Tuesday, January 6, 2009

अपना भी कोई एक घर होगा !

"अगर कौडियों में सबसे अच्छे इलाके में घर चाहिए तो अभी के अभी इस पते पर पहुँच जाओ .... और सुनो मेरा अप्रूवल पेपर ले जाना .... और हाँ बस उनके रेट पर ऑफर दे देना | मैं कल ही वापस आ रहा हूँ |" देव, हमारे एजेंट ने एक ही साँस में इतनी लम्बी बात कह डाली | ऐसा लग रहा था की जैसे लॉटरी की टिकेट लग गई हो और बस उसे भुनाने की देर हो |

वाकई कुपर्तिनो में इस दर पर ये घर नामुमकिन सा लगा | फिर पता चला की ये एक फोर क्लोस्ड घर है जिसे बैंक जल्द से जल्द बेचना चाहती है | इसी कारण इसका दाम कम रखा है ताकि बिक जाए |

तनुष बहुत खुश थे | हम करीब तीन साल से घर ढूंढ रहे हैं | ऐसा घर जो हमारे बजट में आ जाए, जिसमे स्कूल अच्छे हों और जिसमें कम से कम दो बाथरूम हों ! पिछले दस साल से एक बाथरूम के कोंडो में झेल रहे आंसूओं को तो बस हम ही जानते हैं | लेकिन सिलिकन वेळी में शायद सब लोग यही चाहते हैं जो हम चाहते हैं | तभी तो पचास हज़ार डॉलर ज़्यादा ऑफ़र देने पर भी हमें घर नहीं मिला था एक बार | ऐसे में इतने कम दर पर ये घर एक दुआ कबूल होने के जैसा था |

हम जिस कपड़े में थे उसी में निकल पड़े | बच्चे एक बर्थडे पार्टी में गए हुए थे | सोचा लौटते हुए उन्हें ले लेंगे | तब तक ये काम बन जाए तो ...

बाहर से घर देखने में बुरा नहीं था | वैसे भी लुक्स पर कौन जाता है | जो दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज़ है ?

हम जैसे अन्दर जा रहे थे तो कुछ लोग बाहर आ रहे थे | एक अजीब सी परेशानी सी दिखी उनके चेहरे पर, जाने क्यों ?

अन्दर माहौल बहुत बिखरा बिखरा सा था | जैसे कोई बहुत ही हफ्रा तफरी में गया हो और जल्दबाजी में आधा समान छूट गया हो | देख के थोड़ा सा नर्वस लगा |

जाने किसकी नौकरी छूट गई होगी , जाने क्या मुसीबत होगी उसके सर पर, जाने कहाँ गया होगा उसका परिवार घर छोड़ कर , जाने ... मेरी सोच टूट गई जैसे ही मैं मास्टर बेड रूम में गई और एक बड़े से टूटे हुए आइने में मैंने अपने आप को देखा |

उस कमरे की एक एक चीज़ जैसे बड़ी तस्सली से लगाई गई हो | वो क्लोसेट का डिजाइनर दरवाज़ा हो या खिड़कियों पर गोल्ड फ्रेम का डेकोरेसन | हर चीज़ की एक ख़ास खूबसूरती थी जैसे किसी ने बड़ी फुर्सत से उसे चुना हो पर जितना प्यार , उतना ही क्रोश निकाला गया है, ऐसा लग रहा था ...क्योंकि उस कमरे की हर एक डिजाइनर चीज़ टूटी हुई थी... तोडी गई थी ... बड़ी बेरहमी से... वैसे भी हम उसी पर ही तो अपना गुस्सा निकाल सकते हैं जिस से हम प्यार करते हों, बहुत प्यार करते हों ...

अमरीका भर में बहुत ही बुरा वक्त चल रहा है | जिस देश को मैंने कभी इतने उन्नत स्टेज पर देखा था , वहीँ पर आज ऐसी दुर्दशा देख कर मन द्रवित हो जाता है | जाने ये मुआ रिसेसन कब जायेगा | कब लोगों की दहशत ख़तम होगी | आज हर आदमी घर से यही सोच कर निकलता है की शाम तक उसकी नौकरी सलामत रहे | रोटी पानी बनी रहे | किसी को भी आज जॉब सिक्यूरिटी नहीं रही | कल क्या हो ये कोई नहीं कह सकता |

अचानक अपना नाम सुनकर मैंने हाँ कहा | लगा तनुष बुला रहे हैं शायद |
"क्या है, तुमने बुलाया ?" बाहर आते हुए मैंने पूछा |
"नहीं तो , तुम्हारे कान बज रहे हैं क्या ? अच्छा देखो , मैंने इनके एजेंट से बात कर ली है | सब कुछ हो जाएगा | आज के आज ही सब फिट कर देते हैं , अभी ये घर मार्केट में आया भी नहीं है, कम दाम में मिल जायेगा ... " तनुष बहुत उत्तेजित लग रहे थे |

"ज़रा रुक जाओ .." एक अजीब सा डर लग रहा था |

क़दम अपने आप ही एक के बाद एक कमरों में जा रहे थे | हर कमरा एक अलग कहानी कह रहा था |
टूटे दर्पण वाला कमरा मास्टर बेडरूम था | ये वाला कमरा शायद बच्चों का होगा | अभी तक दीवारों पर प्रिंसेस के पोस्टर लगे हुए थे | उनकी बेटी या बेटियाँ होंगीं | छोटी होंगीं | अलमारी से अब तक गन्दगी साफ़ नहीं हुई थी | बिखरे बिखरे अखबार और यहाँ वहां के डॉक्यूमेंट भरे पड़े थे | समय कम था फिर भी मन में बात जागी की देखूं तो डॉक्यूमेंट से कुछ पता चले | हाथ लगा ही था की एक बड़ा सा फाइल निचे गिर गया और सारे कागज़ कमरे भर में बिखर गए |
अरे अरे ! उसे समेटने के लिए मैं झुक गई ताकि फिर उसे अपने जगह पर रख दूँ |

जल्दी जल्दी करने की कोशिश कर रही थी | पर जैसे हर पन्ने को पढ़ ने का मन कर रहा था |

और फिर कुछ हाथ लगा | उसकी पीठ थी मेरे हाथ में.... एक फोटो का पिछला हिस्सा... सफ़ेद होता है न जो | मुझे पता था की ये उन्हीं लोगों का होगा जिनका ये घर था | मुझे देखना नहीं चाहिए ... दुःख होगा | नहीं नहीं , इसे फेंको और यहाँ से भाग जाओ | जाओ ... मैंने कहा न |

पर जैसे पाँव उठते ही नहीं थे | हाथ उस फोटो को छोड़ने को तैयार ही नहीं थी | किसी का दुःख देख कर तुम्हें क्या मिलेगा , तुम जाती क्यों नहीं हो? पर मैंने फोटो को मोडा और उन को देखा ...

परिवार चाइना का लग रहा था | फोटो उनके बच्चे के पहले जनम दिन का था शायद | इसी घर में लिया गया था उस बड़े वाले लिविंग रूम में | भरा पूरा परिवार हंस रहा था | दो बूढे माँ बाप भी दिख रहे थे पीछे खड़े हुए | बड़ी रौनक छाई हुई थी, बहुत ...

"और सुनो , इतना काम पड़ा है और मैडम आंसू टपका रही हैं " तनुष कमरे में आते हुए बोल पड़े |

मुझे पता ही नहीं चला कब आँख भर आई थी | आंसूं बह रहे थे और मुझे होश ही नहीं था | मैं भी इतनी स्टूपिड हूँ न !
ओ माय गौड़ ! मैं आँख पोंछने की इतनी कोशिश कर रही थी पर जैसे रुकते ही नहीं थे | तनुष से मुंह छुपा कर मैं बाथरूम मैं घुस गई |

मुझे इतना कमज़ोर नहीं होना चाहिए | ऐसी भी क्या भावुकता | न जान न पहचान , और ये सब तो होता रहता है| शायद वे लोग आज भी खुश हैं , जहाँ भी हैं | और तुम्हारे परेशान होने से किसी का भला तो नहीं होगा न .... तुम क्या कर सकती हो, जो होना था वो तो हो चुका है |

ख़ुद को मन भर का हौसला देने के बाद , बहते हुए दरिया को बाँधने के बाद , जैसे ही नज़र उठाई , एक बड़े से पोस्टर से मैं टकरा गई .... ठीक मेरे सामने था ... मुझे कुछ कहता हुआ ... मुझपे हँसता हुआ .... या शायद रोता हुआ .... उस पर प्रभु ईसू का फोटो था ... क्रॉस पर लटकते हुए ... एक औरत हाथ जोड़े खड़ी थी क्रॉस के नीचे.... और कुछ लिखा था...

"...... This too shall pass !"

फिर न मैंने ख़ुद को समझाने की कोशिश की और न ही वहां रहने की| बाहर तनुष खड़े थे |
भाग कर उनसे लिपटते ही मेरा बाँध टूट गया | फूट फूट कर आंसू बाहर आ रह थे |

"तनुष हम यहाँ नहीं रहेंगे, मुझे नहीं चाहिए ये घर| इसकी गंध में एक उमस है , एक आह है | तनुष, हमें यहाँ नहीं रहना तनुष , नहीं रहना हमें यहाँ .... ऊं ऊं ऊं ......भगवान् न करे ... अगर कल हमारे साथ ऐसा कुछ... " मेरे मुंह से कुछ भी निकाल रहा था , बिना सोचे बोल रही थी मैं |

"पागल हो तुम. अरे ऐसा डील फिर नहीं मिलने वाला | हमारा सब रेडी है | बस साईन करने की देरी भर है | चलो चलो ज़्यादा इमोसनल नहीं होते हैं | आते ही सत्य नारायण पाठ करवाएंगे | सो, हवा भी शुद्ध हो जायेगी | कब से कह रही हो कोंडो में जगह कम पड़ रही है | एक बाथरूम में कितनी दिक्कत आ रही है | और सुन लो , अब तो जो घर आयेंगे मार्केट में, उनमे से आधे इसी तरह के होंगे | अब हर घर से तुम्हें आह सुनाई दे तो फिर भइया हो गया बेडा पार ... " तनुष मेरी बात को सुन ही नहीं पा रहे थे शायद या मैं ही कुछ ज़्यादा सुन रही थी ... पता नहीं ....

"नहीं तनुष, हर घर से एक ध्वनि आती है, एक वयिब होता है, मुझे यहाँ पर किसी की हाय सुनाई देती है | जब मैं यहाँ आई थी तब मुझे कुछ नहीं था पर यहाँ कुछ है , जिसे मैंने फील किया है | तुम्हें नहीं लग रहा ... कुछ अन्दर से ..." मुझे यकीन नहीं हो रहा था की जिसे मैं अपने में इतना धड़कता हुआ महसूस कर रही हूँ , वो किसी और को क्यूँ नहीं हो रहा ????

"तनुष , हम अपने छोटे से कोंडो में ही रह लेंगे | अब प्लीज़ चलो यहाँ से ......प्लीज़ .......... "

तनुष मौके की नजाकत को समझते हुए बाहर आ गए , वैन का लौक खोला और गाड़ी स्टार्ट की |
अपना बेल्ट बांधते हुए मेरे मुंह में ये गीत बार बार आ रहा था -".. किसी का प्यार न टूटे, किसी का घर द्वार न छूटे ..." |

उस घर से अपने घर तक आते आते तीन घरों पर "Bank Owned" का बोर्ड लगा हुआ देखा |

सी डी पर गीत बज रहा था -

इन भूल भुलैया गलियों में अपना भी कोई एक घर होगा ,
अम्बर पे खुलेगी खिड़की या खिड़की पे खुला अम्बर होगा ,

पल भर के लिए इन आंखों में हम एक ज़माना ढूंढते हैं ...
आबोदाना ढूंढते हैं एक, आशियाना ढूंढते हैं .......

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