Tuesday, August 11, 2009

ये जो मन की सीमा रेखा है ...

ये क्यूबिकल भी कितने खुले होते हैं न .... भावनाओं जैसे ...
कहाँ से कौन सी बात अनचाहे ही कानों में पड़ जाए, पता ही नहीं चलता | यूं तो सबको क्यूब एटिकेट खूब सिखाया जाता है - दूसरों की बात नहीं सुनते, दूसरों की मेल नहीं पढ़ते |
पर हम भी तो इंसान हैं .. कैसे बच सकेंगे.. . हंसी से... दर्द से... आंसू से ... प्यार से .....

"तुषार ऐसे करो तुम मेरे क्यूब में आ जाओ , यहीं पर ये काम निपटा लेंगे और जल्दी हो जायेगा ....." कोमल ने अपने सह कर्मी को फोन पर समझाया |
हमारा ये फ्लोर लगभग खाली ही था | गिने चुने लोगों की सीट थी यहाँ पर, बाकी सारा फ्लोर जैसे खाली था | काम करने वाले भी ज्यादातर घर से ही काम करते थे | बुरा हो मेरे मेनेजर का जो मुझे आज तक घर से काम करने की अनुमति नहीं देता है |

"हाँ देखो इस को यहाँ से हटाना है ... और देखो इसकी वजह से यहाँ बग आ रहा है..." कुछ देर में ही तुषार और कोमल अपने काम में व्यस्त हो गए | मेरा भी ध्यान अपने स्क्रीन पर केन्द्रित हो गया |

रोज़ इन दोनों की बातों को सुन सुन मुझे बहुत अच्छा लगता था| इस नीरवता और सन्नाटे को चुनौती देता हुआ इन दोनों का अनर्गल प्रलाप मुझे जीवित रखता था | धीरे धीरे जैसे मुझे इन दोनों से बहुत अपनापन सा आने लगा था .....जैसे एक आदत सी पड़ गयी इनकी आवाजों की|

पर कभी ध्यान नहीं दिया की क्या कहते हैं , उनके काम की बातें हैं , मुझे क्या?

पर पिछले कुछ दिनों से इनकी बातें कुछ बदल सी रही थीं | धीरे धीरे कुछ कुछ हंसी सुनाई पड़ती, कभी कभी शायद काम के बीचों बीच कुछ अपनी बातें भी हो जाती थीं |

"तुषार तुम्हें पता है, आज न कैफेटेरिया में एक नयी चीज़ आई है , चलो लेकर आते हैं, साथ में वाक भी कर लेंगे |" कोमल ने कहा |
इनकी बातों से अप्रत्यक्ष रूप से मैं अपने जीवन को पुनः जी रही थी | एक प्यार भरी ज़िन्दगी |
पर शायद इन्हें अपने ही एहसासों के पनपने का भान नहीं था |

"पता है तुषार, आज न ,बासु क्या पूछता है मुझे ? तुम तुषार को कैसे जानती हो? अरे, मैंने कहा हम साथ काम करते हैं " कोमल ने तुनकते हुए कहा |
"उसे इतनी तुम्हारी फ़िक्र क्यों हो रही है ? और उसने ऐसा सवाल क्यूँ किया ..." हंसते हुए तुषार बोला |
"छोडो उसे , अच्छा बताओ , इस इस्शु को कैसे सोल्व करें.." बात घुमाते हुए कोमल ने काम शुरू कर दिया | बात आई गयी हो गयी |

"पता है मुझे न प्रॉब्लम है कुछ, थोडा हेल्प कर पाओगे तुषार " शेर मिजाज़ वाली कोमल की एक बार मिमियाती सी आवाज़ सुन मुझे बड़ा अचम्भा हुआ |
"हे बड़ी, वाट्स अप्? " तुषार अपने अंदाज़ से बोल पड़ा |

"तुषार मेरे मन में कुछ गलत भावनाएं आ रही हैं कुछ , पता नहीं कैसे और क्यूँ | मैं इनसे लड़ने की बहुत कोशिश कर रही हूँ पर ये मेरे मन से जाती ही नहीं हैं , गलत भावनाओं पर काबू कैसे करते हैं तुषार , अगर तुम्हें पता हो तो बताओगे |" कोमल ने सहजता से अपने मन की बात कही |
"नहीं कोमल, हम सबके मन में कई तरह की बातें आती हैं , पर बुरे भावनाओं को बुरा जान पाना , ये भी एक अच्छे इंसान की पहचान होती है | अब देखा तो, मुझे इतनी बार मन करता है की अपने इस गधे बॉस को जाकर दो थप्पड़ मार कर आऊँ पर कभी मैंने ये नहीं सोचा की ये भावना गलत है | तुम अपनी भावना में गुड-बेड़ फर्क कर पा रही हो , बड़ी बात है ! " तुषार ने काम करते करते कहा |
"ओफ्फो मैंने कोई सर्टिफिकेट नहीं माँगा तुमसे की मैं गुड हूँ की बेड़ .... मैं परेशान हूँ .... की मेरा मन मेरा कहा नहीं मानता .... यहाँ वहां भटकता है ... मन काबू मैं कैसे करते हैं ???..... " कोमल वाकई परेशान लग रही थी |

"अरे यार ये जो प्रोब्लेम्स होते हैं न , छोटे मोटे और तेम्पोरारी होते हैं, देखो तुम्हारी जो प्रॉब्लम है , जो कुछ भी है , ज्यादा बड़ी नहीं है, इश्वर का ध्यान करो .... और ये छोटे मोटे प्रोब्लेम्स को भूल जाओ ... " तुषार बड़े ज्ञानी की तरह कह रहा था |

"तुम्हें किसने कहा की मेरा प्रॉब्लम छोटा है..... काम में बिलकुल ध्यान नहीं लग रहा ..... यार मुझे खुद में कोई और मिल रही है जो मेरी बात न सुनती है और न ही सुनना चाहती है .... मुझे अपने आप को वापस पाना है तुषार ... कुछ सुझाव दो.."

कोमल की बात मुझे कुछ कुछ समझ आ रही थी|

"उपवास किया है तुमने कभी? देखो, मुझे जीवन में सबसे अच्छा लगता है- अच्छा खाना | लेकिन खुद पर काबू सबसे पहले शुरू होती है -उपवास से - जब आप अपनी ज़रूरतों को रोक पाते हैं | कभी उपवास कर के देखो , देखना तुम्हारे सब प्रोब्लेम्स यूं ठीक हो जायेंगे... यूं " चुटकी बजा बजा कर तुषार जवाब दे रहा था |

अगले दिन फोन पर कोमल अपने शेर अंदाज़ से कह रही थी - "नहीं आज तुम अपना काम करो , मेरे पास बहुत पेंडिंग वर्क है, शायद हफ्ता भर लग जाए, चलो मेरा काम हो जाए तो बताऊंगी, तब तक तुम अपना काम करो, और मैं अपना काम करूंगी .. ..... नहीं .... चाहे जितनी देर लगे .... अब ऐसे ट्राई करेंगे... ओके तो फिर बाय " कोमल की बोली असामान्य थी , कोई भी जान सकता था |

दो तीन हफ्तों तक कोई आवाज़ नहीं पड़ी कानों में |
मुझे बहुत जिज्ञासा हुई की क्या हो गया ? क्या दोनों में कोई झगडा हो गया था ? आखिर हमेशा हंसने बोलने वाले इन दोनों बच्चों में क्या अन-बन हो गयी ? अरे प्यार हो गया है तो आपस में बात कर लो , शादी कर लो.. हाँ?

मैं उनकी हंसी और किलकारी बहुत मिस कर रही थी |

फिर से सन्नाटे और नीरवता का राज था |

एक दिन मैंने सोचा की कोमल से बात की जाए | कितनी हैरत की बात है न की इतने पास रहते हुए भी कितनी बार आप लोगों को पहचानते नहीं हैं | सोचा आज मौका है चलो दोस्ती की जाये |

क्यूब के बाहर पहुँच कर हल्का सा नोक् किया ही था की कोमल ने मेरी और देखा |

"हेल्लो मेरा नाम दिव्या है और मैं आपके क्यूब की उस और बैठती हूँ, आपसे कभी मिलना नहीं हुआ , सोचा आज हेल्लो कहूँ |" होंटों पर हंसी लाने की कोशिश करते हुए मैने कहा |

"ओ वाऊ ! मुझे तो पता ही नहीं था की कोई उस और भी है | लास्ट मंथ तो खाली था | क्या अभी आये हो?" कोमल आश्चर्य चकित थी|
"हाँ , अभी कुछ ही हफ्ते हुए हैं यहाँ |" उसके क्यूब में नज़र दौड़ते हुए मैंने कहा|

आँख एक फॅमिली फोटो पर अटक गयी | पूछा मैंने -"ये किसकी फॅमिली है? बड़ी प्यारी बच्ची है "

"ये गुडिया है..... मेरी बेटी " मुस्काते हुए कोमल का उत्तर सुनकर बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को संभाला |

"सो क्यूट ........"कहकर फिर मैं अपनी क्यूब की तरफ वापस आ गयी |

रह रह कर मन घूम रहा था | मेरी तंद्रा तब टूटी जब एक पहचानी आवाज़ ने मुझे चौंकाया -"हे बड़ी !"

आवाज़ तुषार की थी, कोमल के क्यूब से -- ".... और सुनो ....सोनिया कहती है अबके प्रिअस लेंगे, बताओ तो सिविक ठीक रहेगा या प्रिअस ? पहले ये कहो की तुम ने मुझसे बात क्यों नहीं की इतने दिनों से ?... इतना भाव क्यों खा रही हो ?? " तुषार का लहजा वही था ...सामान्य ... नैचुरल .....

कोमल अपना काम करते करते ही कह रही थी - "उपवास कर रही थी ....तुमने बताया था न ... हर प्रॉब्लम सोल्व हो जाती है ... मेरी तो नहीं हुई ...... कुछ और उपाय बताओ..."

"अरे अभी तो जन्माष्टमी में दो दिन हैं , तुम्हारे यहाँ क्या पहले से ही करने लगते हैं , किस चीज़ का उपवास है तुम्हारा ?" मैं तुषार के इस भोले सवाल पर हैरान थी | क्या सचमुच वो इतना नादान था?

"तुम्हें इससे क्या मतलब है ? तुम तो मुझे कोई रास्ता बताओ की अगर मैं कुछ गलत सोच रही हूँ तो मुझे क्या करना चाहिए ? .....तुम तो बड़े प्रक्टिकल हो .. तुम्हें पता होगा ...." तुषार को देखते हुए कोमल ने धीमे से पूछा |

"सही है , प्रक्टिकल होना चाहिए .... देखो अगर तुम अपने प्रॉब्लम से राहत चाहती हो तो कोई दूसरी बड़ी प्रॉब्लम को ले आओ ... नहीं तो पेनांस अर्थात प्रायश्चित करो...अगर तुमसे जाने अनजाने कोई गलती हो रही है तो इस बात की खुद को सज़ा दो... फिर अपने आप ही गलती करना बंद हो जायेगी | सही कहा न मैंने ?" कोमल की टेबल पर रखे किताब को बिना पूछे उठा कर तुषार पढने लगा|

"पेनांस... प्रायश्चित ... हाँ सही है .... वही सही है " बुदबुदाते हुए कोमल की आवाज़ बंद हो गयी |

मैंने अपने आई फोन को कानों में लगाया |
सच है - बुरी बात है औरों की बातें सुनना ...

क्या करें ये क्यूबिकल भी कितने खुले होते हैं न .... भावनाओं जैसे ...

4 comments:

निर्मला कपिला said...

क्या करें ये क्यूबिकल भी कितने खुले होते हैं न .... भावनाओं जैसे ...
बहुत गहरी भावमय रचना के लिये बधाई आभार्

Arshia Ali said...

Hamaare dil men utar gayee ye kahaanee.
{ Treasurer-S, T }

Unknown said...

Good one :)

संजय भास्‍कर said...

वाह!! शानदार प्रस्तुति..एक बेहतरीन रचना!