Wednesday, March 10, 2010

अमरीका में आकाश वाणी भाग १

कई साल पहले टेक्सास से वापस आते हुए मन में ख्याल आया था की कितना अच्छा होता अगर बे एरिया का भी अपना रेडियो स्टेशन होता | उस वक़्त टेक्सास में मैं "सलाम नमस्ते " - चौबीस घंटे वाला इंडियन रेडियो स्टेशन -सुन कर बहुत खुश हुयी थी|
बरसों बाद जब सुना की के.एल. ओ. के का एक नया रेडियो सेण्टर बे एरिया में खुलने जा रहा है तो मन ख़ुशी से झूम उठा|
फोन घुमाया, ईमेल किया की कुछ घंटों के लीज़ के लिए के लिए यह सेण्टर कितना चार्ज कर रही है |
दाम सुन कर सारे हौसले पस्त हो गए|

पता चला की आम तौर पर एक घंटे के लिए तीन सौ डॉलर से पांच सौ तक रेट हो सकता है|
ड्राइव टाइम यानी की जब लोग अपनी गाड़ियों में आते जाते हैं उस वक़्त रेट बढ़ कर पांच सौ या उस से भी अधिक हो जाता है|

तो फिर शो के पैसे कहाँ से आयेंगे ??? क्या इश्तेहारों और गेस्ट स्पीकर लोगों से इतना बन जायेगा |
और फिर एक फुल टाइम जॉब और फॅमिली की जिम्मेदारियों के साथ मुझे लगता नहीं की मैं इतने एड्स की मार्केटिंग कर पाऊंगी|
तो फिर मैं यही कर सकती हूँ की अगर किसी प्रोग्राम मैं हेल्प कर सकूं तो शायद उनकी कुछ मदद हो जाएगी और मेरा शौक़ भी पूरा हो जायेगा .... शायद ....

चलो, फिर मैंने सभी प्रोग्रामों को सुनना शुरू किया | मुझे इनमें से एक शो बहुत ही अच्छा लगा - "ख़ुशी सवेरे की" | लेकिन मुझे लगा की अगर शो और उसके होस्ट इतने माहिर हैं तो वो मुझे साथ क्यों लेंगे | मैं रुक गयी|

फिर मुझे बे एरिया में एक बहुत बड़ा टलेंट कांटेस्ट के आयोजन का मौका मिला | इसी इवेंट के प्रोमो के लिए मुझे अपने प्रिय रेडियो शो के होस्ट एवं उनकी फॅमिली से मिलने का मौक़ा मिला |हमारी इवेंट में बहुत सारे भाग लेने वाले लोग रेडियो पर सुन कर ही आये थे |

फर्स्ट लेस्सन - पहली सीख - मीडिया के पॉवर को कभी कम नहीं समझो | एक ही झटके में कितने सारे लोगों तक आपकी बात पहुँचती है | ये आप पर निर्भर है की आप अपनी ज़िम्मेदारी किस तरह से निभाते हैं | आप इसे हलके तरह से लेकर - सिर्फ 'फन' कह सकते हैं या इसके ज़रिये बड़े बड़े काम कर सकते हैं... जिसे लोगों का भला हो...

चलिए कहानी आगे सुनते हैं |

ज़िन्दगी चलती रही | इतनी हिम्मत नहीं हो पा रही थी की कदम बढ़ा कर रेडियो पर कुछ करा जाए|

डर डर के एक दिन ईमेल कर ही दिया, अपने फेवरेट शो के होस्ट से, की अगर हम भी आपके शो में कुछ मदद कर सकें तो हमें बड़ी ख़ुशी होगी|

कुछ दिनों तक जब कोई जवाब नहीं आया तो बात आई गयी सी हो गयी | चलो , हमने कोशिश तो की...

एक दिन इतवार को मेरे ईमेल का जवाब आया .... "हमें इस नंबर पर कॉल करें जल्दी..." ... अरे वाह ! मौका मिलते ही हमने नंबर घुमाया....

"दरअसल बात ये है की हम अपने श्रोताओं में से एक को चुनते हैं कुछ स्पेशल दिनों में हमारे शो में आने के लिए.. क्या आप कल हमारे साथ शो को एंकर करना चाहेंगी ?..." श्लोक, ("ख़ुशी सवेरे की" के करता धर्ता) और उसके होस्ट , खुद मुझसे बात कर रहे थे |

मुझे यकीन नहीं हो रहा था ... आई मीन ... अरे यार !...कल मेरा बर्डे था | शायद मेरे साथ कोई मज़ाक हो रहा है या शायद मेरे हसबेंड ने ये सब अरेंज किया है मुझे खुश करने के लिए |
मैं कई दिन से राज जी से भी बात कर रही थी की चलिए कुछ करते हैं... क्या उन्होंने ये सब करवाया है |
ऐसे कैसे हो सकता है , ठीक मेरे बर्डे के दिन मुझे उस काम के लिए बुलाया जा रहा है , जिसको करने की मेरी तमन्ना आज की नहीं ... बरसों की है |
चलो देखते हैं..

"ऑफ़ कोर्स .. मैं ज़रूर आना चाहूंगी आपके शो में कल .... और प्लीज़ बताइए अगर कोई तैयारी करने की ज़रुरत है..." मैंने पूछा |
"अगर लेकर कर आ सकें तो एक बिलकुल खुली सोच - एक ओपन माईंड लेकर कर आइयेगा " हँसते हुए श्लोक ने कहा |

शुक्रिया कहकर जैसे ही मैंने आई फ़ोन को बंद किया , मेरे पैर धरती पर तो पड़ ही नहीं रहे थे |

मैंने अपने पति को फटाफट फोन मिलाया और बताया जो अभी अभी हुआ था | मुझे लगा की अगर उन्होंने ये सब खुद अरेंज किया है तो शायद हंस देंगे और मुझे पता चल जायेगा |

लेकिन उनकी बातें और आव भाव से यूं लगा की उन्हें भी उतना ही आश्चर्य हुआ है जितना की मुझे हुआ था !

अब बस रात काटनी बाकी थी | कब सुबह हो और मैं देखूं की आखिर रेडियो स्टेशन में होता क्या है॥ आखिर कैसा होगा वो मंच जहाँ से लोग इतने प्यारे प्यारे गीत बजाते हैं ... बड़े बड़े लोगों से बात करते हैं... खूब मजाक- मस्ती भी करते हैं.... आखिर कैसा होगा .....

पूरी रात मुझे नींद नहीं आई ... हर आधे घंटे बाद मुझे लगा ... क्या सुबह हो गयी..... अरे अभी तो सिर्फ ढाई बजे हैं...

चलो, सुबह आखिरकार आ हो गयी |
घर के सभी काम निपटा कर , इनके और बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करके मैं खुद रेडी हो गयी जाने के लिए उस जगह पर जिसे देखने की ख्वाहिश हिलोरें ले रही थी |

घर से निकलने ही वाली थी की पीछे से आवाज़ आई | मैंने मुड कर देखा |

"हेप्पी बर्डे टू यू ! हेप्पी बर्डे टू यू ...... " अरे yaar ! मैं तो अपना जनम दिन भूल गयी थी |

उस परम पिता ने साल गिरह पर ही मुझे इतना अच्छा तोहफा जो दिया था .....

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आगे की कहानी पढ़िए भाग दो में .....

1 comment:

Vivek said...

झूट नहीं कहूँगा, प्रयास अच्छा था
सब कवियों का मन सच्चा था

पर जो सब ही जगह मिलता है, उसकी कीमत नहीं होती
केवल भावना भर से कविता नहीं होती

मिश्रण करें जब भाषा का, मन है जिस ओर
तब बनती है कविता जिस पर लोग बोलें ONCE MORE

अपनी कही बातों के लिए माफ़ी नहीं मांगूंगा
कल कुछ तो बहुत अच्छे थे, बाकियों के लिए एक मंच था
दिक्कत बस एक थी, कि मंच बहुत तंग था
और बच्चों के माँ बाप का ध्यान कुछ भंग था