Friday, March 27, 2009

फूल भी हो दरमियाँ तो फासले हुए !

ईमेल दूसरी बार खोला .....सोच कर की शिष्टता के लिए ही सही , जवाब तो देना चाहिए |
पर फिर से बंद कर दिया .. नहीं , क्या फायदा ...फिर से वही होगा ....नो, नॉट अगेन ......

जब से विश्वास टूटा है , दोस्तों पर से , दोस्ती पर से , किसी से हँस के बात करने को भी मन नहीं करता है | लगता है , हर कोई सिर्फ किसी मकसद से ही मिल रहा है , कोई मतलब है हर किसी के ..बात करने का .....

...या शायद मैं भी ऐसी ही तो नहीं हूँ? हो सकता है, बिलकुल हो सकता है , दूसरों की गलती देखने से पहले मुझे अपने गिरेबान में भी झांकना होगा | या शायद मैंने दोस्त ही ऐसे चुने हैं ... पता नहीं ...

पता है संसार में सबसे बड़ी ख़ुशी क्या है ? जब आप मन से किसी को अपना मित्र मानते हैं , किसी के साथ आप इतना जुड़ जाते हैं की पता ही नहीं चलता की बात करते करते कितनी देर हो गयी .... मज़े की बात तो ये है की आपको ये भी याद नहीं रहता की आपने बात क्या की पर हाँ , कुछ तो बात होगी जो इतने घंटे बीत गए ... जब आप अपना हर कार्य ये सोच कर करते हैं की - अरे , ये ड्रेस अगर आकांक्षा देखेगी तो कितना हँसेगी , नहीं इसे नहीं इसे खरीदूंगी , मुझे पता है उसका टेस्ट मुझसे अच्छा है, उसे ये ही अच्छा लगेगा, हाँ ये लेना चाहिए .... देखो न , अगर इस रोल में विश्वास देखगा तो सोचेगा मुझे एक्टिंग नहीं आती , मैं ये रोल नहीं करूंगी , मैं इस से अच्छा कर सकती हूँ ... और करूंगी ...

कितना अच्छा लगता है जब आप अपने आप को स्ट्रेच करते हैं क्योंकि आप कुछ प्रूव करना चाहते हैं , उन लोगों को जो मायने रखते हैं, आपके लिए ........

पता है संसार का सबसे बड़ा दुःख क्या है ? जब आप अपने उन्हीं मित्रों से दूर हो जाते हैं ..... मन से .... |

कुछ भी तो नहीं बदलता संसार में ... सब कुछ जैसा था, वैसे ही चलता है ..... पर आप बदल जाते हैं ... आपकी सोच बदल जाती है | फिर न वो विश्वास रहता है, न ही आकांक्षाएं .......... विवेक तो जैसे मर ही जाता है |

फिर कोई भूले बिसरे आपक उदास चेहरे पे जो पूछ ले की क्या हुआ तो बस इतना कहते बनता है की तबियत ख़राब हो गयी है , और क्या कह सकते हैं.... हर रिश्ते को यहाँ मुहर लगानी ज़रूरी है , फिर वो रिश्ता जो था , है नहीं , उसकी मौत का सदमा, किस तरह से इज़हार किया जा सकता है .... क्या बेवकूफी है ... ओफ्फो !

नए ईमेल के आइकन ने ध्यान फिर से खींच लिया |

"साधनाजी, आपको याद है , गत समारोह में मैं आपसे मिला था | आपने मुझे एक्टिंग के क्षेत्र में प्रयास करने को कहा | आज मैंने पहली बार स्टेज पर परफोर्म किया है | मेरे मित्रों ने मेरे इस प्रथम अभियान को बहुत सराहा | आपका बहुत धन्यवाद , जो आज मैंने अरसे बाद फिर से अपने पसंदीदा कार्य में कदम रखा !!!! "

अरे ! ये अंकुर पागल है क्या ? कहा न मैंने इसको मुझे इस से बात नहीं करनी है | कोई ज़बरदस्ती है ... इतने सारे ईमेल ... मुझे क्या है ... देने दो.... अपने आप बंद हो जायेगा ......

अंकुर की ईमेल में मुझे अपना अतीत दिखता है | हाँ ... वही भाव जो मेरे थे , कुछ समय पहले ... वही भोलापन, वही निश्चलता , वही भाषा का प्रवाह, बिना रुके बोलते जाने की दौड़ , बिना किसीकी सुने बस अपने कहते रहने की चाह ..... हर नयी मुलाक़ात से एक नयी दोस्ती की आशा , सच अंकुर बिलकुल मेरे जैसा है ... या शायद मैं उसके जैसी थी ....

पर अब मैं संभल गयी हूँ ... समझ गयी हूँ ....... रिश्तों में इतनी दुनियादारी देख चुकी हूँ की अब दुनियादारी पर ही रिश्तेदारी निभा रही हूँ | अब अंकुर को जवाब देना उसका हौसला बढ़ाना होगा.... गलत होगा |

लेकिन, एक मिनट ... रुको...

पर ये एक मौका भी है कई बातों को झूठ साबित करने का | है नहीं क्या?

मैंने जितनी दोस्ती की , गलत साबित हुई .... पर मैंने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी की ... फिर हुआ क्या ? मन में विश्वास की जगह ये छि : भावना कैसे आ गयी ? हर बात पर मैंने पहल की, शिकायत का कभी मौका नहीं दिया पर हर बार धोखा ही देखा , हर जगह स्वार्थ जीत गया , और मेरा विश्वास हार गया |

पर हर किसी के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए | अंकुर वो है .... जो मैं थी, इश्वर उसके विश्वास को बनाए रखे ... उसके साथ मेरे जैसा व्यवहार ना हो....उसका दोस्ती पर से भरोसा नहीं उठाना चाहिए ... और मैं शायद उसमे उसकी मदद कर सकती हूँ ... कम से कम कोशिश कर सकती हूँ ... की उसका हौसला बना रहे ... मैं उसे जानती नहीं हूँ . ..... पर इतना जानती हूँ की उसमे बहुत काबिलियत है... बहुत जोश है ... एक दिन कुछ बन ने की क्षमता रखता है... बशर्ते उसका मनोबल न टूटे |

हाथ स्वतः ईमेल का जवाब लिखने लगे-
अंकुर, पहली सफलता पर बहुत बहुत बधाई ! ऑडिशन पर ही मुझे पता चल गया था की तुम्हारा स्टेज पर अच्छा नियंत्रण है | बस अब अपने काम में लग जाओ और निरंतर आगे बढ़ते रहो |
शुभकामनाओं सहित,
साधना

सेंड का बटन दबाते ही एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी | कितनी अजीब बात है न , किसी को ख़ुशी देने से खुद को भी कितना अच्छा लगता है |
सच विश्वास , आकांक्षा और विवेक , तुम लोगों की आज बहुत याद आ रही है ... दिल कर रहा है तुम सब के साथ अपनी नयी ख़ुशी बांटने का... लेकिन तुम सब अब बहुत आगे की सोचने लगे हो ... बहुत तेज़ भागने लगे हो ... लेकिन पता है क्या कहते हैं ... चूहे की दौड़ में तुम कहीं भी रहो, आखिर चूहे ही रहोगे , है न.... दोस्तों, एक बार इंसान बन कर देखो तो सही .... तुम मुझे वहीँ खडा पाओगे जहाँ से हम अलग रस्ते गए थे ....

चलो, तुम्हें तुम्हारी दौड़ मुबारक हो ...

अल दी बेस्ट !

3 comments:

श्यामल सुमन said...

कितनी अजीब बात है न , किसी को ख़ुशी देने से खुद को भी कितना अच्छा लगता है | वाह। कहते हैं कि-

जो अपने लिए हों वह शबो रोज है बेकार।
जो सबके लिए गुजरे वो लम्हा ही बहुत है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsoman@gmail.com

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

अच्छा लिखा है अर्चना। लगा जैसे अपने किसी दुखते रग की ही बात की है तुमने, आपबीती...

ये word verification हटा लो प्लीज़।

इरशाद अली said...

सून्दर प्रयास। बहुत बहुत बधाई