोशिश की फ़ोन मिलाने की, शायद कुछ ज़रूरी बात रह गई थी |
"सुजाता, कुछ देर में फ़ोन करता हूँ, पक्का " तन्मय की हाय -प्रोफाइल बात शायद अब भी चल रही थी|

काफ़ी देर इंतज़ार के बाद भी जब फ़ोन नहीं आया तो सुजाता ने अपना सिस्टम बंद करके अपना समान समेटा और चल दी | अभी कार खोला भी नहीं था की सेल पर रिंग बजी |
तन्मय कोलिंग ! तन्मय कोलिंग !
बार बार रिंग के साथ नाम फ्लैश हो रहा था |
"कहाँ हो ? तुम्हारे क्यूब की तरफ़ आ रहा हूँ " तन्मय ने कहा |
" मत जाओ , मैं घर जा रही हूँ | बहुत देर हो गई है , फिर कभी बात होगी " समान रखते हुए सुजाता बोली |
"क्या बात थी ? तुम कुछ कह रही थी ......" बिना रुके ही तन्मय कहता ही गया " अरे पूछो मत ! इस प्रोजेक्ट की वजह से दिन रात एक हो गए हैं | चलो आज ख़तम हुआ| मंजुला बहुत नाराज़ हो गई है | आज रात उसको बाहर डिनर पे ले कर जा रहा हूँ ! बताओ तो कौन सी जगह अच्छी रहेगी ?"
"फ्रेश चोइस ले जाओ , मस्त जगह है , बहुत आप्शन मिलेगी | " हँसते हुए सुजाता बोली |
"अच्छा चलो तन्मय अभी मैं ड्राइव कर रही हूँ , बाद में बात करेंगे | एंड यू गाएज़ हेव अ ग्रेट टाइम ! फ़न टाइम में काम की बात मत करना | और सारा ध्यान मंजुला को देना , वहाँ पर किसी गोरी को देख कर लाइन मारना शुरू मत कर देना ...... हेहेहे हेहेहे .." इसी बात पर दोनों बहुत ज़ोर से हँसे और अपने अपने रस्ते चल पड़े |

काम बहुत ज़रूरी है | काम ही पूजा है | ऐसा माँ कहती थी |
पर काम के साथ जीवन भी चलता है | और उसका महत्व भी कुछ कम नहीं होता ... होना नहीं चाहिए |

तन्मय जानता है की मैं उसके साथ कभी भी खाने पर नहीं जाऊंगी, शायद.... जा ही नहीं सकती | पर नाम मात्र को भी अगर मुझसे पूछ लिया होता तन्मय, तो मुझे बहुत खुशी होती |
पर मैं मानती हूँ तन्मय काम बहुत ज़रूरी है | काम ही पूजा है | ऐसा माँ कहती है |

अरे हाँ तन्मय , जल्दी में बताना भूल गई | आज वाकई मेरा जन्म दिन था |
.. पर इस उम्र में बर्थडे तो याद भी नहीं रहता......

जस्ट फोगेट ईट !
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1 comment:

"अर्श" said...

बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने , ढेरो बधाई आपको..


अर्श