Wednesday, March 10, 2010

अमरीका में आकाश वाणी भाग २

कई गलत जगहों पर घूम फिर कर , ढूंढते ढूंढते मैं रेडियो स्टेशन पर पहुँच गयी | तीन बड़े बड़े लम्बे लम्बे टावर खड़े थे सामने जिन पर लाल बत्ती टिम-टिम कर रही थी |
मेरा दिल बहुत बुरी तरह से धड़क रहा था |बड़े दरवाज़े से अन्दर गयी तो वहां कोई नहीं था , एक अँगरेज़ के सिवा |
मैंने अपना नाम और मकसद बताया तो उसने जवाब दिया की अभी उस शो के लोग आये नहीं हैं |
टेबल पर तीन बड़े बड़े मायिक लगे थे | मैं एक मायिक के पास पड़े कुर्सी पर बैठ गयी |
"वो मेरी कुर्सी है... वहां मैं बैठता हूँ..." एक आवाज़ सुन कर मैं सिहर गयी |
"हाई ! मैं श्लोक हूँ और ये मेरी मैडम- ज्योति " अपना मशीन लगाते हुए श्लोक कहे जा रहे थे |

"कितना टाईम बाक़ी है ?" श्लोक ने उस अँगरेज़ से पूछा जो मेन मशीन चला रहा था |
" टेन सेकंड्स .." और फिर उलटी गिनती के ख़तम होते ही श्लोक ने अपने लैपटॉप से रेडियो का फीड स्टार्ट कर दिया |

"अरे वाह ! ये तो कमाल है " मैंने सोचा |

प्रोग्राम हिंदी गीतों का था | श्लोक और मुझे बारी बारी उन गीतों से लोगों का परिचय कराना था |
कभी शेरों का सहारा था, कभी चुटकुलों का तो कभी महज़ कुछ अच्छी सी बात बोल कर उन गीतों को हम शुरू कर देते थे |

प्रोग्राम के एक हिस्से में एक डॉक्टर भी आयीं थीं | मेरी तरह उनका भी पहला दिन था रेडियो पर | हम दोनों ही बहुत एक्साईटेड थे |कभी कभी लोग कॉल भी कर रहे थे अगर उन्हें कोई फरमाईश देनी हो या डॉक्टर से कोई सवाल हो या कोई भी बात करनी हो |

प्रोग्राम कब ख़तम हो गया, पता ही नहीं चला |दो घंटे जैसे मिनटों में उड़ गए |

शो के बीच में किसी ने कॉल कर के कहा की मेरी आवाज़ उन्हें बहुत अच्छी लगी | मुझे सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई|

शुक्रिया कह कर जब मैं अपने काम को ड्राईव कर थी तो लग रहा था कितना अच्छा होता जो मुझे यहीं काम मिल जाता | कम पैसे मिलें तब भी में यहाँ काम करने को तैयार हूँ | कितनी ख़ुशी होगी न अपने पसंदीदा काम में ही काम करने में| है न?

लेकिन यहाँ कोई ऐसा काम नहीं है |
तो कहानी का सार यही है की अपनी रोज़ी रोटी इसको आप नहीं बना सकते हैं |
लेकिन हाँ अगर रोज़ी रोटी का जुगाड़ आप कर चुके हैं तो उसके साथ आप इसे कर सकते हैं, शौकिया तौर पर |

पर मैं तो इसी में खुश थी मुझे एक मौक़ा मिला इस बढ़ते हुए सैलाब का एक हिस्सा बनने का|

अब देखो किस्मत क्या खेल दिखाए .....

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3 comments:

Randhir Singh Suman said...

nice

Udan Tashtari said...

बधाई..हो सकता है कभी यही रोजगार का साधन बन जाये, शुभकामनाएँ.

Ram Pandey said...

Archana ji you are so talented you have grate sence of humer you did a wrong digrees phd in hindi through ignu. make a team of poets pl do not expose your weekness,this is the princeple of show busyness.
R.L.Pandey Atlanta
rl.pandey@rediffmail.com